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कहिन

झंडेवालान पर भेड़िया आया….

: बेनामी की टिप्पणी-2 : भेड़िया आया…. शाम को एक एसएमएस आया कि झंडेवालान पर क्या करा दिया…. करा दिया ऐसे जैसे झंडेवालान हमारे दद्दा वसीयत में छोड़ गए थे और वहां कुछ भी हो ज़िम्मेदारी हमारी होगी…. खैर रास्ते में थे… तो घर पहुंच कर टीवी खोला… इतने तो समझदार हैं ही कि जानते हैं कि झंडेवालान में सबसे तेज़ चैनल का दफ्तर है….

: बेनामी की टिप्पणी-2 : भेड़िया आया…. शाम को एक एसएमएस आया कि झंडेवालान पर क्या करा दिया…. करा दिया ऐसे जैसे झंडेवालान हमारे दद्दा वसीयत में छोड़ गए थे और वहां कुछ भी हो ज़िम्मेदारी हमारी होगी…. खैर रास्ते में थे… तो घर पहुंच कर टीवी खोला… इतने तो समझदार हैं ही कि जानते हैं कि झंडेवालान में सबसे तेज़ चैनल का दफ्तर है….

सो लगा दिहिन और लगे देखने….खैर छोटे भइया भी साथै मा रहे तो हम कुछ बोलें या न उनकी स्पेशल टिप्पणी तो आनी ही थी….लेकिन स्पेशल कमेंट केवल छोटे भाई का ही नहीं था, शाम से रात तक ऐसे कई ताने…तंज़ और विशेष रिमार्क सुनने को मिले कि वो अजीब और अतार्किक भले ही हों….पत्रकारिता और पत्रकारों की आम आदमी में छवि क्या है, इसका आभास ज़रूर दे गए…..

सबसे पहले तो छोटे भाई ने क्या कहा…कहा नहीं केवल एक सवाल के फॉर्म में जो ऊ पूछै रहे वहै काफी था…”ब्रेकिंग चल रही थी…फलाने चैनल पर आरएसएस का हमला”…. पहला सवाल जो आया….”कोई पत्रकार पेला गया कि नहीं?”…. जवाब कुछ नहीं सूझा केवल मुस्कुरा दिया गया…. अपने ही घर में पत्रकारों के प्रति रवैये पर क्षोभ व्यक्त करना चाहता था पर सवाल बाकी थे….. अगला सवाल आया, “हमला तो अइसे कहित हैं जैसे आतंकी हमला हुई गवा… का हो बम उम फूट गया का…. ऐसी ब्रेकिंग ससुर दंतेवाड़ा में नाय चलात रहे…. अब ससुर ई का उससे बड़ा हमला है…” इस बार हम खिसिया गए…. हमने कहा कि अरे भई लोकतंत्र पर हमला है…चैनल पर…तो भयंकर व्यंग्यवाली मुस्कुराहट से हमको देखा गया…. कि लोकतंत्र और पत्रकारिता दोनो वहीं शर्मा गए….

खैर ये तो घर में दशा है… हो सकता है हमारे अपने कर्मों से हो, लेकिन बाहर निकले तो गेट पर सिक्योरिटी गार्ड ने मुस्कुरा कर देखा और कहा, “सरजी, सुना है वहां पर बवाल हुईगा…. आप वहैं काम करित हैं का… आप तो दूसरके चैनल में हैं…” हमने मुस्कुरा कर पुष्टि की और तेज़ी से बाहर निकले क्योंकि उसकी निगाह भी व्यंग्यात्मक थी…..

चाय की दुकान पर बैठे तो चायवाला बोला…”भैया सुने हैं तेज़ चैनल वाले मारे गए रहे आज दिल्ली मा…. का किए रहे ससुरे…. ससुर इज्जत नाय रही अब पत्तरकार की…. पुलिसवालों जइसा हाल हुइगा है… आपौ तो पत्तरकार हैं….” हमने कहा कि सारे पत्रकार एक जइसे थोड़े ही हैं…. तो देखिए बंदा सब जानता था… क्या बोला, “हां तो जो ईमानदार पुलिसवाले का हाल है वहीं पत्तरकार का है… दोनो ही भूखे हैं… आते हैं कई ईमानदार वाले…. उधारी की चाय पीते हैं… बस से या पुरानी स्कूटर से चलते हैं…” इसके बाद शायद कुछ कहने की गुंजाइश नहीं बची…दोनो चुप हो गए….चाय कड़वी लगने लगी थी….

