देहरादून। पत्रकार से सूचना आयुक्त बने प्रभात डबराल के उत्तराखंडी प्रेम को लेकर राज्य के मीडिया हलकों में एक तल्ख बहस चल रही है। कहा जा रहा है कि डबराल एक ऐसे प्रवासी पंछी हैं जो अपना बुढ़ापा काटने के लिए उत्तराखंड चले आए हैं। ऐसे में अब प्रभात को ही साबित करना होगा कि उन्होंने महज बुढ़ापा काटने भर के लिए दिल्ली से देहरादून के लिए उड़ान नहीं भरी है। वे ऐसा कर पाते हैं या नहीं, यह समय बताएगा।
देश के कई मीडिया संस्थानों में अहम पदों पर काम कर चुके पत्रकार प्रभात डबराल मूलरूप से उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जनपद के कोटद्वार शहर के बाशिंदे हैं। प्रभात ने अपने पत्रकारीय जीवन के तीन दशक से ज्यादा का वक्त दिल्ली जैसे महानगरों में गुजारा है। एकाएक राज्य की भाजपाई सरकार के आंखों के तारे बने डबराल को पिछले दिनों राज्य सूचना आयुक्त की कुर्सी थमा दी गई। प्रभात को ऐसा क्या लगा कि उत्तराखंड को उनकी सेवाओं की दरकार है? वाम समर्थक पारिवारिक पृष्ठिभूमि और खुद अपने छात्र जीवन में वामपंथ के नजदीक रहे प्रभात डबराल को निशंक सरकार द्वारा गले लगाए जाने से भी राज्य में कई लोग आश्चर्यलोक में उलझे हुए हैं। हालांकि उन्हें करीब से जानने वाले बताते हैं कि एक पत्रकार के तौर पर उनकी समय-समय पर विभिन्न मुददों पर अलग-अलग राजनीतिक विचारों से मेल-मिलाप रहा है। ऐसे में बहस के कई कोण निर्मित होते हैं।
उत्तराखंड में इन दिनों इस पर कई तरह से बहस चल रही है। वरिष्ठ पत्रकार एस राजेन टोडरिया ने
अपने एक आलेख में कहा है,‘ मुख्यमंत्री ने लगे हाथ अपने पसंद के पत्रकार का पुनर्वास कर न्यूज चैनल में रहते हुए उनके द्वारा की गई ‘निशंक भक्ति’ के लिए उन्हें उपकृत कर दिया है।’ टोडरिया आगे कहते हैं,‘ प्रभात डबराल की नियुक्ति पहले से ही तय थी। उनकी कई सेवाओं के लिए उन्हें उपकृत किया जाना था। वह ऐसे प्रवासी पंछी हैं जो अपना बुढ़ापा काटने के लिए उत्तराखंड आए हैं। उत्तराखंड के लिए उनका योगदान शोध का विषय है।’इसके साथ ही टोडरिया, दलित या किसी ठाकुर के सूचना आयुक्त न बनाए जाने को लेकर भी सवाल उठाते हुए आयोग में एक नए किस्म का वणाश्रमी सिस्टम लागू होने की बात कहते हैं। दलित के सवाल पर उनका यह तर्क समझ में आता है कि सूचनाधिकार के मामले में जागरूकता की सबसे ज्यादा जरूरत शिल्पकार जातियों को ही है। क्योंकि उनसे जुड़ी योजनाओं में ही सर्वाधिक भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़ा है। पर सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक तौर पर भारतीय समाज व्यवस्था में अच्छी खासी दखल रखने वाली ठाकुर जातियों को दलितों के समक्ष रखने का उनका तर्क गले नहीं उतरना। वहीं, वरिष्ठ पत्रकार संजय कोठियाल ने भी अपने एक आलेख में सूचना आयुक्तों के चयन पर असंतोष जाहिर किया है। कोठियाल सवाल करते हैं कि क्या कांग्रेस और भाजपा को इस राज्य में काबिल लोग नजर नहीं आते?
