सीएनईबी मैनेजमेंट की इस नेक काम के लिए सराहना होनी चाहिए. स्वर्गीय आलोक तोमर की पत्नी सुप्रिया रॉय को सीएनईबी प्रबंधन ने अपने यहां ससम्मान स्थान दिया है. सुप्रिया उसी सीट-स्थान पर बैठ रही हैं जहां आलोक तोमर जी बैठते थे.
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यादों में आलोक : किसने क्या बोला, यहां सुनिए
कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित आलोक तोमर स्मृति कार्यक्रम ‘यादों में आलोक’ में किसने क्या बोला, उसे आप नीचे दिए गए आडियो प्लेयर के जरिए सुन सकते हैं. शुरुआत में आईपीएस अधिकारी अमिताभ का संबोधन है. उसके तुरंत बाद संचालक डा. दुष्यंत ने पुण्य प्रसून बाजपेयी को आवाज दी. पुण्य प्रसून बाजपेयी के संबोधन के ठीक बाद परमानंद पांडेय ने अपनी बात रखी.
यादों में आलोक : आयोजन की कुछ तस्वीरें
होली के दिन आलोकजी के चले जाने की खबर मिली थी. तब गाजीपुर के अपने गांव में था. रंग पुते हाथों को झटका और चुपचाप बगीचे की तरफ चला गया. न कोई झटका लगा, न कोई वज्रपात हुआ, न कोई आंसू निकले, न कोई आह निकला… सिर्फ लगा कि कुछ अंदर से झटके से निकल गया और अचानक इस निकलने से शरीर कमजोर हो गया है.
यादों में आलोक : आयोजन की कुछ बातें, मेरी नजर से
पत्रकार मयंक सक्सेना भारतीय जाति प्रथा के अनुसार कायस्थ हैं, पर आलोक तोमर उनके पिता की तरह थे (या जैसा मयंक ने स्वयं कहा उनके दूसरे पिता थे). दुष्यंत राजस्थान के पत्रकार और लेखक हैं, आलोक तोमर से कोई दूर-दूर का पारिवारिक रिश्ता नहीं था पर उनकी आँखें ऐसे डबडबाई हुई थी जैसे उन्होंने कोई सगा खो दिया हो.
क्षमा करें, इसलिए ‘यादों में आलोक तोमर’ में नहीं आया
आलोक तोमर को चाहने वाले कांस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया, डिप्टी स्पीकर हॉल-नई दिल्ली में एकत्रित हुए और मैं चाहते हुए भी उपस्थित नहीं हो सका। इस आयोजन की तारीफ तो नहीं करूंगा, क्योंकि हमारा, हम सबका फर्ज ही यही है कि कैंसर-ग्रस्त पत्रकारिता को बचाने के लिए आलोक तोमर को जिंदा रखा जाए, इसके बावजूद कि वह सदेह अब हमारे बीच नहीं रहे।
सैकड़ों पत्रकार साथियों ने आलोक को सलाम किया
कलम के धनी स्व. आलोक तोमर को याद करने के लिए मीडिया जगत की सैकड़ों नामी हस्तियां कल दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में जमा हुईं। प्रिंट मीडिया के जरिए देश के सुपर स्टार जर्नलिस्ट बन जाने वाले और न्यू मीडिया यानि वेब के जरिए पढ़े-लिखों के दिल-दिमाग पर अमिट छाप छोड़ने वाले हमारे समय के सबसे होनहार, साहसी और उर्जावान साथी आलोक तोमर की याद में दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में ‘यादों में आलोक’ नामक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन हुआ।
आलोक तोमर को यह सच्ची श्रद्धांजलि नहीं है
यशवंतजी, आलोक तोमर की याद में आयोजित प्रोग्राम ”यादों में आलोक” काबिले तारीफ था. हॉल तक मुझे ले जाने में आप के अनुरोध से अधिक आलोक तोमर के नाम-काम ने प्रेरित किया. बोलना मैं भी चाहता था लेकिन सिर्फ एक वजह से रुक गया. वजह थी आलोक भाई की एक नसीहत जो उन्होंने मुझे दी थी. कर नहीं सकते तो बोलो मत. लोग गंभीरता से नहीं लेंगे.