तब तक एक और साथी पत्रकार आ गए… और आते ही अब तक की सबसे ख़तरनाक मुस्कुराहट बिखेरते हुए बोले….”संघियों ने आज झंडेवालान में बवाल काटा है…” हमारे सहमति में सर हिलाने पर वो आगे बोले, “साला गेट वेट सब तोड़ दिया… वो चैनल तो शाम से ही खेल रहा है इसी ख़बर पर…. पर उनके तो पार्टी से अच्छे सम्बंध…. ” मैं मुस्कुरा दिया… वो आगे बोले, “यार…कहीं ऐसा तो नहीं कि….खुदै…” हमने मुंह बना कर प्रतीकात्मक एतराज जताया, तो तुरंत आगे बोले, “नहीं यार इस हफ्ते टीआरपी भी गिर गई थी… दूसरे पर आ गया था… खैर जो भी हो टीआरपी तो आ ही जाएगी… कौन बहुत नुकसान हुआ है…” हमने फिर मुंह बनाकर आपत्ति जताई पर वो अपनी बात पर सहमत दिखे और हमारी आपत्ति को गर्व से खारिज कर दिया….

पर सबसे महत्वपूर्ण बात इसके बाद आई… साहब बोले,”अगर साले वाकई असली में बवाल काटने गए ही थे तो अंदर घुस कर एक आध मालिक लोग…संपादक लोग और एक दो वरिष्ठों को भी मार लगा ही देते… लगे हाथों… साले बहुत गंध फैलाए हैं…. बहन*$….”

इसके बाद मुझे लगा कि वाकई यहां आकर सारे संवादों की गुंजाइश खत्म हो चुकी है… और मैं वहां से चलने को उठ खड़ा हुआ…. रास्ते भर सोचता रहा कि क्या हम वाकई इतने हास्यास्पद और मूर्ख हैं…. क्या हम वाकई इतने भ्रष्ट लगने लगे हैं कि लोग असली मुद्दा भूल कर ये इंतज़ार कर रहे हैं कि कब पत्रकारों को पिटते देखें… क्या सारे संपादक एक जैसे हैं…. क्या हम विद्रूप और विक्षिप्त हैं…. यहां मैं किसी समाचार चैनल विशेष के खिलाफ़ नहीं हूं… न ही किसी भी तरह के फासीवादी हमलों और लोगों के पक्ष में खड़ा हूं पर क्या इस घटना पर लोगों के कल शाम मिले रिएक्शन ये नहीं बताते कि लोग जब मीडिया पर हमला होते देखते हैं तो हंसते हैं….वो भूल जाते हैं मुद्दों को…और मज़ा लेते हैं पत्रकारों के अपमान का….हमारी छवि क्या हो गई है….और वैसे भी मुद्दों को किनारे करना तो उनको हमने ही सिखाया है…..

फिलहाल जब लौटकर घर पहुंचा तो दस बज रहा था और उक्त चैनल पर उनके एक मुख्य एंकर चीख चीख कर कानों के पर्दे फाड़ रहे थे…. ये लोकतंत्र पर हमला है…. जनता की आवाज़ पर हमला है…. ये आवाज़ कम नहीं होगी…. बढ़ती जाएगी…. और इससे पहले कि आवाज़ और बढ़ती मैंने अपने लोकतंत्र का इस्तेमाल कर के टीवी बंद कर दिया… आवाज़ अब भी कानों में गूंज रही थी…. ये आवाज़ बढ़ती जाएगी… य़े लोकतंत्र की आवाज़ है…. और ज़ेहन में सवाल था कि लोकतंत्र की आवाज़… कौन सी… कैसी और किसके लोकतंत्र की…. आम आदमी की आवाज़…. वो तो कब से सुनी ही नहीं…..

आज की बेनामी टिप्पणी में इतना ही… सोचिएगा ज़रूर कि क्यों आखिर लोग हमारे सच में भी अब हमारा विश्वास नहीं करते हैं…. भेड़िया आने की कहानी तो हम सबने सुनी ही होगी… लिखी भी तो हम सबने मिल कर ही…..

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आपकाही

बेनामी लाल

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0 Comments

  1. winit

    July 17, 2010 at 9:23 am

    बढ़िया है भाई , इ सबसे तेज खाली हुवईं है जहांसे इनका खज़ाना भरेई खातिर बिज्ञापन मिल रहा है. बाकी सबे गांव क़स्बा ,नगर इनकी नजरन मा कब्बो नई आवत कि हुवा की जनता पर का बीत रही है , इनका लोकतंत्र खली पुन्जिपतियन के आस पास बसा है… ठीके है …
    ——विनीत –;)

  2. मयंक सक्सेना

    July 17, 2010 at 10:49 am

    बेनामी टिप्पणियां क्या कम थी यशवंत भाई जो अब बेनामी से कॉलम भी लिखवा रहे हैं…..खैर लिखा तो सच है बेनामीलाल ने…पर हम सबको समझ आ जाए तो बात है….वैसे बेनामी लिखना ही सबसे बेहतर है आजकल…..क्यों बेनामी भाई, कभी आपसे मुलाकात का सौभाग्य भी चाहेंगे….बुर्का पहन के आ जाना….
    मयंक सक्सेना
    9310797184