दरअसल, इन सवालों और शंकाओं के पीछे उत्तराखंड गठन के वक्त से एक के बाद एक कांग्रेस और भाजपा सरकारों ने जिस तरह राज्यसभा में प्रतिनिधि भेजने का मामला रहा हो या फिर हेमा मालिनी जैसे फिल्मी दुनिया के चमकदार चेहरों को ग्लैमर के मारे उनकी खातिरदारी के लिए पलक-पावड़े बिछाने का, वह हैरान करने वाले रहे हैं। सरकारों के ऐसे कुछ फैसले रहे हैं जो उत्तराखंड निर्माण आंदोलन की बुनियादी अवधारणा से मेल नहीं खाते हैं।
लेखक दीपक आजाद हाल-फिलहाल तक दैनिक जागरण, देहरादून में कार्यरत थे. इन दिनों स्वतंत्र पत्रकार के रूप में सक्रिय हैं.
ramesh singh
November 17, 2010 at 3:52 am
ye rajan todariya kaun hai??? wahi na jo do saal se nishank ke chakkar kat raha tha taki wo OSD bana diya jaye… Nishank ne bhav nahi diya to ab apne tuchhaipan ko jag jahir karte hue chand par thook rah hai..aur kaun kahta hai prabhat dabral pravasi panchi hai…sadhna news uttarakhand aur sahara news uttarkhand kiski dain hai?….pahad ke pachason patrakar hain jinhai prabhat ji nai channels aur akhbaron mai kam karke naam kamane ka awsar diya…mai chahunga ki wo sab aur baki log bhi is thread mai kuch na kuch likhain taki todaria jaise ghatiya logon ko muhtor jabab diya ja sake…prabhat ji ka uttrakhand ka information commissioner banana hamare liye samman ki baat hai….Nishank ne jo do char kaam achchai kiye ye unme sai ek hai…
mahesh pande
November 17, 2010 at 4:07 am
kamal hai ji….jab tak prabhat dabral delhi mai thai to unpar Pahadwad failane ka arop lagta raha…aur ab jab wo uttarakhand gaye hain to do-char tatppoonjiye unpar keechad uchhalne lagai hain….par prabhat ji aap chinta na karo….pretatmaon ki cheetkar se dukhi honai ki zaroorat nahi hai….aap to bas lagay raho…pahad aapka swagat karta hai….
chandan
November 17, 2010 at 11:31 am
prabhat je ke bare me janne ke liye is link ko bhi padhe. taki jyada bharam na rahe
http://www.hillwani.com/ndisplay.php?n_id=352
gopal sharma
November 17, 2010 at 12:42 pm
मननीय न्यिांक के कुछ चमचे उंचा बोलते हैं। टोडरिया जी को नहीं जानते तो लानत है आपकी पत्रकारिता पर। टोडरिया वह हस्ती है जो उत्तराखंड से पहले हिमाचल में पत्रकारों का भगवान मानी जाती थी। यकीन नहीं तो हिमाचल के किसी भी पत्रकार से पूछ लीजिए इससे भी बढ़कर अमर उजाला के मालिक अतुल महे्यवरी इसका बेहतर जवाब दे सकते हैं। श्री टोडरिया हिंदुस्तान के सबसे बड़े अखबार दैनिक भास्कर के स्थानीय संपादक भी रह चुके हैं। अपनी दो-चार खबरों को एक छोटे से साप्तहिक जनपक्ष टुडे में प्रका्ियात कर न्यिांक की चूलें हिलाने वाले टोडरिया के प्रति हर उत्तराखंडी को नतमस्तक होना चाहिए क्योंकि न्यिांक महोदय की पोल जितनी ईमानदारी से टोडरिया जी ने खोली है उतनी हिम्मत आज से पहले कोई पत्रकार उत्तराखंड में कभी नहीं कर पाया। रही बात प्रभात डबराल की तो वह कैसे व्यक्ति हैं यह हिमाचल के मुख्यमंत्री धूमल जी से पूछिए, उत्तराखंड में जहां डबराल साधना न्यूज़ में न्यिांक का गुणगान कर रहे थे वहंी हिमाचल में वे मुख्यमंत्री धूमल के खिलाफ उलजुलूल खबरों का आंदोलन छेड़े हुए थे। खैर डबराल जी की न्यिांक भक्ति काम आई उन्हें बहुत, बहुत मुबारक।
