पत्रकारों और गैर-पत्रकार मीडियाकर्मियों के लिए बनारस से एक अच्छी खबर। समाचार पत्र पत्रकार गैर-पत्रकार कर्मचारी यूनियन और काशी पत्रकार संघ की तरफ से संयुक्त रूप से जो याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल की गई थी, उस पर फैसला आ चुका है। यह याचिका अखबारों में काम करने वाले पत्रकारों और गैर-पत्रकारों को कुरुप वेजबोर्ड की अनुशंसा और सरकारी गजट के अनुरूप मूल वेतन (बेसिक) का 30 प्रतिशत अंतरिम राहत 1 जनवरी 2008 से दिलाने को लेकर दायर की गई थी। समाचार पत्र पत्रकार गैर-पत्रकार कर्मचारी यूनियन और काशी पत्रकार संघ की तरफ से याचिका दायर किया था एडवोकेट अजय मुखर्जी उर्फ दादा ने। सिविल मिसलिनियस कैटगरी में दायर रिट नंबर 27339/2009 पर हाईकोर्ट ने 25 मई 2009 को फैसला सुनाया।
हाईकोर्ट ने कहा है कि इस आदेश के 90 दिनों के भीतर पत्रकारों और गैर-पत्रकारों को अंतरिम राहत प्रदान किया जाए। रिट में बनारस के जिलाधिकारी, बनारस के डिप्टी लेबर कमिश्नर और प्रदेश के श्रम मंत्रालय को विपक्षी बनाया गया था। कोर्ट ने कहा है कि विपक्षी गण अखबार मालिकों से पूछें कि उन्होंने अपने यहां अंतरिम राहत संबंधित कर्मियों को प्रदान किया या नहीं। अगर नहीं प्रदान किया है तो 90 दिनों के भीतर प्रदान करें। ऐसा न करने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जाए।
हाईकोर्ट के आदेश की प्रति मिलने के बाद समाचार पत्र पत्रकार गैर-पत्रकार कर्मचारी यूनियन के महासचिव एडवोकेट अजय मुखर्जी, काशी पत्रकार संघ के अध्यक्ष योगेश कुमार गुप्त और भूतपूर्व अध्यक्ष प्रदीप कुमार के नेतृत्व में आज एक प्रतिनिधिमंडल बनारस के डिप्टी लेबर कमिश्नर से मिला और हाईकोर्ट के आदेश की कापी सौंपते हुए जल्द से जल्द अंतरिम राहत पत्रकारों को दिलाने के लिए कदम उठाने की मांग की। ज्ञात हो कि याचिका दायर करने से पहले इन संगठनों की ओर से बनारस के जिलाधिकारी और डिप्टी लेबर कमिश्नर को कई बार लिखित सूचना दी गई थी कि अखबार मालिक पत्रकारों को अंतरिम राहत नहीं दे रहे हैं पर अधिकारियों ने कोई कार्यवाही नहीं की। इससे नारज ये संगठन हाईकोर्ट चले गए।
पत्रकारों के इस मुकदमें को लड़ने वाले एडवाकेट अजय कुमार मुखर्जी ने भड़ास4मीडिया को बताया कि यह मामला सिर्फ बनारस रीजन के आठ जिलों का नहीं है बल्कि पूरे देश का है और अगर हाईकोर्ट ने बनारस के मामले में यह आदेश दिया है तो इसे नजीर मानकर पूरे देश में पत्रकार संगठन अपने-अपने जगहों के श्रम अधिकारियों से अंतरिम राहत दिलाने की मांग कर सकते हैं। अगर अधिकारी ऐसा नहीं कराते हैं तो उन्हें कोर्ट में घसीटा जा सकता है और उनके खिलाफ कार्रवाई कराई जा सकती है।
पत्रकारों की लड़ाई लड़ने वाले एडवोकेट अजय मुखर्जी के बारे में विस्तार से जानने के लिए क्लिक कर सकते हैं- जब पत्रकारों को मालिक रुलाएं तो दादा बचाएं