: पंडित जी की अदभुत गायकी को सुनकर उन्हें श्रद्धांजलि दीजिए… सुनने के लिए नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें… : कुछ जाने क्यों नया साल मनहूस सा लगने लगा है. अतुल माहेश्वरी की मौत से जो शुरुआत हुई तो एक के बाद एक बुरी खबरें ही आ रही हैं. बालेश्वर चले गए. कई पत्रकार साथियों की मौत हुई, कइयों का इलाज चल रहा है तो कुछ के साथ पारिवारिक ट्रेजडी हुईं.
एके हंगल साहब के अभावों से जूझते हुए जिंदगी के लिए संघर्ष करने की सूचना अखबारों से मिली, और अब पंडित भीमसेन जोशी के गुजर जाने की खबर मिली है. अभी कुछ देर पहले फोन पर भिलाई से दिनेश चौधरी ने पंडित जी के गुजर जाने की सूचना दी. भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी. शास्त्रीय संगीत को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाले पंडित भीमसेन जोशी की आवाज अब हमेशा के लिए खामोश हो गई है. आज सुबह 8.05 बजे पुणे के एक अस्पातल में 89 साल की उम्र में उन्होंने देह त्याग दिया. वे दो वर्षों से बीमार चल रहे थे.
पंडित जी पिछले कुछ दिनों से जीवन-रक्षक प्रणाली पर थे और हैजे़ से लड़ रहे थे. बढ़ती उम्र के चलते हैज़े से लड़ते-लड़ते उनके गुर्दे और फेफड़ों ने काम करना बंद कर दिया था. इसके बाद तुरंत ही डॉक्टरों ने उन्हें वेंटीलेटर पर रख दिया था. हालांकि काफ़ी कोशिशों के बाद भी उनकी स्थिति में सुधार नहीं हो रहा था और आख़िरकार उनकी मृत्यु हो गई. पंडित भीमसेन जोशी की मौत से संगीत की दुनिया में शोक की लहर दौड़ गई है. पंडित जी के जीवन के बारे में जो कुछ जानकारी अन्य वेबसाइटों, चैनलों आदि से मिली है, वो इस प्रकार है–
4 फ़रवरी 1922 को कर्नाटक के गडक शहर के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे भीमसेन जोशी जोशी ख्याल गायकी और भजन के लिए काफी मशहूर थे. उनकी गायकी ने किराना घराने को नई बुलंदियों तक पहुंचाया. महज 11 साल की उम्र में गायकी के लिए उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था. जब वह घर पर थे तो खेलने की उम्र में वह अपने दादा का तानपुरा बजाने लगे थे. संगीत के प्रति उनकी दीवानगी का आलम यह था कि गली से गुजरती भजन मंडली या समीप की मस्जिद से आती ‘अजान’ की आवाज सुनकर ही वह घर से बाहर दौड़ पड़ते थे. उन्होंने कई फ़िल्मों में भी गाना गाया जिसमें बसंत बहार (1956), तानसेन (1958),बिर्बल माई ब्रदर (1973), अनकही (1985) प्रमुख है.
भीमसेन जोशी के पिता गुरुराज जोशी एक स्कूल शिक्षक थे. उनके गुरु सवाई गंधर्व अब्दुल करीम ख़ान के मुख्य शिष्य थे. अब्दुल करीम ख़ान ने ही भारतीय शास्त्रीय संगीत के किराना घराने की स्थापना की थी. भीमसेन जोशी 1936 में धारवाड़ पहुंचे जहां सवाई गंधर्व ने उन्हें अपना शिष्य बनाया. किराना घराने की एक और जानी मानी हस्ती गंगुबाई हंगल ने इनके साथ ही संगीत की शिक्षा ली. 1943 में वो मुंबई पहुंच गए और एक रेडियो आर्टिस्ट की हैसियत से काम किया. सिर्फ़ 22 साल की उम्र में उनका पहला अलबम लोगों के सामने आया. संगीत की दुनिया में तो उन्होंने एक से एक कीर्तिमान स्थापित किए लेकिन 1985 में बने वीडियो ”मिले सुर मेरा तु्म्हारा” की वजह से तो वो भारत के हर घर में पहचाने जाने लगे. ये वीडियो उनकी ही दिलकश आवाज़ से शुरू होता है.
1972 में उन्हें पद्म श्री से नवाज़ा गया और उसके बाद से पुरस्कार मिलने का सिलसिला जारी रहा. संगीत की दुनिया का शायद ही ऐसा कोई पुरस्कार है जिससे उन्हें सम्मानित नहीं किया गया हो. 2008 में भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से उन्हें सम्मानित किया. पंडित भीमसेन जोशी उन महान कलाकारों में से थे, जो अपनी सुरमयी आवाज से हर्ष और विषाद दोनों ही भावों में जान डालकर श्रोताओं के दिल में गहरे तक बस चुके थे. वर्तमान समय में जोशी को सर्वाधिक लोकप्रिय हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायक बनाने में निर्विवाद रूप से उनकी दमदार आवाज की अहम भूमिका थी.
पंडित जी की अदभुत गायकी को सुनकर उन्हें श्रद्धांजलि दें. सुनने के लिए नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें…
Comments on “मनहूस जनवरी भीमसेन जोशी को भी ले गया”
Wakai Maa Saraswati k is varad putra k gaman se Bhartiya Shastriya Sangeet me ek soonapan aa gaya …..
Bhagwan Unki aatma ko shanti de …
THAM GAYE SURO KE DHARA.
shastriya sangeet ke anmol ratan ke nidhan se sangeet shetra ka ek adhayay khatam hua hai. Shri Bhimsen joshiji ki kami ko koi bhi pura nahi kar sakta.
हा यार यशवंत न जाने क्या कारण है , अभी तक बीते साल की मनहुसियत भुत की तरह पीछे लगी हुई है । मैने भी पढा और देखा जोशी जी के बारे में। मर्सिडिज कार के शौकीन , हमलोगों की तरह शराब के दोस्त , मस्त शख्सियत के मालिक । दुआ टीवी पर बता रहे थें । मैं तो वैसे भी म्यूजिक इंडिया आन लाइन पर उनके शास्त्रीय संगीत को सुनता था । चौरसिया की बांसुरी , जगजीत की गजल । मैने दुआ जी से जानने के बाद , अभी एक एक पौव्वा मैक डावल का मंगाया और बैठा हूं , सुन रहा हूं। उनको तुम्हारे लिंक से । चलो जाना तो सबको है , लेकिन खुशदिल कलाकर की मौत तकलीफ़ देती है । मेरा शत शत नमन ।