पदमपति शर्मा का मृणालजी, शशिशेखर और एचटी प्रबंधन विषयक विचार पढ़ा। यहां आपको बता दूं कि मैं जितना पदमपति शर्मा से जुड़ा हूं, उतना ही शशिशेखर के साथ भी जुड़ा हूं और मृणालजी का एक शिकार रहा हूं। इसके साथ ही मैं शशिशेखर के शुरुआती पत्रकारिता जीवन और उनकी विकास यात्रा का निकट साक्षी रहा हूं। उनसे मेरा संपर्क तीन दशक से भी अधिक पुराना है। कहने में संकोच नहीं कि उनके बारे में जितना मैं जानता हूं, उतना शायद ही कोई जानता होगा। मैं मृणालजी के बारे में कुछ नहीं कहना चाहता और न उनसे शशि की कोई तुलना करना चाहता। दोनों की अलग-अलग शख्सियत है। शशि उन लोगों, खासकर युवाओं के लिए एक मिसाल हैं जो जीवन की कठिन डगर में बिना आपा खोए निरंतर आगे बढ़ने में विश्वास रखते हैं और हर नये अनुभव से सीख लेते हैं। शशि ने पत्रकारिता की शुरुआत बनारस के ‘आज’ से की। पहले सिटी रिपोर्टिंग की फिर बाबू विश्वनाथ सिंह, बाबू दूधनाथ सिंह व शिवप्रसाद श्रीवास्तव के सानिध्य में अनुवाद को निखारा।
संपादकीय लेखन का अनुभव सर्वश्री विद्या भास्कर, लक्ष्मी शंकर व्यास और चंद्रकुमार जैसे मूर्धन्यों से प्राप्त किया। उनकी प्रतिभा के कायल आज के मालिक शार्दूल विक्रम गुप्त ने उन्हें 23 साल की छोटी-सी उम्र में ही इलाहाबाद आज अखबार का संपादक सह यूनिट मैनेजर बनाकर भेज दिया। वहां उन्होंने टुकड़ी संस्कृति को जन्म दिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए यह पहला प्रयोग था जिसे शशिशेखर ने बखूबी अंजाम दिया। उन दिनों बनारस से आज अखबार छप कर जाया करता था और फिर उसमें इलाहाबाद के समाचारों वाली टुकड़ी भरी जाती थी। मुझे याद है, देर रात में बिजली की अक्सर कटौती हो जाती थी। शशिशेखर टैक्सी-जीप की हेडलाइट जलाकर भोर तक टुकड़ियां अखबारों में भरवाते थे। इस क्रम में जीप की बैटरी बोल जाती थी जिस वजह से जीप को धक्का देकर स्टार्ट करके ही घर जा पाते थे। यह क्रम बरसों-बरस चला। यहां से उन्होंने संपादकीय के अलावा अखबार प्रबंधन का पाठ पढ़ा।
विनोद शुक्ल के हटने के बाद कानपुर तथा अन्यान्य स्थानों पर आज में आए संकट के समय भी वह दीवार की तरह डटे, फिर लंबे समय तक आगरा में आज को जमाने का काम किया। अयोध्या में जब विवादित ढांचा ढहाया गया, उस समय शशिशेखर खुद रिपोर्टिंग टीम का नेतृत्व कर रहे थे। इसे मैंने अपनी आंखों से देखा है। शशिशेखर जहां भी रहे, जोड़ने का ही काम किया। अमर उजाला को भी कंटेंट, लेआउट के मामले में उन्होंने काफी समृद्ध बनाया। ज्ञात इतिहास में शशिशेखर ही वह शख्स हैं जो प्रेसिडेंट न्यूज या ग्रुप एडिटर रहते हुए डिजाइनर के पास खड़े होकर खुद पेज डिजाइन करके ही घर जाते हैं। इसके अलावा टेलीफोन पर भी पेज डिजाइन उतनी ही कुशलता से कराते हैं जैसे कि सामने खड़े होकर कराते हैं। वे कुर्सी पर बैठकर नहीं, फील्ड में संपादकों से काम कराने में विश्वास करते हैं और खुद भी ऐसा ही करते हैं। ऐसा मैंने अमर उजाला में उनके साथ काम करते हुए बार-बार महसूस किया है। वे एक-एक स्टोरी पर संपादकों की पूरी क्लास लेते हैं और इत्मीनान होने के बाद ही संपादक को बख्शते हैं। इसलिए उनके अधीन काम करने वाले चौधरी बने संपादक उनसे घबड़ाते हैं।
