चोरी की सामग्री से सजी एक साहित्यिक दुकान उर्फ नईख़बर.कॉम

[caption id="attachment_20934" align="alignleft" width="96"]रवि रतलामीरवि रतलामी[/caption]यदि आपकी साइट की सारी की सारी सामग्री की चोरी कर कोई अन्य साइट अपनी दुकान सजा ले तो आपको कैसा लगेगा? आज मैं गूगल में कुछ सर्च कर रहा था तो नईख़बर.कॉम (http://www.naikhabar.com/poems-story-and-jokes.html) सर्च रिजल्ट में पहले आया. जबकि सामग्री ठेठ रचनाकार.ऑर्ग (http://rachanakar.org) की थी. मेरा माथा ठनका.

समय से आगे देखने की जरूरत : डॉ. सुभाष राय

: उपन्यासकार रवीन्द्र प्रभात का नागरिक अभिनन्दन :  बाराबंकी-रामनगर । आज समय के आगे देखने की जरूरत है। जब हम अपने वर्तमान में खड़े होंगे तभी समय के आगे देख सकेंगे। अपने समय के सच से जनता को रूबरू कराना मीडिया का काम है। कबीर और बुद्ध अपने समय में रहकर समय के आगे की दृष्टि अर्जित करने वाले अपने समय के प्रतिनिधि महापुरूष हैं।

ब्लाग के बाद अब डॉट कॉम में भी प्रकट हुआ ‘सत्ताचक्र’

न्यू मीडिया में धीरे-धीरे ही सही, अब ऐसे लोग और ज्यादा संख्या में आने लगे हैं जो खुलकर लिखने बोलने और कहने के लिए जाने जाते हैं. कभी सत्ताचक्र ब्लाग हुआ करता था, अब भी है. इस ब्लाग में चोर गुरुओं की जमकर पोल खोली गई. और इनमें से कई स्टोरीज सीएनईबी न्यूज चैनल पर तब चलीं जब राहुल देव एडिटर इन चीफ हुआ करते थे. कृष्ण मोहन सिंह और संजय देव द्वारा संयुक्त रूप से की गई स्टोरीज की ज्यादातर खबरें इस ब्लाग पर देखने को मिला करती थीं.

ब्लागरों की जुटान में निशंक के मंचासीन होने को नहीं पचा पाए कई पत्रकार और ब्लागर

: गंगा घोटाले को लेकर कुछ लोगों ने आवाज उठाई : पुण्य प्रसून बाजपेयी और खुशदीप सहगल ने किया बहिष्कार : नुक्कड़ समेत कई ब्लाग व ब्लाग एग्रीगेटर चलाने वाले और हिंदी ब्लागिंग को बढ़ावा देने के लिए हमेशा तन मन धन से तत्पर रहने वाले अपने मित्र अविनाश वाचस्पति का जब फोन आया कि 30 अप्रैल को शाम चार बजे दिल्ली के हिंदी भवन (जो गांधी शांति प्रतिष्ठान के बगल में है) में ब्लागरों की एक जुटान है तो मैं खुद को वहां जाने से रोक नहीं पाया.

रवीश कुमार का वीकली ब्लाग कालम शशि शेखर ने शहीद किया!

पता नहीं, पत्रकारिता और जनता के हित में शशिशेखर ने कितने काम किए हैं, लेकिन ये जरूर है कि उन्होंने अपनी हरकतों से लोगों की बददुवाएं खूब ली हैं. अच्छा भला रवीश कुमार का ब्लाग पर एक वीकली कालम हिंदुस्तान में छपता था और कई ब्लागर तो सिर्फ इस कालम को पढ़ने के लिए अपने यहां हिंदुस्तान मंगाते थे, अब उस कालम को हिंदुस्तान प्रबंधन ने बंद कर दिया है. जबसे हिंदुस्तान का लेआउट अंतरराष्ट्रीय हुआ है, क्षेत्रीय पहचान वाले बोल-वचन गोल हो गए हैं.

