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सीएनईबी में ”राहुल राज” था कब?

आलोक तोमरअचानक सीएनईबी टीवी चैनल की इतनी ज्यादा चर्चा होने लगी है कि अगर यह चर्चा पहले से होती रहती तो चैनल की टीआरपी कुछ और बढ़ जाती। इस खबर का शीर्षक दिया गया है कि सीएनईबी में राहुल राज का खात्मा हो रहा है। शीर्षक आपत्तिजनक भले ही न हो मगर पत्रकारिता के संदर्भों को दूसरी ओर मोड़ कर ले जाता हैं।

आलोक तोमर

आलोक तोमरअचानक सीएनईबी टीवी चैनल की इतनी ज्यादा चर्चा होने लगी है कि अगर यह चर्चा पहले से होती रहती तो चैनल की टीआरपी कुछ और बढ़ जाती। इस खबर का शीर्षक दिया गया है कि सीएनईबी में राहुल राज का खात्मा हो रहा है। शीर्षक आपत्तिजनक भले ही न हो मगर पत्रकारिता के संदर्भों को दूसरी ओर मोड़ कर ले जाता हैं।

सीएनईबी में राहुल राज था कब? आखिर एक टीवी चैनल में या किसी भी पत्रकारिता संस्थान में एक संपादक होता है और वह नेतृत्व करता है। राहुल देव ने भी नेतृत्व किया मगर राज तो उनका था और उनका है जिन्होंने इस चैनल में निवेश किया है और घाटा सह कर भी तीन साल चलाया है। बंद करने का उनका कोई इरादा नहीं हैं और अनुरंजन झा को लाया ही इसलिए गया है कि उनकी प्रतिभा से चैनल को चलाने में साधनों और संसाधनों का विकास हो सके। वैसे आप जानते हैं कि अनुरंजन झा पत्रकार भी हैं और कम से कम उन्होंने अभी तक राहुल देव के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा है।

आपको सीएनईबी में काम करने वाले किसी पत्रकार की टिप्पणी उसके असली नाम से नहीं मिलने वाली है। लेकिन मैं डंके की चोट लिख रहा हूं कि सीएनईबी और राहुल देव का साथ कभी किसी संशय में नहीं रहा। न सीएनईबी चलाने वाले पहली बार रोजगार कर रहे हैं और न राहुल देव पहली बार किसी मीडिया समूह का नेतृत्व कर रहे है। रही बात नए लोगों के आने की तो वे हर चैनल में आते जाते रहते हैं और इस पर खबर तो बनती है मगर विश्लेषण का इतना लंबा चौड़ा आयाम नहीं बनता। खबर में लिखा गया है कि राहुल देव के करीबी अपूर्व और पंकज शुकल ऑफिस नहीं आ रहे। मुद्रा कुछ ऐसी है कि या तो इनको निकाला जा रहा है या फिर ये विरोध में छुट्टी पर हैं। अपूर्व लगातार आ रहे हैं, पंकज शुक्ल ने एक दिन बीमारी की वजह से छुट्टी ली थी और कामाक्षी लगातार काम कर रही है।

और फिर आप अगर सीएनईबी की तुलना एस वन जैसे धोखेबाज चैनल या आजाद न्यूज जैसे अदृश्य चैनल या वाइस ऑफ इंडिया जैसे ठग चैनल से करेंगे तो सीएनईबी की ओर से कम से कम मेरा ऐतराज दर्ज कर लीजिए। मै कोई पट्टा लिखवा कर नहीं आया हूं और हो सकता है कि कल आप मुझे भी सीएनईबी में न पाए लेकिन इसके पीछे बहुत सारी कहानियां बनाना नादानी हैं और यशवंत सिंह आप इस नादानी से बचिए।

अनुरंजन झा की प्रतिभा और अतीत से सब परिचित है। उसे बार बार याद दिलाने से आपका या भारतीय पत्रकारिता का कोई लाभ नहीं होने वाला। जहां तक मुझे पता है, अनुरंजन झा आपके निजी मित्र भी हैं और इसके बावजूद आपको उनके बारे में अगर सूत्रों के हवाले से लिखना पड़े तो ऐसी दोस्ती पर खाक डालिए। प्रतिक्रियाओं में जैसा कि होता है, कुछ लोग राहुल देव को कोस रहे हैं तो कुछ अनुरंजन झा को। उनके पास अपने अपने कारण होंगे।

