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पर किसी ने मृणालजी का नाम नहीं लिया

[caption id="attachment_15960" align="alignnone"]बरेली के टापर बच्चों के हाथों हिंदुस्तान अखबार का लोकार्पण कराते प्रधान संपादक शशि शेखर. (तस्वीर साभार : हिंदुस्तान)बरेली के टापर बच्चों के हाथों हिंदुस्तान अखबार का लोकार्पण कराते प्रधान संपादक शशि शेखर. (तस्वीर साभार : हिंदुस्तान)[/caption]

हिंदुस्तान की बरेली यूनिट कई लिहाज से खास है। इसे ऐतिहासिक भी कहा जा सकता है। इस यूनिट ने दो प्रधान संपादक देखे। मृणाल पांडे और शशि शेखर। मृणालजी के जमाने में बरेली यूनिट लांचिंग की तैयारियां शुरू हुई। प्रेस और आफिस का उदघाटन मृणालजी ने अपने हाथों से किया। स्थानीय संपादक रखने से लेकर संपादकीय स्टाफ की नियुक्तियां भी उन्हीं की देखरेख में हुई। पर लांचिंग के वक्त मृणालजी नहीं थीं। उनके पद पर शशि शेखर आ गए। सो, शशि शेखर की देखरेख में बरेली यूनिट की लांचिंग का कार्यक्रम कल संपन्न हुआ। लेकिन दुख की बात तो यह कि लांचिंग समारोह में मृणालजी का कोई नामलेवा तक नहीं था।

बरेली के टापर बच्चों के हाथों हिंदुस्तान अखबार का लोकार्पण कराते प्रधान संपादक शशि शेखर. (तस्वीर साभार : हिंदुस्तान)
बरेली के टापर बच्चों के हाथों हिंदुस्तान अखबार का लोकार्पण कराते प्रधान संपादक शशि शेखर. (तस्वीर साभार : हिंदुस्तान)

हिंदुस्तान की बरेली यूनिट कई लिहाज से खास है। इसे ऐतिहासिक भी कहा जा सकता है। इस यूनिट ने दो प्रधान संपादक देखे। मृणाल पांडे और शशि शेखर। मृणालजी के जमाने में बरेली यूनिट लांचिंग की तैयारियां शुरू हुई। प्रेस और आफिस का उदघाटन मृणालजी ने अपने हाथों से किया। स्थानीय संपादक रखने से लेकर संपादकीय स्टाफ की नियुक्तियां भी उन्हीं की देखरेख में हुई। पर लांचिंग के वक्त मृणालजी नहीं थीं। उनके पद पर शशि शेखर आ गए। सो, शशि शेखर की देखरेख में बरेली यूनिट की लांचिंग का कार्यक्रम कल संपन्न हुआ। लेकिन दुख की बात तो यह कि लांचिंग समारोह में मृणालजी का कोई नामलेवा तक नहीं था।

लांचिंग समारोह में सबने अपनी बात रखी। बहुत सारी बातें हुईं। पर मृणालजी को किसी ने याद करना, जिक्र करना, चर्चा करना, नाम लेना उचित नहीं समझा। आज हिंदुस्तान, दिल्ली में प्रथम पेज पर हिंदुस्तान, बरेली की लांचिंग की खबर के साथ प्रधान संपादक शशि शेखर का विशेष संपादकीय भी प्रकाशित हुआ है। पर इसमें भी मृणालजी का कहीं कोई जिक्र नहीं है।

सच कहा गया है, जब तक आप कुर्सी पर हैं, सब सलाम ठोंकेंगे, आसपास घूमते नजर आएंगे। कुर्सी जाते ही कोई नामलेवा तक नहीं रहता।

