हमारा हीरो – हरिवंश (प्रधान संपादक, प्रभात खबर) : भाग-4 : देश को जो न्याय सरदार पटेल को देना चाहिए था, वह उनको नहीं दिया : मैं नीतीश कुमार से प्रभावित हो रहा हूं, इस व्यक्ति का कोई निजी एजेंडा नहीं है : हमारा लक्ष्य है कि संविधान के अनुसार राज्य चले : पिता के शव को लेकर गंगा किनारे जलाने गया तो मुझे लगा कि जीवन है क्या? : मुझे पुराने फिल्मी गाने बहुत पसंद है : वाकई अब तो मन से चाहता हूं रिटायर होना : मैं खूब घूमना चाहता हूं : एक-दो लोग ऐसे मिले, जिन्होंने मेरे विश्वास को तोड़ा : जीवन में बहुत-सी चीजें हैं, जो कि छूट गई हैं, जिसे मैं करना चाहता हूं :
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रिटायर होकर चैन से नहीं रह सकता : हरिवंश
हमारा हीरो – हरिवंश (प्रधान संपादक, प्रभात खबर) : भाग-3 : मुझे और अच्छी अंग्रेजी आती तो मैंने जीवन में और अच्छा किया होता : मैं असंतुष्ट, निराश, बेचैन रहने वाला आदमी हूं : मैं बहुत साफ-साफ, दो टूक बात करता हूं : एक भी ऐसा काम नहीं किया, जिसके लिए पश्चाताप हुआ हो या कोई ऊंगली उठा सके : मेरे अंदर आक्रोश बहुत है : मेरी नगद बचत क्या है, वह भी अगर आप चाहें तो ब्योरा दे दूं : पत्रकार पहल कर कोई संवैधानिक पीठ बनवाएं, जिससे हर पत्रकार कानूनन अपने और अपने परिवार की संपत्ति का ब्योरा उस संस्था को दे :
खतरनाक खेल खेल रहे अखबार : हरिवंश
[caption id="attachment_15266" align="alignleft"]हरिवंश[/caption]हमारा हीरो : हरिवंश (प्रधान संपादक, प्रभात खबर) : भाग-2 : मीडिया ने लोगों का विश्वास अब खो दिया है : मीडिया में गैर-जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई है : लोग समझ गए हैं कि खबरे खरीदी-बेची जाती हैं : ताकतवर हो चुके मीडिया पर नियंत्रण की कोई बॉडी नहीं हैं : ऐसा पोलिटिकल सिस्टम कमजोर होने से हुआ : मीडिया से ज्यादा ब्लैकमेलर पालिटिक्स हो गई है : जिस दिन राजनीति में विचार अहम होंगे, मीडिया भी रास्ते पर आ जाएगा : प्रभात खबर टिका हुआ है तो सिर्फ अपनी साख के दम पर : आज जब आस-पास देखते हैं तो हम सोच नहीं पाते कि किससे प्रेरणा लें : मैं वह व्यवस्था अवश्य देखना चाहता हूं, जिसमें इक्वल डिस्ट्रीब्यूशन हो : हम मशीन की तरह चल रहे हैं और मशीन की तरह खत्म हो रहे हैं
वे 20 माह नहीं दे रहे थे, मैंने 20 साल ले लिया : हरिवंश
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हमारा हीरो : हरिवंश (प्रधान संपादक, प्रभात खबर) : भाग एक : 15 अगस्त 2009 को प्रभात खबर की उम्र 25 वर्ष हो जाएगी। किसी अखबार की उम्र 25 साल होने का एक मतलब होता है। लेकिन यह अखबार अगर प्रभात खबर है तो इसके मायने औरों से कुछ अलग है। चोली-दामन का साथ रखने वाले हिंदी समाज और हिंदी पत्रकारिता को अगर इस बाजारू दौर में भी किसी अखबार ने अपनी ओर से बेस्ट देने की असल कोशिश की है तो वह प्रभात खबर है। खबरों के धंधे के इस दौर में प्रभात खबर ने चुनाव से ठीक पहले ऐलान किया कि खबरों का धंधा और लोग करते होंगे, हम कतई नहीं करते, न ही करेंगे और ऐसा करने वाले दूसरे अखबारों-मीडिया हाउसों को हर हाल में गलत कहेंगे। यह नैतिक साहस अगर प्रभात खबर में जिंदा है तो इसके पीछे एक व्यक्ति है। वह हैं हरिवंश।
विवेक गोयनका चाहते थे कि प्रभाष जी भी वैसा ही करें : रामबहादुर राय
[caption id="attachment_14872" align="alignleft"]रामबहादुर राय[/caption]हमारा हीरो : रामबहादुर राय (भाग- दो)
…..सार्थक पत्रकारिता वही कर सकता है, जिसमें समाज के प्रति सरोकार और विचार हो। जो सो-काल्ड प्रोफेशनल जर्नलिस्ट हैं, वो नौकरी करते हैं। हो सकता है अच्छा काम करते हों लेकिन अपने यहां पत्रकारिता की जो कसौटी है, उसमें वह फिट नहीं बैठते। इसलिए पत्रकार को सामाजिक एक्टिविस्ट होना ही चाहिए…..
