एक घटना को पत्रकारिता का चरित्र न करार दें

[caption id="attachment_15698" align="alignleft"]कुमार सौवीरकुमार सौवीर[/caption]हो सकता है कि पायल की बात सच हो। और अगर ऐसा है तो, कहने की जरूरत नहीं कि उनके साथ हुआ हादसा बेहद शर्मनाक है। लेकिन इतना भी शर्मनाक नहीं कि पूरी पत्रकारिता के चेहरे पर कालिख पोत कर उसे सरेआम चौराहे पर दिनदहाडे़ सिर पर चौराहा बनाकर महीनों तक घुमाते रहा जाए। जरा सोचिये कि क्या इसके पहले इस पेशे से जुड़ी महिलाओं के साथ ऐसा नहीं होता रहा है। हमेशा ही हुआ है और उतना ही हुआ है जितना हमारे समाज ही नहीं, बल्कि उसके किसी भी अंग से जुड़ी महिलाओं के साथ। और तो और, जो महिलाएं केवल घर तक पर ही सिमट कर रह जाती हैं, उनमें से कुछ के साथ भी तो यही सब होता रहता है।

हम पर हुए अत्याचार की याद दिला दी

पायल का लिखा ‘मैंने मां-बाप के डेढ़ लाख रुपये बर्बाद कर दिए‘ और ‘कैरेक्टर पर उंगली उठाओ, लड़की हराओ‘ पढ़ा पर व्यस्तता की वजह से कुछ लिख नहीं पाई, पर आज लिख रही हूं. पायल, तुमने हम पर हुए अत्याचार की याद दिला दी. शाबास पायल, तुमने कम से कम लिखने का हौसला तो दिखाया, वरना न जाने कितनी पायल इस तरह गुमनामी के अंधेरे में खो जाती हैं हर साल और पत्रकारिता के इन नामी गिरामी संस्थानों का कुछ नहीं बिगड़ता है. तमाम दावे किए जाते हैं. लुभावने प्रलोभन दिए जाते हैं.

गिरहकट चला रहे मीडिया, मेधावी भर रहे पानी

दयानंद पांडेयजयप्रकाश शाही अब इस दुनिया में नहीं हैं, पर तब वह टूट कर कहते थे कि यार, अगर कथकली या भरतनाट्यम भी किए होते तो दस-बीस साल में देश में नाम कमा लिए होते : प्रिय पायल जी, भड़ास4मीडिया पर आपकी दोनों चिट्ठियां पढीं। अच्छा है कि बेवकूफियों से आप का जल्दी मोहभंग हो गया। तालिबानी चाशनी में पगी ड्रेस वाली बात भी पढ़ी। ऐसी बातों से घबराइएगा नहीं। रही बात पत्रकारिता की तो आज की पत्रकारिता में कुछ नहीं धरा है। जो भी कुछ है, अब वह सिर्फ़ और सिर्फ़ भडुओं के लिए है। अब उन्हीं के लिए रह गई है पत्रकारिता। अब तो कोई गिरहकट भी अखबार या चैनल चला दे रहा है और एक से एक मेधावी, एक से एक जीनियस वहां पानी भर रहे हैं। एक मास्टर भी बेहतर है आज के किसी पत्रकार से। नौकरी के लिहाज़ से।

पायल का पत्र पढ़ मुझे अपना लिखा याद आया

संजय कुमार सिंहकहीं ऐसा न हो कि कुछ साल बाद हिन्दी मीडिया संस्थानों में काम करने वाले लोग न मिलें : हिन्दी पत्रकारिता और उसकी एक बड़ी दुकान की पोल खोलने के लिए पायल चक्रवर्ती की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। पायल का पत्र पढ़कर मुझे अपना लिखा याद आ गया था, ” …. आज मुझे तनख्वाह और भत्तों के नाम पर (एक राष्ट्रीय दैनिक में) जो कुछ मिलता है उतना मेरे साथ पढ़े लोगों को मकान का किराया भत्ता मिलता है।”  पायल को अगर ऑफिस के माहौल से शिकायत है तो मुझे कम पैसे मिलने का अफसोस था। हालांकि, यह भी मैंने अपने आप नहीं लिखा था बल्कि मीडिया पर एक कॉलम में जब पत्रकारिता को अच्छा पेशा बताया गया था तो मैं प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए प्रेरित हुआ था क्योंकि उस समय तक मैं यह मानने लगा था कि मैंने इस पेशे को चुनकर गलत किया है।

