दैनिक हिंदुस्तान, दिल्ली के वरिष्ठ स्थानीय संपादक प्रमोद जोशी द्वारा वरिष्ठ पत्रकार शैलबाला से दुर्व्यवहार किए जाने के मामले में नया मोड़ तब आ गया जब एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी ने संयुक्त रूप से दिल्ली हाईकोर्ट में मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया। सूत्रों के अनुसार शैलबाला के अलावा जिन तीन लोगों को कोर्ट में आरोपी बनाया गया है, उनके नाम हैं- यशवंत सिंह (भड़ास4मीडिया), राजीव रंजन नाग (वरिष्ठ पत्रकार) और अनिल तिवारी (पूर्व एचटी कर्मी)। बताया जाता है कि मानहानि के एवज में एचटी ग्रुप और प्रमोद जोशी ने लाखों रुपये की मांग की है। भड़ास4मीडिया प्रतिनिधि ने प्रमोद जोशी से जब मुकदमे के बाबत फोन पर बात की तो उन्होंने शैलबाला, यशवंत, राजीव और अनिल पर मुकदमा किए जाने की बात को कुबूल किया और इसे संस्थान की रूटीन कार्यवाही का हिस्सा करार दिया।
एक संपादक द्वारा छंटनी के शिकार अपने मीडियाकर्मियों पर ही मुकदमा किए जाने के सवाल पर प्रमोद जोशी ने कहा कि अगर कोई खुद को पीड़ित महसूस करता है तो उसे कोर्ट जाने का अधिकार है और उन्होंने इसी अधिकार का उपयोग किया है। प्रमोद जोशी ने यह भी कहा कि वे एचटी ग्रुप के कर्मचारी हैं और ग्रुप ने कोर्ट में जाने का अगर फैसला किया है तो उन्हें इसके लिए सहमत होना ही पड़ेगा। श्री जोशी ने कहा कि उनकी छवि खराब करने के लिए उन्हें तरह-तरह से निशाना बनाया जा रहा है और उनके खिलाफ तमाम तरीकों से दुष्प्रचार किया जा रहा है। इसी के चलते वे बतौर पीड़ित, न्याय पाने के लिए कोर्ट की शरण में गए हैं।
मुकदमा किए जाने की सूचना मिलने पर वरिष्ठ पत्रकार शैलबाला बिफर पड़ीं। उन्होंने कहा कि यह मेरे पर अत्याचार है। एक तो 32 साल की नौकरी करने के बाद धक्के देकर और दुर्व्यवहार करके बाहर निकाला गया। दुर्व्यवहार के खिलाफ न्याय पाने के लिए मैं थाने गई पर ऊंचे पद पर बैठे आरोपियों के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। बेरोजगारी की इस स्थिति में मुकदमा होना मेरे साथ एक और अन्याय है। मुकदमा लड़ने के लिए कहां से पैसा लाऊंगी? पीड़ित महिला को न्याय दिलाने के बजाय उल्टे मुकदमों में फंसाकर कोर्ट-कचहरी में घसीटा जा रहा है। नौकरी छीनने और दुर्व्यवहार करने से पेट नहीं भरा तो अब बेरोजगार महिला को मुकदमें के जरिए तंग किया जा रहा है। मैं न्याय की लड़ाई लड़ रही हूं और लड़ती रहूंगी। इन धमकियों से डरने वाली नहीं हूं। अगर कोर्ट में घसीटा ही गया है तो कोर्ट में मैं वो सब बताऊंगी जो मेरे साथ किया गया है। मैंने एचटी ग्रुप में 32 साल तक सात संपादकों के अधीन काम किया है। कोई नहीं कह सकता कि मैंने कभी किसी पर कोई आरोप लगाया हो या किसी के साथ कोई गलत व्यवहार किया हो। जब मैंने दुर्व्यवहार किए जाने की रिपोर्ट थाने में लिखाई तो प्रबंधन के लोगों ने थाने में अप्लीकेशन दे दिया कि उन्हें आशंका है कि शैलबाला आरोप लगा सकती हैं। आखिर उन्हें यह सपना कैसे आया? यह सब पैसे और पद के दुरुपयोग का खेल है। वे एक वरिष्ठ पत्रकार होकर यह सब झेल रही हैं तो आम आदमी के साथ क्या होता होगा, इसकी कल्पना भर की जा सकती है। सबसे दुखद यह है कि एक महिला के साथ उसी संस्थान के लोग अत्याचार कर रहे हैं जिस संस्थान के वरिष्ठ पदों पर जानी-मानी महिलाएं बैठी हैं।
वरिष्ठ पत्रकार राजीव रंजन नाग का कहना है कि मुकदमें के बारे में मुझे आपसे जानकारी मिल रही है। अगर नोटिस मिलता है तो वे कोर्ट के सामने पक्ष रखेंगे। लीगल फोरम के जरिए इसका सामना करेंगे। अगर दुर्व्यवहार की शिकार एक वरिष्ठ महिला पत्रकार का साथ देना कोई अपराध है तो मैंने ये अपराध किया है। हकीकत का पर्दाफाश अदालत में किया जाएगा। प्रमोद जोशी ने अगर अदालत में जाने का साहस किया है तो उनके इस साहस को मैं सलाम करता हूं। यह एक बड़ी लड़ाई है। प्रतिष्ठान और पद की आड़ में व्यक्तियों को धमकाने की प्रवृत्ति पर रोक लगनी चाहिए। अगर पीड़ित महिला का पक्ष लेना मानहानि है तो इसका जवाब अदालत में दिया जाएगा। हम अदालत का सम्मान करते हैं और अदालत के फैसले का भी सम्मान करेंगे। पर हम ये जानना चाहते हैं कि इस धर्मनिरपेक्ष देश भारत में पैगंबर मोहम्मद की आकृति प्रकाशित करने वाले अभी जेल के पीछे क्यों नहीं गए? किस तरह मामले को रफा-दफा किया गया? सबको पता है कि इस्लाम में पैगंबर मोहम्मद की आकृति प्रकाशित करने से परहेज करने की बात कही गई है। इंडिया सेकुलर कंट्री है लेकिन ये अखबार धर्म का अपमान कर रहे हैं। जो संपादक गांधी को फासिस्ट बताने वाले लेख उसी अखबार में लिख और छाप चुके हैं जो अखबार कभी गांधी का प्रवक्ता हुआ करता था, उऩकी समझ पर तरस आता है। फ्रीडम आफ एक्सप्रेसन की लड़ाई लड़ने वाले अखबार में बैठे लोग अब न्याय की आवाज उठाने वाले लोगों की आवाज बंद करने पर तुले हुए हैं, यह शर्मनाक है। हम जानना चाहते हैं कि प्रमोद जोशी ने अपने पूरे करियर की मानहानि की कीमत क्या लगाई है?
भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंत सिंह ने इस प्रकरण पर कहा कि अभी तक कोई नोटिस नहीं मिला है लेकिन प्रमोद जोशी जी ने बातचीत में स्वीकारा है कि मुकदमा कर दिया गया है। प्रमोद जी वरिष्ठ पत्रकार और संपादक हैं। उनसे अपेक्षा नहीं थी कि वे पत्रकारों पर ही मुकदमा कर देंगे। संपादक का दूसरा मतलब सहृदय, सरल और सहज भी होता है। संपादकों पर मुकदमें होते आए हैं, ये तो हम लोगों ने सुना है लेकिन संपादक को अपने पत्रकारों पर ही मुकदमा करना पड़ा, यह पहली बार सुन रहा हूं। प्रमोद जी की यह हरकत उनकी सोच और व्यक्तित्व को दर्शाती है। रही बात शैलबाला प्रकरण की, तो इसको लेकर जितनी भी खबरें भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित की गईं, उस पर एचटी मीडिया की तरफ से जो भी पक्ष आया, उसे हू-ब-हू और ससम्मान प्रकाशित किया गया। बावजूद इसके, मुकदमा करना नीयत में खोट दर्शाता है। कहीं न कहीं यह मामला वेब जर्नलिस्ट सुशील कुमार सिंह के मामले जैसा है जिसमें उन्हें अपनी वेबसाइट पर एचटी ग्रुप के बारे में एक खबर लिखने पर पुलिस का सामना करना पड़ा था और आज तक वे परेशान हैं। सुशील जी के प्रकरण के वक्त देश भर के पत्रकारों ने एकजुट होकर आवाज बुलंद किया था लेकिन लगता है एचटी ग्रुप ने सबक नहीं लिया। ऐसा प्रतीत होता है जैसे कुछ लोग एचटी ग्रुप की छवि खराब करने पर आमादा हैं। तभी वे बार-बार अपने गलत कार्यों का खुलासा करने वालों को कोर्ट-कचहरी और पुलिस के जरिए परेशान करने में लग जाते हैं। जहां तक भड़ास4मीडिया की बात है तो यह देश के लाखों पत्रकारों की आवाज उठाने वाला पोर्टल है और यह संभावित है कि प्रबंधन के लोग इसे अपना निशाना बनाएंगे। अभी तक निशाना क्यों नहीं बनाया गया, यही आश्चर्य की बात है।
यशवंत सिंह ने आगे कहा कि भड़ास4मीडिया की टीम देश भर के आम पत्रकारों के शारीरिक, आर्थिक और नैतिक सहयोग से कोर्ट में पूरी मजबूती से अपना पक्ष रखेगी। अगर जेल जाने की स्थिति आती है तो हम सहर्ष जेल जाएंगे क्योंकि यह मसला लोकतांत्रिक दायरे में अभिव्यक्ति की आजादी का मामला है। अगर एचटी ग्रुप और प्रमोद जोशी के चलते भड़ास4मीडिया का संचालन बंद कराया जाता है तो यह भारतीय मीडिया के इतिहास में कारपोरेट मीडिया की दबंगई व मनमानी के गहन भयावह दौर का प्रारंभ होगा। न्यू मीडिया माध्यम (ब्लाग, वेबसाइट, मोबाइल आदि) अभी जब अपने पैर पर खड़ा होना सीख रहे हैं, ऐसे में परंपरागत और स्थापित मीडिया माध्यमों में सर्वोच्च पदों पर बैठे स्वनामधन्य लोगों द्वारा इस तरह का दादा जैसा व्यवहार करना, न सिर्फ अनैतिक और गैर-पेशेवराना है बल्कि लोकतंत्र व मीडिया में आस्था रखने वालों को हताश करने वाला भी है। अभी तो मामला सिर्फ मुकदमें तक है। मुझे आशंका है कि ये लोग अपनी श्रेष्ठता और सर्वोच्चता साबित करने के लिए प्रतिक्रियास्वरूप हम न्यू मीडिया माध्यम के संचालकों को शारीरिक रूप से भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर सकते हैं। लेकिन सच कहने की जिद के चलते हम लोग वो सब कुछ झेलने को तैयार हैं जो हर युग में किसी न किसी सच कहने वाले को झेलना पड़ा है। मुझे पूरा विश्वास है कि देश भर के मीडियाकर्मी इस संकट की घड़ी में भड़ास4मीडिया के साथ खड़े होंगे। यह मुकदमा अगर शुरू होता है तो ऐतिहासिक मुकदमा होगा जिसकी अनुगूंज दूर तक सुनाई देगी।
ये हैं वो खबरें जिन पर मुकदमा किए जाने की बात पता चली है-