Gopal sharma
mahendra
November 18, 2010 at 3:43 am
Ye deepak azad kaun hai…kab tha dainik jaagran me??? oh, yad aaya, ye wahi mahanubhav hain jinko jagran se nikaal diya gaya…lagta hai ki ab ye patrakaro ke khilaf aawaz utha rahe hain…bhai deepak ji hosh me aao…pahad me roti kha rahe ho to uska samman karo…Prabhat Dabral jaisi hasti pe bolna aapki haisiyat nahi hai…Badi cheejo ko chod do aur aapna pet bharo…dainik jagran ne aapko kyo nikaala, ye yad rakho…Prabhat Dabral hamesha pahad ke liye kaam karta raha…aaj wo waha ka soochna aayukt bana hai to pahad khush hai…aap pahad ke nahi ho..pahad ko chhod do aur apne ghar laut jaao…
urmi
November 18, 2010 at 3:47 am
Rajan todariya patrakar hain…mai unki izzat karta hu..par ye sahi hai ki pahle to unhone Prabhat Dabral ke chakkar kaate naukri ke liye aur fir Nishank ke….Prabhat dabral ne Todariya ko naukri bhi di par Nishank ne bhaga diya…ye meri bhi samajh me nahi aa raha hai ki ye Deepak Azad kaun sa patrakar hai jo Bhadas jaise Ghatiya portal par aalekh likh raha hai….ye theek sa patrakar hota to kisi media house me hota ya fir naami freelancer hota…ye to naukri se hath dho kar logo par tippaniya kar raha hai…ghatiya kaam mat karo deepak bhai….
abhash
November 18, 2010 at 3:50 am
PRABHAT DABRAL UTTARAKHAN KA HAI…AUR HUM SABKO UN PAR NAAZ HAI…JAI HO NISHANK KI JISNE ITNA KAABIL INSAAN KHOJA AUR SOOCHNA AAYUKT BANAYA…PRABHAT DABRAL UTTARAKHAN KI MAHAAN BIBHOOTIYO ME SE YEK HAIN…
hitesh
November 18, 2010 at 6:11 am
राजन टोडरिया वही हैं जिनको प्रभात डबराल ने उत्तराखंड हिमाचल का स्टेट हेड बनाया था…आज वही टोडरिया लेख लिख रहे हैं…वैसे मैंने उस लेख को पढ़ा तो नहीं पर टोडरिया जी की लेखनी पढ़ी है, जो दमदार कभी नहीं रही. जहां तक प्रभात डबराल की बात है तो वो विशुद्ध पहाड़ी व्यक्ति हैं और पहाड़ के लिए अब उनको ज्यादा काम करने का मौका मिला है। वे निसंदेह ही कर्मठ और लायक इंसान हैं. जहां तक बात इस लेख को लिखने वाले आजाद जी की है तो उनको हम नहीं जानते. भड़ास में ही खबर पढ़ी थी कि वे दैनिक जागरण में थे और अब स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहेहैं नौकरी से निकाले जाने के बाद. अच्छा धंधा अपना रखा है भाई. आजाद जी आप तो पहाड़ के रहने वाले नहीं हैं ना. फिर क्यों चले गए हो वहां पहाड़ को कुरेदने. प्रभात डबराल के बारे में टिप्पणी करने से अच्छा है कि आप अपनी रोटी का जुगाड़ खोजो और अपने बच्चे पालो.
mahesh pande
November 18, 2010 at 11:41 am
dekh lo hillwani mai kya likha hai…..
