प्रभाष जी से मेरा पहला परिचय जेपी आंदोलन के समय में उस समय हुआ जब वे रामनाथ गोयनका के साथ जयप्रकाश नारायण से मिलने आए थे। उस समय की वह छोटी सी मुलाकात धीरे-धीरे प्रगाढ़ संबंध में बदल गई। बोफोर्स मुद्दे को लेकर जब पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ आवाज उठने लगी तब उन्होंने मुझे भारतीय जनता पार्टी में भेजने के लिए संघ के अधिकारियों से बात की। उनका मानना था कि जेपी आंदोलन के दौरान जो ताकतें कांग्रेस के खिलाफ सक्रिय थीं, उन्हें फिर से एकजुट करने में मेरी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। वीपी सिंह की सरकार बनने के पहले और बाद में भी मेरा उनसे लगातार संपर्क बना रहा।
प्रभाष जी यशस्वी पत्रकार तो थे ही। मूलत: वे समाज सेवी और एक आंदोलनकारी थे। उनके संपादकत्व में निकला जनसत्ता ऐसी ही पत्रकारिता के लिए जाना माना गया। संपादकीय दायित्व से मुक्त होते ही वे देश में सकारात्मक परिवर्तन करने वाले हर आदमी और संगठन के साथ खड़े दिखाई दिए। अक्सर मेरी उनसे मुलाकात हो जाती थी। इसे ईश्वरीय संयोग ही कहेंगे कि मुझे यह मौका उनके निधान के दो दिन पहले मिल पाया। चार नवम्बर को लखनऊ के जयनारायण पीजी कालेज में मुझे उनके साथ भाषण के लिए बुलाया गया था। हमें विद्यार्थियों के बीच हिन्द स्वराज का विषय रखना था।
परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि कार्यक्रम में भाग लेने के लिए प्रभाषजी और मैं एक कार्यकर्ता(रूपेश) के साथ कार से निकले। बनारस से लखनऊ की दूरी सड़क मार्ग से लगभग 6 घंटे की है। इतना समय उनके साथ बिताने का मेरे लिए यह अनूठा अवसर था। पहले उन्होंने मेरे कामों के बारे में पूछताछ की। मैंने उन्हें बताया कि किस तरह मैं पिछले नौ वर्षों से देश में बौध्दिक, रचनात्मक एवं आंदोलनात्मक गतिविधियों में लगी सज्जन शक्ति से संवाद बनाने की कोशिश कर रहा हूं ताकि उन्हें राष्ट्रनिर्माण के व्यापक लक्ष्य से जोड़ा जा सके। मेरी बात पर वो कुछ पूरक प्रश्न पूछते और कई महत्वपूर्ण बात भी बताते जाते। हमारी बातचीत काफी लंबी और बेबाक रही। उस पूरी बातचीत में मेरे लिए बहुत कुछ सीखने और समझने को था।
प्रभाषजी की यह खासियत थी कि वे योजनाएं ऐसी बनाते जैसे अगले सौ साल तक जीना हो। लेकिन साथ ही उनके क्रियान्वयन के लिए टीम बनाने और लोगों को सहेजने समझाने की इतनी गंभीर कोशिश करते जैसे उन्हें जीने के लिए आज का ही दिन मिला है। अपनी इसी विशेषता के कारण उन्होंने यात्रा के दौरान मुझसे सात कामों का जिक्र किया।
हिन्द स्वराज का प्रचार-प्रसार : प्रभाष जी ‘हिन्द स्वराज’ को बीज ग्रंथ मानते थे। वे चाहते थे कि देश के नौजवानों को इस किताब को गंभीरता से पढ़ना चाहिए। इसीलिए देश के कालेजों और विश्वविद्यालयों में घूमकर विद्यार्थियों को हिन्द स्वराज के बारे में बताना और समझाना उनके लिए प्राथमिकता का विषय था। अपने इस प्रयास में वे हमारा सहयोग चाहते थे।
मीडिया को पैसे की काली साया से मुक्त करना : पिछले आम चुनावों में जिस तरह कुछ मीडिया घरानों में पैसा लेकर खबर छापने का रिवाज शुरू हुआ, उससे प्रभाषजी बहुत चिंतित थे। उन्होंने मीडिया में आई इस गिरावट के खिलाफ अभियान छेड़ रखा था। वो चाहते थे कि इस दिशा में और लोग भी आगे आएं ताकि मीडिया किसी तरीके से सिर्फ धन कमाने का एक जरिया बन कर न रह जाए।
मूल्यों और मुद्दों की राजनीति : देश की राजनीतिक स्थिति को लेकर प्रभाष जी के मन की चिंता को मैंने साफ महसूस किया। उनका मानना था कि देश के युवाओं को स्थापित दलों की सड़ांध में डुबकी लगाने की बजाए नई रचनाएं खड़ी करनी चाहिए, जो देश की राजनीति को मूल्यों और मुद्दों की पटरी पर वापस लाए।
जेपी आंदोलन से जुड़े तथ्यों का संकलन : बिहार सरकार ने जेपी आंदोलन से जुड़े विभिन्न तथ्यों को संकलित करने की एक परियोजना शुरू की है। उसमें वो सहयोग करना चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि मैं और रामबहादुर राय इस काम में विशेष रूप से अपना सहयोग दें क्योंकि हमने उस आंदोलन को बहुत करीब से देखा है।
रामनाथ गोयनका संकलन : प्रभाष जी रामनाथ गोयनका के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थे। वो उनके जीवन के विभिन्न आयामों को एक किताब के रूप में संकलित करना चाहते थे।
लोकजीवन का अधययन : भारत में लोकजीवन की जो छटा बिखरी हुई है, उसे प्रभाषजी संजोने के लिए प्रयासरत रहते थे। वो चाहते थे कि लोकजीवन की संरचना और उसकी परंपराओं का विशेष रूप से अधययन किया जाना चाहिए।
देशज शब्दकोश : प्रभाष जी के लेखन में देशज शब्दों की भरमार मिलती है। उनकी इच्छा थी कि हिन्दी की जो तमाम बोलियां हैं, उनके शब्दों को हिन्दी शब्दकोश में शामिल किए जाने की कोई व्यवस्था होनी चाहिए। निकट भविष्य में वे इस संबंध में काम भी करने वाले थे।
अब जबकि प्रभाषजी हमारे बीच नहीं हैं, उनके ये काम हमारे काम बन चुके हैं। हमें उनके कामों को अपनी प्राथमिकता में शामिल करना होगा।
लेखक के.एन. गोविंदाचार्य जाने-माने राजनेता, चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं.
Neeraj Karan Singh
July 22, 2010 at 7:57 am
मैं आपके साथ हूं सर…. प्रभाष जी की हर इच्छा पूरी होनी चाहिए।:)