मैं दो पुलिसवालों को देखती हूं और उनके बीच तुलना करने लगती हूं. एक हैं कांस्टेबल ब्रिजेन्द्र सिंह यादव जो अभी कुछ दिनों पहले सस्पेंड हुए थे और उससे पहले बर्खास्त. शायद जेल भी जा चुके हैं, कई मुकदमे हैं उन पर. मेरी जानकारी के मुताबिक साधारण आर्थिक हैसियत है उनकी. इसके विपरीत मैं देखती हूं पदम सिंह को. कांस्टेबल थे शायद पर आज डिप्टी एसपी हैं. चूंकि साठ साल पूरे हो गए हैं, इसीलिए सरकारी रूप से रिटायर हो गए हैं पर अभी भी नौकरी बढ़ा कर मुख्यमंत्री की सुरक्षा के इंचार्ज बनाए गए हैं.
मैं समझती हूं कि वे उत्तर प्रदेश की ताकतवर मुख्यमंत्री मायावती के सबसे नजदीकी लोगों मे होंगे और निश्चित रूप से उनके कृपापात्र भी. दोनों इन दिनों चर्चा में हैं अलग-अलग ढंग से, अलग-अलग कारणों से. ब्रिजेन्द्र यादव अपनी बगावत के लिए चर्चा में हैं, पदम सिंह अपनी चाकरी के लिए. कुछ ऐसे ही जैसे एक दरबारी कवि का एक आज़ाद शायर से मुकाबला हो. वैसे ही जैसे किसी पालतू जानवर की किसी जंगल में घूमते पशु से तुलना हो और ठीक वैसे ही जैसे एक सौंदर्य में चिकनी-चुपड़ी राजकुमारी और एक नैसर्गिक सौंदर्यवती खानाबदोश को आमने-सामने लाया जाए.
ब्रिजेन्द्र यादव लाख प्रयास कर लें, वे पदम सिंह की औकात का हजारवां हिस्सा नहीं बन सकते. कम से कम सांसारिक दृष्टि से तो कत्तई नहीं. पदम सिंह की एक निगाह पाने को पूरे प्रदेश के बड़े से बड़े अधिकारी, रईस, धन्नासेठ, राजनेता और तमाम दलाल ऐसे पलक पांवड़े बिछाए रहते हैं मानो पदम सिंह की एक मुस्कराहट, उनका एक इशारा, उनकी एक मदद और उनकी एक सिफारिश लोगों की जिंदगियां एक सिरे से बदल सकती हों. मायावती शक्ति की अथाह पुंज हैं और पदम सिंह उस शक्ति के एक बड़े से जेनेरेटर. इसके विपरीत ब्रिजेन्द्र यादव के साथ रहने वाले को इहलोक में कुछ खास नहीं मिलने वाला है. कोई करोड़पति और चीफ सेक्रेटरी उनके आगे पीछे नहीं घूमने वाले हैं. कोई उनके लिए लाखों रुपये की गाड़ी लगा कर शहर घुमाने वाला नहीं है. यानि कुल मिला कर एक मुफलिसी है, संघर्ष है, सामना है.
लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों मुझे इन दोनों में ब्रिजेन्द्र यादव का जीवन ही ज्यादा अच्छा और अनुकरणीय दिखता है. साथ ही यह भी महसूस होता है कि लगातार बीस सालों तक मायावती के साये की तरह घूमने के बावजूद शायद पदम सिंह मायावती के साये से बढ़ कर कुछ नहीं हैं. हज़ारों लोगों ने उनसे खुशामद की होगी, लाखों लोग उनके इष्ट-मित्र होंगे पर मैं अपने आईपीएस पति की दशा-दुर्दशाओं के बल पर यह जानती हूं कि यदि आज इस समय मायावती ने पदम सिंह को अपने पीएसओ पद से हटा दिया तो शाम होते-होते उनको पहचानने वालों की संख्या शायद उंगलियों पर भी नहीं रह जाए. उस पर भी यदि मायावती ने गुर्रा कर यह इशारा कर दिया कि पदम सिंह से दोस्ती का मतलब मायावती की नाराजगी है, फिर तो शायद अपने घर के अलावा पदम सिंह को कहीं बैठने तक की जगह नहीं मिले. वैसे ऐसा कहने के पीछे मेरी यह मंशा कदापि नहीं है कि पदम सिंह को ऐसे दिन देखने को मिले. वैसे भी वे बेचारे मायावती को किसी तरह साध कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं, इसमें हम जैसे लोगों को जलन और कष्ट क्यों होना चाहिए.