मुख्य सूचना आयुक्त एन एस नपल्च्याल होंगे. प्रभात डबराल का नाम बताया जाता है कि लंबे समय से चर्चा में था. लेकिन उनको नज़दीक से जानने वाले कई लोग ऐसे भी थे जिन्हें इस बात की कानोंकान ख़बर नहीं थी वो ऐसा कोई फ़ैसला करने वाले हैं. उनका ये फ़ैसला इसीलिए एक नज़र में जितना आश्चर्य जगाता है उतना ही इस महत्व को भी रेखांकित करता है कि उत्तराखंड लौटकर सूचना में अहम ज़िम्मेदारी निभाने का काम प्रभात डबराल ने किसी दीर्घ चिंतन के बाद स्वीकार किया होगा.
क्षेत्रीय चैनलों के विकास और उन्हें एक विराट उपस्थिति के साथ पेश करने का श्रेय डबराल को जाता है. इस लिहाज़ से वो मास मीडिया के एक ऐसे विलक्षण प्रतिनिधि रहे हैं जिसके पास क्षेत्रीय और स्थानीय अस्मिता के उभार को समझने की तीक्ष्ण दृष्टि थी. उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, झारखंड जैसे इलाक़ों में जो कुछ चुनिंदा वजहों से ही देश के नक्शे पर जगह बना पाते थे वे अब टीवी के ज़रिए अपनी अखिल भारतीय मौजूदगी दर्ज करा पाने में सफल रहे हैं. वे भी अब घटना प्रदेश बने हैं.
ये वे इलाके थे जिन्हें सांस्कृतिक सजधज और पारंपरिक रोमान प्रतीकों के तौर पर देश की मुख्यधारा में सजावटी सामान की तरह पेश किया जाता रहा था. जनांदोलनों और इन समाजों की स्थानीय अंगड़ाइयों, हलचलों और बीहड़ घटनाओं ने इस रोमान को तोड़ने की कोशिश की. और इन जनांदोलनों के लिए राजनीति से इतर समाज और मीडिया में एक गलियारा बना देने वालों में प्रभात डबराल का नाम अग्रणी लोगों में शामिल है. वो क्षेत्रीय टीवी चैनलों की सामर्थ्य को समझने वाले पहले टीवी पत्रकार बने.
उस सामर्थ्य का सर्वोत्तम इस्तेमाल करने वाले पहले पत्रकार भी वही हैं. दशरथ मांझी ने झारखंड के पास एक पहाड़ तोड़कर कहा था कि उन्हें कभी नहीं लगा कि कोई पहाड़ किसी मनुष्य से ऊंचा हो सकता है. अलग संदर्भ में कही गई ये बात उस जीवट और दुधुर्ष ऊर्जा की गवाह है जो एक असंभव से दिखते किसी काम को पूरा करने के विरल ख़्वाब में बहती रहती है. ऐसे समय में जब उदारवादी बाज़ार संस्कृति अपने स्तर पर ही सब कुछ निर्मित और पेश कर रही है उन आवाज़ों के लिए ज़ाहिर है जगह सिकुड़ती जा रही है जो भारत जैसे देश के किनारों में रहने वालों की आवाज़ें हैं. वे हाशिए के लोग हैं.
शहर कस्बे और गांव तक खिंचे हुए इन हाशियों को एक समांतर सक्रिय दुनिया और एक रचनात्मक मुख्यधारा बना देने का काम ज़ाहिर है कठिन है लेकिन मास मीडिया जैसे उपादानों के ज़रिए ये काम संभव किंचित संभव हो पाया है. प्रभात डबराल के अनुभव बताते हैं कि उन्होंने ये काम एक बड़ी हद तक किया है. और टीवी के पर्दे पर एक साधारण व्यक्ति, एक आम इंसान की आम ज़िंदगी के लिए सम्मानजनक स्पेस मुहैया कराई है. यही उनकी असाधारणता है.
