राज ठाकरे के खिलाफ आंदोलन का खामियाजा युवा पत्रकार अशोक कुमार को भुगतना पड़ा। अमर उजाला, अलीगढ़ की नौकरी चली गई। राज की राजनीति के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान पर निकले अशोक व साथियों ने अलीगढ़, लखनऊ, सुल्तानपुर, इलाहाबाद, बनारस, गोरखपुर, सलेमपुर, पटना, मेरठ और दिल्ली की यात्रा पूरी कर ली है। इन जगहों पर युवाओं के हस्ताक्षर मांग पत्र पर लिए। इसमें राज की पार्टी को चुनाव न लड़ने देने व उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने की मांग की गई है।
1 नवंबर से शुरू हुई यह यात्रा 21 नवंबर को दिल्ली में खत्म हुई। इस समय तक कुल 12 हजार हस्ताक्षर इकट्ठे हो चुके थे। अशोक और उनकी टीम ने हस्ताक्षरों की यह पूंजी पिछले दिनों इलेक्शन कमिश्नर और राष्ट्रपति को सौंप दी। दिल्ली में इन लोगों ने सैकड़ों युवाओं के साथ मिलकर जुलूस भी निकाला। इस प्रकार अशोक का देश के लिए कुछ करने का सपना सच हुआ। देश को बांटने वाली राजनीति कर रहे ताकतों को एक संदेश देने का सपना। युवाओं की एकजुटता का सपना। एक पत्रकार के रूप में अशोक ने यह सपना जब देखा तब उन्हें खुद यकीन नहीं था कि वे इसे पूरा कर पाएंगे लेकिन आंतरिक आवेग व आदर्शवाद के चलते उन्होंने जो तय किया, उस पर अमल करने की ठान ली।
अमर उजाला, अलीगढ़ के प्रबंधन को 25 दिनों की छुट्टी का आवेदन थमाकर अशोक मुहिम की राह पर निकल पड़े। एक दिन अचानक उन्हें पता चला कि उनकी नौकरी चली गई है और वेतन भी रोक लिया गया है। इससे विचलित हुए बिना अशोक मुहिम को आगे बढ़ाते रहे और अंजाम तक पहुंचाकर ही दम लिया। आर्थिक दिक्कतों से जूझते हुए, मित्रों-शुभचिंतकों की मदद से शहर-दर-शहर पहुंचते हुए, युवाओं से संपर्क कर हस्ताक्षर कराते हुए, अभियान को परवान तक पहुंचाया।
अशोक ऐसे वक्त की उपज हैं जब नौकरी से परे कुछ भी सोच पाना और उस पर अमल कर पाना बड़े से बड़े शूरमाओं के लिए असंभव है। ऐसे में एक नौजवान पत्रकार का देश व समाज हित के लिए, कुछ दिनों तक नौकरी से इतर काम करने की मंशा का, तहे दिल से स्वागत किया जाना चाहिए था। पर ऐसा नहीं हो सका। तारीफ की जगह उसे दे दी गई नौकरी से विदाई। यह काम उस मीडिया हाउस ने किया जो देश की आजादी के आंदोलन से निकला, सजा, संवरा और बढ़ा है। इससे समझ में आता है कि इन अखबारों के आज के सरोकार कितने बाजारू हो चले हैं। मजेदार यह है कि अशोक कुमार जिस भी शहर में हस्ताक्षर अभियान पर पहुंचे, वहां की मीडिया ने इनके काम को जमकर सराहा, खूब कवरेज दिया लेकिन इसी मीडिया को मंजूर नहीं है कि इस तरह का काम करने वाला रिपोर्टर उनके संस्थान का हिस्सा बना रहे। शायद, सही कहते हैं, भगत सिंह हों लेकिन पड़ोसी के घर में, अपने घर में नहीं। मतलब, अगर आप देश हित में काम करना चाहते हैं तो आपको नौकरी नहीं करने दी जाएगी, पर आपके देश हित के काम की तारीफ खूब की जाएगी।
अशोक इन दिनों दिल्ली में हैं। अपने भाई के घर पर। लगातार यात्राएं करने से हुई थकान और काफी दिनों से जी भर न सो पाने की कसक दूर कर रहे हैं। अशोक कहते हैं कि जिंदगी जीने के लिए नौकरी तो करनी ही होगी। वे जॉब के लिए फिर कोशिश करेंगे। अशोक का मानना है कि उन्होंने जो किया, वो दिल से उठी आवाज के चलते किया। वे अपना काम पूरा कर चुके हैं इसलिए वे फिर से कलम के सिपाही के रूप में सक्रिय होना चाहेंगे।
ज्ञात हो कि अशोक वर्ष 2006 में आईआईएमसी से पत्रकारिता की डिग्री लेने के बाद कैंपस इंटरव्यू के जरिए लोकमत, औरंगाबाद के लिए सेलेक्ट हुए। वहां छह महीने तक काम करने के बाद अमर उजाला, अलीगढ़ में बतौर ट्रेनी रिपोर्टर के रूप में ज्वाइन किया। वे अमर उजाला में दो वर्षों से कार्यरत थे। सौम्य और सरल व्यक्तित्व के अशोक ने युवाओं से जुड़े मामलों पर काफी कुछ लिखा है। उन्होंने पहले पन्ने के लिए कई बड़ी खबरें ब्रेक की हैं। आप अशोक की मदद करना चाहते हैं तो उन्हें 09711666056 पर फोन कर सकते हैं या tyagpath@gmail.com पर मेल कर सकते हैं।
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Comments on “देश हित में काम किया तो चली गई नौकरी”
hi Ashok i think tumhaari naukri gayi nahi thi.jis smay tumne desh ke hitmain kuch karani ki thaani tab to tumhari asli naukari lagi thi .doston agar GANDHI JI waqalat nahi chodte to aaj main kisi angrj ki taareef main likh raha hota.keep it up