: खून चूसने वाले नेता अभी चेते नहीं… : अन्ना की लड़ाई देश भर के लोगों की लड़ाई में बदल रही है। इसकी वजह भी है। दरअसल, ये लड़ाई जन लोकपाल की लड़ाई से बहुत आगे निकल चुकी है। आजादी के बाद नौकरशाही और नेताओं ने जिस तरह आम आदमी का खून चूसा है…. ये लड़ाई उसी का नतीजा है।
खास बात ये है कि देश भर में आंदोलन की आग फैलने के बाद भी तमाम भ्रष्ट नेता इसका सियासी फायदा उठाने की जुगत भिड़ाने लगे हैं। वे आजाद हिंदुस्तान के इन तेवरों से सबक लेने को तैयार नजर नहीं आते। बल्कि शायद उनकी सोच ये है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उठ खड़े हुए देश की पैरवी का ड्रामा करके वे खुद को ईमानदारों की कतार में खड़ा कर लेंगे। लेकिन क्या हिंदुस्तान के लोग इतने भोले हैं कि सियार की खाल में छुपे भेड़ियों को नही पहचानते ? क्या सिर्फ केंद्र में बैठे बेईमान ही बेईमान माने जाएंगे और राज्य में बैठकर जनता का खून चूसने वालों को जनता माफ कर देगी ? यदि आकंठ भ्रष्टाचार और बेईमानी में डूबा कोई नेता ऐसा मुगालता पाल लेता है, उसकी अक्ल पर तरस ही खाया जा सकता है। अभी एक को निशाना बनाया गया है, कल दूसरों की बारी आएगी।
अन्ना का यह आंदोलन समूचे भ्रष्टाचार और सड़ी गली व्यवस्था के खिलाफ जनता की आवाज है। भ्रष्ट नेताओं और अफसरशाही ने जिस तरह जनता की खून पसीने की कमाई पर डाका डालने और अपनी जेबें भरने को अपना अधिकार समझ लिया है, ये उसके खिलाफ आम आदमी की बगावत है। आम आदमी इस लड़ाई में इसलिए कूदा है कि उसे अन्ना की आवाज में सच्चाई नजर आती है।… और आजादी के बाद पिसते – पिसते नाउम्मीद हो चुके लोगों को अन्ना ने ये दिखा दिया है कि हौसला बुलंद हो, तो जुल्मी के खिलाफ कोई भी लड़ सकता …. लड़कर जीत सकता है। भले ही जुल्मी का कद सरकार जितना ही क्यों न हो।
अब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा है। अब भी हमने खामोशी ओढ़े रखी, तो भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाही का इलाज करना और मुश्किल हो जाएगा। इसी सोच के साथ बच्चा, बूढ़ा, जवान हर कोई सड़क पर आ रहा है। अहिंसा की ताकत एक बार फिर अपना रंग दिखाने लगी है। संसद और कमेटी को आड़ की तरह इस्तेमाल करने वाले ये कैसे भूल जाते हैं कि लोकतंत्र में सारी शक्ति जनता में निहित होती है। कुछ लोगों को अपना नुमाइंदा चुन लेने का अर्थ यह कदापि नहीं हो सकता है कि इससे जनता शक्तिहीन हो गई है। जनता ने किसी को भी चुना है, तो सही तरीके से काम करने के लिए चुना है। हजारों करोड़ के घोटाले करने के लिए नहीं। और न ही घोटालेबाजों को बचाने और आश्रय देने के लिए किसी को चुना या किसी बड़े पद तक पहुंचाया गया है। महज अपने सियासी नफे नुकसान से लिए घोटालों पर पर्दा डालना और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने में आनाकानी क्या कम बड़ा भ्रष्ट आचरण है?
अन्ना की ये लड़ाई पूरे देश में फैल गई है… ये लड़ाई और ज्यादा फैलेगी। तब तक फैलती जाएगी, जब तक भ्रष्टाचार की जड़ न उखाड़ दी जाए। इसी विश्वास के साथ देश के लोग अन्ना बन रहे हैं। अन्ना ने जो मशाल जलाई है, उसे और आगे ले जाना, समय की पुकार है … अपने अधिकारों पर डाकेजनी रोकने के लिए ये एक नितांत आवश्यक उपाय भी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इसकी आंच उन सभी सफेदपोशों को बेनकाब करके उखाड़ फेंकेगी, जो जनता के हितैशी होने का ढकोसला करके जनता का खून चूस रहे हैं। भले ही वे किसी भी राजनीतिक चोले में क्यों न हों।
लेखक सुभाष गुप्ता उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
Comments on “ये हरामखोर बेइमान नेता अन्ना आंदोलन से फायदा उठाने में लग गए”
वेरी गुड अन्ना जी का आंदोलन पूरे भारत और हर आदमी का आंदोलन बन चुका है। सुभाष जी आपने बहुत अच्छा लिखा है। यह आंदोलन किसी एक पार्टी या सरकार के खिलाफ नहीं है। चुनावी रोटियां सेन्कने की कोशिश करने वाले महाभ्रष्ट नेताओं सावधान तुम्हारा खेल जल्दी खत्म होने वाला है। जनता बेवकूफ नही है कि तुम धंधे करते रहो , नियम कानून से खेलते रहो और जनता मूर्ख बनी तुम्हे सराहने वाले चंद पत्रकारों की चापलूसी को सच्च मानती रहे। अब तुम्हारा वक्त आ गया है
Aise Netao ko too beech chorahe mai gin gin kar jute marne chaheye… Sare desh ko barbad karke rakh diya….. per aam jatna bhee too aise bemaan netao ko vote dete hai…..
