नीरू की मौत (16) : निरुपमा की कुछ और तस्वीरें मिली हैं, खिलखिलाती, घूमती, फोटो खिंचाती, चहंकती नीरू दिख रही है इन तस्वीरों में. पर जाने किसकी नजर लग गई उसे. जरा देखिए.
इन तस्वीरों में वे किस तरह अपने दोस्तों के साथ, जिसमें लड़के भी हैं, लड़कियां भी हैं, खुश हैं, प्रसन्न हैं, चहकती दिख रही हैं, इन तस्वीरों से जाहिर है कि दिल्ली में अपनी जिंदगी व अपने दोस्तों की दुनिया में बेहद खुश थी नीरू. पर बाकी दुनिया वाले, जमाने वाले, समाज के ठेकेदार, नैतिकता के लठैत, परिवार के पोंगापंथी नीरू की ये सब खुशियां पचा नहीं पाए, देख नहीं पाए. जिन लोगों ने निरुपमा को पढ़ लिखकर अनुभवी आंखों और तार्किक दिमाग से इस दुनिया को देखने-परखने के लिए दिल्ली भेजा, उन्हें ही यह पसंद नहीं आया कि निरुपमा अपने जीवन के फैसले खुद क्यों ले रही है.
हम कामना करते हैं कि इस देश के, खासकर हिंदी पट्टी के लोग, नई पीढ़ी के लोग, दकियानूसी विचारधारा से निकलेंगे. अपने परिजनों को भी निकालेंगे. और लड़कियों-लड़कों, दोनों के लिए नैतिकताएं एक ही रखेंगे. दोनों के बीच कोई अंतर, भेदभाव नहीं करेंगे. नीरू की मौत अभिशाप है इस समाज और देश के लिए.
इस घटना की आंच बहुत दूर तक जाएगी. इस घटना का भय कइयों के दिल-दिमाग में समा गया होगा. लड़कियां, बेटियां, बहनें… किस खौफ में जी रही होंगी, उनका ही दिल जानता होगा. इस खौफ के आलम में जीते हैं और अपने को आजाद देश व महान लोकतंत्र कहते हैं. क्या उलटबांसी है.
शर्म आती है कि हम जिस समाज में रहते हैं उस समाज के दिल-दिमाग-चेतना का स्तर इतना घटिया, स्तरहीन है. हम अब भी आदिम युग वाली सोच व विचारधारा को फॉलो कर रहे हैं तो फिर तो ये आजादी बेकार है जहां पर हर व्यक्ति को अपनी मर्जी से अपने जीवन के फैसले लेने व अपनी मर्जी से जीने का अधिकार मिला हुआ है.
जो लोग नीरू में कमी निकाल रहे हैं, नीरू के परिजनों का बचाव कर रहे हैं, उन्हें सोचना चाहिए कि नीरू गलत होती तो अपने घर जाकर शादी के लिए अनुमति क्यों मांगती. वो तो यहीं दिल्ली में शादी कर लेती. नीरू दिल-दिमाग से अपने परिजनों से इस कदर अटैच थी कि उसे सपने में भी अंदाजा नहीं था कि उसका यह हश्र करेंगे वे लोग. अगर ऐसे तनिक भी आशंका होती तो वह घर न गई होती. दिल्ली में ही रहकर शादी कर लेती और दो-चार साल बाद हर मां-बाप की तरह उसके मां-पिता भी उससे संवाद शुरू देते.
अंत में, हम लोग शर्मिंदा हैं. हम अब उस देश के वासी हैं जहां नारी मारी जाए, जहां नीरू मारी जाए. हम नारी को पूजने का नाटक करते हैं. हम नारी को देवी मानने का ढोंग करते हैं. हम पत्थर की नारी चाहते हैं, जिसके अंदर दिल दिमाग संवेदना न हो. हम पत्थर वाली नारी को पूज लेते हैं और अपने घर की हाड़ मांस वाली नारी को मार डालते हैं.
धन्य हैं हम लोग.
-यशवंत
arvind malguri
May 4, 2010 at 12:57 pm
कभी कभी शर्म आती है अपने आप पर कि में इस समाज में रहता हूं जहाँ लोगों कि जान इतनी सस्ती है ,जहाँ हर रोज ऑनर किलिंग के मामले होते हों में इस समाज को दोष दूँ या लोगों को पता नहीं ..पर आपना सम्मान किसी की जान ले ले वो भी जिसे हमने कई सालों तक आपना दूध पिलाया हो , उस रिश्ते को अब क्या नाम दें अब तो उस महिला को निरुपमा पाठक की माँ का दर्जा भी में नहीं दे सकता ,माँ तो वो शब्द है जिसका नाम सुनते ही आपने ऊपर एक साए का एहसाश होता है जो हमें दुनिया की हर मुश्किल चीज से बचाता है ,अब के कहें उस महिला को में तो सभी लोगों से अनुरोध करूँगा की उस महिला को निरुपमा पाठक की माँ से सम्बोधित न करें ,
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ ,पंडित भया न कोई
ढाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होइय (कबीर दास जी )
RAJ
May 4, 2010 at 2:43 pm
last pic wala hi ladka hai shayad nirupama ka so called “LOVER”
Deepak Agarwal
May 5, 2010 at 7:37 am
निरुपमा मारी गयी. अपनों के हाथो. यह हत्या है शक की कोई गुन्जायिश नही है. लेकिन एक बात कहना चाहूँगा. भावनाओ में बहने से कुछ नही होने वाला. मुझे लगता है. पहली गलती निरुपमा की थी. उसका प्यार सच्चा था तो पहले शादी करती. फिर बच्चे को जनम देती. लेकिन अपने परिवार की मानसिकता को जानते बुझते उसने भावुक होकर घर जाने की मुर्खता की. दूसरी गलती उसके तथाकथित अपनों ने की. अपनी बेटी और बहन को मौत के घाट उतरने की दरिंदगी करके. दावा करता हूँ. जिन्दगी भर चैन की नींद नही सो सकेंगे. अब तीसरी गलती हम कर रहे हैं. भावुक होकर. मौत का बदला मौत. यह बात ही मूर्खतापूर्ण है.