ब्‍लॉग ने अभिव्‍यक्ति को सशक्‍त बना दिया है

दुनिया के सामने अपनी आवाज पहुंचाने के लिए आज के समय में ब्लॉग से बेहतर माध्यम कुछ भी नहीं है। ब्लॉग ने हमे पहचान देने के साथ ही हमारे सामाजिक दायरे को भी बढ़ाया है। पत्रकारिता के छात्रों के लिए ब्लॉग और भी महत्वपूर्ण हो जाता हैं। उक्त बातें जौनपुर ब्लागर्स एसोसिएशन ब्लॉग के संचालक एवं वेब पत्रकार एसएम मासूम ने वीर बहादुर सिंह पूर्वाचल विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग में आयोजित कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए कही।

30 को सम्‍मानित होंगे ब्‍लॉगर, तीन किताबों का लोकार्पण भी

हिंदी साहित्‍य निकेतन अपनी पचास वर्ष की विकास यात्रा पूरा होने पर एक कार्यक्रम आयोजित कर रहा है. हिंदी साहित्‍य निकेतन और परिकल्‍पना डॉट कॉम द्वारा पिछले वर्ष घोषित किए गए 51 ब्‍लॉगरों (चिट्ठाकारों) सारस्‍वत सम्‍मान दिया जाएगा. इसी मौके पर नुक्‍कड़ डॉट कॉम हिंदी 13 ब्‍लॉगरों को उनके उल्‍लेखनीय योगदान के लिए नई सम्‍मान योजना से सम्‍मानित करेगा.

खुद को लगातार अपग्रेड कर रहा हिंदी का नया ब्लाग एग्रीगेटर ‘ब्लॉग प्रहरी’

ब्लॉगप्रहरी www.blogprahari.com व्यापक परिकल्पना है. इसने अब तक के सभी अनुत्तरित सवालों को सुलझा दिया है. यह कोई अवतार नहीं है, यह कोई थोपा गया और प्रचारित-प्रसारित व सुनियोजित पहल नहीं है. यह प्राकृतिक तरीके से विकास को अपनाते हुए आज रणक्षेत्र में खड़े उस योद्धा जैसा है, जिसके माथे पर कोई शिकन का भाव नहीं. क्योंकि इस विकास की पराकाष्ठा को इसके उत्पति के समय ही भांप लिया गया था.

रवीश ने शेषजी को समर्पित किया आज का ब्लाग वार्ता

शेष नारायण सिंह भले 60 पार के हैं लेकिन उनके तेवर नौजवानों से कम नहीं. हरदम ताल ठोंककर ललकारने और लिखने को तैयार. प्रिंट और इलेक्ट्रानिक वालों ने जिन दिनों शेष नारायण सिंह को उनके तेवर के कारण किनारे कर दिया था, उन मुश्किल दिनों में न्यू मीडिया के लोगों ने उन्हें राष्ट्रीय फलक में स्थापित किया. और, उन्हीं दिनों की ट्रेनिंग में शेषजी ने अपना एक ब्लाग भी बना लिया.

श्रवण गर्ग, कल्पेश याज्ञनिक, यतीश राजावत बताएं

: भास्कर डॉट कॉम की ये कैसी पत्रकारिता! : एक बार दैनिक भास्कर के संपादकीय विभाग के एक वरिष्ठ पत्रकार ने मुझे सलाह दी कि भड़ास4मीडिया बहुत अच्छा है लेकिन बस इसमें जो कमेंट आते हैं उस पर नियंत्रण लगाने की जरूरत है.

