एक दिन के ही अखबार (8 जुलाई 2011) में दो खबरें आयीं. (1) 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में दयानिधि मारन केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटे या हटाये गये. संभावना है कि वह भी तिहाड़ जेल जायें. पूर्व मंत्री (राजनेता), नौकरशाह (बड़े) और कॉरपोरेट वर्ल्ड के बड़े लोग तिहाड़ में पहले से ही हैं. इसी मामले में. एक मित्र ने कटाक्ष किया…. अब आप पत्रकार ही बाकी हैं.
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भारत में सबसे अधिक ‘रिटर्न’ देने वाला क्षेत्र है राजनीति
राजनीतिज्ञ नहीं मानेंगे कि जनता, राजनीतिज्ञों से नफ़रत करने लगी है. कुछ हद तक राजनीति से भी. यह प्रवृत्ति पढ़े-लिखे, उभरते मध्यवर्ग या जिन्होंने पुरानी राजनीति और राजनेताओं को देखा है, उनमें अधिक है. युवाओं में भी. हालांकि शुरू में ही स्पष्ट कर दें कि राजनीति और राजनेता ही हालात बदल सकते हैं. बेहतर या बदतर बना सकते हैं.
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का धुंआ देख उसे तुरंत बुझाने में क्यों जुटे सत्ताधारी?
: दुनिया के एक विख्यात न्यायविद, न्यायमूर्त्ति हैंड ने कहा था, आजादी के बारे में… नैतिकता या भ्रष्टाचार के प्रसंग में भी वही चीज लागू है…. उनका कथन था, आजादी मर्दों-औरतों के दिलों में बसती है. जब वहां यह मर जाती है, तब इसे कोई संविधान, कानून या अदालत नहीं बचा सकती… :
आज के भारत में आइकॉन या नायक की तरह हैं कलाम
: सुनना कलाम को, समझना बिहार को : हम सिर्फ याचक न रहें, कर्ता भी रहें : तीन मई को पुन: डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को सुना. तीसरी बार. दो बार राष्ट्रपति रहते हुए. इस बार पूर्व राष्ट्रपति के रूप में. अवसर था बिहार विधान परिषद द्वारा आयोजित शताब्दी व्याख्यान. पटना के रवींद्र भवन में. डॉ कलाम की यह छठी बिहार यात्रा थी. इस कार्यक्रम में हम शरीक हुए, सौजन्य ताराकांत झा जी, बिहार विधान परिषद के सभापति (चेयरमैन).
एक दिनी दिल्ली यात्रा से उपजे सवाल का जवाब मैं तलाश नहीं पा रहा : हरिवंश
[caption id="attachment_19626" align="alignleft" width="76"]हरिवंश[/caption]: हमें अर्जुन, भीम, गांडिव- गदा भी नहीं चाहिए, बल्कि अपढ़ कामराज जैसा रहनुमा चाहिए : कई महीनों बाद दिल्ली जाना हुआ. नहीं जानता, दिल्ली हमसे दूर हो गयी है या हम दिल्ली से दूर. इस यात्रा का मकसद था. आइसी सेंटर फॉर गवर्नेस द्वारा आयोजित, करप्शन फ्री गवर्नेस (भ्रष्टाचार मुक्त शासन) पर बोलना. इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में. प्रभात कुमार जी (पूर्व राज्यपाल, पूर्व कैबिनेट सचिव) और अनेक मशहूर लोग इस संस्था से जुड़े हैं.