  3. Jeet Bhargava

    July 18, 2010 at 8:55 am

    लिखा तो सच है बेनामीलाल ने…
    http://www.secular-drama.blogspot.com

  4. bharat bhushan bhama

    July 18, 2010 at 12:19 pm

    सच तो ये है कि ये इलेक्ट्रानिक चैनल वाले हैं ही इसी काबिल।
    ये बलात्कार पीडि़ता से यह पूछ लेते हैं कि आपके साथ बलात्कार हुआ है, अब आपको कैसा लग रहा है।
    इन्होंने जिस दुकान पर मिठाई देखी, वहीं कैमरा लगा दिया कि या तो नोट दो, नहीं तो शाम तक तुम्हारा थियेटर बंद!
    ऐसे में मैं पत्रकार होकर भी आर एस एस वालों को धन्यवाद का पात्र मानता हूं। इन खबरिया टीवी चैनलों की दुकानों के कारण आज पत्रकारिता के मिशन को आत्महत्या करनी पड़ी है।
    काश! एस पी सिंह आज जिन्दा होते तो जरूर कहते कि अच्छा होता कि मैं इसका शुरु में ही गला घोंट देता।
    इनके लिए मुझे एक शेर याद आता है कि

    अब तो दरवाज़े से अपने नाम की तख़्ती उतार।
    लफ्ज़ नंगे हो गए, शोहरत भी $गाली हो गई॥

    -भारत भूषण भामा

  5. mazhar husain

    July 18, 2010 at 2:00 pm

    sach me Benami ji aapne sach likha hai hum me hi kami hai jo pit rahe patrkaar ko dekh kar log hanste hai aaj sach me patrkaro ne apne charitra ko khud hi gira diya hai …………….aane jo likha sahi aur sach likha hame ab ab zarurat hai apne bhi Girebaan me dekhne ki warna hum isi tarah se maare jate rahenge lekin aajtak ki office par jo bhi hua wah bahut hi galat aur nindaniya hai iske khilaaf bhi hame kuch karne ki zaroorat hai waise patrkaar ki halat aisi ho gayi hai ki koi bhi aakar do haath maare aur chala jaye aur ham sirf tamasha hi dekhte rah jate hai bahut hota hai to gyapan dekar khanapoori kar lete hai hame ab koi aur tareeka apnana padega..aur Patrkarita ka sauda karne walo ko bahar ka raasta dikhana padega..

  6. S.P. Chauhan

    July 18, 2010 at 7:14 pm

    yashwant g patrakaro ke din aur bhi khrab aane wale hen.tej chenal ko mahgaee dikhaee nahi de rahi nhi dikhaee diya bharat band,jis sarkar se lena hea labh uski buraee kyo dikhayenge,pease lekar chhapenge khawar,karenge black mail.hiduon ko dikhana atank wadi asan he,jara shikh,esaee ya muslim ke liye yah himmat kar pao ge.me bhi patrakar hun or patrakaron ka dekha hai asli rup .jyadatar chenal ke patrakar karte hen black mail.news ke nam par dikhate hen biyuj hindi ka gyan nahi, chalate hen hindi chenal, bulate jinhen bahas ko unhen bolne dete nahi fir bahas rah jati he be natija kahte he samay naheen.
    .

  7. S.P. Chauhan

    July 18, 2010 at 7:41 pm

    bhai yashwant gi patrakar ya patrakarita per humla ek asahaniya peeda hai lekin jab patrakarita nishpaksh ho. Is lekh men jo wyang hai bahut hud tak sateek hai mai bhi patrakar hun pichle 25,30 sal se patrkarita kar raha hun. Aaj patrkarIta men bahut sare chehare aa gayen han jo patrakarita ki arh main black mail kar rahe han,paid nwes ka chalan badh gaya hai khas taur se electronic chanel wale neus ki jagha viuse paros rahe han. Hindi ka gyan nahi Hindi chanel chala rahe han .jise mudde per bolne ke liye bulate han use bolne dete nahi kudh chikh chikh kar apni bat manwate han .be natija bahas rahati hai kahte han samay nahi.TEJ nwes chanel k pas mahangayi k liye samay nahi or bharat band ko jagha nahi,dikayenge natch.kud daroga ban kar kahenge aatankwadi kisi ko bhi….. kya yahi patrakarta hai??????

  8. gs

    October 17, 2010 at 6:47 pm

    baat patrakaron ki ho ya kisi bhi aise madhyam ki jiska kaam samwad banana aur sarokaron se judna hai…agar wo apni zimmedari se hatega to zahir hai usko jhatke to lagenge…
    waise bhi in dino tv chennal me patrakarita karne wale hashiye par aur tamasha karne walon ko sir aankhon par bhithaya jata hai….jo harek khabar ko bazaar ke chashme se aur trp ki kasouti par kasne ke baad hi tay karte hain ki khabar ya ghatna screen par dhikhai jani chahiye ya nahin….
    jab tak is gen ko laat nahi mari jayegi…ye sudharne wali nahi….
    har chainel me aise ullu hain aur upper ki post par hain,,,,
    ek sach ye hai ki jin logon ko print media me kaam nahi mila wo pahle to byte collecter ban gaya aur phir waqt ne use sampadak bana diya…
    aur ye bimari mahamari ban chuki hai…

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