यूं चला जाएगा यह बेहतरीन कलाकार और इंसान, किसी को अंदाजा न था : फिल्म और टीवी एक्टर निर्मल पांडेय के निधन की दुखद खबर आ रही है। 46 साल की ही उम्र में वे चले गए। आज दिन में करीब ढाई बजे उनकी मौत हुई। उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उन्हें तुरंत अंधेरी स्थित होली स्पिरिट अस्पताल ले जाया गया। ‘बैंडिट क्वीन’ फिल्म में डकैत विक्रम मल्लाह की भूमिका निभाने के बाद चर्चा में आए निर्मल पांडेय ने ‘इस रात की सुबह नहीं’, ‘दायरा’, ‘प्यार किया तो डरना क्या’, ‘शिकारी’, ‘गाड मदर’ और ‘वन टू का फोर’ जैसी कई फिल्मों में काम किया।
ज्यादातर फिल्मों में उन्होंने खलनायक की भूमिका निभाई। पर निजी जीवन में निर्मल पांडेय जैसा संवेदनशील और सहृदय व्यक्ति मिलना मुश्किल था। फिल्मों के बाद में उन्होंने टीवी की ओर रुख कर लिया। नेशनल स्कूल आफ ड्रामा (एनएसडी) के स्नातक निर्मल पांडेय जनसरोकारों से जुड़े हुए कलाकार थे। अभिनेता के अलावा वे बेजोड़ गायक भी थे। उनका एक एलबम ‘जज्बा’ नाम से रिलीज हुआ था। उन्हें लंदन बेस्ड एक थिएटर ‘तारा’ के साथ काम किया। उन्होंने 1994 में संवेदना नामक एक थिएटर ग्रुप की स्थापना भी की। नैनीताल के रहने वाले निर्मल पांडेय की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई नैनीताल में हुई। फिल्म ‘दायरा’ में बेहतरीन अभिनय के लिए उन्हें फ्रांस का एक प्रतिष्ठित एवार्ड भी मिला।
निर्मल पांडेय के जाने की सूचना मुझे एक न्यूज चैनल में काम कर रहे साथी से मिली। पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ। इतनी जल्दी। यह कैसे हो सकता है। मुझे याद आने लगा बनारस। तब बीएचयू में पत्रकारिता विभाग के छात्र भी हम लोग हुआ करते थे। साथ ही वामपंथी छात्र राजनीति और थिएटर में सक्रियता। निर्मल पांडेय एक बार उन्हीं दिनों बीएचयू आए। ‘बैंडिट क्वीन’ की शूटिंग पूरी कर चुके थे पर फिल्म रिलीज नहीं हुई थी। बीएचयू परिसर के मंदिर में बैठकर उनसे मेरे सहित पत्रकारिता के कई छात्रों ने बात की। बाद में वे जन संस्कृति मंच के आयोजनों में कई शहरों में आते रहे। मुंबई जाने के बावजूद उनका यूपी के शहरों और उत्तराखंड के अपने ठिकानों से गहरा लगाव रहा। उनका आना-जाना लगातार बना रहता। उनको करीब से जानने वाले बताते हैं कि सहृदय निर्मल कभी मुंबइया नहीं बन पाए। छल-कपट और तिकड़म वे न तो करते और न पसंद करते। इन्हीं सब वजहों से मुंबई फिल्मी नगरी में वे देर तक सरवाइव नहीं कर पाए। वे अपनी शर्तों पर जीते और काम करते।
इस बेजोड़ अभिनेता, कलाकार, रंगकर्मी और साथी को दिल से सलाम। जो खबरें मुंबई से आ रही हैं, उसके मुताबिक जैकी श्राफ ने अपने बयान में कहा है कि अगर निर्मल के परिजनों को किसी भी तरीके की मदद की जरूरत पड़ी तो वे हमेशा उनके लिए उपलब्ध रहेंगे। इस रात की सुबह नहीं बनाने वाले सुधीर मिश्रा को इस बात का अपराधबोध है कि वे पिछले कई वर्षों से निर्मल से संपर्क नहीं रख पाए। बैंडिट क्वीन में निर्मल को ब्रेक देने वाले शेखर कपूर को निर्मल का साफ दिल व अच्छाइयां याद आ रही हैं।