राडियाकांड ने दिखाया- पत्रकारिता पतन में भी सबसे आगे
: सपने, संघर्ष और चुनौतियां (3) : प्रभात खबर में जब चुनौतियों के दिन शीर्ष पर थे, तो हर बार बैठक में कहता था कि जिन्हें सुरक्षित भविष्य चाहिए, अच्छा पैसा चाहिए, वे वैकल्पिक रास्ता तलाश सकते हैं, क्योंकि यहां भविष्य अनिश्चित है, संघर्ष है, परिस्थितियां विपरीत हैं : हमारी अपनी आचार-संहिता है, शराब पीकर कोई दफ्तर आये, स्वीकार्य नहीं है :
प्रभात खबर बंद कराने को बड़े घरानों ने साजिश रची थी
: सपने, संघर्ष और चुनौतियां (2) : आनंद बाजार पत्रिका छोड़ कर कुछेक हजार की नौकरी पर यहां आया, कंपनी द्वारा दी गयी थर्ड हैंड मारुति वैन + किराये का घर, यही तब पाता था, आज प्रभात खबर में वरिष्ठ होने के कारण सबसे अधिक तनख्वाह मैं पा रहा हूं. इससे काफ़ी अधिक के प्रस्ताव भी आये : इस गरीब इलाके में पत्रकारिता करने की प्रेरणा हमें यहां खींच लायी… :
प्रभात खबर का नौवां संस्करण अब भागलपुर से
आज (दिनांक 10.2.2011) से प्रभात खबर भागलपुर से छपने लगा है. इस तरह बिहार में पटना, मुजफ्फ़रपुर और भागलपुर से प्रभात खबर प्रकाशित होने लगा है. भागलपुर से छपनेवाला (शहर संस्करण) 20 पेजों का संपूर्ण रंगीन अखबार होने का पहला गौरव भी, भागलपुर से छपनेवाले प्रभात खबर को है. बिहार और झारखंड को मिला दें, तो सात जगहों (पटना, मुजफ्फ़रपुर, भागलपुर, रांची, जमशेदपुर, धनबाद और देवघर) से प्रकाशित होनेवाला अखबार भी प्रभात खबर है.
‘ग्रेट स्टोरीज आफ चेंज’ में प्रभात खबर और हरिवंश पर एक अध्याय
”ग्रेट स्टोरीज आफ चेंज, इन्नोवेटिव इंडियन्स” नामक एक किताब आई है. इसका संपादन रीता और उमेश आनंद ने किया है. इस किताब में एक अध्याय हरिवंश और प्रभात खबर पर है. इस आलेख को नीचे प्रकाशित कर रहे हैं. अगर किसी को पढ़ने में दिक्कत आ रही हो तो संबंधित पेज पर क्लिक करने पर वह पेज बड़े साइज में अलग से खुल जाएगा जिससे पढ़ने में आसानी होगी.
Ranchi’s media war : Prabhat Khabar proves content, credibility are good business
Ranchi : A new confidence suffuses the offices of Prabhat Khabar in Ranchi. Circulation has crossed half a million daily. Advertisement revenues have surged. Its eighth edition, in colour, has rolled out. The newspaper has never known such success though it has been number one in Jharkhand for quite a while. What makes these gains even sweeter is that barely two years ago Prabhat Khabar feared being crushed by big Hindi newspapers out to capture the Jharkhand market. At stake currently is an estimated Rs 100 crore in advertising rising 20 per cent each year.
अयोध्या से परे
:: संदर्भ- अतीत, अयोध्या, भविष्य और भारत :: इन दिनों भी राजनेताओं के दो चेहरे हैं. पहले से अधिक विकृत और स्वार्थी. ऊपरी सिद्धांत अलग, कर्म अलग. कर्म और वाणी में, उत्तर और दक्षिण का रिश्ता. इसलिए शायद ये राजनीतिक दल अयोध्या मुद्दे को नहीं छोड़नेवाले. क्योंकि ऐसे मुद्दे भावनात्मक होते हैं. भावना पर नियंत्रण शिक्षा, तार्किक सोच और समझ से संभव है. एक तरफ चीन है जो रेगिस्तान में नखलिस्तान बना रहा है, अपने कर्म, संकल्प और प्रतिबद्धता के कारण. दूसरी ओर हम हैं, जो अतीत के भूत बने भावनात्मक मुद्दों से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं ::
जीने या होने का मकसद
लगभग एक माह से ऊपर हुए. इस विषय पर कुछेक खबरें पढ़ी थीं. तब से यह विषय या प्रसंग, मन-मस्तिष्क और विचार से उतरा नहीं. प्रसंग है, पड़ोसी देश का. पर इन खबरों के आईने में अपनी धरती, अपना मुल्क, अतीत और वर्तमान उभरे. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण जी का कहा याद आया- ‘हम कौन थे? क्या हो गये हैं? और क्या होंगे अभी? क्या ये, नहीं याद करना चाहता. अतीत पर किसका बस है? क्या होंगे?, उभरता भविष्य और वर्तमान झिलमिलाते हैं. क्या थी खबर? चीन के श्यानामान चौराहे पर 1989 में छात्र आंदोलन हुआ था. 3-4 जून को. चीन ने टैंकों से छात्र आंदोलन कुचल दिया. तब से हर वर्ष छात्र उस दिन को याद करते हैं. चीन में इस घटना की 21वीं वर्षगांठ थी.