दरअसल शशिशेखर वह व्यक्तित्व हैं जो स्वयं में ही एक स्कूल है। वे संपादकीय के मास्टर तो हैं ही, प्रिंटिंग मशीन के रोलर ब्लैंकेट-चिलर यूनिट-कहां बेंजीन का इस्तेमाल करना है, इतनी तक की सूक्ष्म जानकारी के विशारद हैं। यही नहीं, ट्रक से उतारते समय अखबारी रोल के फटे हिस्से से कितना खाद (फटा हिस्सा) उतारना है और उसका पुर्नउपयोग कैसे करना है, इसकी भी उन्हें सूक्ष्म जानकारी है। बिजनेस के तो वह मास्टर ही हैं। कहना न होगा वह पूरी एक पीढ़ी को प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया का पाठ पढ़ा सकते हैं। आगरा या कहीं भी आज की जो गति हुई उसका कारण शशिशेखर नहीं बल्कि आज प्रबंधन की नाकामी रही है। असल में शशि शेखर जैसे बहुत कम संपादक मिलेंगे जो आज की तारीख में पूरे प्रिंटिंग और इलेक्ट्रानिक तंत्र की इतनी सूक्ष्म जानकारी रखते हैं।
मैं यहां यह कहना चाहूंगा कि पदमपति शर्मा ने आज, जागरण और हिंदुस्तान में खेल रिपोर्टिंग को नयी धार और ऊंचाइयां दीं। उनका योगदान इस मामले में अतुलनीय है। आज में हम तीनों साथ-साथ थे पर शशि शेखर से उनका वास्ता काफी कम रहा है। साथ ही, जूनियर होने के नाते वे खास तवज्जो भी नहीं देते थे। इस नाते वे शशिशेखर को कम ही जान पाए। पर इसे कहने में कोई संकोच नहीं कि शशि शेखर जिस भी प्रबंधन से जुड़े पूरी निष्ठा, समर्पण और शिद्दत के साथ अंतिम समय तक रहे।
शशिशेखर ने अमर उजाला में जूनियर सब एडिटर का पद समाप्त करके जिस प्रकार सब एडिटर का समान पद बनाया वह अपने आप में एक मिसाल है। यही नहीं, उन्होंने सभी के लिए तरक्की के रास्ते खोले। संपादकीय पेज पर संपादकों के साथ साथ छोटे से छोटे संपादकीय सहकर्मी का भी लेख छापा। वे पूर्ण प्रोफेशनल व्यक्ति हैं। हर व्यक्ति में कमियां होती हैं पर ऐसे उपलब्धिपूर्ण मौके पर उन्हें इंगित करना किसी के लिए उचित नहीं है। इसके अलावा, सुनी सुनाई बातों के आधार पर धारणा बना लेना भी सही नहीं है। जो खुद इस उपलब्धि में पीछे रह जाते हैं, उनमें ही ऐसे निगेटिव विचार पनपते देखे जाते हैं।
लेखक आशीष बागची हिंदी मीडिया के वरिष्ठ पत्रकारों में से एक हैं। उनसे संपर्क करने के लिए bagchiashish@rediff.com का सहारा ले सकते हैं।
Comments on “‘युवाओं के लिए मिसाल हैं शशि शेखर’”
Respected Babchi sir
Pranam
Jab ap kanpur men the, main amar ujala kanpur unit me lalganj se likhta tha
with regards
Avanindr Pandey