अजित वडनेरकर की किताब ‘सफ़र’ का विमोचन

आख़िरकार किताब आ ही गई। शब्दों का सफ़र नाम के ब्लॉग का परिष्कृत रूपान्तर पुस्तक की शक्ल में आए यह साध सफ़र के सभी साथियों समेत हमारे मन में भी अर्से से थी। शुक्रवार शाम भोपाल के हिन्दी भवन में चल रही राजकमल प्रकाशन की पुस्तक प्रदर्शनी में ही शब्दों का सफ़र का विमोचन हिन्दी के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार मंज़ूर एहतेशाम ने किया।

वीएन राय, ब्लागिंग और मेरी वर्धा यात्रा

[caption id="attachment_18266" align="alignnone" width="505"]विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार के ठीक बगल में लिखे नाम के साथ तस्वीर खिंचवाता मैं.विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार के ठीक बगल में लिखे नाम के साथ तस्वीर खिंचवाता मैं.[/caption]

वर्धा में भले सिर्फ दो, सवा दो दिन रहा, लेकिन लौटा हूं तो लग रहा है जैसे कई महीने रहकर आया हूं. जैसे, फेफड़े में हिक भर आक्सीजन खींचकर और सारे तनाव उडा़कर आया हूं. आलोक धन्वा के शब्दों में- ”यहां (वर्धा में) आक्सीजन बहुत है”. कई लोगों के हृदय में उतर कर कुछ थाह आया हूं. कुछ समझ-बूझ आया हूं. कइयों के दिमाग में चल रहीं तरंगों को माप आया हूं. दो दिनी ब्लागर सम्मेलन के दौरान विभूति नारायण राय उर्फ वीएन राय उर्फ पूर्व आईपीएस अधिकारी उर्फ शहर में कर्फ्यू समेत कई उपन्यास लिखने वाले साहित्यकार उर्फ महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति, ये सब एक ही हैं, से कई राउंड में, मिल-जान-बतिया आया हूं.

हिंदी साहित्य में भूचाल, उदय प्रकाश घिरे

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पुरस्कार या फुरस्कार ?? हिंदी के सुपरस्टार कथाकार उदय प्रकाश के सितारे इन दिनों गर्दिश में हैं। योगी आदित्यनाथ के हाथों एक पुरस्कार लेने के बाद हिंदी साहित्य के वाम और प्रगतिशील विचार वाले छोटे-बड़े बुद्धिजीवी उदय प्रकाश की तगड़ी घेरेबंदी कर चुके हैं। अभी-अभी हिंदी के करीब 50 छोटे-बड़े विद्वानों-साहित्यकारों ने संयुक्त रूप से एक विज्ञप्ति जारी कर उदय प्रकाश के योगी आदित्यनाथ के हाथों पुरस्कार लेने पर नाखुशी जाहिर करते हुए विरोध जताया है। इस विज्ञप्ति में कहा गया है-

सुशील की ओर देखा तो आंखें निकाल ली जाएंगी

Alok Tomarसुशील कुमार सिंह हिंदी पत्रकारिता में संतों की श्रेणी में आते हैं। वे ऐसे गजब आदमी हैं कि अपने धर्म गुरु, पारिवारिक सदस्य और अपना नया पंथ चलाने वाले एक बाबा जी के नाम पर बहुत सारे दोस्तों को विदेश यात्रा करवा चुके हैं लेकिन आज तक खुद विदेश नहीं गए। एक बड़े अखबार के चीफ रिपोर्टर के नाते बहुतों का भला किया लेकिन दिवाली, दशहरे और नए साल पर उपहार देने वालों को बहुत विनम्रतापूर्वक वे उपहार सहित घर से लौटा दिया करते थे। बाद में एनडीटीवी और सहारा में भी बड़े पदों पर रहे।

आलोक तोमर ने शोभना भरतिया को लिखा पत्र

वेब जर्नलिस्ट सुशील कुमार सिंह को फर्जी मुकदमों में फंसाने की एचटी मीडिया के कुछ मठाधीशों की कुत्सित चाल के खिलाफ पूरे देश के पत्रकारों की एकजुटता का असर अब दिखने लगा है। सुशील को गिरफ्तार करने के लिए दिल्ली में कई दिनों से डेरा डाले लखनऊ पुलिस अब वापस लौट चुकी है। लखनऊ पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को इस मामले की सत्यता के बारे में पता चल चुका है, इसलिए वो अब एचटी मीडिया के कुछ मठाधीशों की चाल और जाल में आने से इनकार कर चुके हैं। लखनऊ पुलिस देश भर के मीडिया कर्मियों के उठ खड़े होने से भी सकते में है। वह अब ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहती जिससे यूपी पुलिस की छवि पर खराब असर पड़े। उधर, रायपुर प्रेस क्लब ने आज आपात बैठक कर सुशील कुमार सिंह को फंसाए जाने की निंदा की।