लेकिन इसके उलट ब्रिजेन्द्र सिंह जरूर वह आदमी हैं जिनके प्रति मैं दूसरे किस्म के भाव प्रदर्शित कर सकती हूं. मैं उन्हें बहुत नहीं जानती, पर अब तक समाचार साधनों से और व्यक्तिगत तौर पर उनसे मेरा जो भी संपर्क हुआ है उससे मेरा यही मत है कि जेल जाने, नुकसान पाने, कष्ट झेलने, जलालत मोल लेने से ले कर हर प्रकार तक की परेशानियों के डर के बावजूद बहुत सारे लोग फख्र के साथ ब्रिजेन्द्र यादव के साथ रहे. मुझे इस बात की खुशी होती है कि मुझे भी ब्रिजेन्द्र यादव का इंटरव्यू लेने और उनकी बात सामने रखने में मदद करने का मौका मिला. फिर ब्रिजेन्द्र यादव जब सस्पेंड कर दिए गए तो मुझे भी कष्ट हुआ था. कारण मुख्यतया यही है कि ब्रिजेन्द्र ने अपने हितों से आगे बढ़ कर, अपना खुद का स्वार्थ मात्र नहीं देख कर एक समुदाय के लिए काम किया और एक विशेष मकसद के लिए संघर्षरत रहे. उनकी लड़ाई व्यवस्था से है. उनकी लड़ाई कतिपय मूल्यों और मुद्दों के लिए है. उनका संघर्ष एक खास उद्देश्य की सफलता के लिए.
मैंने पहले भी कई बार कहा है कि उत्तर प्रदेश में अधीनस्थ पुलिस कर्मियों की स्थिति में व्यापक सुधार की जरूरत है. यह बिलकुल सच है कि उनके काम के घंटे, उनकी काम करने की दशा, उनका कार्यक्षेत्र और कार्यकारी माहौल, उनकी बुनियादी सुख-सुविधाएँ ऐसे गंभीर मुद्दे हैं जिन पर आज खुल कर बहस करने की जरूरत है. आज आवश्यक हो गया है कि बदलते समय के सापेक्ष लोग यह समझें कि पुलिस का सिपाही कोई आईपीएस और पीपीएस अफसरों की निजी मालियत नहीं है बल्कि उतना ही सरकारी सेवक है जितने की वे हैं. ब्रिजेन्द्र यादव ने इसी बात को सामने ला कर आम जनता के सामने रखा है.
शायद यही कारण रहा कि जब उन्होंने मुझे अपने कल्याण संस्थान का वरिष्ठ संरक्षक बनने की बात कही तो मुझे अंदर से प्रसन्नता हुई और मैंने इसे तत्काल स्वीकार भी कर लिया क्योंकि यदि इस अभियान में मैं भी कुछ सहयोग कर सकूंगी तो मुझे बेहद खुशी होगी. शायद यही बुनियादी अंतर है ताकतवर पदम सिंह और संघर्षशील ब्रिजेन्द्र यादव में. चूंकि मेरे पति पुलिस विभाग में हैं इसीलिए आंतरिक तौर पर दोनों के लिए अपनी ओर से शुभेच्छा रखती हूं पर साफ़ जानती हूं कि मायावती का जूता साफ़ करने को बाध्य पदम सिंह और डीजी, एडीजी के खिलाफ मोर्चा खोले ब्रिजेन्द्र यादव में किसकी ओर अपने आप को पाती हूं. मैं समझती हूं कि यही सोच ज्यादातर अन्य लोगों की भी होगी.
डॉ नूतन ठाकुर
संपादक
पीपल’स फोरम, लखनऊ
omdev
February 9, 2011 at 10:15 am
nutan ji mujhe lagta hai ki logon ko ek dalit cheif minister ke joote saff karne par presaanee ho rahi hai.
jabki desh mai netaon ke joote saff karne ki prithaa sadiyon se chalee aa rahi hai. jiski suruaat bhi congress ne hi ki thee. amethi mai kal ek bujurg mahila rahul ke pair chhoo rahi thee tab kisi ne shor nahi machaya.
govind goyal,sriganganagar
February 9, 2011 at 12:00 pm
pair chhukar pranam karne or jute sa karne me antar hai. ye sab to hamare sri ganganagr ke ek bhajan mandal me hota hai. kai log khud bajrang bali bane huye hain.
sudhanshu Kumar Tiwari
February 9, 2011 at 1:46 pm
नुतन जी आप का विचार अत्यन्त ही उत्तम है तथा मैं आपके साथ सहमत हूँ । संघर्ष का रास्ता तो अत्यन्त ही दुरूह है परन्तु इसमें आत्म सम्मान है तथा एक शान है ।
shailendra Mishra, Gonda
February 10, 2011 at 12:10 am
nutan g ab ummid hai aapki aankhen khul gai hogi.
Ajit
March 29, 2011 at 10:01 pm
Mayawati aur dalit..