उनके चाहने वालों को उम्मीद है कि उत्तराखंड में सूचना आयुक्त के रूप में जब वो एक अलग किस्म की, विकट और अफ़सरशाही और राजनीति से कहीं न कहीं भिड़ती टकराती हुई पारी शुरू करेंगे तो वो अपनी इसी असाधारणता के साथ करेंगे. प्रभात डबराल अपने करियर में कई बार बहुत चौंकाने वाली स्थितियों में आते रहे हैं. उनसे नाराज़ रहने वाले भी उनसे प्रभावित रहते आए हैं. उनके मुरीदों की संख्या अपार है उनसे ईर्ष्या करने वाले भी कम न होंगे.
सूचना आयुक्त के रूप में उनके उत्तराखंड लौट आने की मीडिया जगत में अलग अलग व्याख्याएं जारी हैं. ऐसा पहले भी उनके साथ हो चुका है. टीवी की भाषा में ही कहें तो इंतज़ार करें और प्रभात डबराल का ये “टच एंड गो” देंखें. ये चैलेंज का “टच” है और अभियान का “गो” है.
-शिवप्रसाद जोशी
ravindra kyushwaha gwalior
November 18, 2010 at 12:56 pm
aajad sir, aapki yaddaasht kharab ho gai hai. media ke pitahama ke liye ye dveshpurn tipani sobha nahi dati .afasos aapko batti nahi mili. kisi patrakar ka is bharsht desh me samman ka walcome karta hun.
gulab singh rawat
November 18, 2010 at 10:57 pm
tuchchai logon ki tuchchi batain!!!!…..are bhai sirf dilli mai kam karne se koi pravasi ban jata hai kya?…fir to sare fauzi bhai paravasi panchi hain..unhai uttarakhand mai wapas nahi aana cahhiye…
prabhat ji nai pahad kai liye do channel nikale…na jane kitnon ki madad ki..uttarkhand mai paida huye…yahin padhai – likhai..aaj bhi kotdwar mai ghar hai…wahan ki bar council aur nagarpalika tak ne unka sarvajanik abhinandan kiya…aur ye dehradoon kai tatpoonjiye kalmghissoo jo marzi aye likh dal rahai hain…
…kuch to sharam karo yaro…jo admi jaan par khelkar chamoli aur uttarkashi earthquek ki khabre laya jinse kendra sarkar cheti, jisne badrinath aur fir kedarnath ke kapat kuhulnai ki LIVE coverage ki parampara shuru ki, jo DD mai kam karne kai bawazood uttarakhand andolan ki coverage karta raha aur DD par dikhata raha… usee par apni bhadas nikal rahai ho…thooknai ki beemari hai to kahi aur thooko bhai, chand par kyo thook rahai ho…..chee chee..kaisai kaisai log hain hamare yahan…jalankhor bhadasi…
>:(:'(
M.C.Bhatt
November 19, 2010 at 2:51 pm
Satta ke taluwe chatnewale jitni bhakti se Prabhat Dabaral aur Nishank ka gungaan kar rahehai usase saf hai ki sach marak hota hai. Prabhat Dabral mahaan hain to apni sampati batayen.50 Crores patrkaarita se nahi kamaye jaate. Rahi Rajen Todariya ki baat unka faisla Uttrakhand ki janata par chhod do yaaron. Wo jaanti hai ki such aur jhooth kya hai.
