[caption id="attachment_15958" align="alignleft"]मुकेश कुमार[/caption]सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने कह तो दिया है मगर उनकी इस घोषणा पर कोई भरोसा करने को तैयार नहीं है कि वह टीवी चैनलों के लायसेंस देने के मामले में सख्त रवैया अपनाएंगी। टीवी इंडस्ट्री के लिए इसका यही मतलब है कि अब लायसेंस महँगे हो जाएंगे क्योंकि इसके लिए रिश्वतखोरी बढ़ जाएगी। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के बाबू, अफसर और मंत्री सब लायसेंस देने के एवज़ में ज़्यादा रकम चाहते हैं इसलिए ऐसा कड़क माहौल बनाया जा रहा है कि अब आसानी से लायसेंस नहीं मिलेंगे, ख़ास तौर पर उन्हें जिनका मीडिया से कोई पुराना रिश्ता नहीं है। दबाव इन्हीं नवागतों पर डाला जा सकता है क्योंकि पहले से मीडिया कारोबार में लगे लोग सरकारी दबाव का जवाब मीडिया के ज़रिए दे सकते हैं। काफी समय से इस पर आपत्तियाँ उठाई जाती रही हैं कि ऐसे लोगों को चैनलों के लायसेंस दिए जा रहे हैं, जो मीडिया की गंभीरता को नहीं समझते और उनका मक़सद ऐन केन प्रकारेण धन कमाना है।
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टीवी के संपादक अब चिरकुटई से तौबा करें
टीवी न्यूज चैनलों के संपादक अगर समय से अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए, खुद की पहल पर, इकट्ठे मिल-बैठकर, यह तय कर लिए होते कि उन्हें इस-इस तरह के कार्यक्रम नहीं दिखाने हैं, और इस तरह के दिखाने हैं, तो संभवतः टीवी न्यूज चैनलों का इस कदर कबाड़ा नहीं हुआ होता। जनता तो गरिया ही रही है, सरकार भी आंखें तरेर रही है। जब पानी नाक तक पहुंच रहा है तो मजबूरन हाथ-पांव मारने की कवायद के तहत टीवी संपादकों ने एक बाडी बना ली और सरकार से संयुक्त बारगेनिंग में जुट गए हैं। तेवर और गरिमा खो चुके टीवी के संपादकों की बात सरकार कितनी सुनेगी, या सुन भी लेगी तो उससे क्या भला हो जाएगा, यह तो नहीं पता लेकिन इतना तय है कि टीवी जर्नलिज्म के नाम पर चिरकुटई परोसने वाले टीवी के संपादकों को अब भी अक्ल आ जानी चाहिए। उन्हें टीआरपी की फोबिया से मुक्त होना चाहिए। उन्हें टीआरपी के पीछे भागने की जगह, गंभीर खबरों व विश्लेषणों की तरफ वापस लौटना चाहिए। देश व समाज के सामने खड़े बड़े मुद्दे पर खोजी पत्रकारिता करनी चाहिए। सरकारों को कठघरे में खड़े करने की परंपरा को आगे बढ़ाना चाहिए।
चैनल खोलना नहीं होगा आसान
भारतीय टेलीविजन बाजार में चैनलों की तेजी से बढ़ती बाढ़ तो दूसरी तरफ चैनलों की गिरती साख से चिंतित केन्द्र सरकार अब अपनी मौजूदा “चैनल अनुमति नीति” में भारी बदलाव लाने जा रही है. एक महत्वपूर्ण फैसले के तहत, नए चैनलों को अनुमति देने से संबंधित मौजूदा दिशानिर्देशों की गहन समीक्षा की जा रही है. सरकार की चिन्ता का एक कारण यह भी है कि नए चैनल शुरू करने वालों में से कइयों की पृष्ठभूमि संदिग्ध है और उनका मीडिया से कोई लेना-देना नहीं है.
‘टीवी संपादक कंटेंट बेहतर बनाना चाहते हैं’
बीईए के “मीट द एडिटर्स” में अंबिका सोनी ने स्वीकारा : सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने टीवी चैनलों के संपादकों को भरोसा दिया है कि सरकार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर किसी भी तरह की पाबंदी के खिलाफ है। सरकार टीवी चैनलों के साथ जोर जबदस्ती करके उन पर किसी भी तरह की पाबंदी या रेगुलेशन थोपने के पक्ष में नहीं है। अंबिका सोनी ने ये बातें हाल में गठित टीवी न्यूज चैनलों के संपादकों की संस्था ‘ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन’ से साथ ‘मीट द एडिटर्स’ कार्यक्रम में कही। दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में न्यूज चैनलों के करीब पच्चीस संपादकों से अंबिका सोनी की दो घंटे तक बातचीत हुई।
‘टैम’ वाले ‘टामियों’, अब तो डूब मरो!