राहुल देव के बारे में, उन्हें लगभग पच्चीस साल से जानने के बाद उनके बारे में लिखने के लिए मेरे पास बहुत सारे कारण है मगर विस्तार में नहीं जाऊंगा। हिंदी और अंग्रेजी दोनों पर और वह भी शानदार अधिकार से लिखने और बोलने वाले पत्रकारों में राहुल देव जैसे कम ही मिलेंगे। इसके बावजूद वे हिंदी को लेकर लगभग आंदोलन की मुद्रा में जूझते रहते हैं और छोटी सी गोष्ठी से लेकर वॉशिंगटन के सेमिनार तक में जाने में उन्हें कोई दिक्कत महसूस नहीं होती। चरित्र पर लांछन आज तक लगा नहीं, कोई घोटाला घपला किया नहीं मगर यदि सीएनईबी में पैसा लगाने वालों को अनुरंजन झा में संभावना दिखती है तो इसमें भाई लोगों को तकलीफ क्यों हो रही है?

सीएनईबी में राहुल देव के रहते अभिव्यक्ति का एक लोकतंत्र सदा से मौजूद है और अगर आपकी कल्पना की उड़ान आपको यह कहने पर विवश करती है कि हमारे राजनैतिक संपादक प्रदीप सिंह को आने वाले दिनों का आभास हो गया था इसलिए छोड़ कर चले गए तो आप गलत कह रहे हैं। वे अनुरंजन के आने के पहले ही जा चुके थे और अच्छे पद पर और अच्छी संभावनाओं के साथ गए थे। अपूर्व, पंकज और कामाक्षी कोई नौसिखिए नहीं हैं और काम जानते हैं और जिन्हें अपना चैनल ठीक से चलाना होगा उनके यहां अगर इन्हें जरूरत पड़ी तो पर्याप्त जगह है।

और अगर आपको तुलनात्मक अध्ययन करना ही है तो इतना तो ज्ञान होगा ही कि आयु, प्रतिभा, अनुभव और दृष्टि के हिसाब से राहुल देव और अनुरंजन झा के बीच तुलना करके आप दोनों के साथ अन्याय कर रहे हैं और दोनों का अपमान कर रहे हैं। अनुरंजन और राहुल देव एक दूसरे के कपडे सरेआम नहीं फाड़ रहे हैं। राहुल देव को अगर कोई तकलीफ है भी तो उसे वे विलाप का विषय नहीं बना रहे हैं। मामले में सुलझने के लिए अगर कुछ बचा है तो उसे सीधे मालिकों से सुलझाने की कोशिश की जा रही है। सबसे बड़ी बात ये है कि राहुल देव पत्रकारिता के अपने सरोकारों से समझौता नहीं नहीं करना चाहते। अपनी शैली पर और अपनी शर्तों पर कायम रहना चाहते हैं। और शायद इसी बात पर सीएनईबी से कुढ़ने वालों को तकलीफ हो रही है। रही मालिकों की बात तो, ये उन पर निर्भर है कि उन्हें क्या पसंद है, कैसी पत्रकारिता चाहिए, और उनकी राय में कौन महान है और कौन मामूली। चैनल उनका है, फैसला भी वे करेंगे और नतीजे भी उनके हिस्से आयेंगे। बाज़ार में अमिताभ बच्चन भी हैं और शक्ति कपूर भी–पसंद अपनी अपनी।

यह हमारा मामला है, हमे जैसे सुलझाना होगा, सुलझा लेंगे और नहीं सुलझा तो बहुत सारे विकल्प खुले हैं लेकिन अगर लोगों ने अपनी कुंठाए जाहिर करना शुरू किया तो फिर नाम लेकर सामने आएं और उन्हें उनकी जन्मपत्री सहित जवाब मिलेगा।

लेखक आलोक तोमर जाने-माने पत्रकार हैं और सीएनईबी न्यूज चैनल से जुड़े हुए हैं.

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0 Comments

  1. .xyz.

