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इंटरव्यू

चाहता हूं कि मेरा भी कोई उत्तराधिकारी बने : हरिवंश

हरिवंशहमारा हीरो – हरिवंश (प्रधान संपादक, प्रभात खबर) : भाग-4 : देश को जो न्याय सरदार पटेल को देना चाहिए था, वह उनको नहीं दिया : मैं नीतीश कुमार से प्रभावित हो रहा हूं, इस व्यक्ति का कोई निजी एजेंडा नहीं है : हमारा लक्ष्य है कि संविधान के अनुसार राज्य चले :  पिता के शव को लेकर गंगा किनारे जलाने गया तो मुझे लगा कि जीवन है क्या? :  मुझे पुराने फिल्मी गाने बहुत पसंद है :  वाकई अब तो मन से चाहता हूं रिटायर होना : मैं खूब घूमना चाहता हूं : एक-दो लोग ऐसे मिले, जिन्होंने मेरे विश्वास को तोड़ा : जीवन में बहुत-सी चीजें हैं, जो कि छूट गई हैं, जिसे मैं करना चाहता हूं :

हरिवंश

हरिवंशहमारा हीरो – हरिवंश (प्रधान संपादक, प्रभात खबर) : भाग-4 : देश को जो न्याय सरदार पटेल को देना चाहिए था, वह उनको नहीं दिया : मैं नीतीश कुमार से प्रभावित हो रहा हूं, इस व्यक्ति का कोई निजी एजेंडा नहीं है : हमारा लक्ष्य है कि संविधान के अनुसार राज्य चले :  पिता के शव को लेकर गंगा किनारे जलाने गया तो मुझे लगा कि जीवन है क्या? :  मुझे पुराने फिल्मी गाने बहुत पसंद है :  वाकई अब तो मन से चाहता हूं रिटायर होना : मैं खूब घूमना चाहता हूं : एक-दो लोग ऐसे मिले, जिन्होंने मेरे विश्वास को तोड़ा : जीवन में बहुत-सी चीजें हैं, जो कि छूट गई हैं, जिसे मैं करना चाहता हूं :

 -आपका सबसे पसंदीदा राजनेता कौन है?

–गांधी जी को छोड़ दीजिए, क्योंकि वे एक्स्ट्रा-ऑर्डिनरी थे। लेकिन मुझे लगता है, देश को जो न्याय पटेल को देना चाहिए था, वह उनको नहीं दिया। सरदार पटेल में अदभुत क्षमता थी। उन्होंने देश को हजारों साल बाद एक रूप दिया। उनके व्यक्तित्व के अनेक पहलू थे, जो देश आज भी नहीं जानता है। मुझे पढ़कर आश्चर्य हुआ कि वह अपने जमाने के सबसे शौकीन अंग्रेज लॉयर थे। इंग्लैंड से दो वर्षों का कोर्स डेढ़ वर्षों में पूरा करके लौटे थे। इतने ब्रिलिएंट थे। सबसे महंगी शराब से लेकर सबसे महंगे कपड़े तक वह रखते थे। उस व्यक्ति ने जब देश-व्रत लिया तो खद्दर के फटे हुए कपड़े तक पहने। उन्होंने 1950 में नेहरू को पत्र लिखकर कह दिया था कि चीन से सावधान रहिए,  चीन आप पर हमला करेगा। इस व्यक्ति को देश ने वो सम्मान नहीं दिया जो देना चाहिए था। एक और नेता, जिनसे मैं और प्रभावित हो रहा हूं। वह हैं नीतीश कुमार। इस व्यक्ति का कोई निजी एजेंडा नहीं है। परिवार का कोई सदस्य साथ में नहीं। उनको पसंद करने का पहला कारण, घर के किसी भी व्यक्ति का प्रशासन में हस्तक्षेप न होने देना। वह अकेले रहते हैं, काम करते हैं। आप देखिए कि लालू प्रसाद, रामविलास पासवान का सारा खानदान और कुनबा ही विधायक था, सांसद था। दूसरा काम। बिहार में पिछले 15 वर्षों से अपराधियों का आतंक था। किसी को उम्मीद थी कि अपराधियों को नियंत्रित किया जा सकेगा? वह अपहरण की राजधानी था। उस राज्य में सिस्टम बनाकर एक-डेढ़ लाख अपराधी पकड़े गए। स्पीडी ट्रायल करके चौतीस हजार लोगों को सजा हुई। किसी राज्य में ऐसा नहीं हुआ। नब्बे लोगों को फांसी की सजा हुई। आज एक अपराधी घबराता है, कोई हरकत करने से। कोई कांट्रेक्ट नहीं लेता था। बीस इंजीनियर्स, कांट्रैक्टर्स का अपहरण हो गया था और कितनों का मर्डर हो गया था। आज किसी की हिम्मत नहीं पड़ती। लोगों ने यही कहा कि अपराधियों से हमें जो आजादी मिली है, इसको हम दुबारा खोना नहीं चाहते। इसलिए नीतीश कुमार को सफलता मिली। अगर कास्ट वाइज चुनाव होता तो जितनी सीटें लालू-पासवान को आई, इतनी नीतीश कुमार को आनी चाहिए थी क्योंकि इनका तो कास्ट है नहीं। नेता तो वही है, जो हर जाति के लोगों के बीच अपना समर्थन बना ले। नीतीश पर  भ्रष्टाचार का आरोप आज तक नहीं लगा,  साढ़े तीन वर्ष हो गए।