…कछु कानै, काम जनम भर रानै…
[caption id="attachment_17621" align="alignleft" width="99"]स्व. दिग्विजय[/caption]: उदार व साफ समझवाले दिग्विजय जी : वर्षों पहले पढ़ा. मेनेंदर (ईसा से 342-292 वर्ष पहले) का कथन. जिन्हें ईश्वर प्यार करते हैं, वे ही युवा दिनों में मरते हैं. दिग्विजय जी के निधन की सूचना मिली. यह कथन फिर याद आया. भारतीय राजनीति में 70-75 के बाद लोग युवा दिखते हैं. वह तो 55 के ही थे. लगभग महीने भर पहले फोन से बात हुई. एक अंतराल के बाद. देर तक बातें होती रहीं. पहले निजी, फिर राजनीति और समाज की. बिहार की राजनीति को लेकर लंबी चर्चा हुई.
तो इसलिए गाज गिरी राजेंद्र तिवारी पर!
कभी गंभीर-गरिष्ठ साहित्यकारों के हवाले थी पत्रकारिता तो अब सड़क छाप सनसनियों ने थाम ली है बागडोर : झारखंड के स्टेट हेड और वरिष्ठ स्थानीय संपादक पद से राजेंद्र तिवारी को अचानक हटाकर चंडीगढ़ भेजे जाने के कई दिनों बाद अब अंदर की कहानी सामने आने लगी है. हिंदी प्रिंट मीडिया के लोग राजेंद्र पर गाज गिराए जाने के घटनाक्रम से चकित हुए. अचानक हुए इस फैसले के बाद कई कयास लगाए गए. पर कोई साफतौर पर नहीं बता पा रहा था कि आखिर मामला क्या है. लेकिन कुछ समय बीतने के बाद अब बातें छन-छन कर बाहर आ रही हैं.
पत्रकारिता के नाम पर जो छूट मिली हुई है, वह स्टेट पावर का फेल्योर है : हरिवंश
[caption id="attachment_16798" align="alignleft"]हरिवंश[/caption]”नेहरूजी के जमाने में जितने बड़े संपादक थे, क्या वो नहीं जानते थे कि हमारे समाज में अंधविश्वास है? क्या वो नहीं जानते थे कि हमारे समाज में सनसनीखेज चीजे, चरित्र हनन की चीजों को लोग ज्यादा पढ़ते हैं? वो लोग सब जानते थे. पर जर्नलिज्म के हमारे लीडर ऐसे थे जिन्होंने समाज के लिए सोचा. कहा कि अंधेरे में पड़े हुए समाज को उजाले में ले जाना है. इसलिए उन्होंने वो अंधेरे वाले पक्ष को उठाना छोड़ कर, चेतना की ओर ले जाने का काम किया. आज हम लोग क्या कर रहे हैं? इतना आगे पहुंचकर भी लोगों को अंधेरे में डाल रहे हैं? ये कितना बड़ा फर्क है. आप देखिए, तब चलपति राव जैसे व्यक्ति थे. राम राव थे, विक्रम राव के पिता. आजादी की लड़ाई के दौरान अंग्रेजों के आपरेशन में ये लोग देश और जनता के लिए जेल में रहे. परेशान हुए. जब आजादी मिली तो इमरजेंसी के दौरान चलपति राव जी जैसे आदमी मामूली चाय की दुकान पर चाय पीते हुए मर गए. उनको आठ घंटे बाद देश ने जाना कि वो मर गए. उनके कलम से पंडित नेहरू जैसे लोग प्रेरित होते थे. ऐसे लोग थे हमारे रहनुमा. ऐसे लोगों ने हमारी भारत की पत्रकारिता की नींव डाली. आज हम कहां पहुंच गए हैं? आज कोई राम राव को याद करता है? चलपति राव के नाम पर कोई पुरस्कार है? इसी तरह हिंदी में ऐसे-ऐसे अखबार हुए जिन्होंने चुना कि हमें काले पानी की सजा ही लेनी है. स्वराज अखबार इलहाबाद से निकला. उसके छह संपादक हुए. उनकी कलम से डरे अंग्रेजों ने सभी को एक-एक कर काले पानी की सजा दी. इस अखबार में निकलता था कि जो काले पानी की सजा के लिए तैयार हैं, वहीं उस अखबार का संपादक बनने के लिए आवेदन करें. और, तब भी लोगों की लाइन लगी रहती थी. क्यों तब इस देश में पत्रकारिता के मोरल लीडर्स थे, इनटेलेक्चुवल लीडर्स थे. आज तो जो लोग अपराध की दुनिया से नजदीकी संबंध रखते हैं, अपराधियों से सांठगांठ रखते हैं, उन्हें इसी गुण के कारण संपादक बना दिया जाता है. मालिकों को यह समझना बंद करना चाहिए कि उनका अखबार या टीवी चैनल लूटने के लिए है.”