…..राजनीति में जाकर अपना कल्याण होता है, जनता का भला नहीं होता। जो लोग बदलाव लाने के लिए राजनीति में गए उनका हश्र सबने देखा है। इस राजनीतिक व्यवस्था की बुनियाद में पार्टी सिस्टम है। हमने संसदीय व्यवस्था अपनाया है। अगर चुनाव लड़ना है तो पहले पार्टी में शामिल होना होगा। आज की राजनीतिक पार्टियां गिरोह की तरह काम कर रही हैं। आप तय करिए कि किस गिरोह का हिस्सा बनना है….
समीर जैन ने जो तनाव दिए उससे राजेंद्र माथुर उबर न सके : रामबहादुर राय
[caption id="attachment_14863" align="alignleft"]रामबहादुर राय[/caption]हमारा हीरो : रामबहादुर राय (भाग- एक) : हिंदी पत्रकारिता का बड़ा और सम्मानित नाम है- रामबहादुर राय। जनसत्ता और नवभारत टाइम्स फेम रामबहादुर राय उन चंद वरिष्ठ पत्रकारों में शुमार किए जाते हैं जो सिद्धांत, सच, सरोकार, समाज और देश के लिए जीते हैं। पत्रकारिता इनके लिए कभी पद व पैसा पाने का साधन नहीं रहा। पत्रकारिता को इन्होंने देश व समाज को सच बताने, दिशा दिखाने और बदलाव की हर संभव मुहिम को आगे बढ़ाने का माध्यम माना और ऐसा किया-जिया भी। छात्र राजनीति में सक्रिय रहे रामबहादुर राय चाहते तो राजनीति में जा सकते थे और आराम से सांसद-विधायक बन सत्ता सुख भोग सकते थे लेकिन एक्टिविज्म की राह पर निकले युवा रामबहादुर राय को राजनीति में जाना लक्ष्य से समझौता करने जैसा लगा। उन्होंने राजनीति में जाने की बजाय सक्रिय पत्रकारिता की राह का वरण किया। चुनाव लड़ने का बहुत ज्यादा दबाव बढ़ा तो झोला उठाकर हरिद्वार निकल पड़े।
अखबारों के खिलाफ आंदोलन की जरूरत : अच्युतानंद
हमारा हीरो : वरिष्ठ पत्रकार और माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति अच्युतानंद मिश्र इन दिनों हृदय की शल्य चिकित्सा के बाद अस्पताल से मुक्त होकर अब गाजियाबाद स्थित अपने आवास पर डाक्टरों की सलाह के अनुसार पूर्ण विश्राम कर स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। अच्युता जी हिंदी पत्रकारिता के जाने-माने नाम हैं और बेहद सम्मानीय शख्सियत भी। वे ऐसे पत्रकार-संपादक रहे हैं जिनके ज्ञान-समझ के आगे बड़े से बड़े नेता और नौकरशाह भी श्रद्धा से झुक जाते हैं। यूपी के गाजीपुर जिले के रहने वाले अच्युताजी ने भारतीय पत्रकारिता के कई मोड़, उतार-चढ़ाव और बदलाव देखे हैं। भड़ास4मीडिया के रिपोर्टर अशोक कुमार ने हिंदी पत्रकारिता के इस हीरो से उनके आवास पर जाकर बातचीत की। पेश है इंटरव्यू के अंश-
गोयनका लोगों के बारे में गालियों से बात करते थे : प्रभाष जोशी
हमारा हीरो – प्रभाष जोशी
प्रख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी का इंटरव्यू करने भड़ास4मीडिया की टीम उनके वसुंधरा स्थित निवास पहुंची तो शुरुआती दुआ-सलाम के बाद जब उनसे बातचीत शुरू करने का अनुरोध किया गया, तो उन्होंने हंसते हुए कहा- भई अपन के अंदर ‘भड़ास’ नाम की कोई चीज है ही नहीं। हालांकि जब प्रभाष जी से बात शुरू हुई तो बिना रूके दो घंटे से अधिक समय तक चली। इंटरव्यू में प्रभाष जी नए-पुराने सभी मुद्दों पर बोले।