लडकियों को भी समझना होगा प्यार का मतलब महज़ शारीरिक आकर्षण नही है. न ही इस तरह के खुलेपन से उन्हें आज़ादी मिलने वाली है. उन्हें दोहरी लड़ाई लड़नी होगी एक रूढ़िवादियो के खिलाफ और दुसरे नंगेपन के हिमायती नकली आधुन्क्तावादियो से. स्त्री को सम्मान निर्भीक और सशक्त होने से मिलेगा. शो पीस बनने से नहीं.
‘नीरू हम सब तुम्हे प्यार करते हैं.’ इसमें भुवनेश भाई का कमेन्ट पढ़ा. जिस सवाल को वे उठा रहे हैं. वो इस समस्या का मूल है. लेकिन क्रोध के आवेश में वे कुछ स्तरहीन भाषा का प्रयोग कर रहे हैं. न ही सही ढंग से प्रस्तुत कर पा रहे हैं. धर्म के ठेकेदार और आधुनिकता के नाम पर नंगेपन के हिमायती एक ही सिक्के के दो पहलु हैं.
हजारो साल तक धर्म सभ्यता के नाम पर सम्पूर्ण स्त्री जाति को कटघरों में कैद कर दिया गया. दिखावे को नारी का गुणगान करने वाले समाज ने उसे सटी के नाम पर जिन्दा जलाया. अब नारी क्रांति हुई तो इन दरिंदो ने दूसरा रूप बदल लिया. लडकियों को लगा सेक्स, कपड़ो की बंदिशों से ही वो पिछड़ी और दयनीय हैं. गुस्से में उन्होंने खुद को फिर से खिलौना बनाना सुरु कर दिया है. ऐसे तो एक बार फिर नारी भोग का सदाहं बन जाएगी. मेरी बात विषय से भटकती लगेगी. लेकिन ज़रा सा भी गौर करेंगे तो समझ आयेगी. भुवनेश भाई येही कहना चाहते है. निरुपमा से सच में प्यार था तो प्रियाभंसू को खुलकर सामने आना चाहिए. उसे स्वीकार करना चाहिए की निरुपमा के पेट में पल रहा बच्चा उसका था. उसके कातिलो को सजा दिलाने के लिए आगे आये. हम उसके साथ हैं. लेकिन उसकी चुप्पी शक पैदा कर रही है.
akash bhargav
May 5, 2010 at 8:18 am
nirupama was about to make a new sensation by giving berth to a baby before marriage. i have never heard of a journalist doing so. however her murder is really too too too much sad
satya prakash azad
May 5, 2010 at 11:34 am
“उन्हें दोहरी लड़ाई लड़नी होगी एक रूढ़िवादियो के खिलाफ और दुसरे नंगेपन के हिमायती नकली आधुन्क्तावादियो से. स्त्री को सम्मान निर्भीक और सशक्त होने से मिलेगा. शो पीस बनने से नहीं.”-……DEEPAK bhai ki is bat se sahmat hun……..tamam tarah ke log, tamam tarah ki baten…….hame mool samasya ko dekhana hoga…….aur ektarafa nahi hona chahiye………
gulshan saifi
May 6, 2010 at 7:17 am
nirupma ki maut
aaj agar baat ki jai indian culture ki to sadi ke baad hi physical reltionship ko manyta hai .par andruni tor par sab khele aur khaye hote par khul kar samne nahi aate.sayad indian culture bura bhi nahi hai.par bura ye bhogwadi system hai jiski keemat samay samay par chukani padegi.
jittu
June 21, 2010 at 7:38 am
हम लोग शर्मिंदा हैं. हम अब उस देश के वासी हैं जहां नारी मारी जाए, जहां नीरू मारी जाए. हम नारी को पूजने का नाटक करते हैं. हम नारी को देवी मानने का ढोंग करते हैं. हम पत्थर की नारी चाहते हैं, जिसके अंदर दिल दिमाग संवेदना न हो. हम पत्थर वाली नारी को पूज लेते हैं और अपने घर की हाड़ मांस वाली नारी को मार डालते हैं.