    September 16, 2010 at 9:21 am

    Muaf kijiyega tomar sahab ! par RAAJ to chalta hi hai ! gar RAAJ na chalta to kya *apni team* -*apne log* jaisa shabd izaad hota ? Aap varishth patrkaar hain , jaan te honge ki jab bhi koi BOSS bankar kahin jaata hai to apna pura ka pura kaafila dusare channel (Jahan wo BOSS bankar jaata hai) mein saath le jaata hai ! ha! Aap ise RAAJ shabd ki jagah kisi aur shabd se nawaaz sakte hain !
    Isi RAAJ karne ki aadat ne har channel aur media sansthaanon mein GUTBAAZI shabd ko izzad kiya hai , jiska RAAJ ( muaf kijiyega ), jiska sikka chalta hai uske group ka dabdaba rahta hai aur jiska RAAJ ( muaf kijiyega ) jiska sikka nahi chalta, wo darwaaze ka rukh kar leta hai .

  2. मयंक सक्सेना

    September 16, 2010 at 9:36 am

    सही कहा सीएनईबी में राहुल राज कभी नहीं था…सीएनईबी में राज उन लोगों का था जिन पर राहुल देव अंधविश्वास करते थे….और वो उस विश्वास को अंधा साबित करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे थे…
    राहुल देव निःसंदेह क़ाबिल पत्रकार और सम्पादक हैं….लोकतांत्रिक भी हैं….और भाषा को लेकर वाकई संजीदा भी…पर एक सत्य और है कि आपकी छवि गढ़ने में उनका भी योगदान होता है जिनके साथ आप रहते हैं…जिनको आप अपनी टीम में चुनते हैं….आलोक जी क्या वो लोग भी पत्रकार हैं जिन पर उन्होंने भरोसा कर के चैनल की बड़ी ज़िम्मेदारियां दे दीं….कई ऐसे हैं जिन्हें न तो लिखित भाषा का ज्ञान है…और न ही मौखिक भाषा का सलीका….
    चैनल क्या सम्पादक चलाता है केवल…नहीं बड़ा योगदान होता है उनका जो इनपुट…आउटपुट…और प्रोग्रामिंग संभालते हैं…और इनमें से ज़्यादातर लोगों ने केवल व्यक्तिगत संबंधों और हितों को आगे रखा….राजनीति की…प्रतिभाओं को हमेशा पीछे रखा…सवाल ये है कि वो लोग कितने क़ाबिल और लोकतांत्रिक हैं जो तंत्र को चला रहे हैं…जिनके पास पोर्टफोलियो था वो क्या कर रहे थे….और अगर राहुल जी ये सब देख कर भी उपेक्षित करते रहे तो भी…और अगर देख ना पाए तो भी क्या इसकी नैतिक ज़िम्मेदारी उनकी नहीं बनती….
    दूसरा आप जन्मकुंडली वाली धमकी के साथ अगर लेख लिखेंगे तो ये भी लोकतंत्र को दबाने वाली बात है सर….मैं बेनामी टिप्पणी नहीं कर रहा हूं….अपनी बात का कोई जवाब भी नहीं चाहता हूं…क्योंकि जो कहा उसे साबित कर सकता हूं…राहुल जी जैसे सक्षम लोग मैंने कम देखे हैं….और आज भी मानता हूं कि मंझोले चैनलों में कहीं भी भाषा और कंटेंट को लेकर सीएनईबी जैसी आज़ादी कहीं नहीं थी….बल्कि संसाधनों का मुक़ाबला न किया जाए तो कई बड़े चैनलों से बेहतर भाषा और कंटेट था….प्रयोगों की भी पूरी आज़ादी थी…ये सब राहुल जी की वजह से….आज अगर काम में बेहतर हुआ हूं तो उसके लिए आप सबका…राहुल जी का…और सीएनईबी का आभारी हूं…हमेशा रहूंगा…पर हां लम्बी दौड़ें स्वस्थ और तगड़े घोड़ों से ही जीती जाती हैं…टट्टुओं…खच्चरों से नहीं….चैनल के अंदर ज़ोर से चिल्लाने से प्रदर्शन बेहतर नहीं होता है….जो काम करवा रहे हैं उन्हें खुद भी काम आना चाहिए….कांस्टेबल को डीजीपी बना देने से ज़रूरी नहीं कि उसके अंदर डीजीपी वाली क़ाबिलियत भी आ जाए….
    जिस दिन राहुल जी न्यूज़रूम में आकर हम सब से बात करते थे…नैतिक बल बढ़ जाता था….पर बाकी दिन क्या माहौल रहता था….कितनी उपेक्षा हुई ज़्यादातर लोगों की और कुछ लोगों को किस तरह आउट ऑफ़ टर्न….बल्कि आउट ऑफ़ टैलेंट आगे बढ़ाया गया….
    और बहुत सी बातें हैं…हर मौके पर हर बात नहीं कही जा सकती है….
    उम्मीद है कि मर्म समझा जाएगा…न कि मुद्दे को छोड़ कर जन्मकुंडली खंगाली जाएगी….मनन का वक़्त है व्यक्तिगत झगड़े का नहीं….और हां उस सीएनईबी का हमेशा कर्ज़दार रहूंगा जिसने प्रतिभा को तराशने की ….प्रयोग करने की….और भाषा के सांस्कारिक प्रयोग की आज़ादी दी….काश वो सीएनईबी फिर देखने को मिले….आमीन….