‘कैरेक्टर पर उंगली उठाओ, लड़की हराओ’

मेरे पहनावे को लेकर आपको और आपके दैनिक जागरण को इतनी ही आपत्ति है तो ऑफिस के बाहर एक बोर्ड लगवा दीजिए जिस पर साफ-साफ शब्दों में लिखवा दीजिए- “Girls, only in suits are allowd inside” : धन्यवाद पवन जी, पहले मेल में मैं काफी बातें कह नहीं पाई थी, आपने मुझे एक और मौका दे दिया है अपनी बात रखने का. मैं कई बातों को छुपाना चाहती थी पर आप मुझे मजबूर कर रहे हैं जागरण की और अधिक पोल खोलने के लिए. खैर, कोई बात नहीं. पवन का पत्र पढ़कर मुझे कठपुतलियों का खेल याद आ गया है कि कैसे कठपुतलियों को धागों से चलाया-नचाया जाता है और कठपुतलियां चुपचाप चलती-नाचती रहती हैं. पवन जी, क्या आप इन कठपुतलियों में से तो नहीं! वैसे, ये बात भी सभी जानते हैं कि जूनियर तो जूनियर, जागरण में ऊंचे ओहदे पर बैठे लोग भी कठपुतलियों से कुछ कम नहीं हैं.

‘पायल पहनावे के कारण निकाली गईं”

दूसरा पत्र : यशवंत जी, मैंने दिनांक 31-10-2009 को ‘भड़ास4मीडिया’ को ‘सच बताओ पायलजी’ नामक एक लेख भेजा था. इसमें मैंने चंडीगढ़ जागरण से पायलजी को निकाले जाने की वजह बताई थी. पायलजी ने चंडीगढ़ जागरण से निकाले जाने की जो वजह गिनाईं थीं उनमें से एक भी सही नहीं थीं. मेरे हिसाब से पायलजी ने इस बारे में जो कुछ कहा, वो एकतरफा था और उसमें बहुत हद तक झूठ शामिल था. आपने इसमें दूसरे पक्ष की राय को शामिल नहीं किया था, लिहाजा इस संबंध में जो सच मैं जानता था, दूसरे पक्ष की हैसियत से, उसे मैंने बताना जरूरी समझा, फिर भी आपने मेरे लेख को क्यों शामिल नहीं किया?

मैंने मां-बाप के डेढ़ लाख रुपये बर्बाद कर दिए

[caption id="attachment_16090" align="alignleft"]पायल चक्रवर्तीपायल चक्रवर्ती[/caption]मुझे आज भी याद है वो दिन जब मुझे कॉलेज की तरफ से चंडीगढ़ जागरण का इन्टर्नशिप का लेटर दिया गया था. मैं अपने करियर के बारे में सोचकर बेहद खुश थी. जब मै लेटर लेकर अपनी बेस्ट फ्रेंड प्रियंका से मिलने गयी, तो खबर सुनकर वह रोने लगी. वो मेरा करियर बनते देख खुश थी लेकिन उसे दुख हो रहा था तो मेरा साथ छूटने का, मेरे जाने का. जागरण ज्वाइन करने के एक दिन पहले मैंने नोएडा में प्रियंका के साथ जमकर शापिंग की. चंडीगढ़ पहुंची तो वहां मैंने प्रेस क्लब के पास किराये पर एक फ्लैट ले लिया था. धीरे-धीरे मैंने अपनी किचन जमाई. रोज खाना बनाने और कपडे़ धोने के बाद टाइम से ऑफिस पहुंचने लगी. मीटिंग अटेंड करने के बाद रिपोर्टिंग पर जाती थी. जल्दी ही मैंने अपने न्यूज़ कांटैक्ट भी डेवेलप कर लिए. पर ये क्या, जागरण में कदम रखने के दूसरे दिन ही मुझे एक फ़ोन आया.