विनय बिहारी सिंह की दो टिप्पणियां
जाति पाति पूछे नहिं कोई, हरि का भजे सो हरि का होई : ये लोकतंत्र है। किसी को भी किसी के खिलाफ या पक्ष में कुछ भी बोलने का हक मिला हुआ है। यह जो ‘हक’ है, ‘अधिकार’ है, बहुत बड़ी चीज है पर हम इसका इस्तेमाल जब नफे-नुकसान से प्रेरित होकर करने लगते हैं तो यह आजादी और अधिकार अपनी गरिमा खोने लगते हैं। कुछ लोगों ने हरिवंश जी को जातिवादी कहते हुए उन पर शाब्दिक प्रहार करने की कोशिश पिछले दिनों की। मैं प्रभात खबर में रहा हूं और हरिवंश जी को अच्छी तरह जानता हूं। वे कहीं से भी जातिवादी नहीं हैं। वे एक अखबार के प्रधान संपादक औऱ मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। जाति देख कर काम करते तो उनका अखबार इतना चर्चित नहीं होता।
चाहता हूं कि मेरा भी कोई उत्तराधिकारी बने : हरिवंश
हमारा हीरो – हरिवंश (प्रधान संपादक, प्रभात खबर) : भाग-4 : देश को जो न्याय सरदार पटेल को देना चाहिए था, वह उनको नहीं दिया : मैं नीतीश कुमार से प्रभावित हो रहा हूं, इस व्यक्ति का कोई निजी एजेंडा नहीं है : हमारा लक्ष्य है कि संविधान के अनुसार राज्य चले : पिता के शव को लेकर गंगा किनारे जलाने गया तो मुझे लगा कि जीवन है क्या? : मुझे पुराने फिल्मी गाने बहुत पसंद है : वाकई अब तो मन से चाहता हूं रिटायर होना : मैं खूब घूमना चाहता हूं : एक-दो लोग ऐसे मिले, जिन्होंने मेरे विश्वास को तोड़ा : जीवन में बहुत-सी चीजें हैं, जो कि छूट गई हैं, जिसे मैं करना चाहता हूं :
वे 20 माह नहीं दे रहे थे, मैंने 20 साल ले लिया : हरिवंश
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हमारा हीरो : हरिवंश (प्रधान संपादक, प्रभात खबर) : भाग एक : 15 अगस्त 2009 को प्रभात खबर की उम्र 25 वर्ष हो जाएगी। किसी अखबार की उम्र 25 साल होने का एक मतलब होता है। लेकिन यह अखबार अगर प्रभात खबर है तो इसके मायने औरों से कुछ अलग है। चोली-दामन का साथ रखने वाले हिंदी समाज और हिंदी पत्रकारिता को अगर इस बाजारू दौर में भी किसी अखबार ने अपनी ओर से बेस्ट देने की असल कोशिश की है तो वह प्रभात खबर है। खबरों के धंधे के इस दौर में प्रभात खबर ने चुनाव से ठीक पहले ऐलान किया कि खबरों का धंधा और लोग करते होंगे, हम कतई नहीं करते, न ही करेंगे और ऐसा करने वाले दूसरे अखबारों-मीडिया हाउसों को हर हाल में गलत कहेंगे। यह नैतिक साहस अगर प्रभात खबर में जिंदा है तो इसके पीछे एक व्यक्ति है। वह हैं हरिवंश।