‘टैम’ वाले कितने बड़े चोर, धंधेबाज और साथ ही साथ चिरकुट भी हैं (ये सब इसलिए लिखा जा रहा है क्योंकि दरअसल टीवी न्यूज इंडस्ट्री से कंटेंट गायब कराने का श्रेय इन्हीं ‘टैम’ वालों को जाता है और इन्हीं ‘टैम’ वालों ने टीवी पत्रकारों को जोकर बनकर काम करने को मजबूर कर रखा है), यह जानना हो तो दैनिक भास्कर में प्रकाशित एक खबर पढ़ लीजिए। टेलीविजन आडियेंस मीजरमेंट (टैम) वाले आजकल दूरदर्शन न्यूज यानि डीडी न्यूज पर बहुत मेहरबान हो गए हैं। इसे कई निजी न्यूज चैनलों से आगे बताने लगे हैं। ये काम वे सिर्फ मौखिक नहीं कर रहे हैं, बल्कि आंकड़े देकर बता-समझा रहे हैं। वजह यह है कि केंद्र सरकार ने संकेत दे दिया है कि वे टैम वालों के रेटिंग के अर्जी-फर्जी नाटक से खुश नहीं है और जल्द ही एक राष्ट्रीय टेलीविजन मीजरमेंट एजेंसी बनाने के काम को तेजी से आगे बढ़ाया जाएगा।
मीडिया के नियमन से डर क्यों?
मीडिया के नियमन (रेग्यूलेशन) का मुद्दा एक बार फिर गर्म हो गया है। ’सच का सामना’ को लेकर संसद में हुई तीखी बहस के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने वायदा किया है कि यूपीए सरकार अगले सात सप्ताहों में मीडिया के नियमन को लेकर एक मसौदा प्रस्ताव देश के सामने बहस के लिए पेश करेगी। लेकिन दूसरी ओर, दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘सच का सामना’ पर प्रतिबंध लगाने की मांग करनेवाली जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि जिन्हें ऐसे कार्यक्रम पसंद नही हैं, वे रिमोट का इस्तेमाल करके ऐसे चैनल और कार्यक्रम बदल दें। इसके साथ ही, मीडिया के नियमन के मसले पर एक बार फिर बहस शुरू हो गयी है। जाहिर है कि मीडिया खासकर उसकी अंतर्वस्तु (कंटेंट) के नियमन की यह बहस नयी नही है। पिछले कई वर्षों से यह बहस चल रही है। यह भी सच है कि इस मुद्दे पर देश में एक राय नहीं है। इसमें भी कोई शक नहीं है कि मीडिया खासकर उसके कंटेंट के नियमन और वह भी सरकारी नियमन को लेकर बिलकुल सहमति नही है।
प्रस्तावित ‘काले कानून’ पर टीवी संपादकों की राय
मीडिया का गला घोटने की कोशिश : अजीत अंजुम
जागो, नहीं तो देर हो जाएगी : मिलिंद खांडेकर
प्रेस की आजादी पर हमला : सतीश के सिंह
सरकार इतनी जल्दी में क्यों है : आशुतोष
चौथे खंभे को धराशायी करने की साजिश : सुप्रिय
पाक मीडिया हमसे ज्यादा आजाद : विनोद कापड़ी
टीवी संपादकों ने मनमोहन को पत्र भेजा
टीवी न्यूज चैनलों के 15 संपादकों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आज पत्र भेजा है। इस पत्र में सरकार को ऐतिहासिक गल्ती करने को लेकर साफ-साफ चेताया गया है। पत्र में पीएम से मिलने के लिए वक्त मांगा गया है ताकि टीवी संपादक उन्हें विस्तार से समझा सकें। पत्र में कहा गया है कि किसी भी लोकतांत्रिक देश की मीडिया अपने लिए खुद अनुशासन तय करती है और भारत की टीवी मीडिया ने पिछले दिनों खुद पहल करते हुए इस दिशा में काफी कुछ काम किया है। पत्र में प्रधानमंत्री से उम्मीद की गई है कि वे मिलने के लिए जल्द से जल्द समय देंगे। पूरा पत्र इस प्रकार है-
Mr. Manmohan Singh, The Prime Minister of India.