‘यादों में आलोक’ आज : वो होते तो ये होता, वो होते तो वो होता…
: आज टाइम निकालिए, दो बजे कांस्टीट्यूशन क्लब पहुंचिए : यादों में आलोक. यही नाम है कार्यक्रम का. आलोक तोमर बहुत जल्द चले गए. अब भी हम जैसे बहुतों को यकीन नहीं कि आलोक जी चले गए. अन्ना हजारे का आंदोलन और उसके बाद चल रहे ड्रामे को देख एक साथी ने फोन कर कहा कि आलोक तोमर जी होते तो जबरदस्त लिखते इस पूरे ड्रामे पे.
आलोक तोमर को चाहने वाले कांस्टीट्यूशन क्लब में 22 को जुटेंगे
प्रिंट मीडिया के जरिए देश के सुपर स्टार जर्नलिस्ट बन जाने वाले और न्यू मीडिया यानि वेब के जरिए पढ़े-लिखों के दिल-दिमाग पर अमिट छाप छोड़ने वाले हमारे समय के सबसे होनहार, साहसी और उर्जावान साथी आलोक तोमर की याद में दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में इसी 22 अप्रैल को एक आयोजन किया जा रहा है. ‘यादों में आलोक’ नामक इस आयोजन में दो सत्र होंगे.
आलोक तोमर के बारे में राजेंद्र माथुर ने ये कहा था….
”आलोक तोमर की रिपोर्टों को पढ़कर एक तो सुख यही होता है कि जो काम कभी-कभी बर्नियर या टेवर्नियर या ऐसे ही नामवाले लोग करते थे, वह अब परिचित नाम और चेहरों वाले लोग भी करने लगे हैं. लेकिन इतना बड़ा कैनवास सामने रखकर मैं आलोक तोमर के बारे में कुछ कहने से बच रहा हूँ, ऐसा कतई न समझा जाए. मेरी राय में हिंदी के गिने-चुने रिपोर्टरों में उनकी गिनती है, और क्योंकि यह काम हिंदी में कम हुआ है, इसलिए वे उन मल्लाहों की तरह हैं जो नए-नए महाद्वीपों की खोज में चार-पांच सौ साल पहले निकल जाया करते थे.”
मरघट भी जाऊंगा तो पैदल ही : आलोक तोमर
: देह त्यागने के बाद के जीवन को न जानने की अज्ञानता से उपजे दुख! :
अनुकूलित मानसिकता के पत्रकार न थे आलोक
[caption id="attachment_20039" align="alignnone" width="505"]आलोक तोमर जी की तस्वीर पर फूल अर्पित करतीं उनकी पत्नी सुप्रिया रॉय[/caption]
: इसीलिए उनकी कलम शीत-ताप नियंत्रित भाषा नहीं लिखती थी :
शोकमग्न राहुल देव और मुस्कुरातीं गार्गी रॉय…
: संदर्भ आलोक तोमर स्मृति सभा : जीवंत जीवन को सलाम :
आलोक की मौत के बाद मिले दो लाख के चेक को सुप्रिया ने लौटाया
: मध्य प्रदेश सरकार की असंवेदनशीलता के बारे में राज एक्सप्रेस में रिपोर्ट प्रकाशित : जबलपुर से प्रकाशित होने वाले दैनिक राज एक्सप्रेस में इसके संपादक रवीन्द्र जैन की एक बाईलाइन खबर प्रकाशित हुई है. इसमें बताया गया है कि मध्य प्रदेश सरकार ने आलोक तोमर की बीमारी के लिये मुख्यमंत्री सहायता कोष से जो दो लाख रुपये की सहायता मंजूर की थी, वह राशि स्व. आलोक तोमर की पत्नी तक उस वक्त पहुंची जब आलोक इस दुनिया से ही विदा हो चुके थे.
आलोक तोमर के अंतिम दिनों के दो वीडियो
दो वीडियो हैं. एक डेढ़ मिनट के करीब और दूसरा आधे मिनट से कुछ कम. बत्रा अस्पताल में कीमियोथिरेपी कराने के दौरान आलोक तोमर जी से मिलने मैं कुछ लोगों के साथ गया था. एक बार अनुरंजन झा के साथ गया था दूसरी बार आचार्य राम गोपाल शुक्ला के साथ. फोटो उतारता तो आलोक तोमर हड़का लेते, …. फोटो मत लो, छाप मत देना, मेरे प्रशंसक दुखी हो जाएंगे मेरा चेहरा-मोहरा-सिर देखकर.