पर इन बयानों से क्या होगा। जब कोई जिंदा होता है तो हम उसकी मदद नहीं करते, उसे आगे नहीं बढ़ाते, उसकी अच्छाइयों के अनुरूप उसे तारीफ नहीं देते। हम सब लगे रहते हैं अपने ही जोड़तोड़ में। तब हमें सबकी बुराइयां नजर आती हैं। हम आलोचना में ही मशगूल रहते हैं। जब वह अचानक हम लोगों के बीच से उठकर चला जाता है तो फिर सभी को उसके सदगुण याद आने लगते हैं। दरअसल, इसमें गलती हमारी-आपकी कम, इस बाजार की ज्यादा है जो भले हृदय लोगों, ईमानदार लोगों, अच्छे लोगों, इंसानियत पसंद लोगों को सम्मान कम देता है, देता है तो सिर्फ उनको जिनके पास ज्यादा पैसा होता है। सभी को पता है कि ज्यादा पैसा अब कैसे आता है। मानवीय मूल्यों का जिस समाज से नाश हो जाता है वहां ईमानदार लोग अकेले पड़ जाते हैं, तनावों में जीने लगते हैं और अचानक एक दिन इस दुनिया को अलविदा बोल देते हैं।
अब स्थिति ये हो गई है कि लोग कहने लगे हैं कि आप अच्छे आदमी हैं तो घर बैठिए, हमें अच्छे आदमियों की जरूरत नहीं, हमें उनकी जरूरत है जो हमारे काम आएं। काम आने का मतलब अब अच्छाई करना, सत्य बोलना, संवेदनशील होना नहीं रह गया है, काम आने का मतलब है कट्टा चलाने से लेकर पैर दबाने तक काम हो गया है। कोई भी स्वाभिमानी, ईमानदार, जनसरोकार वाला शख्स ऐसा सब काम नहीं कर सकता। तो फिर जो रास्ते बचते हैं वे कुछ इस प्रकार होते हैं- आत्महत्या कर लो, तनावों में जीते रहे या फिर जीने की कोशिश में एक दिन मर जाओ। निर्मल पांडेय के पास कितनी ऊर्जा थी, किस कदर गहराई थी, कितना बड़ा विजन था, यह वे लोग ही जानते हैं जो उनके करीब रहे हैं, उनके साथ काम किया है या उनसे मिलते-जुलते रहे हैं। बौनों और मीडियाकरों की इस दुनिया में किसी बड़े दिलवाले अच्छे आदमी का देर तक सरवाइव करते रहना मुश्किल होता जा रहा है।
-यशवंत
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Comments on “बौनों के दौर में निर्मल का जाना”
Woh jitne ache insaan the unki acting b utni hi damdaar thi.
YE JIVAN KYA H AANA OR JANA H.
HUME TO SIRF SANSO KA KARZ CHUKANA H.
OR LOG BANATE RAHENGE KOTHI OR BANGALE.
NIRMAL JAISO KO TO DILO ME GHAR BANANA H …. chief-editor, Rajasthan-Meghdoot
मैं नैनीताल से हूँ, यहाँ इस दुःख भरी खबर के बाद से ही हर कोई सकते में है, किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा. निर्मल के बड़े भाई मिथिलेश जी मुम्बई रवाना हो गए हैं. माता जी मूर्छा की स्थिति में हैं.
यशवंत जी, आपने बहुत खूब कहा है, निर्मल जब भी नैनीताल आते थे, एक-एक परिचित के घर खुद जाते थे, बाज़ार में पैदल ही निकलकर “दाज्यू, कका नमस्कार, पैलाग…” कहते हुए निकलते थे. उनकी उत्तराखंड में फिल्म उद्योग को बढ़ावा देने की भी तमन्ना थी. मुझे साक्षात्कार देते हुए उन्होंने यह कहा था.
मेरी जानकारी मैं वह अकेले पुरुष कलाकार थे जिसे सर्वश्रेष्ठ महिला कलाकार का पुरुष्कार मिला था, पर मैं पूरी तरह Sure नहीं हूँ.