  3. Ravindra Pancholi

    September 16, 2010 at 9:45 am

    शाबाश !!!!!!!!!!!आलोक जी; यह हुई ना मर्दों वाली बात .देखते हैं की आपकी चुनौती को सुन कर कितने चूहे बिल के बाहर निकलते हैं.

  4. kamta prasad

    September 16, 2010 at 11:54 am

    भाई लोगों, नाम के साथ कुछ कहने में फटती है क्‍या । आलोक जी की यह शिकायत पुरानी है गयी है। अगर किसी को अपने कहे पर एतबार न हो तो उसे पब्लिक डोमेन में नहीं आना चाहिए।
    और आलोक जी, सर्वमान्‍य बातों के पिष्‍टपेषण से बचना चाहिए कोफ्त होती है।

  5. rajrishi mishra

    September 16, 2010 at 12:48 pm

    yashwant ji aapka lekh sahi tha.aese logo se daro mat. mera sawal ye hai ki tomer ji jaisa kabil patrakar cneb me kyon sad raha hai?aur jo inhone khuleaam anuranjan ki chatal ki hai us se saaf ho gaya hai ki ye patrakar kitne bade hain.rahul ji jaise ki tulna anuranjan jaise nakabil logo se tulna hi rahul ji ka sabse bada apman hai.anuranjan ki haisiyat kya hai.ye bach bcaha janta hai.har jagah se latiyaya hua,tomer ki tarah.aese anuranjan ke charan tomer hi chat sakte hain.yashwant bhaiya jo likha hai,likhte raho.kewal 3 mahine dekhiye.anuranjan aur tomer dono ka hashr.

  6. delhi stringer

    September 16, 2010 at 6:18 pm

    अरे भई ये तो सिर्फ बडे -बडे लोगों की बात हुई , राहुल जी कम से कम हम गरीब स्ट्रिंगरों के बारे में भी सोचो पिछले 6महिने से दिल्ली का ध्यान ही नहीं है । हमारी तरप भी दया द्रष्टी डालिए हम भी अपने पैसों के लिए खबरें किए जा रहे हैं और ऑफिस के चक्कर काट पिछले 6 माह से रुके पैसों के लिए लगातार भीक मांग कर दरकार किए जा रहे हैं । सर हमारी तरफ भी सोचिए कि हम कितनी कठिन परिस्तियों में जी कर पत्रकारिता कर रहे होंगे ।