-झारखंड में शिबू सोरेन उर्फ गुरुजी भगवान की तरह माने जाते थे। उनके पतन का कारण?

–परिवारवाद और अनैतिक राजनीति।

-अलग झारखंड राज्य बनवाने के बाद ‘प्रभात खबर’ का नया एजेंडा क्या है?

–पत्रकारिता में मैं मानता हूं कि अपने समय की चुनौतियों को स्वीकार करना सबसे बड़ा लक्ष्य होता है। ‘प्रभात खबर’ झारखंड में है। तब वहां की चुनौती थी कि वह अलग राज्य बने। अब चुनौती है कि वहां अच्छा प्रशासन चले। अब वह सबसे भ्रष्ट राज्यों में से एक हो गया है। उसके खिलाफ ‘प्रभात खबर’ ने लगातार अभियान चलाया है। वहां पर जितने काम हो रहे हैं, जो भी जांच चल रही है या मामले हाईकोर्ट में गए हैं, सब ‘प्रभात खबर’ के कारण। हमारा लक्ष्य है कि संविधान के अनुसार राज्य चले।

-फिल्में देखते हैं या नहीं?

–हां, पुरानी फिल्में बहुत देखते थे।  अभी कई वर्षो से फिल्म नहीं देखी।  हाल-फिलहाल ‘स्वदेश’ फिल्म देखी। मुझे घर के लोग हाल में दिखाने ले गए। अच्छी मूवी लगी।

-नौजवान हरिवंश किस नायिका से प्रभावित हुए?

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–जिस तरह की फिल्में मुझे पसंद आई, मैं उनके नाम बताता हूं आपको…..सफर, राजेश खन्ना-वहीदा रहमान की खामोशी,  मिली,  आनंद। ये सारी फिल्में एक टैªक की हैं, एक विषय की हैं। आनंद में राजेश खन्ना कैंसर का मरीज होता है, मरता है, जीवन खत्म हो जाता है। ये चीज मेरे दिमाग में बहुत हावी रहती है। जब मैं अपने पिता के शव को लेकर गंगा किनारे जलाने गया तो मुझे लगा कि जीवन है क्या? शायद इस वाकये ने जीवन में मुझे बहुत-से गलत काम करने से रोका।  

-आप गाते-गुनगनाते हैं?