Pad kur bahut dukh hua ki Nirmal Pandey jaise actor ka nidhan ho gaya. Wo ek bahut acche adakar the lekin unko bollywood me peryapt chance nahi diye apni pratibha dikhane k liye. Bollywood ka ye chalan sa ho gaya hai ki apne chahete actors ko badava dena or pratibhashali kalakaro jinke paas kisi god father na ho unko koi poochata bhi nahi hai. Yahi Nirmal ji k saath bhi hua .
निर्मल की शख्सीयत के बारे में अंदाजा इस खबर से लगा सकते हैं जो पिछले दिनों दैनिक जागरण में प्रकाशित हुई थी। निर्मल एक प्रोग्राम में चीफ गेस्ट थे। उन्होंने सच्चाई का जो बयान किया, उससे वाइस चांसलर के हौसले भी पस्त होते दिखे। खुद पढ़कर देखिए…
[b]जिन्हें खुद नहीं आता, वे पढ़ाते हैं छात्रों को : निर्मल पांडेय
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बरेली। बात जब सौ करोड़ से ज्यादा आबादी की समस्याओं पर हो तो लफ्जों की बंदिश नहीं रहती। रुहेलखण्ड यूनिवर्सिटी में आज यही हुआ। बात भ्रष्टाचार से शुरू होकर, गरीब की भूख तक होती हुई किसान के खेत में पानी नहीं होने तक पहुंची। मशहूर फिल्म अभिनेता निर्मल पांडेय इससे भी आगे निकल गए। गुरुजनों के बारे में यहां तक कह गए कि जिन्हें खुद ज्ञान नहीं, वे छात्रों को पढ़ाते हैं। तब भला वीसी कैसे चुप रहते। उन्होंने जवाब में कहा कि युवा शक्ति कहने की नहीं, सुनने की भी ताकत रखे। मौका था, महात्मा ज्योतिबा फूले रुहेलखंड यूनिवर्सिटी में ‘युवाओं का सामाजिक उत्तरदायित्व’ विषय पर सेमिनार का। यहां बैंडिट क्वीन फिल्म में शानदार अभिनय की बदौलत चर्चा पाने वाले निर्मल पांडेय मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे और मुख्य वक्ता थे यूनिवर्सिटी के वीसी प्रोफेसर सत्यप्रकाश गौतम। निर्मल पांडेय फिल्मी अंदाज में खूब बोले। संघर्ष के दिनों की याद ताजा करते हुए पासपोर्ट दफ्तर के भ्रष्टाचार को सामने रखा। बताया कि ’90’ में पासपोर्ट बनवाने के लिए नैनीताल से बरेली के 20 चक्कर लगाने पड़े थे। सोचता हूं, इस भ्रष्टाचार में गरीब लोग कैसे जी रहे हैं? बिहार से लेकर केरल तक घूमा हूं। दीपावली पर करोड़ों रुपये आतिशबाजी पर फूंक दिया जाता है लेकिन गरीबों के इलाज को अस्पताल नहीं हैं। हम सबको अन्न खिलाने वाले किसान के खेत में पानी नहीं पहुंच पा रहा है। जो टीचर गणित नहीं जानता वह गणित और जिसे हिन्दी नहीं आती वह हिन्दी पढ़ा रहा है। मिलकर सोचना होगा, 20 साल बाद का हिन्दुस्तान कैसा होगा? आगे बोले-मैं नहीं मानता हिन्दुस्तान आजाद है, हम लोग दिखावे में जी रहे हैं। हर रोज अखबार खोलो तो लूट, डकैती, चोरी की वारदात पढ़ने को मिलती हैं, यह है हमारा हिन्दुस्तान। इसी बीच कार्यक्रम में मौजूद एक छात्रा ने सवाल किया कि इसका समाधान क्या है? तब वीसी बोल पड़े, उन्होंने कहा कि संवाद शुरू होना एक अच्छी बात है। गरीब की भूख, इलाज का नहीं होना, भ्रष्टाचार का पनपना, यह सब कहने में आनंद आता है। भाषणों से समस्याएं खत्म नहीं होंगी। रंगमंच के अपने रंग हैं। युवा शक्ति को कहने के साथ सुनने की भी ताकत रखना होगी। खुद को पहचानने की जरूरत है। हल संयुक्त रूप से विचारने पर निकलेगा।