बरेली में हिंदुस्तान की लांचिंग की खास बात थी शहर के टापर बच्चों द्वारा अखबार का लोकार्पण कराया जाना। कल शाम बरेली के एक्जीक्यूटिव क्लब में रंगारंग समारोह में बरेली के टॉपर बच्चों आरिफा और विशेष गंगवार ने अखबार का लोकार्पण किया. हिन्दी के तीसरे सबसे बड़े अखबार हिन्दुस्तान ने देश में अपने 16वें व उत्तर प्रदेश में सातवें प्रकाशन केन्द्र के रूप में बरेली में दस्तक दे दी. शीर्षस्थ कहानीकार, उपन्यासकार शाहजहांपुर निवासी हृदयेश और मेयर श्रीमती सुप्रिया ऐरन ने दीप प्रज्ज्वलित कर समारोह की शुरुआत की. हृदयेश जी ने पत्रकारिता की घटती विश्वसनीयता पर चिंता जताते हुए आशा वयक्त की कि हिन्दुस्तान इस गिरावट को रोकने और आदर्श स्थिति के निर्माण में मददगार होगा. मेयर ने बरेली से हिन्दुस्तान के प्रकाशन को रुहेलखण्ड के लिए गौरव बताया. प्रधान संपादक शशि शेखर ने पत्रकारिता के वर्तमान स्वरूप पर चिंता जताते हुए स्पष्ट किया कि हिन्दुस्तान अन्य प्रकाशनों से किस तरह भिन्न होगा और मूल्यों की रक्षा करते हुए सकारात्मक पत्रकारिता के किए सचेष्ट होगा. बिजनेस हेड अमित चोपड़ा ने हिन्दुस्तान का सफरनामा पेश करते हुए रुहेलखण्ड की जनता को निष्पक्ष और निर्भिक अखबार देने का भरोसा दिलाया.

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, दिल्ली समते देश के छह राज्यों से प्रकाशित होने वाला यह अखबार यूपी के पाठकों में सबसे तेजी से बढ़ने वाला अखबार बन चुका है. लोकार्पण के मौके पर बरेली के सांसद प्रवीन सिंह ऎरन, शाहजहाँपुर के सांसद मिथिलेश कुमार, पुर्व केन्द्रीय मंत्री संतोष गंगवार, डीएम आशीष गोयल, डीआईजी एनके श्रीवास्तव समेत शहर की कई हस्तियाँ मौजूद थीं. अतिथियों का स्वागत महाप्रबंधक सम्राट नायक तथा धन्यवाद स्थानीय संपादक अनिल भास्कर ने दिया. श्री नायक और श्री भास्कर ने यूनिट स्थापना के अपने अनुभव बाँटे. इस ऎतिहासिक क्षण के गवाह बने वाइस प्रेसीडेण्ट मार्केटिंग गौरी काप्रे, रंजन गर्ग, वरिष्ठ स्थानीय संपादक नवीन जोशी, पूर्वी व मध्य यूपी के बीजनेस हेड संजय शुक्ला, मीडिया मार्केटिंग हेड रितिका सिन्हा, नेशनल सेल्स हेड पराग अग्रवाल.


