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टीवी संपादकों, टीआरपी को त्रैमासिक कराओ

सप्ताह 46वां, 8 नवंबर से 14 नवंबर 09 तक : टैम वाले टामियों को कमाते रहना है, अपने धंधे को चमकाते रहना है, सो थोड़े-बहुत अंकों के हेरफेर के साथ हर हफ्ते सो-काल्ड टीआरपी में कमी-बेसी के बारे में बताते रहना है। इन टामियों को किसी डाक्टर ने कहा है कि हर हफ्ते टीआरपी रिपोर्ट जारी करें? अबे, खुद भी चैन से जियो और चैनल वालों को भी थोड़ा चैन कर लेने दो। चैनल वाले कई बेचारे तो आजकल इतने टेंशन में हैं कि परसनल और प्रोफेशनल, दोनों लाइफ बर्बाद होने की स्थिति है। कइयों की तो पहले ही बर्बाद हो चुकी है। टैम वाले अपनी रिपोर्ट को न अर्द्धवार्षिक तो कम से कम त्रैमासिक तो कर ही दें। अखबार वाले कितने सुकून में हैं। छह महीने चैन से अखबार निकालते रहते हैं। भांति-भांति के प्रयोग और फ्लेर-कलवेर घटाते-बढ़ाते रहते हैं। जनता जनार्दन की भी बात कर लेते हैं। पर ये टैम वाले टामी तो टीवी वालों को टीआरपी के अलावा कुछ सोचने ही नहीं देते। भूत-प्रेत, यू-ट्यूब वीडियो की कहानियां, हंसी वाले सीरियल और रोने-गाने-बदन दिखाने वाले रियलिटी शो के जरिए अगर टीआरपी प्राप्त होती है तो अच्छे-खासे छवि वाले न्यूज चैनल भी इन्हीं हथकंडों को अपनाने लगते हैं। इन अच्छे-खासे चैनलों के संपादक जी लोग बस बेचारा बने रहते हैं। या फिर इलेक्ट्रानिक मीडिया की ऐसी-तैसी करने के अभियान में थोड़ा-बहुत अपना भी योगदान देते रहते हैं।

सप्ताह 46वां, 8 नवंबर से 14 नवंबर 09 तक : टैम वाले टामियों को कमाते रहना है, अपने धंधे को चमकाते रहना है, सो थोड़े-बहुत अंकों के हेरफेर के साथ हर हफ्ते सो-काल्ड टीआरपी में कमी-बेसी के बारे में बताते रहना है। इन टामियों को किसी डाक्टर ने कहा है कि हर हफ्ते टीआरपी रिपोर्ट जारी करें? अबे, खुद भी चैन से जियो और चैनल वालों को भी थोड़ा चैन कर लेने दो। चैनल वाले कई बेचारे तो आजकल इतने टेंशन में हैं कि परसनल और प्रोफेशनल, दोनों लाइफ बर्बाद होने की स्थिति है। कइयों की तो पहले ही बर्बाद हो चुकी है। टैम वाले अपनी रिपोर्ट को न अर्द्धवार्षिक तो कम से कम त्रैमासिक तो कर ही दें। अखबार वाले कितने सुकून में हैं। छह महीने चैन से अखबार निकालते रहते हैं। भांति-भांति के प्रयोग और फ्लेर-कलवेर घटाते-बढ़ाते रहते हैं। जनता जनार्दन की भी बात कर लेते हैं। पर ये टैम वाले टामी तो टीवी वालों को टीआरपी के अलावा कुछ सोचने ही नहीं देते। भूत-प्रेत, यू-ट्यूब वीडियो की कहानियां, हंसी वाले सीरियल और रोने-गाने-बदन दिखाने वाले रियलिटी शो के जरिए अगर टीआरपी प्राप्त होती है तो अच्छे-खासे छवि वाले न्यूज चैनल भी इन्हीं हथकंडों को अपनाने लगते हैं। इन अच्छे-खासे चैनलों के संपादक जी लोग बस बेचारा बने रहते हैं। या फिर इलेक्ट्रानिक मीडिया की ऐसी-तैसी करने के अभियान में थोड़ा-बहुत अपना भी योगदान देते रहते हैं।

