: उपन्यासकार रवीन्द्र प्रभात का नागरिक अभिनन्दन : बाराबंकी-रामनगर । आज समय के आगे देखने की जरूरत है। जब हम अपने वर्तमान में खड़े होंगे तभी समय के आगे देख सकेंगे। अपने समय के सच से जनता को रूबरू कराना मीडिया का काम है। कबीर और बुद्ध अपने समय में रहकर समय के आगे की दृष्टि अर्जित करने वाले अपने समय के प्रतिनिधि महापुरूष हैं।
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ढाई आखर प्रेम का
: सुनो भाई साधो : जल में कुंभ, कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी। फुटा कुंभ जल जलहिं समाना, यह तथ कहे गियानी। कबीर के अनेक रूप हैं। कभी बाहर, कभी भीतर, कभी बाहर-भीतर दोनों ही जगह। वे सबमें खुद को ढूढते हैं, सबको अपने जैसा बनाना चाहते हैं। कभी कूता राम का तो कभी जस की तस धर दीनी चदरिया वाले व्यक्तित्व में.. कभी ढाई आखर की वकालत करते हुए…
सुखदेव ने किया जनसंदेश टाइम्स का लोकार्पण
लखनऊ के मीडिया जगत के इतिहास में सोमवार को एक और पन्ना जुड़ गया। हिन्दी दैनिक जनसंदेश टाइम्स का विधानसभाध्यक्ष सुखदेव राजभर के हाथों गन्ना संस्थान के सभागार में लोकार्पण संपन्न हुआ।
डा. सुभाष राय के पिता का कानपुर में निधन
जनसंदेश टाइम्स के एडिटर डा. सुभाष राय के पिता रामायण राय का रविवार की सुबह कानपुर में निधन हो गया. वे 93 वर्ष के थे. परिवार में सुभाष राय के अलावा दो अन्य भाई हैं.
लखनऊ हिलाने को ‘जनसंदेश टाइम्स’ तैयार
: सात फरवरी को लोकार्पण के लिए लखनऊ में जुटेंगे देश भर के साहित्यकार और पत्रकार : हम लड़ेंगे / कि लड़े बगैर / कुछ भी नहीं मिलता / हम लड़ेंगे / कि अभी तक लड़े क्यों नहीं / हम लड़ेंगे / लड़ते हुए मर जाने वालों की / याद जिंदा रखने के लिए / हम लड़ेंगे साथी…. यह संकल्प मशहूर जनकवि अवतार सिंह पाश का है. यही संकल्प अब ‘जनसंदेश टाइम्स’ का भी है.
बहन जी की बड़ी तैयारी… डीएनए के मुकाबिल होगा जनसंदेश टाइम्स!
लखनऊ से बसपा का अखबार निकलने जा रहा है. जनसंदेश टाइम्स. पहले जनसंदेश नाम से चैनल खुला. अब जनसंदेश टाइम्स नाम से अखबार खुलने जा रहा है. लखनऊ के कयासबाज मान रहे हैं कि ये बहिन जी की बड़ी तैयारी का हिस्सा है. जिस तरह लखनऊ व इलाहाबाद से प्रकाशित डेली न्यूज एक्टिविस्ट उर्फ समाजवादी पार्टी का परचम लहराते हुए बहिन जी और उनके कारिंदों के कान काटने में लगा रहता है, उसी तरह बहिन जी चाहती हैं कि अगर किसी भी गलती से उनकी सरकार फिर सत्ता में न आ पाए तो दूसरी सत्तासीन पार्टियों के कान काटने का काम जनसंदेश टाइम्स करे.
जनसंदेश टाइम्स के संपादक के घर चोरी
: कुछ ही दिन पहले आगरा से लखनऊ गए थे डा. सुभाष राय : घर पर किसी को न देख चोरों ने कहर ढाया : उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है. कहीं कोई सुरक्षित नहीं दिख रहा है. कानपुर में पत्रकार को पुलिस द्वारा पीटे जाने की घटना के ठीक बाद अब सूचना आ रही है कि वरिष्ठ पत्रकार डा. सुभाष राय के घर को चोरों ने साफ कर दिया है. डा. राय अभी तक आगरा में डीएलए के संपादक विचार हुआ करते थे. उन्होंने आगरा में ही खुद का मकान बनवा लिया और लंबे समय से आगरा में रह रहे थे.
सुभाष राय ने छोड़ा अजय अग्रवाल का साथ
: जनसंदेश टाइम्स के संपादक के रूप में नाम फाइनल : 13 अक्टूबर को लखनऊ में ग्रहण करेंगे नया कार्यभार : लखनऊ से जल्द प्रकाशित होने जा रहे हिंदी दैनिक जनसंदेश टाइम्स के संपादक पद के लिए सुभाष राय का नाम फाइनल किया जा चुका है. खबर है कि डा. सुभाष राय ने डीएलए अखबार के चेयरमैन अजय अग्रवाल को संपादक (विचार) पद से अपना इस्तीफा भेज दिया है. अमर उजाला के निदेशक रह चुके अजय अग्रवाल का लंबे समय से साथ सुभाष राय दे रहे थे. अमर उजाला में बंटवारे के दौरान भी सुभाष राय पूरी मजबूती से अजय अग्रवाल के पक्ष में खड़े रहे. नौकरी के दर्जनों प्रस्तावों, साथ छोड़ने के अनेकों प्रलोभनों को लगातार ठुकराते रहने वाले सुभाष राय ने बहुत लंबे समय बाद अजय अग्रवाल का साथ छोड़कर किसी दूसरे ग्रुप का दामन थामने जा रहे हैं.