Himmat Singh Rawat
November 20, 2010 at 10:04 am
बहुत दिनों से प्रभात डबराल के पक्ष में भाटों का मंत्रोच्चार सुन रहा थां सोचा कि इस तरह के घटिएपन पर लिखना बेकार हैं। पर अब तो हद हो गई है। ऐसा लग रहा है कि प्रभात डबराल ने जैसे उत्तराखंड के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दियां। अपने 40 साल के पत्रकारीय जीवन में एक लाइन न लिखने वाला यह पत्रकार जैसे पत्रकारिता का स्तंभ पुरुष है। भाई लोग उसे खबरिया चैनलों का पित्पुरुष ऐसे घोशित कर रहे हैं जैसे वह एयपी सिंह रहा हो। इसलिए जरा इन महाशय का इतिहास बांच लिया जाय। प्रभात डबराल जब दिल्ली आए तो जनयुग में उपसंपादक रहे। वहां उन्होने एक लाइन ऐसी नहीं लिखी जिससे यह पता लगे िकवह वामपंथ के पक्ष में हैं।इस दौरान वह कांग्रेस नेता हरकिशनलाल भगत के संपर्क में आए। चमचागिरी में माहिर डबराल उनके दरबारी हो गए। उन्होने इनकी पत्नी को नगर निगम में नौकरी लगवाया। भगत जब बाद में केंद्रीय मंत्री हुए तो इनको दूरदर्शन में ले आए। ‘‘भगत भक्ति’’ से पॉश कालोनी में मकान भी मिल गया।उसके बाद ये सज्जन सहारा समय में गए। आज भी वहां के पत्रकार इन्हे बदतमीज और गालीगलौच करने वाले बॉस के रुप में जानते हैं। विपिन धूलिया समेत जो काबिल लोग थे उन सबको इन्होने साइड लाइन कर दिया और अपने चमचों को आगे बढाया। चुनाव आया तो ये महाराज पेड न्यूज का फंडा लेकर आए।जिस पेड न्यूज पर पूरे समसचार चैनलों में हल्ला मचा हुआ है उसके जनक यही हैं। भारत की पत्रकारिता में खुलेआम रिश्वत लेकर खबर प्रसारित करने की बुराई के शिल्पी कोई और नहीं बल्कि यही महापुरुष हैं जिन्होने सहारा श्री को खुश करने के लिए ‘‘पेड न्यूज’’ का धंघा शुरु किया।इनके एक हम प्याला,हम निवाला करीबी पत्रकार हैं जो पूरी दिल्ली में घूम-घूम कर पिछले दो सालों से बता रहे हैं कि पेड न्यूज में पांच करोड़ का घोटाला होने की भनक लगने पर सहारा समय ने इन्हे दरवाजा दिखा दिया। सच तो प्रभात डबराल और सहारा श्री ही जानते होंगे पर दिल्ली के पत्रकार जगत में यह किस्सा महीनों तक गूंजता रहा। इसके बाद ये वामपंथी और सेकुलर पत्रकार साधना चैनल के सर्वेसर्वा बन गए। गौर करें कि साधना चैनल आरएसएस के एक खास स्वयंसेवक रहे व्यक्ति का है और उन्ही राज्यों में एयर हुआ है जो भाजपा शासित हैं। इस चैनल में रहते हुए इन महान पत्रकार ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री निशंक से साधना न्यूज के मालिक की दोस्ती कराई और स्टर्डिया में चैनल के मालिक को पार्टनर बनवाया। बाद में स्टर्डिया जमीन
घोटाले में चैनल के मालिक समेत आरएसएस और बीजेपी नेताओं के नाम मीडिया में उजागर हुए। अब यह मामला हाईकोर्ट में है। ऐसे हैं अपने प्रभात डबराल! अब समझ सकते है कि उन्हे क्यों सूचना आयुक्त बनाया गया।
Himmat Singh Rawat
November 20, 2010 at 10:04 am