–अभी हाल ही में मैंने जो ‘शब्द-संसार’ (प्रभात खबर अखबार में नई किताबों पर एक स्थायी स्तंभ) लिखा,  अदभुत है। एक अदभुत प्रयोग अंग्रेजी में पढ़ने को मिला। ये किताब मुझे एयरपोर्ट पर मिली। ‘लीडिंग फ्राम विदिन’ है शायद नाम उसका। बहुत सुंदर तरीके से छपाई हुई है। मेरे पास उस वक्त उतने पैसे नहीं थे, हजार रुपए कीमत थी। मैंने अपने दूसरे मित्र को फोन किया और कहा कि उस किताब को ले लीजिए। उस किताब को सेनफ्रांसिस्को की एक संस्था ने छापा था। इसमें है क्या कि जो अमेरिका के टॉप लोग हैं, टॉप सर्जन, टॉप राजनीतिज्ञ, टॉप एकमेडिशियन, टॉप स्पोर्ट्समैन, टॉप उद्यमी, उनको कौन-सी कविताएं कब प्रेरित करती रही हैं। उस पर उस प्रकाशक ने कहा कि अपने अनुभव आप हमारे लिए लिखिए। तो कैनेडी के भाई ने लिखा कि कविताओं ने हमारे भाइयों को कैसे प्रेरित किया। एक पेज का नोट, और सामने वो कविता। उस तरह से एक नया प्रयोग कविताओं का। यानी उसमें वर्ड्सवर्थ से लेकर, राबर्ट फास्ट, रिलके तक जितने महत्वपूर्ण कवि हुए हैं, उनकी कविताएं कैसे प्रेरित करती हैं, एक सर्जन को, राजनीतिज्ञ को, उस किताब से पता चलता है। नए ढंग का प्रयोग है। उसे पढ़ कर मैंने ‘शब्द संसार’ लिखा था। उसमें कई कविताएं ऐसी हैं, जो महत्व की हैं। वे कविताएं जीने की ताकत देती हैं। कुछ कविताएं हिंदी की, अंग्रेजी की भी।

मुझे पुराने फिल्मी गाने बहुत पसंद हैं। अंग्रेजी की एक कविता,  बचपन से  मुझे याद रही है। मैंने लोगों से सुना था कि जब जवाहर लाल नेहरू मरे थे तो उनके टेबल से एक कविता मिली। बाद में पता चला कि वह राबर्ट फास्ट की कविता थी। वो बड़ी क्लासिक कविता है। उसका मतलब ये है- ‘मैंने जीवन में प्रतिज्ञा की थी कि सोने से पहले मीलों चलना है, सोने से पहले मीलों चलना है, यानी सोना नहीं है।’ जवाहरलाल मरे तो उनके टेबल पर वह कविता मिली थी। तो इस तरह की कविताओं ने मुझे प्रेरित किया है। मुझे जयशंकर प्रसाद की ‘कामायनी’ बहुत पसंद है। प्रकृति के बारे में सुमित्रानंदन पंत की बहुत-सी कविताएं बहुत पसंद हैं। धूमिल की कविताएं सड़ियल व्यवस्था पर चोट करती हैं। बहुत ही सुंदर। मुझे साहित्य ने चीजों को समझने में बड़ी मदद की है।

-आपकी उम्र कितनी हो गई,  रिटायरमेंट के बारे में कुछ सोचा है?

–मेरी उम्र पचपन तो होनी ही चाहिए। अब तो मैं गोयनका जी (केके गोयनका, जो बातचीत के दौरान बगल में बैठे थे) से कह रहा हूं कि यहां 20 वर्ष हो गए हैं। वाकई अब तो मन से चाहता हूं रिटायर होना। दो चीजें मेरे जेहन में हैं, जिनसे मैं बड़ा प्रभावित भी हूं। पहला, नारायण मूर्ति ने जो नया प्रयोग किया। अपने उत्तराधिकारी को खड़ा करना। दूसरे, असल योग का काम जो देश में कहीं हुआ है तो मुंगेर में। वहां योग का अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय है। उसमें अदभुत साधक हैं। वहां योग पर वैज्ञानिक अध्ययन हुआ है। वहां मैं आता-जाता रहता हूं। वहां जो पुराने संत हैं, वे अब रिखिया (देवघर) चले गए हैं। किसी से मिलते-जुलते नहीं। उन्होंने निरंजनानंद जी को अपना उत्तराधिकारी बना दिया, जिनकी उम्र 40-42 साल होगी। वे लौटकर उस जगह पर नहीं गए। अब निरंजनानंद ने भी अमेरिका में पढ़े किसी लड़के को अपना उत्तराधिकारी बना दिया है, उसकी उम्र बाइस-तेइस साल होगी। तो ये परंपरा होनी चाहिए। चाहता हूं कि मेरा भी कोई उत्तराधिकारी बने।