सुभाष राय होंगे जनसंदेश टाइम्स के एडिटर?
लखनऊ से प्रकाशित होने जा रहे जनसंदेश टाइम्स का संपादक कौन होगा, इसको लेकर कयासों का बाजार गर्म है. तीन नाम जबर्दस्त चर्चा में हैं. प्रमोद जोशी, सुभाष राय और सुनील दुबे. सूत्रों का कहना है कि तीनों ही लोगों को जनसंदेश प्रबंधन से बातचीत हुई है. किसका नाम फाइनल हुआ है, यह पता नहीं चल सका है. कुछ लोगों का कहना है कि सुभाष राय को संपादक पद की जिम्मेदारी देने का फैसला प्रबंधन ले चुका है. उधर, प्रबंधन से जुड़े सूत्र कह रहे हैं कि अभी कई नामों पर विचार चल रहा है, किसी को फाइनल नहीं किया गया है.
अयोध्या की चिनगारी को हवा न दें
: राजनीतिक दल फायदा उठाने की फिराक में : इतिहास केवल बीता हुआ भर नहीं होता, उसकी समग्रता का प्रतिफलन वर्तमान के रूप में उपस्थित होता है। वर्तमान की भी पूरी तरह स्वतंत्र सत्ता नहीं हो सकती, उसे इतिहास के संदर्भ में ही देखा जा सकता है लेकिन वर्तमान इतनी स्वतंत्रता हमेशा देता है कि इतिहास की गलतियों को दुहराने से बचा जा सके, कतिपय स्थितियों में उन्हें दुरुस्त किया जा सके।
कृष्ण को कैद से निकालना होगा
हम अपने नायकों की शक्ति-क्षमता को पहचान नहीं पाते इसीलिए उनकी बातें भी नहीं समझ पाते। हम उनकी मानवीय छवि को विस्मृत कर उन्हें मानवेतर बना देते हैं, कभी-कभी अतिमानव का रूप दे देते हैं और उनकी पूजा करने लगते हैं।
कोशिश करके भी वामपंथी न बन सका : सुभाष राय
[caption id="attachment_16926" align="alignright"]सुभाष राय[/caption]इंटरव्यू : सुभाष राय : वरिष्ठ पत्रकार और संपादक (विचार), डीएलए : भाग दो : कई मामलों पर असहमतियों के कारण मुझे शशि शेखर से अलग होना पड़ा था : गलत लोग हर दौर में आगे बढ़े पर वे नष्ट भी हुए : कई बार ऐसा लगता है कि शब्द से भी आगे जाने की जरूरत है : मीडिया के लिए कठिन समय, पत्रकार को नयी भूमिका तलाशने का वक्त है : तब लगता था कि हम वही काम कर रहे हैं जो कभी भगत-सुभाष-चंद्रशेखर ने किया : गुरु चंद्रनाथ योगेश्वर ने तांत्रिक दीक्षा दी, मिथुन भाव वर्जित था पर मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा के प्रयोग की इजाजत : मैं नाथ पंथ का योगी ‘सुभाषानंदनाथ’ घोषित हो गया : इलाहाबाद ने मेरे जेहन से संघ के प्रभाव को खत्म कर दिया : फिर तो लगा कि उनके शरीर से एक मधुर विद्युत धार मेरे शरीर में प्रवेश कर रही है : मैं बहुत सक्रिय और आलसी प्रवृत्ति का हूं : ज्यादा भगदड़ व भागदौड़ पसन्द नहीं करता : मैं पूरी दुनिया घूमना चाहता हूं, धीमी गति से चलने वाले वाहन से : सफलता के लिए जीवन में हमेशा असंतुष्ट रहने की सोच अधकचरी : खाने और पीने में न किसी को पकड़ा है और न किसी को छोड़ा है :
वे केमिस्ट्री पूछते, मैं कविता सुनाता : सुभाष राय
[caption id="attachment_16899" align="alignnone"]सुभाष राय[/caption]
इंटरव्यू : सुभाष राय : वरिष्ठ पत्रकार और संपादक (विचार), डीएलए : भाग एक : सुभाष राय. कई दशकों से हिंदी पत्रकारिता में सक्रिय. लंबे समय से आगरा में हैं. दशक भर से ज्यादा समय तक अमर उजाला में रहे. जब अमर उजाला का बंटवारा हुआ तब भी निदेशक अजय अग्रवाल का साथ नहीं छोड़ा. वे इन दिनों डीएलए, आगरा में ही संपादक (विचार) हैं. सुभाष राय जब छात्र थे तो इमरजेंसी का दौर था. वे इसका विरोध करते हुए जेल चले गए. तंत्र-मंत्र और ध्यान में दिलचस्पी रही तो गुरु को तलाश कर उच्चस्तरीय दीक्षा ली. घर से पैसा मिलना बंद हो गया तो लिख-पढ़ कर जो कुछ मिल जाता, उससे जिंदगी चला लेते. कभी किसी से मांगा नहीं. जब मिला तो खाया. न मिला तो भूखे सो गए. ईमानदार संपादकों की जो इस देश में परंपरा रही है, उसके प्रतीक हैं सुभाष राय. बेईमानी, झूठ और हायतौबा के बल पर कभी आगे बढ़ने की कोशिश नहीं की. जो कुछ अपने आप हासिल होता गया, उसी में संतुष्ट रहे. हमेशा अपना सर्वोत्तम देने की कोशिश की.