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पॉवर-पुलिस

महिला उत्पीड़न का आरोपी और मानवाधिकार जांच में फंसे आईपीएस लोकू को माया सरकार देगी श्रेष्‍ठता पुरस्‍कार!

केवल प्रताड़ना के लिए निर्दोष महिलाओं को रात भर थाने पर बिठाये रखने वाले पुलिस अफसर को प्रदेश की माया-सरकार ने उसकी हरकतों को उत्‍कृष्‍ट और सराहनीय माना है। कल सोमवार 15 अगस्‍त को मुख्‍यमंत्री मायावती खुद उसके गले में मेरीटोरियस सर्विस का मेडल टांगेंगी। यह अफसर अब लखनऊ में डीआईजी के तौर पर बिराजमान है।

केवल प्रताड़ना के लिए निर्दोष महिलाओं को रात भर थाने पर बिठाये रखने वाले पुलिस अफसर को प्रदेश की माया-सरकार ने उसकी हरकतों को उत्‍कृष्‍ट और सराहनीय माना है। कल सोमवार 15 अगस्‍त को मुख्‍यमंत्री मायावती खुद उसके गले में मेरीटोरियस सर्विस का मेडल टांगेंगी। यह अफसर अब लखनऊ में डीआईजी के तौर पर बिराजमान है।

पुलिस सुधार के लिए चलने वाले प्रयासों को यूपी में किस तरह रौंदा जाता है, इसका ताजा उदाहरण है राष्‍ट्रपति पदक के लिए चुने गये यूपी के अफसर। इन पदकों में जिसका नाम खास तौर पर उल्‍लेखनीय है, वह है रविकुमार लोक्‍कू। आईपीएस अफसर है यह शख्‍स। अभी कुछ ही महीना पहले यह गाजीपुर जिले में कप्‍तान था। उस पर गाजीपुर जिले में अपनी तैनाती के दौरान निर्दोष महिलाओं के उत्पीड़न, १६ घंटों तक बिना वजह महिलाओं को थाने में बिठाने का आरोप है। इसी आरोप के कारण उसका तबादला कर दिया गया और उसके खिलाफ मानवाधिकार आयोग की जांच शुरू हो गई। अब इसी अफसर को मायावती सरकार की तरफ से सम्मानित किया जाएगा।

दरअसल, पुलिस अफसरों को राष्‍ट्रपति पुरस्‍कार के लिए प्रदेश सरकार की ओर से प्रस्‍ताव भेजा जाता है। यह पुरस्‍कार वीरता, उल्‍लेखनीय सेवाओं और असामान्‍य श्रेष्‍ठता हासिल पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों को दिया जाता है। सामान्‍य तौर पर, और कोई खास ऐतराज पेश न आने पर राष्‍ट्रपति कार्यालय से इस सूची को मंजूरी मिल ही जाती है। इसके बाद उन्‍हें मिलती है रकम और मेडल के साथ ढेर सारी सुविधाएं भी। वेतन में विशेष रकम भी जोड़ी जाती है जो आजीवन मिलती है। वह भी टैक्‍स-फ्री।

रवि कुमार लोकू

यही है यूपी का महिला विरोधी कुख्यात पुलिस अफसर रवि कुमार लोकू

बहरहाल, बात हो रही है लोक्‍कू की। गाजीपुर में पिछले पंचायत चुनावों के दौरान हुई हिंसा में एक व्‍यक्ति की मौत हो गयी थी। हत्‍या के अभियुक्‍तों को पुलिस तो पकड़ नहीं पायी। उल्‍टे अभियुक्‍तों के पड़ोस की घरों की महिलाओं को धर-दबोचा। रात भर उन्‍हें थाने पर बिठाये रखा। यह सारा तब हुआ जब महिलाओं को थाने पर ले जाये जाते समय न तो कोई महिला पुलिस थी और न ही थाने पर पूरे दौरान किसी महिला पुलिसकर्मी की व्‍यवस्‍था की गयी। महिलाएं हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाती रहीं कि उन्‍हें किसी भी अभियुक्‍त के बारे में कोई सूचना नहीं है, लेकिन लोक्‍कू के नेतृत्‍व में किसी भी मर्द पुलिसवाले का दिल नहीं पसीजा। इन महिलाओं को थाने में बिठाये रखा गया और बात-बात पर उन्‍हें बेइज्‍जत किया जाता रहा।

इन महिलाओं को पकड़े जाने की खबर पाते ही इस बारे में लखनऊ में मौजूद आला पुलिस और प्रशासनिक अफसरों को खबर दे दी गयी। चूंकि यह मामला एक वरिष्‍ठ पत्रकार के परिवार का था, इसलिए लखनऊ के पत्रकार भी सक्रिय हुए। लेकिन लोक्‍कू ने पत्रकारों के हर फोन पर यही कहा कि जब तक अभियुक्‍त नहीं पकड़े जाते महिलाओं को नहीं छोड़ा जाएगा। हर अफसर ने लोक्‍कू को फोन किया, लेकिन करीब 18 घंटों तक थाने पर रखने के बाद ही इन महिलाओं को छोड़ा गया। हालांकि बाद में जांच के नाम पर एक अफसर को मौके पर भेजा गया, लेकिन उस जांच का क्‍या हुआ, कोई नहीं जानता।