न्यूज एक्सप्रेस आफिस में आलोक तोमर की याद में स्मृति सभा
आलोक तोमर ऐसे पत्रकार थे जिनका साहित्य, संगीत और विचार तीनों से गहरा संबंध था और इसने उनकी पत्रकारिता को एक नई पहचान दी। पिछले ढाई तीन दशकों में अपनी रिपोर्टिंग के दम पर अगर किसी पत्रकार ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनायी है तो वे अकेले आलोक तोमर रहे। वे जीवन पर्यंत सक्रिय रहे जो कि एक पत्रकार के लिए बहुत जरूरी चीज होती है।
आलोक जी को अभी जाना नहीं था!
जीवन की भरी दोपहर में ऐन पचास साल की उम्र में आलोक तोमर को अभी जाना नहीं था, लेकिन नियति को क्या कहिए कि कैंसर के इलाज के बहाने से घर से उठाकर वह उन्हें बत्रा अस्पताल ले गई और वहां वेंटिलेटर पर दो बार हृदयाघात के बाद उन्हें नहीं, उनके नश्वर शरीर को घरवालों को लौटाया।
इतना हठी और जिद्दी व्यक्ति मैंने जीवन में नहीं देखा
मैं और नूतन दिल्ली से लौट आये हैं, आलोक तोमर जी से मिल आये हैं. वे वहाँ चित्तरंजन पार्क में अपने घर में चुपचाप शांत भाव से लेते हुए थे. एक शीशे के चौकोर से बक्से में उन्हें लिटाया गया था. जैसा कि मैंने उम्मीद किया था वे उतने ही शांत भाव से लेटे थे जितना वे जीवन भर कभी नहीं रहे थे.
तुम्हें क्या लगता है मैं बीमार हूं, आज का नवभारत टाइम्स देखो…
: मैं तलाशता हूं अपना नाम और धाम! : पिछले दिनों मैं बनारस गया था। गंगा के घाट पर अपने फोन से अपनी एक तस्वीर उतारी ब्लैकबेरी के जरिए और फेसबुक पर डाल दिया। अभी मैं घाट पर ही था कि एक मैसेज आया- घर आए नहीं घाट पहुंच गए। वो संदेश आलोक जी का था। दरअसल एक रोज पहले ही हमने उनसे कहा था कि घर आ रहा हूं आपके लेकिन बनारस पहुंच गया।
आलोक तोमर की एक कविता
मेरी हालत इस वक़्त आलोक जी के लिए कुछ भी लिख पाने की नहीं है…. आश्चर्य है कि किस तरह इतना बोलने वाला एक शख्स पूरी दुनिया को निःशब्द कर के चला गया है…. पता नहीं क्यों मैं भरोसा नहीं कर पा रहा…. आलोक तोमर कैसे मर सकते हैं…. और क्या उनके न होने पर भी उनके शब्द कानों से कभी दूर हो पाएंगे…. पता नहीं…. ज़्यादा नहीं कह पाऊंगा…
चिरनिद्रा में आलोक और सुप्रिया की सिसकियां
मुझे मेरे पति अमिताभ जी ने करीब बारह बजे बताया कि यशवंत जी का फोन आया था, आलोक तोमर जी नहीं रहे. मैं यह सुन कर एकदम से अचंभित रह गयी. मैंने आलोक जी से कभी मुलाकात नहीं की थी पर भड़ास पर उन्हें नियमित पढ़ा करती थी, बल्कि सच तो यह है कि मुझे पूरे भड़ास में सबसे अच्छे लेख उन्ही के लगते थे.
बड़ी मनहूस रात है
बड़ी मनहूस रात है. आज दारू नहीं पी. कोई उन्माद-उम्मीद नहीं बची. आलोक भइया का चेहरा घूम रहा है आंखों के आगे. खुद को कमजोर महसूस कर रहा हूं. हम फक्कड़ों के अघोषित संरक्षक थे. अब कौन देगा साहस और जुनून को जीने की जिद. अपने गांव में घर के छत पर अकेला लेटा मैं चंद्रमा के इर्द-गिर्द सितारों में आलोक सर को तलाश रहा हूं. लग रहा है आज चंद्रमा नहीं, आलोक जी उग आए हैं. धरती से आसमान तक की यात्रा खत्म कर हम लोगों को मंद-मंद मुस्कराते दिखा रहे हों…. कि…
सुप्रिया जी के लिए मन भारी हो उठा है
पिछले साल मई में आलोक जी और सुप्रिया जी से इंदौर में मुलाकात हुई। हम सभी इंदौर प्रेस क्लब की तरफ से आयोजित एक सेमिनार में हिस्सा लेने गए थे। वे दोनों एक ऐसे दंपत्ति के तौर पर दिखे जिनमें जबर्दस्त आपसी समझ थी। देर रात तक सुप्रिया आलोक जी से कहती रहीं कि चलिए उज्जैन के महाकालेश्वर के दर्शन कर आएं, मेरा बड़ा मन है। आलोक जी साथ चल न सके। सुप्रिया जी हमारे साथ चलीं। हम कुल चार पत्रकार थे।
”कम्प्यूटरजी लॉक कर दिया जाए” लिखने वाले की जिंदगी का यूं लॉक होना
मन बहुत बेहद भारी है, लिखने का मानस ना भी हो तो लिख रहा हूं कि जिसने लिखाना सिखाया लिखने का हौसला दिया उस पर लिखना जरूरी है…. ‘बको, संपादक बको’ ये शब्द अब मेरे लिए कभी नहीं होगे. मुख्यधारा की पत्रकारिता में मेरे पहले संपादक जिसने क्या कुछ नहीं सिखाया, आज ये सोचता हूं तो लगता है पत्रकारिता में जो जानता हूं, लिखना सीखा है अगर उसमें से आलोक जी की पाठशाला के पाठ निकाल दूं तो कुछ बचेगा क्या?