हां, यह सच है कि दिल्ली मुझे रास नहीं आई
हमारा हीरो – एसएन विनोद
पार्ट- (3)
”दिल्ली पहुंचने पर यहां की कार्यप्रणाली के बारे में एक मित्र ने बताया. दिल्ली का मूल-मंत्र है- ‘काम कम, बखान ज्यादा’! और दिल्ली ‘ईटिंग, मीटिंग और चीटिंग’ के लिए कुख्यात है! मुझे यह बड़ा अटपटा लगा. जब मैंने बताया कि मैंने तो हमेशा काम को प्रधानता दी है, तब उन्होंने भविष्यवाणी कर दी कि मैं दिल्ली में ज्यादा दिन नहीं टिक पाऊंगा!”
”विनोद जी, ‘गंगा’ इज योर बेबी”
हमारा हीरो – एसएन विनोद
पार्ट (2)
”आरुषि के कथित एमएमएस के प्रसारण के लिए किसी को दंडित करना चाहिए था तो सीईओ को दंडित किया जाना चाहिए था. बल्कि नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए सीईओ को स्वयं इस्तीफा देना चाहिए था. पर वे कौशिक को बलि चढ़ते देखते रहे. ‘इंडिया न्यूज’ में ऐसी अनेक घटनाएं हो रही थीं, जिसमें सिर्फ राजनीति काम कर रही थी.”
‘प्रभात खबर’ चौथा बेटा, जिससे अलग किया गया
हमारा हीरो – एसएन विनोद
पार्ट (1)
पिछले पांच दशक से पत्रकारिता में शीर्ष पर जगमगा रहे एसएन विनोद हमारे बीच ऐसे दिग्गज संपादक हैं जो खुद में न सिर्फ पत्रकारिता संस्थान हैं बल्कि एक कंप्लीट माडिया हाउस भी हैं। प्रभात खबर की परिकल्पना करने से लेकर उसे लांच करने वाले एसएन विनोद इस अखबार के निदेशक होने के साथ-साथ प्रधान संपादक भी रहे। विनोद जी के नाम देश के सबसे कम उम्र संपादक होने का भी रिकार्ड है।
मधुमक्खी का काम तिलचट्टे नहीं कर सकते
हमारा हीरो – विनोद शुक्ला
विनोद शुक्ला उर्फ विनोद भैया से बातचीत करना हिंदी मीडिया के एक युग पुरुष से बातें करने जैसा है। एक ऐसी शख्सीयत जिसने अपने दम पर कई मीडिया हाउसों के लिए न सिर्फ सफल होने के नुस्खे इजाद किए बल्कि कंटेंट को किंग मानते हुए जन पक्षधरता के पक्ष में हमेशा संपादकीय लाठी लेकर खड़े रहे। विनोद जी के प्रयोगों को मुख्य धारा की पत्रकारिता माना गया और दूसरे मीडिया हाउस इसकी नकल करने को मजबूर हुए।
इन दिनों गर्दिश में हूं, आसमान का तारा हूं (1)
हमारा हीरो – आलोक तोमर
आलोक तोमर का नाम ही काफी है। हिंदी मीडिया के इस हीरो से विस्तार से बातचीत की भड़ास4मीडिया के एडीटर यशवंत सिंह ने। बातचीत कई चक्र में हुई और कई जगहों पर हुई। रेस्टोरेंट में, कार में, चाय की दुकान पर। इतनी कुछ बातें निकलीं कि उन्हें एक पेज में समेट पाना संभव नहीं हो पा रहा। इंटरव्यू दो पार्ट में दिया जा रहा है। पाठकों ने जो सवाल पूछे हैं, आलोक ने उनके भी जवाब दिए हैं। पेश है संपूर्ण साक्षात्कार-
टीवी सुरसा है जो सबको निगल रही है (2)
….”इन दिनों गर्दिश में हूं, आसमान का तारा हूं” (1) से आगे….