हिंदुस्तान में प्रथम पेज पर प्रकाशित प्रधान संपादक शशि शेखर का विशेष संपादकीय


….और अब बरेली से

शशि शेखर

सवाल उठता है-बरेली से क्यों? एक राष्ट्रीय माने जाने वाले अखबार को यहाँ से अपना समूचा संस्करण निकालने की जरूरत क्यों महसूस हुई? मैं इसे सवाल नहीं बल्कि भ्रांति कहना चाहूँगा. “हिन्दुस्तान” ऐसा अखबार है जो खाँटी हिन्दी भाषी लोगों की जिन्दगी में रचता-रमता रहा है. हम अच्छी तरह जानते हैं कि असली भारत आज भी छोटे शहरों, कस्बों और गाँवो में बसता है. यहीं से हमारी आदिम आकांक्षाएँ हमें अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर चमकने और चहकने का रास्ता सुझाती हैं. पूरी दुनिया में अपना डंका बजाने वाली तमाम हस्तियों पर इस माटी के दूध और पानी का कर्ज है. उनके विचारों ने यहीं से अँगड़ाई लेनी शुरू की थी. हिन्दी बोलने-समझने वालों को संख्या और समझ के मामले में किसी से कमतर आँकना नादानी होगी. बरेली से अखबार निकालने का फैसला करते वक्त हमारे मन में पहला खयाल यही था कि रुहेलों की इस सरजमीं की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहाँ पर देश की गंगा-यमुनी तहजीब सच्चे अर्थों में साँसे लेती है. पूरे देश में हिन्दू-मुस्लिम-सिखों के गाँव इतनी सहजता से कहीं और नही बसते. हिमालय से निकलने वाली नदियाँ रुहेलखण्ड में आकर अपना गर्जन-तर्जन छोड़कर शांत और जीवन्दायिनी स्वरूप शायद इसीलिए धारण कर लेती हैं.

पर सिर्फ सहअस्तित्व, शांति, धीरता और वीरता से ही हम २१ वीं शताब्दी की जरूरतों पर खरा नहीं उतरते. यह समय बहुत तेजी से बढ़ने का है. अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि रुहेलखण्ड को वह दर्जा हासिल नहीं हुआ जो होना चाहिए था. इसकी तमाम वजहें हैं. उत्तर प्रदेश की विशालता में तीन अंतरधाराएँ हमेशा बहती थीं. कभी पूरब का नारा तो कभी पश्चिम का उदघोष तो कभी पहाड़ को न्याय का निनाद. बीच-बीच में अलग रुहेलखण्ड की मांग उठी, पर सियासी नक्काखाने में उसकी स्थिति तूती से ज्यादा कभी नहीं बनी. “हिन्दुस्तान” का मकसद रहा है, अपने पाठकों को अपना हक पाने में मदद देना. हम वादा करते हैं कि आज से आपके साथ एक ऐसा अखबार होगा जिसके पास पूरी दुनिया में हो रेहे बदलाव की नब्ज होगी और “ग्लोबल विलेज” में आपको पूरी ताकत से प्रतिष्ठापित करने की प्रतिज्ञापूर्ण जिम्मेदारी भी. भरोसा रखें इस देश के दस शीर्षस्थ अखबारों में सबसे तेजी से बढ़ते समाचारपत्र का आपसे यह वादा है.

बिहार, झारखण्ड, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और उत्तराखण्ड के बाद “हिन्दुस्तान” ने उत्तर प्रदेश की सरजमीं की सेवा का जो संकल्प लिया है उसके परिणाम आशातीत रहे हैं. “हिन्दुस्तान” के भरे-पूरे परिवार में हर रोज केवल उत्तर प्रदेश से 13,666 नए सदस्यों का इजाफा हो रहा है. ऐसा तभी होता है जब अखबार आम आदमी की जिंदगी का कभी जुदा न होने वाला हिस्सा बन जाए.

एक बात और. “हिन्दुस्तान” का मकसद उमंगों से उबलते किशोरों और युवाओं को उनकी मंजिल तक पहुँचाना है. यह हिन्दी का अकेला अखबार है जो खुद को नई पीढ़ी की तैयारी का प्लेटफार्म मानता है. “तैयारी” एक शिक्षित और समृद्ध भारत की नींव रख रही है. यह अखबार सपने नहीं दिखाता बल्कि सपने देखने वालों को मंजिल पाने के लिए रास्ता दिखाने और बनाने का काम करता है. यही वजह है कि बरेली में अखबार के लोकार्पण के लिए हमने राजनेताओं, ग्लैमरस लोगों या महानुभावों की फौज नहीं बुलाई. हमने उन बच्चों को यह जिम्मेदारी सौंपी जिन पर आने वाले दिनों का दायित्व है. चीन की कहावत है, हजार मील की यात्रा की शुरुआत एक नन्हें कदम से होती है. हमारे आपके साझे सफर का यह शुरुआती शुभ दिन है.

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