हैरत की बात तो यह है कि सर्वोच्‍च न्‍यायालय तक इस बात पर सख्‍त ऐतराज जता चुका है कि अभियुक्‍तों को न पकड़ पाने पर, उनका सुराग लेने के लिए पुलिस द्वारा अभियुक्‍तों के परिवारीजनों को पकड़ लेती है। उच्‍चतम न्‍यायालय ने ऐसी घटनाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई किये जाने की भी हिदायत दे रखी है। वैसे भी, कानूनन किसी भी महिला को निर्दोष होने पर थाने नहीं बुलाया जा सकता है। और किसी महिला को यदि गिरफ्तार किया जाता है तो उसके साथ उस समय तक महिलापुलिसकर्मी अनिवार्य रूप से होने का प्राविधान है, जब तक कि उसे जेल न भेज दिया जाए। लेकिन कायदे-कानून को अपने जूते की नोंक पर रखती है यूपी की टोपीक्रेसी, जिसके अब नये नेता हैं रविकुमार लोक्‍कू। तो, अब यूपी सरकार कुमार सौवीरने इस अफसर को राष्‍ट्रपति पुरस्‍कार से सम्‍मानित करने का फैसला किया है।

यूपी के वरिष्ठ पत्रकार कुमार सौवीर की रिपोर्ट


आईपीएस एल. रवि कुमार उर्फ रवि कुमार लोकू उर्फ लोक्कू की असलियत जानने के लिए इन लिंक पर क्लिक करके पढ़ें….

 

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0 Comments

  1. Dilnawaz Pasha

    August 14, 2011 at 2:30 pm

    छोटे से पत्रकारिता जीवन में बहुत कम ही पुलिस अधिकारियों से मिलने या उन्हें समझने का मौका मिला है। उनमें से रविकुमार लोकू जी भी एक हैं।

    मैं सार्वजनिक सेवा में कार्यरत अभी तक जितने भी लोगों से मिला उनमें से यदि सबसे ज्यादा किसी के व्यक्तित्व ने प्रभावित किया तो वो श्री रविकुमार लोकू जी है। साल २००९ में मेरी उनसे उस वक्त मुलाकात हुई थी जब वो गाजियाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक थे और मैंने पत्रकारिता की पढ़ाई करते हुए ही अपने कॉलेज के कम्यूनिटी रेडियो सलाम नमस्ते में काम करना शुरु किया था। (यहां यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि गाजियाबाद से उनके स्थानांत्रण के बाद मेरी उनसे सिर्फ एक ही बार बात हुई है और आपके माध्यम से ही पता चला है कि वो इस समय आजमगढ़ के डीआईजी हैं।)

    और यह सब मैं इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि यदि आप किसी के बारे में दस बुरी बातें कह सकते हैं तो एक अच्छी बात मैं भी कह सकता हूं, कम से कम वो बात जिसे लेकर मैं आश्वस्त हूं।

    रविकुमार अपने कार्य में कितने ईमानदार हैं यह तो वो ही बता सकते हैं जिन्होंने उनके साथ काम किया है लेकिन एक नागरिक के रूप में मैंने जो उनका स्वभाव और कार्य करने का तरीका देखा वो शायद बहुत ही कम अधिकारियों में होता है।