  7. misha

    September 17, 2010 at 5:51 am

    मयंक जी ने सही कहा……..आलोक जी से एक बात कहना चाहूंगी की …उनकी कलम ने आज जो शोला चाँद लोगो की तरफ दरी के लिए उगला है ..वो तब क्यों नहीं उगला जब सी एन ई बी मे ….३०० से जायदा कर्मचारियों का भविष्य इन चंद लोगो ने अपने चहते के लिए दाव पर लगा दिया था….तब उनकी कलम की स्याही क्यों सूख गयी थी जो आज इंसाफ हुआ तो गीली हो गयी….अलोक जी की अंध भक्ति को दुनिया जानती है…पर अलोक जी आप ईशा मसीह नहीं जिन्होंने कहा था भगवान एक है…आपका भगवान और आस्था एक हो पर आप सबकी आस्था का फैसला कैसे कर सकते है….आप कैसे जो हो रहा है उसे गलत कह सकते है…आप कैसे कह सकते है की ये राज नहीं तो क्या था….क्या ये राज नहीं था की आउट पुट ने वो ओ आई से ए और मात्र १-२ साल के अख़बार के आदमी को असीसटेंट प्रोडूसर से सीनीयर प्रोडूसर सिर्फ इसलिए बना दिया क्योकि ..वो उनका मित्र है..तब आपकी कलम कहा थी ..जब उस व्यक्ति से जायदा अनुभवी लोग सिर्फ आह भर के चुप रह गए …..प्रोग्रामिंग का पी जिन्हें नहीं पता …वो सिर्फ बड़े लोगो की किरपा से ही आज मजे ले रे है….आप को वो भी नहीं चुभा …..आलोक जी आप टी वी के आदमी कभी नहीं थे …आप कलम के सिपाही नहीं बल्कि बादशाह है..पर आप टी वी के चित्रों की भाषा नहीं जानते…बस आपको कुछ बुरा लगे और लगे लोगो को लतियाने ….आप तो कूद जानते है आपका इनपुट ..किस तरह के इन और पुट मे विस्वास रखता है…..राहुल का जिक्र करना यंहा असभ्यता होगी …पर चाहे जैसे भी ….उन्होंने अपनी परखी नज़र ….कुछ देर के लिए खो दी …और भगवान शिव की तरह सारा विष खुद पी गए….खैर वो बड़े है और रहंगे …पर इस बड़े बरगद की छांव मे कुछ लोगो ने आराम करने की जगह कुकर्म किये …..अब वो भुगते ….आपकी कलम अब लगता है …मजलूमों के लिए नहीं बल्कि मुजरिमों के लिए लिखती है…आपसे ऐसी आशा आपके पाठक कदापि नहीं करते ..मेरे पास इतने जवाब है की आपको अहसास जरुर करा दूंगी…की आप जो कर रहे है वो सही समय पर करे …अन्यथा लगेगा की आपके के विषय मे यदा कदा जो लोग कहते है उसमे सत्यता है..
    वक्त की अंधी मे जो पेढ़ उखड़ने है वो उखड़े ….जो मजबूत होगा वो रहेगा… इस बहस मे सच कहू तो आप नहीं जीत पाएंगे…क्योकि पाप के कुछ बोझ के भागीदार आप खुद भी है …और ये साबित होता है इस बात से …जो आप इन लोगो की तरफदारी कर रहे हो…आपका अभिवादन ….

  8. jp Gupta

    September 17, 2010 at 7:04 am

    Rahul Raj is Rahul Raj and any aspersion on his professional capabilities is like spitting at the Sun midnoon.

  9. आलोक तोमर

    September 17, 2010 at 9:23 am

    मीशा के नाम से जिसने टिप्पणी की है उसकी भाषा ही बता रही है कि वो कौन है… मेरा प्रिय है इसलिए नाम नहीं लूंगा… मैं टीवी का आदमी नहीं हूं मगर आदमी ज़रूर हूं और जो दिखता है वो लिखता हूं… जिन्हें पसंद आए उन्हें धन्यवाद और जिनको मिर्ची लगे तो मैं क्या करूं

  10. आलोक तोमर

    September 17, 2010 at 9:32 am

    और हां इसपर क्या कहा जाए कि फर्जी नामों से ब्लॉग पर लिखने का एक कायर रिवाज बन गया है… सीएनईबी से किस चहेते को बचाने के लिए राहुल देव ने 300 लोगों की नौकरी दांव पर लगा दी थी ये ज्ञान मुझे भी मिल जाए तो बात समझ में आए… आंधी होती है तो बरगद भी उखड़ते हैं लेकिन आंधी है कहां… जो है सो कीचड़ में भंवर है और इससे दूर रहना ही बेहतर है… मुद्दा राहुल देव या किसी और व्यक्ति का नहीं है… मुद्दा तो ये है कि एक कंपनी है जहां बहुत सारे पत्रकार और गैरपत्रकार काम करते हैं… सब मीशा नामक फर्जी नाम की तरह प्रतिभाशाली नहीं हो सकते और यह मीशा के नाम से लिखने वाले ही बताएंगे कि कौन सा जुर्म हुआ है जिसमें मैं शरीक हूं…मुझे टीवी वाकई नहीं आता है मगर लिखना आता है और अपने नाम से लिखना आता है… और अगर कोई इसका पात्र है तो उसकी बजाना आता है…रही बात राहुल देव की तो मैंने उन्हें आज से नहीं पिछले बहुत वर्षों से जाना है और जिन संस्थानों में वो मुखिया रह चुके हैं उनमें उनका ये वर्तमान संस्थान सबसे छोटा है…

  11. satyawadi

    September 17, 2010 at 10:03 am

    stingero ko paisa denay me c n e b ke aakao k adhyan kyo nahi rahta . delhi me baith kar ye log dukandari chalaty hai hai . lekin khabar to chotay shaharo se he aati hai . agar stringer khabar bhejna band kar de to delhi ke mathadisho ki dukandari he band ho jayegi.