ऐसा वो टीआरपी वाले प्रोग्राम तैयार कराने के आइडिया देकर करते हैं। कभी-कभी लगता है कि ये टीवी के संपादक नहीं, टैम की कठपुतलियां हैं। आखिर इन टीआरपी के मारे बेचारे टीवी संपादकों को मिल-बैठकर यह मांग क्यों नहीं करनी चाहिए कि टैम वाले टीआरपी रिपोर्ट त्रैमासिक दिया करें। ये टीवी संपादक मिलते-बैठते भी तभी हैं जब सरकार इन्हें आंख तरेरती है, रेगुलेट करने की बात करती है। तब ये भाई लोग फौरन इकट्ठा होकर, सरकार के मंत्री के साथ बैठक कर, या अपनी मीटिंग में मंत्री को बुलाकर मीडिया की रक्षा करने संबंधी भारी-भरकम लोकतांत्रिक शब्द उगलने लगते हैं। इन टीवी संपादकों को अपने न्यूज चैनलों को टैम के हाथों संचालित होने से बचाने के लिए टीआरपी रिपोर्ट छह महीने या तीन महीने में जारी किए जाने की जोरदार मांग करनी चाहिए। इन्हें टैम की कार्यप्रणाली को पारदर्शी बनाने, ग्रामीण इलाकों को भी टीआरपी दायरे में लाने, टाआरपी मापने की प्रक्रिया को ज्यादा वैज्ञानिक बनाने, टैम की कार्यप्रणाली पर नजर रखने के लिए टीवी जर्नलिस्टों और बुद्धिजीवियों की कमेटी बनाने की मांग करनी चाहिए। टैम वाले चौतरफा दबाव पर मानेंगे, साले न मानेंगे तो टीवी संपादकों के आह्वान पर पूरी टीवी इंडस्ट्री के जर्नलिस्ट सड़कों पर आ जाएंगे। तब टैम वाले डर के मारे कम से कम अपने अंदर बदलाव तो करेंगे। जिस दिन टीवी के संपादक और टीवी पत्रकार प्रिंट वालों को साथ लेकर टैम रिपोर्ट साप्ताहिक करने की जगह त्रैमासिक करने की मांग पर सड़कों पर आ गए तो सरकार का भी दबाव टैम पर बढ़ जाएगा।

पर संपादकजी लोग ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे जिससे टामियों का कोई बाल बांका होता हो, यह बात तो बिलकुल पक्की है क्योंकि इन महान संपादकों को कोई दूसरा कुछ करने के लिए समझाए और कुछ करने के लिए सुझाव दे, इन्हें बिलकुल बर्दाश्त नहीं होता और न होगा।

चलिए, भारी-भरकम भड़ासी भाषण के बाद अब इस हफ्ते की सो-काल्ड टीआरपी रिपोर्ट भी जान ली जाए। चूहे-बिल्ली के इस साप्ताहिक खेल में इस बार सबसे ज्यादा नुकसान इंडिया टीवी को हुआ है। पिछले हफ्ते के मुकाबले उसे 1.4 अंक कम मिले। सबसे ज्यादा फायदे में तेज रहा। इसने कुल 0.6 अंक जोड़े। बाकी चैनल थोड़े बहुत भों-भों-म्याऊं-म्याऊं-आंय-बांय-सांय के साथ अपने-अपने जगह पर कायम हैं।

इति श्री साप्ताहिक चिरकुट टीआरपी रिपोरटम….

अगर इससे ज्यादा जानने की इच्छा अब भी आपके अंदर शेष हो तो नीचे दिए गए अंकगणित में अपने हिसाब से गुणा-भाग-जोड़-घटाना करते रहिए…..


इस हफ्ते की रेटिंग इस प्रकार है–

आज तक- 18.5 (चढ़ा 0.5), इंडिया टीवी- 15.4 (गिरा 1.4), स्टार न्यूज- 14.7 (चढ़ा 0.5), जी न्यूज- 10.9 (गिरा 0.4), आईबीएन7- 9.3 (गिरा 0.2), एनडीटीवी इंडिया- 8.5 (यथावत), न्यूज24 – 5.8 (गिरा 0.3), समय- 4.5 (गिरा 0.2), तेज- 4.4 (चढ़ा 0.6), डीडी न्यूज- 4.0 (चढ़ा 0.4), लाइव इंडिया- 2.9 (चढ़ा 0.5), इंडिया न्यूज- 1.1 (चढ़ा 0.1)

स्रोत: टैम, मार्केट: एचएसएम, टीजी: सीएस-15+

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