बहुत दिनों से प्रभात डबराल के पक्ष में भाटों का मंत्रोच्चार सुन रहा थां सोचा कि इस तरह के घटिएपन पर लिखना बेकार हैं। पर अब तो हद हो गई है। ऐसा लग रहा है कि प्रभात डबराल ने जैसे उत्तराखंड के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दियां। अपने 40 साल के पत्रकारीय जीवन में एक लाइन न लिखने वाला यह पत्रकार जैसे पत्रकारिता का स्तंभ पुरुष है। भाई लोग उसे खबरिया चैनलों का पित्पुरुष ऐसे घोशित कर रहे हैं जैसे वह एयपी सिंह रहा हो। इसलिए जरा इन महाशय का इतिहास बांच लिया जाय। प्रभात डबराल जब दिल्ली आए तो जनयुग में उपसंपादक रहे। वहां उन्होने एक लाइन ऐसी नहीं लिखी जिससे यह पता लगे िकवह वामपंथ के पक्ष में हैं।इस दौरान वह कांग्रेस नेता हरकिशनलाल भगत के संपर्क में आए। चमचागिरी में माहिर डबराल उनके दरबारी हो गए। उन्होने इनकी पत्नी को नगर निगम में नौकरी लगवाया। भगत जब बाद में केंद्रीय मंत्री हुए तो इनको दूरदर्शन में ले आए। ‘‘भगत भक्ति’’ से पॉश कालोनी में मकान भी मिल गया।उसके बाद ये सज्जन सहारा समय में गए। आज भी वहां के पत्रकार इन्हे बदतमीज और गालीगलौच करने वाले बॉस के रुप में जानते हैं। विपिन धूलिया समेत जो काबिल लोग थे उन सबको इन्होने साइड लाइन कर दिया और अपने चमचों को आगे बढाया। चुनाव आया तो ये महाराज पेड न्यूज का फंडा लेकर आए।जिस पेड न्यूज पर पूरे समसचार चैनलों में हल्ला मचा हुआ है उसके जनक यही हैं। भारत की पत्रकारिता में खुलेआम रिश्वत लेकर खबर प्रसारित करने की बुराई के शिल्पी कोई और नहीं बल्कि यही महापुरुष हैं जिन्होने सहारा श्री को खुश करने के लिए ‘‘पेड न्यूज’’ का धंघा शुरु किया।इनके एक हम प्याला,हम निवाला करीबी पत्रकार हैं जो पूरी दिल्ली में घूम-घूम कर पिछले दो सालों से बता रहे हैं कि पेड न्यूज में पांच करोड़ का घोटाला होने की भनक लगने पर सहारा समय ने इन्हे दरवाजा दिखा दिया। सच तो प्रभात डबराल और सहारा श्री ही जानते होंगे पर दिल्ली के पत्रकार जगत में यह किस्सा महीनों तक गूंजता रहा। इसके बाद ये वामपंथी और सेकुलर पत्रकार साधना चैनल के सर्वेसर्वा बन गए। गौर करें कि साधना चैनल आरएसएस के एक खास स्वयंसेवक रहे व्यक्ति का है और उन्ही राज्यों में एयर हुआ है जो भाजपा शासित हैं। इस चैनल में रहते हुए इन महान पत्रकार ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री निशंक से साधना न्यूज के मालिक की दोस्ती कराई और स्टर्डिया में चैनल के मालिक को पार्टनर बनवाया। बाद में स्टर्डिया जमीन
घोटाले में चैनल के मालिक समेत आरएसएस और बीजेपी नेताओं के नाम मीडिया में उजागर हुए। अब यह मामला हाईकोर्ट में है। ऐसे हैं अपने प्रभात डबराल! अब समझ सकते है कि उन्हे क्यों सूचना आयुक्त बनाया गया।
kumar kalpit
November 27, 2010 at 9:58 pm
dabral jee kitne bade kranikari hai yah to unke shuchana aaukat ka pad shabhal lene se hee pata chalta hai.vampanthi vichardhara se juda raha yakati bjp sharkar ki chakari karne laga hai esse hee uski pragatishilta ka pata chalta hai