  12. मयंक सक्सेना

    September 17, 2010 at 11:50 am

    मीशा जी….
    जो भी हैं…स्त्री या पुरुष सबसे पहले असल नाम से टिप्पणी का साहस पैदा करें….स्पष्ट कर दूं कि आप अगर मेरी टिप्पणी के द्वारा अपना व्यक्तिगत निशाना साध रही हैं…तो मैं आपसे कतई असहमत हूं….जिन सज्जन के बारे में आपने अपनी व्यक्तिगत भड़ास निकाली है उनके लिए कम से कम मैं आपकी टिप्पणी नाजायज़ मानता हूं….
    उनका नाम नहीं लूंगा पर हां ये ज़रूर कहूंगा कि वे चैनल के सबसे सक्षम लोगों में से हैं….वे अपने विषय के गहरे जानकार हैं….और भाषा के स्तर पर चैनल में उनकी टक्कर के कम ही लोग हैं….कृपया एक गंभीर बहस में अपने व्यक्तिगत मतभेदों को अलग रखें….क्योंकि जिन सज्जन की आपने बात की वे क़ाबिल हैं…इस पर कोई उंगली नहीं उठा सकता है….एक बार उनकी लिखी स्क्रिप्ट्स पढ़ कर देखिएगा…
    एक और बात…मेरे लिखे हुए की कुछ बातों पर कुछ वरिष्ठों ने आपत्ति जताई…और दोबारा पढ़ने पर मुझे भी लगा कि एक दो पंक्तियां आपत्तिजनक हो सकती हैं….सो मैं अपनी भाषा के दुष्प्रयोग के लिए..उन शब्दों के प्रयोग के लिए सार्वजिनक क्षमा याचना करते हुए……ये स्पष्ट कर देना चाहूंगा कि मेरी भावनाएं और विचार यथावत हैं…..और उनमें शब्दों के साथ परिवर्तन सम्भव नहीं है…..
    मेरी भाषा की विद्रूपता के लिए…किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए क्षमा करें…पर हां मुझसे मेरे विचारों को वापस लेने की बात न कहिएगा…क्योंकि तब ये मेरी मानहानि हो जाएगी….अपने विचारों पर अचल…अपनी राय पर वैसा ही स्थिर….

  13. Rahul

    September 17, 2010 at 4:23 pm

    “मात्र १-२ साल के अख़बार के आदमी को असीसटेंट प्रोडूसर से सीनीयर प्रोडूसर सिर्फ इसलिए बना दिया”
    मिशा…. जी आप ने किशी के अनुभव , को आप वर्षो में आक कर आप ने ये साबित कर दिया की आप भी उशी जमात में खडी है जेसकी आप आलोचना कर रही है ,लिखना तो नहीं चाहीये लेकिन आप जान लो की आप बहुँत नादाँ है , अगर ऑफिस में वक्त गुजर जाने से ही कोई सीनियर हो ये जरुरी नहीं ,प्राइवेट सेक्टर इशी लिये सफल है ,आप डी.डी. ज्वाइन कर लीजिए ,वहा आप को वक्त के अनुसार प्रमोट किया जायगा……..एक उदहारण आप के अनुसार …..आज सचिन के जगह कपिल या गवास्कर ही खेल रहे होते…आप ये दिल से ये मत सोचीगा की मै वहा का हु ,मै ८०० km . दूर b4m का रेग्लुर पाटक हू . [b][/b]

  14. ajay

    September 17, 2010 at 6:46 pm

    Yes sir, great there is lot of talents in the market of media. And its depends whom do you want. Better if we do not repeat our mistakes and work like a worker with the company and not for the individual. They are not capable for their post whom you named and nobody knows better than you sir. regards

  15. vijai

    September 17, 2010 at 8:15 pm

    क्यों तोमर महोदय सबकी जब आप बखिया उधेरते हैं तो ये उनके संस्थान का निजी मामला नहीं होता क्या , दैनिक भास्कर के अग्रवालों के दादा बाबा सबकी कुंडली निकल कर खूब चटखारे लेते रहे अब जब आपके संस्थान पर उंगली उठी है तो फटने लगी , अरे भाई ये दोगलापन छोर दो

