[caption id="attachment_16678" align="alignleft"]विनोद वार्ष्णेय[/caption]एक साल भी न हुआ कि नौकरी लेने वाले खुद नौकरी गंवा बैठे : बीस जनवरी को एक साल हो जायेगा. हिंदुस्तान के कुछ लोग इस दिन को “मुक्ति दिवस” के रूप में मनाने जा रहे हैं. ये वे लोग हैं जिन्हें दो साल के कांट्रेक्ट रिनूअल के दो महीने बाद अचानक आर्थिक मंदी के नाम पर कह दिया गया कि “जाओ, एचटी बिल्डिंग छोड़कर जाओ, मन लगाकर मेहनत करना और ईमानदारी क्या होती है, यह हम नहीं जानते; बस, घंटे भर में जाओ तीस-पच्चीस-छत्तीस साल की तुम्हारी मेहनत क्या होती है, हमें नहीं पता, बस निकल जाओ.” सब जानते थे कि यह मंदी से अधिक सम्पादक की कुटिल और स्वार्थी मानसिकता का नतीजा थी. यह भी सब जानते थे कि मंदी सिर्फ बहाना है, मृणाल पान्डे को कुछ लोगों से छुट्टी पाना है; मैनेजमेंट के सामने कमाल कर दिखाने का खिताब पाना है. और जो चाटुकार नहीं, केवल पत्रकार थे, उन्हें अपने स्वाभिमान की कीमत चुकाना है. यह नया नैतिक शास्त्र था जिसमें संपादक संपादक न रहे, वे मैनेजमेंट की जीभ से निकले शब्दों से हिलने वाली उसकी पूंछ हो गए.
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मुनाफे में एचटी को जागरण ने क्यों पीटा?
[caption id="attachment_16133" align="alignleft"]विनोद वार्ष्णेय[/caption]इस तिमाही में एचटी का शुद्ध मुनाफा 31 करोड़, जागरण का 50 करोड़ और डेक्कन क्रोनिकल का 100 करोड़ : देश में कुछ ही समाचारपत्र कम्पनियां हैं जो स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड हैं. हर तीसरे महीने इन्हें अपने वित्तीय नतीजे एक्सचेंज को दाखिल करने पड़ते हैं. इससे पता चलता रहता है कि इन समाचारपत्रों की वित्तीय दशा क्या चल रही है. ये अखबारों की आम वित्तीय हालत के बैरोमीटर हैं. कंपनियों पर दबाव रहता है कि वे हर तिमाही अच्छे नतीजे दिखाएं ताकि शेयरों का मूल्य अच्छा बना रहे और शेयर धारकों की कृपा बनी रहे. अच्छे नतीजे दिखाने के लिए सत्यम राजू तो निरंतर बढ़ा-चढ़ा कर हिसाब-किताब दिखाता था.
काश, मृणालजी ने भी तब ऐसा किया होता
[caption id="attachment_15672" align="alignleft"]विनोद वार्ष्णेय[/caption]टिप्पणी (2) : मृणाल जी के इस्तीफे की खबर के बाद से लगातार फ़ोन आ रहे हैं. मैं सचमुच चकित हूँ कि लोग इतने खुश हैं. निश्चित रूप से उनमें उनकी बड़ी संख्या है, जो उनके सताए हुए थे. कई की तो वे नौकरी ले चुकी हैं, मेरी भी. मुझे अपने लिए गम नहीं, मैं तो 36 साल से अधिक नौकरी कर चुका. अब मैं समय कां इस्तेमाल पढ़ने में कर रहा हूँ. घर परिवार के लम्बे समय से उपेक्षित काम निपटा रहा हूँ, नियमित लेखन का सिलसिला शुरू होने वाला है़. पर उन्होंने कई ऐसे लोगों को निकाला जो यंग थे. पारिवारिक जिम्मेदारियों के बोझ तले दबे हुए थे. अपना बेस्ट देकर पत्रकारिता और नौकरी के बीच संतुलन कायम किए हुए थे.
विनोद वार्ष्णेय विज्ञान संचार पुरस्कार से सम्मानित
विज्ञान की खबरों के लिए समर्पित पाक्षिक समाचारपत्र “वैज्ञानिक दृष्टिकोण” ने शुक्रवार को जयपुर में एक गरिमापूर्ण समारोह में मशहूर विज्ञान पत्रकार विनोद वार्ष्णेय को दीपक राठौड़ स्मृति राष्ट्रीय विज्ञान संचार पुरस्कार से सम्मानित किया। उन्हें इस अवसर पर राजीव गाँधी स्टडी सर्कल के निदेशक डाक्टर ओपी व्यास ने ग्यारह हजार रुपये का चेक, स्मृति चिह्न और प्रशस्ति-पत्र प्रदान किया। इस अवसर पर डाक्टर व्यास ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि राजस्थान में पिछले एक साल में 400 स्कूलों में विज्ञान शिक्षा बंद कर दी गयी है. उन्होंने इस बात पर भी खेद जताया कि राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने भारतीय मूल की पहली अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला छात्रवृत्ति को भी बंद कर दिया. उन्होंने समाचारपत्रों में विज्ञान कवरेज की मौजूदा स्थिति पर चिंता व्यक्त की।
मैं संपादकीय राजनीति का शिकार हुआ : विनोद वार्ष्णेय
इंटरव्यू : विनोद वार्ष्णेय
कथित मंदी के नाम पर छोटे-बड़े मीडिया हाउसों के प्रबंधन की अंधी कार्यवाहियों के चलते देशभर के जिन हजारों पत्रकारों को बेरोजगार होना पड़ा है, बेहद अपमानजनक स्थितियों में संस्थानों से कार्यमुक्त किया गया है, उनमें से एक हैं वरिष्ठ पत्रकार विनोद वार्ष्णेय। वे दैनिक हिंदुस्तान, दिल्ली के नेशनल ब्यूरो चीफ हुआ करते थे। अलीगढ़ के रहने वाले विनोद ने दैनिक हिंदुस्तान, दिल्ली में बतौर प्रूफ रीडर करियर शुरू किया।