-नूरा जैसा माफिया आपका दोस्त रहा है। आप दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील, छोटा राजन जैसे लोगों से मिल चुके हैं। यह सब कैसे हुआ?
–जनसत्ता, मुंबई में था तो वहां सरकुलेशन वार शुरू हुआ। भइयों का एक गैंग कृपाशंकर सिंह के नेतृत्व में था। नभाटा वालों के कहने पर गैंग जनसत्ता मार्केट में जाने से पहले हाकरों से खरीदकर समुद्र में फेंक देता था।
बड़ा झूठ नहीं बोलता, रात में दिन भर के झूठ गिनता हूं
हमारा हीरो – शशिशेखर
”अखबार में मेरी भूमिका मास्टर ब्लेंडर की तरह : पत्रकारों ने खुद को विदूषक बना लिया है या दरोगा बन बैठे : हिंदी में समय के साथ इंस्टीट्यूशन नहीं बदले : मैं रुपये के पीछे भागने वाला आदमी नहीं हूं : एमबीए वाले एमजे वालों से ज्यादा सेलरी पा रहे : बेटी की शादी के बाद नौकरी नहीं करना चाहता : आप गालियों तक ही रुक गए, मैंने तो अपने बारे में काफी कुछ सुना है”
मैं किसी का आदमी नहीं, मेरा कोई नहीं, मैं निर्गुट हूं
हमारा हीरो – अजीत अंजुम : मैनेजिंग एडीटर, न्यूज 24 :
”हां, मैं थोड़ा एरोगेंट, शार्ट टेंपर्ड हूं : असलियत सिर्फ वही नहीं जो सामने है : सरकार तो चाह रही कि सारे चैनल दूरदर्शन बन जाएं : लोकसभा टीवी पर देश की सबसे ज्यादा चिंता की जाती है पर उसे कितने लोग देखते हैं : मैं मैनेजर नहीं, प्रोड्यूसर हूं : दिमाग में टीआरपी, दिल में देश और समाज है :”
हिंदी मीडिया में टैलेंटेड लोग नहीं आ रहे

”दिल्ली में पूरे एक साल संघर्ष किया और दो-दो दिन भूखे रहा, मेरे इतने ही विरोधी हैं जिन्हें मैं शायद अपनी उंगलियों पर आसानी से गिन सकता हूं, मैं एक ओपीनियन मैग्जीन हर प्लेटफार्म पर लांच करना चाहता हूं, जर्नलिज्म में सबसे बड़ी कमी ये है कि इसने राजनीति से अपना मुंह मोड़ लिया है, मार्केट के दबाव में कई बार कंटेंट भी री-डिफाइन हुआ है”
जिस दिन मैं धरती से जाऊं, मुझे कोई याद न करे
हमारा हीरो – रामकृपाल सिंह
”मीडिया एक पब्लिक मीडियम है, यह सेल्फ एक्सप्रेसन का मंच नहीं : हर अखबार का स्वर्गवास 80 किमी पर हो जाता है : हमें जिस हाइवे पर चलना है वहां पांच ट्रक उलटे पड़े हैं : बकरा काटने का काम पंडित जी करेंगे तो अपना गला काट लेंगे : मैं कुछ नहीं हूं इसलिए पत्रकार हूं”
लाखों की सेलरी लेकर शीशे से दुनिया देखते हैं जर्नलिस्ट
अब जर्नलिस्टों की क्लास बदल गई है, खबर समझने के लिए इन्हें खुद को डी-क्लास करना होगा, आज तक चैनल छोड़ते वक्त एक्जिट नोट में लिखा था…”अच्छा काम करने गलत जगह जा रहा हूं”
हमारा हीरो
पुण्य प्रसून वाजपेयी। जिनका नाम ही काफी है। समकालीन हिंदी मीडिया के कुछ चुनिंदा अच्छे पत्रकारों में से एक। कभी आज तक, कभी एनडीटीवी, कभी सहारा तो अब जी न्यूज के साथ।
इंटरनली चैलेंज न मिले तो बाहर तलाशना चाहिए


आलोक सांवल
सीईओ व संपादक : आई-नेक्स्ट