-आपने कहा कि आप प्रयोग के तौर ‘प्रभात खबर’ में आए। कोई प्रयोग बाकी है?

–जीवन में बहुत-सी चीजें हैं, जो कि छूट गई हैं, जिसे मैं करना चाहता हूं।  घूमने का बड़ा शौक रहा है मुझे। एक दिन मुंबई मैं और रामकृपाल लोनावाला से खंडाला तक पैदल चले, घोर बारिश में। मुंबई की बारिश ऐसी होती है, जिसमें आप एक-दूसरे का चेहरा तक नहीं देख सकते। हम दोनों पैदल बारिश में घूमे। उस तरह घूमने का मुझे बड़ा शौक है। माथेराम पहाड़ पर मैं अकेले पैदल चढ़ा था और रात में उतरा था अकेले। वो घूमने का मेरा शौक पूरा नहीं हो सका है। मैं खूब घूमना चाहता हूं। पढ़ने में मुझे बहुत आनंद आता है।

-आप पत्रकारिता में किनका लिखा पसंद करते हैं?

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–जिनके स्तंभ मुझे बहुत पसंद आते हैं, उनमें राम गुहा मेरे मित्र भी हैं। बड़े शानदार कमेंटेटर हैं। उनकी भारतीय राजनीति पर आई किताब बड़ी मशहूर है। ब्रिटेन से छपी है, मोटी-सी। गुहा अभी मूलत: अंग्रेजी में लिखते हैं। उनका अनुवाद हम भी छापते रहे हैं, ‘हिंदुस्तान’ भी छापता रहा है।

-नए लोगों में किसका नाम लेना चाहेंगे?

–नए लोगों का पूछ रहे हैं तो मुझे उस समय के प्रभाष जी अब भी याद आते हैं, जो कि बहुत अच्छा लिखते हैं।

-किसी पत्रकार के नौकरी छोड़ने से आपको कभी दुख हुआ?

हरिवंश–ऐसे बहुत सारे पत्रकार हैं। नाम लेना तो ठीक नहीं होगा। जिसने भी हमारे यहां काम किया, हमने उस पर शत-प्रतिशत विश्वास किया। एक-दो लोग ऐसे मिले, जिन्होंने मेरे विश्वास को इस तरह तोड़ा, जिसकी मैंने उम्मीद नहीं की थी। उनको कहीं ठौर नहीं मिला। हमारे वरिष्ठ मित्र, जो दिल्ली में आज बड़ी जगहों पर हैं, उन्होंने कहा कि इस आदमी को ले जाओ। एक दो लोगों को मैं साथ ले गया, बहुत आगे बढ़ाया पर जिस तरह से उन लोगों ने जिस संस्था में खड़े थे, उसी को बंद कराने की कोशिश की, इससे मुझे बड़ा झटका लगा कि मानव स्वभाव ऐसा भी होता है।

-समाप्त-


अगर आप इस इंटरव्यू पर अपनी कोई प्रतिक्रिया हरिवंशजी तक पहुंचाना चाहते हैं तो उनकी मेल आईडी  [email protected] का सहारा ले सकते हैं.

इस इंटरव्यू का पूर्व का भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें-

  1. पहला भाग
  2. दूसरा भाग
  3. तीसरा भाग
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