यश जी प्रणाम, टेप सुने, बरखा वीर के उत्तर पढ़े. ज्यादा कुछ कहने को है नहीं. बहुत बड़ा पेट है इस भीड़तंत्र का, ये मसला भी पचा लिया जायेगा. वैसे भी भोपाल गैस कांड पे आये अदालत के निर्णय के बाद से ही मैंने अपने को इस देश का नागरिक मानना छोड़ दिया है. देशभक्ति अब अपील नहीं करती. जीवन चल रहा है, चलता रहेगा, मौत आएगी आ जायेगी. ग़म और भी हैं, खुशियाँ और भी हैं, जीवन के आयाम और भी हैं.
किसी को फुर्सत नहीं, कोई पूछता नहीं, लोकतंत्र में पिछले सात सालों से एक जनाधारविहीन अप्रत्यक्ष्य रूप से निर्वाचित व्यक्ति “प्रधानमन्त्री” क्यों बना हुआ है. क्या खासियत है इस आदमी की. ये चेहरा है या मुखौटा. ग़ज़ब ये है कि पार्टी जिसे सर्वाधिक जनाधार वाला नेता बताती है वो जनता के बीच ही नहीं आता. Everything is so well managed.
टीवी खोलो तो फूहड़पन के हंसी मज़ाक के कार्यक्रम या ये घोटालेनामे. अभी टीवी देख रहा था. “Comedy Circus Ka Jadoo” जो के एक हंसोड़पने का वाहियात शो है, उसका प्रोमो आ रहा था. मज़ा लीजिये छिछोरपंती का :
लड़की: मेरा पति मुझपे ध्यान नहीं देता..
हंसोड़: अच्छा ये बताओ तुम्हारा फिगर क्या है….
लड़की: 36-24-56
हंसोड़: क्या बताया…लास्ट में क्या बताया…
लड़की: 56…56…
हंसोड़: इतनी जगह है तो रेस्टोरेंट क्यों नहीं खोल लेती….
ये हंसोड़ एक छोटा आदमी है इसका छिछोरपन दिख जाता है. टाटा-राडिया-राजा-सोनिया-मनमोहन-बरखा-वीर इत्यादि बड़े लोग हैं, इनके छिछोरपन में एक अंदाज़ है, जो हमारे मन को ही नहीं हमारे पेट, हमारे पूरे व्यक्तित्व को पीड़ित तो करता है पर आसानी से दीखता नहीं …….
ये नहीं सुनेंगे किसी की. हमारे यहाँ एक कहावत चलती है “नंग बड़ा परमेश्वर से” ….तो भैया जय हो…
बहुत दिनों के बाद आपको लिख रहा हूँ बहुत अच्छा लग रहा है. समय मिले तो दो शब्द लिख भेजिएगा. बाकी सब मंगल है.
लेखक कुशल प्रताप सिंह सोशल एक्टिविस्ट एवं शिक्षक हैं.
Comments on “मैंने अपने को इस देश का नागरिक मानना छोड़ दिया है”
Kushal ji, your disappointment is deeply felt. Please express more to deepen the unrest, to reinvent souls, to rekindle conscience and to cause social tsunami.
sir, gd afternoon.
desi kahavat ke jariye apne is desh ki dasha ka marmic chitran kiya hai vo kabile tarif hai. mai sonchta hu ki vo din dur nahi jab big boss or rakhi ke insaf aise reality show ke jariye ye desh dheere dheere apni sanskrati aur sabhyata ko bhula kar puri tarah se pachimi chadar odh lega. but most imp is this ki kaira ab man nahi lagta in galiyan me
फकीरी की भी शान है उसका मज़ा राजनेता क्या जानें.
आम आदमी की लानत-मलानत राजनेता क्या जानें.
Bahut khub likha ! Shaabaash !
प्रणाम कुशलजी, आपकी पीड़ा वाकई विचारणीय है। दरअसल इस देश में कौन जनता का हितैषी है और कौन दोगला? ये फैसला कर पाना बेहद मुश्किल है। देश में चल रहे इन बेतुके व अस्थिर घटनाक्रमों से मेरा दिल भी ये सोचकर आहत है की आने वाली पीढ़ी का आखिर क्या होगा…!
aapke vicharo se lgta hai ki aap desh ki vyavastha se bahut aahat hai.per khud ko aapdesh ka nagrik mane ya na mane ye Matrabhumi aapki Maa hmesha rahegi….. bete kah sakta hai ki wo meri Maa hi….. bt Maa to Maa hoti h.. nirash mat hoiye….. Be positive………. anachar ka ant sunishchit hai
aaz ki dunia sirf kamaane k pichhe padi h sabhi ki jindgi bhagm-bhag ban chuki h.
aise me logo ka dhyan kamane ke tarike pe ni balki kamane pe hai fir kyun n wo kam + eene ka tarika ho. es sab ka jimmedar me sirf tv ke show ko hi ni balki desh me badati berozgari ko maanti hu.