धर्मेंद्र कहते हैं- गांव जाकर घास और गोबर का भी कारोबार करूंगा तो यहां से ज्यादा सुखी रहूंगा…… छोटे-छोटे शहरों से हम जैसे लोग सपने लेकर इन महानगरों में आते हैं…. उम्र बीतने के साथ जब सपने पूरे होते न दिखाई दें तो इस तरह के फैसले लेने पड़ते हैं…. दरअसल मैं बाबूगिरी से तंग आ गया था… (देखें नीचे का पहला वीडियो)
धर्मेंद्र के मुताबिक- परिवार साथ रहता था पर दो साल पहले उन्हें गांव भेजने का फैसला लेना पड़ा…. यहां दिल्ली में नर्सरी और कक्षा एक में बच्चों के एडमिशन के लिए 18 हजार रुपये, 20 हजार रुपये डोनेशन मांगा जा रहा था जो मैं देने की स्थिति में नहीं था…. तभी परिवार को गांव भेजने का निर्णय लिया… परिवार उन्नाव में रहता है अब…. मैं दिल्ली रहकर दैनिक जागरण की सेवा कर रहा था जिससे मैं कतई संतुष्ट नहीं था…. (देखें नीचे का दूसरा वीडिया)
तीसरे वीडियो में धर्मेंद्र दिल्ली में अपने डेढ़ कमरे की गृहस्थी को उजाड़ते दिखाई दे रहे हैं…. एक-एक सामान पैक कर रहे हैं…. उनकी मदद में आया है एक रिक्शावाला…. वह सामान पैक करने में धर्मेंद्र की मदद कर रहा है….. देखिए.. किचन से किस तरह एक-एक चीज, नून, तेल, मसाला, दाल, आटा…. को बोरे में बंद करा रहे हैं धर्मेंद्र…..
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