  16. misha

    September 18, 2010 at 3:36 am

    tum apni bhasha aur gurubhakti apni jeb mai rakho…tum jaise bus talwe chatenge aur kuch nahee …bat kisi ki kabliyat ki nahee ho rahi …bat ho rahi hai anyay ki …jiske shikar tum khud bhi hue …kher tum bevakoof they aur ho …rahoge…keep your mouth shut!!!…

  17. आलोक तोमर

    September 18, 2010 at 9:12 am

    मीशा जी मुझे नही पता कि आप कौन हैं, हैं भी या नही और अगर हैं तो नर हैं या नारी हैं या किन्नर हैं। रही बात मेरे बेवकूफ होने की तो उसका नतीजा मैं और मेरा परिवार भुगतेगा और अगर आप वाकई नारी हैं औऱ आपका दिल मेरे लिए इतना भावुक है तो चलिए कहानी को आगे बढ़ाते हैं हम भी तो देखें कि हम पर दिल देने वाला और इतने लाड़ से बेवकूफ बोलने वाला देखने मे कैसा है। अगर आप जैसे कि आपकी बातो से लगता है सीएनईबी में ही विराजती/विराजते हैं तो चले आइए मेरा अड्डा आपको पता ही होगा , जरा दिल खोल के बातें करते हैं।[b][/b]

  18. मयंक सक्सेना

    September 18, 2010 at 9:56 am

    आलोक जी….तात ये बेवकूफ वाली टिप्पणी आपके लिए नहीं….मेरे लिए है गुरुदेव….ज़रा ध्यान से देखिए….
    ज़ाहिर है मैं बेवकूफ हूं जो अपने नाम से टिप्पणी कर रहा हूं….समझदार तो मीशा….उर्फ बेनामी हैं….वैसे भाषा की शैली से “Keep ur mouth shut” से मैं पहचान चुका हूं कि आप कौन हैं….
    क्या कहती हैं….आपका नाम भी सार्वजनिक कर दूं….मीशा जी….

  19. S K YADAV

    September 18, 2010 at 12:45 pm

    aap logon ke pas koi kam nhi hai kya… koi mishi ki rahasya ko janana chahta hai. to koi.. rahul ji aur anuranjan ji ki kabiliyat ki tulna karna chahta hai… band karo ye sab bakwas…. himmat hai to aamne-samne bat kar lo… aukat pata chal jayegi…..

  20. nisha

    September 19, 2010 at 12:48 pm

    is my sister misha is talking about sports head of cneb ?

  21. पुरुषोत्तम

    September 19, 2010 at 3:51 pm

    मीशा उर्फ़ ऊषा गुप्ता आप शक्ल से तो फर्जी नहीं लगतीं मगर उमंग जी और अपूर्व सर के बारे में आपका कमेन्ट फर्जी नाम से क्यों है? खेल डेस्क पर काम नहीं चला और आलोक सर मदद नहीं कर पाए तो आप ने भी भड़ास निकाल ली राहुल सर और अनुरंजन सर के बहाने?

  22. Sorry...

    September 19, 2010 at 7:15 pm

    Is hamma main sab nange hai. lekin talent apni jagah hamesha bana leta hai. ye VOI ke asst producer se Cneb main Sr. Producer bankan sabit kiya…ye Mr. Anuranjan Jha ne Cneb main ‘Rahul Raaj’ (bataur Mr. Alok Tomar) Khatam kar ke sabit kiya. Aur poll kholne ka danka bajane wale ko bata doon ki main unhe ‘Mukhopaddhay’ se lekar Rajat Sharma tak ke zamane se janta hoon. Isliye mauka milne ka rona rona sirf apni zindagi ki haar ko chupna hai. Alok ji sab ki zindgi main bht se raaz hote hai. lekin unhe public forum par dhamkana kahan ki patrkarita hai. Maine bht majboor hokar ye likha. Plz Pardon if hurt.

  23. jane bhi do

    September 20, 2010 at 6:12 pm

    यशवंत जी, क्या आपकी साइट बेवकूफी भरी बातों का अड्डा बन गई है.. लिखने सबको आता है.. और दुनिया में हर आदमी एक दूसरे से बड़ा काबिल है..

  24. sanjay choudhary

    September 25, 2010 at 8:28 pm

    rahul dav je
    Prtrikarta ke Vishbidyalya hi……………
    ur
    navodit patrakaro ke gru………

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