सुशील प्रकरण : संघर्ष समिति को देश भर में समर्थन

दिल्ली में बनाई गई वेब पत्रकार संघर्ष समिति का देश भर के पत्रकार संगठनों ने स्वागत किया है। जनसत्ता, द इंडियन एक्सप्रेस, दैनिक जगरण, दैनिक भास्कर, अमर उजला, नवभारत, नई दुनिया, फाइनेन्शियल एक्सप्रेस, हिन्दुस्तान, दी पायनियर, मेल टुडे, प्रभात खबर, डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट व बिजनेस स्टैन्डर्ड जैसे तमाम अखबारों के पत्रकारों ने वेब पत्रकार संघर्ष समिति के गठन का स्वागत किया। हिन्दुस्तान के दिल्ली और लखनऊ के आधा दजर्न से ज्यादा पत्रकारों ने इस मुहिम का स्वागत करते हुए अपना नाम न देने की मजबूरी भी बता दी। आईएफडब्ल्यूजे, इंडियन एक्सप्रेस इम्प्लाइज वर्कर्स यूनियन, जर्नलिस्ट फार डेमोक्रेसी, चंडीगढ़ प्रेस क्लब और रायपुर प्रेस क्लब ने इस पहल का समर्थन किया है और सुशील को फर्जी आपराधिक मामले में फंसाने की आलोचना की है।

सुशील प्रकरण : वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन

एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के इशारे पर वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को फर्जी मुकदमें में फंसाने और पुलिस द्वारा परेशान किए जाने के खिलाफ वेब मीडिया से जुड़े लोगों ने दिल्ली में एक आपात बैठक की। इस बैठक में हिंदी के कई वेब संपादक-संचालक, वेब पत्रकार, ब्लाग माडरेटर और सोशल-पोलिटिकिल एक्टीविस्ट मौजूद थे। अध्यक्षता मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने की। संचालन विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने किया। बैठक के अंत में सर्वसम्मति से तीन सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया। पहले प्रस्ताव में एचटी मीडिया के कुछ लोगों और पुलिस की मिलीभगत से वरिष्ठ पत्रकार सुशील को इरादतन परेशान करने के खिलाफ आंदोलन के लिए वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन किया गया।

गासिप अड्डा में खबर पर सुशील के घर पुलिस पहुंची

राजनीति से लेकर धर्म-अध्यात्म और मीडिया से जुड़ी सत्य और कहीं न प्रकाशित होने वाली घटनाओं को विश्लेषणात्मक अंदाज में अपनी वेबसाइट गासिप अड्डा डाट काम पर पब्लिश करने वाले पत्रकार सुशील कुमार सिंह पुलिस के शिकंजे में आते दिख रहे हैं। बताया जा रहा है कि गासिप अड्डा डाट काम के मीडिया गासिप कालम में दैनिक हिंदुस्तान, लखनऊ से जुड़ी एक खबर प्रकाशित करने पर उनके खिलाफ लखनऊ में मुकदमा दर्ज करा दिया गया है। मीडिया से जुड़े लोगों द्वारा मुकदमा दर्ज कराने पर पुलिस ने आनन-फानन में एक टीम सुशील कुमार सिंह के दिल्ली स्थित उनके आवास पर भेज दिया। भड़ास4मीडिया प्रतिनिधि ने सुशील कुमार सिंह से मोबाइल पर संपर्क किया और उनसे पूरे मामले की जानकारी ली। उन्होंने स्वीकार किया कि पुलिस उनके घर के बाहर खड़ी है।