भाई साहब, मेरी श्रद्धांजलि में यही लिख दीजिएगा
वरिष्ठ पत्रकार एवं दैनिक 1857 के चीफ एडिटर एसएन विनोद ने कहा कि लोग कहते हैं पत्रकारिता में आजकल मूल्यों का ह्रास हो गया है, नैतिकता नहीं रही, सिद्धांत गौण हो गए हैं, निडरता की जगह चाटुकारिता ने ले ली है, अगर इन सब को एक साथ चुनौती देना हो तो आलोक तोमर को सामने खड़ा कर दो. आलोक तोमर एक ऐसा व्यक्ति जिसने कभी समझौता नहीं किया. जिंदगी में संघर्ष किया, दुख झेले पर कभी झुके नहीं. जीवटता ऐसी की कैंसर का पता होने तथा जिंदगी के कुछ लमहों के बचे होने के बावजूद उन्होंने अपना लेखन जारी रखा.
बड़े ग़ौर से सुन रहा था ज़माना, हम ही सो गये दास्तां कहते कहते
बीमारी के जानलेवा हमले के दौरान आलोक जी से मेरी आख़िरी मुलाक़ात कुछ महीने पहले सीएनईबी न्यूज़ चैनल में हुई। बेहद प्यार और अपनेपन से अलग ले जाकर ख़ूब सारी बातें की… बत्रा जाना है यार, बेहद मुश्किल लड़ाई में उलझा हूं, मौत से जंग है, हार जीत नहीं आखिरी सांस तक लड़ने की फिक्र है… शायद उनके ये शब्द, सभी पत्रकारों के लिए एक पैगाम है।
कैंसर नहीं, हार्ट अटैक बना मौत का कारण!
आलोक तोमर को कैंसर परास्त न कर सका. वे तो कैंसर को परास्त करने की पूरी तैयारी कर चुके थे और इसी अभियान के तहत कैंसर वाली गांठ घटकर बेहद मामूली हो चुकी थी. ऐसा कीमियो, रेडियोथिरेपी व इच्छाशक्ति के कारण संभव हुआ. पर अचानक आए हार्ट अटैक ने दिमाग में आक्सीजन के प्रवाह को बाधित कर दिया. इससे ब्रेन हैमरेज हो गया और आलोक तोमर कोमा में चले गए थे.
दूसरा आलोक तोमर न दिखने के सवाल पर आलोक तोमर का जवाब
ये सवाल मैंने आलोक तोमर से किया था, उनसे पहली मुलाकात के दौरान, और वो मुलाकात भी इसलिए हुई थी क्योंकि मुझे उनका इंटरव्यू करना था, भड़ास4मीडिया के लिए. अब कोई दूसरा आलोक तोमर नहीं दिखता, ऐसा क्यों? इस सवाल के जवाब में आलोकजी ने जो कुछ कहा था- वो इस प्रकार है-
आलोक तोमर का निधन
वरिष्ठ पत्रकार, जांबाज पत्रकार, चर्चित पत्रकार, अदभुत पत्रकार आलोक तोमर हम लोगों के बीच नहीं रहे. आज उनका निधन हो गया. वे पिछले कई दिनों से जीवन और मौत से संघर्ष कर रहे थे. दिल्ली के बत्रा अस्पताल में भर्ती आलोक तोमर को कैंसर था. डाक्टरों ने बहुत पहले उनके न बचने के बारे में कह दिया था.