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने उत्तराखंड के निवासी और सिने अभिनेता निर्मल पांडेय के आकस्मिक निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। निशंक ने अपने शोक संदेश में कहा कि पांडेय के निधन से उत्तराखंड को विशेष रूप से क्षति हुई है। पांडेय ने बालीवुड में अपनी अलग पहचान बनाई थी और उत्तराखंड का नाम रोशन किया था। उन्होंने कहा कि पांडेय के निधन से उन्हें व्यक्तिगत क्षति हुई है। पांडेय का जन्म राज्य के अल्मोड़ा जिले के बैरती इलाके में हुआ था और बाद में उन्होंने नयी दिल्ली स्थित नेशनल स्कूल आफ ड्रामा से अभिनय प्रशिक्षण प्राप्त किया।
yah bahut peeda dene wala hai. nirmal, naini jheel ka rang aaj theek nahi.girda, herda, mahesh da, rajiv da, jahur da, bhuwan koi nahi sunana chahte ye buri khaber. kala ke kadradano ke liye manhush khaber hai. jin lahore nee bekhya ab kaundikhayega dajyu waise ! [b][/b]
बहुत दुखद है निर्मल का जाना ।
MUJHE IS BEJOD KALAKAAR KI MAUT SE GHAHARA SADMA PAHUNCHA HAI.NIRMAL PAANDE STAR NAHI THE LEKIN BHID SE ALAG PAHCHAN KAM SAMAY ME BANA LI THI.IS ALP KAAL ME UNKI MAUT NE HAMAARE SHAHAR KO VASIYON KO BHI BAHUT GUM HAI.
ALOK MALVIYA
ALLAHABAD
MUJHE IS KHABAR SE BAHUT DUKH HUAA.NIRMAL JI BHALE HI STAR NAHI THE LEKIN UNHONE JO BHI BHUMIKAAYE KI VO YAADGAAR BAN GAI ISLIYE VO BHID SE ALAG THE .UNKE CHALE JAANE SE BADI CHATI HUI HAI
बहुत दुखद है निर्मलth का जाना ।
भाई य़शवंत जी..आपने ठीक ही कहा है कि जब आसपास का वातावरण चाटुकारों और विध्वंसक पृवत्ति के लोगों से भरपूर हो जाए..तो ईमानदार इंसान अकेला पड़ जाता है..मैं निर्मल को निजी तौर पर नही जानता था..केवल उनकी अदाकारी को ही देखा था..लेकिन मेरा ऐसा मानना है कि अच्छे इंसान की ज़रूरत ईश्वर को भी उतनी ही होती है जितनी समाज को..निर्मल को इसी रूप में याद कर रहा हूं..भगवान उनके परिवार को इस दुख को सहन करने की ताकत दे.
TP PANDEY
निर्मल जी ने उस दौर में रंगकर्म से शुरुआत की जब कि हर कलाकार ग्लैमर की दुनिया से प्रभावित था…मगर उन्होनें कभी भी अपनी मंचीय परम्परा के साथ समझौता नहीं किया…लखनउ का रविन्द्रालय अभी भी उनके भावप्रवण अभिनय की मिसाल बना हुआ है….आज उसकी एक एक दीवार और ईंट निर्मल जी के जाने से व्यथित है…लखनऊ के रंगमंच के ओर से उन्हे श्रद्धान्जलि…
इस बेजोड़ अभिनेता, रंगकर्मी और साथी को दिल से सलाम। जब कोई जिंदा होता है तो हम उसे आगे नहीं बढ़ाते, उसकी अच्छाइयों के अनुरूप उसे तारीफ नहीं देते। तब हमें सबकी बुराइयां नजर आती हैं। जब वह अचानक हम लोगों के बीच से उठकर चला जाता है तो फिर सभी को उसके सदगुण याद आने लगते हैं।