    आपने आरोप लगाया है कि वो महिलाओं का अपमान करते हैं, मैं एक घटना यहां शेयर करना चाहता हूं। गाजियाबाद में ही मेरी एक सहपाठी अपनी कई साथियों के साथ फ्लैट किराए पर लेकर रहती थी। उसका भाई मेरे साथ रूम शेयर करता था। उनके साथ एक लड़की, जो उन लड़कियों में से एक की मित्र थी कई दिनों से रह रही थी। उसकी हालत इतनी दयनीय थी कि वो बेचारी इन सबके सहारे ही समय काट रही थी। फिर कई दिन बाद पता चला कि वो अपना घर छोड़कर आई है। यह जानकारी जब मेरे रूममेट को हुई तो उसने मुझसे मदद मांगी। उसी दिन लड़की के घरवालों को भी यह सूचना मिल गई कि वो गाजियाबाद में रह रही है। लड़की के घरवाले उसे लेने के लिए आ गए थे। जब मैंने उस लड़की से बात की तो उसने मुझे बताया कि उसके परिवार से ही उसे सबसे ज्यादा खतरा है। मैं अपने रूम मेट के साथ शिप्रा मॉल गया जहां उसके परिवार वाले आए हुए थे। वो बराबर उन लड़कियों पर उस लड़की को छोड़ने का दवाब बना रहे थे और लड़की यह गुहार लगा रही थी कि उसे किसी भी तरह से बचा लिया जाए। रात के करीब दस बज गए होंगे। मैंने फोन पर उस लड़की को समझाने की काफी कोशिश की लेकिन वो यही कहती रही कि अपने परिवार वाले के साथ नहीं जाएगी। चूंकि बाकी वहां रहने वाली लड़कियां भी उसकी सीधी तौर पर मित्र नहीं थी इसलिए वो भी किसी तरह का खतरा नहीं उठाना चाहती थी और इस समस्या से किसी भी तरह निजात चाहती थी। रात के करीब १२ बज गए। जब कुछ नहीं सूझा तो मैंने गाजियाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के नंबर पर मैसेज छोड़ दिया। ठीक दो मिनट बाद मेरे पास कॉल आया। ये रविकुमार लोकू जी ही थे। वो मुझसे बात करते रहे। जब तक मैंने बात पूरी की पुलिस की एक जीप शिप्रा मॉल आ चुकी थी। उन्होंने लड़की और उसके परिजनों के बीच तभी सुलह कराई। बाद में मैंने पता करा कि वो लड़की अपने घर चली गई है और सुरक्षित है।

    जरा सोचिए जो व्यक्ति मात्र एक मैसेज करने पर एक महिला की मदद कर सकता है क्या वो ऐसा हो सकता है जैसा आपने लिखा। इसके बाद मैं अपने रेडियो के शो में उन्हें बुलाया। कई बार उनसे मिलने का मौका मिला। एक बार गाजियाबाद में उनके सरकारी आवास पर गया। वहां खड़े संतरी ने मुझसे कहा कि उसने अपने जीवन में इतना ईमानदार और कर्मठ अधिकारी नहीं देखा है। और वहां मुझे यह भी पता चला कि रविकुमार जी अपनी सैलरी से हर महीने गरीबों के लिए एक निश्चित दान करते हैं।

    जिस प्रकरण की आप बात कर रहे हैं उससे भी मैं वाकिफ हूं। इस प्रकरण का पता चलते ही मैंने भी रविकुमार जी को फोन किया था। जहां तक इस पूरे मामले का सवाल है, मेरे ख्याल से (यह सिर्फ मेरा व्यक्तिगत आंकलन है) रविकुमार जी का उससे कोई सीधा संबंध नहीं होगा।

    और किसी भी अधिकारी के बारे में ऐसा लिखने से पहले आपको पूरे पुलिस सिस्टम को समझना पड़ेगा। पुलिस की कार्रवाई का तरीका ही यह है और दुर्भाग्यवश हमने उसे स्वीकार भी कर लिया है। चूंकि हमने इस तरीके को स्वीकार कर लिया है तो पुलिस भी हम पर यह तरीका सौंप रही है। ऐसे मामले में (जो कि उत्तर प्रदेश के हर थाने में घटते है) किसी अधिकारी के खिलाफ व्यक्तिगत हो जाने के बजाए लड़ाई पूरे सिस्टम से लड़नी चाहिए।

    यदि हम व्यक्तिगत हो जाते हैं तो हम भी उतने ही गलत है जितने की पुलिसवाले। यह लंबी लड़ाई है जो पूरे पुलिस सिस्टम के खिलाफ होनी चाहिए। किसी की मां के साथ ऐसी घटना के बारे में सुनकर हमारा खून ऐसे ही खौलना चाहिए जैसे यह हमारी अपनी मां के साथ हुआ है। मेरा खून तो खोला था…और खोलता है और खोलता रहेगा…और शायद मेरे जीवन के उद्देश्यों में से एक अब पुलिस सुधार भी हो लेकिन… हमेशा यह ध्यान रखना है कि यह लड़ाई सिस्टम के खिलाफ है… व्यक्तिगत नहीं।

  2. मदन कुमार तिवारी

    August 15, 2011 at 5:48 pm

    अगर यह थाने पर बैठानेवाली घटना यशवंत जी की मां वाली घटना है तो मैं भी उससे वाकिफ़ हूं । वह पुलिसकी गुंडागर्दी का चरम था। यह दिलनवाज पाशा महोदय जो लोकू की चमचागिरी कर रहे है , उन्हें यथार्थ का ग्यान नही है । यशवंत की मां वाली घटना पुरी तaह गैरकानूनी थी । वह अत्याार था पुलिस का। नियमत: जेल होनी चाहिये थी पुलिस वाों की । अगर यह वही लोकू है तो इसे मिला पुरुस्कार अपमान है देश कका ।/ आप मुझे स्पष्ट राष्ट्रपति को लिखुंगा कि गुंडे को पुरस्कार क्यों।

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