यहां की जनता पर मत तरस खाइये यहां की जनता जानती है यह नही दूसरा कोई यप पब्लिक है सब जानती है। इस लिए तो चुप बैठी है यहां जाति है धर्म है, उसके बाद कोई और मुद्दा है। यहां तो एक मदारी आ जाय और डमरु बजा दे तो दौ सो लोग अपना काम काज छोड़कर दावा खरीदने लगते है। यह भारत है भइया ऐसे ही थोड़े इस भारत की दुनिया के अन्य देशो में धाक है। यहां सब कुछ अपनी गति से चलता है चिन्ता करने कि जरुरत नही है यहां विकास नही जाति चाहिए ।
subhas ji apne bilkul sahi kahe,,, mai apki bat se sahmat hu. kuchh neta is andolan me koodkar khud ko doodh ka dhula sabit kar rahe hai. jabki hakikat me vo bhi chor hai.
चलो कोई तो आगे आया
आज तक सभी नेता भ्रष्टाचार हटाओ का नारा लगाते-लगाते खुद हट गए लेकिन भ्र्रष्टाचार की जड़ को नहीं काट पाए। गांधीवादी विचारों के अगुआ अन्ना हजारे ने महज एक पखवाड़े के समय में ही पूरे देष को हिला कर रख दिया। देष के जो युवा गांधी बाबा के सिद्धांतों को दरकिनार करते थे आज अन्ना के साथ हैं और अपना प्रदर्षन गांधीवादी तरीके से कर रहे हैं। इस अनूठी लड़ाई के साथ ही कुछ मुद्दे ऐसे भी हैं जिन पर हमें विचार करना जरूरी है। यदि इन मुद्दों पर गहराई से सोचा गया तो और उनके कारणों को खोजा जाए तो ये बीमारी बरसों से चली आ रही है, जड़ से खत्म हो सकती है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इन सबका जिम्मेदार कौन है तो मेरे जेहन में एक ही जवाब है कि हम खुद ही हैं इन बीमारियों की जड़, जिनको समूल हम ही काट सकते हैं आइए जरा इन बिंदुओ पर जरा गौर करें
क्या कोई बता सकता है कि ये भ्रष्ट नेता या सरकार कहां से आई, इसे हमने ही चुना है हमारी चुनी हुई सरकार ही हम पर राज कर रही है और इस सरकार के नेता भ्रष्ट हैं या ईमानदार इन्हें भी हमने ही अपने कीमती वोट दिए हैं।
हम अपने निजी जीवन में कभी किसी मॉल, सिनेमा अथवा बाजार जाते हैं तो पार्किंग के लिए स्थान खोजने में कितनी मषक्कत करनी पड़ती है। वहीं किसी पोलिंग बूथ का नजारा आपने देखा है जहां कभी पार्किंग की समस्या तक नहीं आती। क्यों कि हम जैसे अपने को समझदार मानने वाले तथाकथित इन्टलेक्चुअल लोग घर की डायनिंग टेबल पर ही बात कर देष की समस्याओं की चर्चा कर सकते हैं, लेकिन वोट देने नहीं जा सकते, यह भी नहीं जानते कि हमारे वोट की कीमत क्या है? अपने दिल से पूछा जाए तो हम में से कौन वोट देने की सोचता है या फिर पोलिंग बूथ तक जाने की जेहमत लेता है। यही कारण वोट देने वालों में अधिकांष वे लोग होते हैं जिन्हें चंद रुपयों का लालच देकर रिक्ष ट्रॉली या फिर किसी अन्य साधनों से पोलिंग बूथ ले जाकर अपने प्रत्याषी को वोट डलवा दिए जाते हैं। इस प्रकार फर्जी मतदान को प्रश्रय मिलता है और लोग अपने मनचाहे प्रत्याषी को चुनने से वंचित रह जाते हैं और जो प्रत्याषी चुने जाते हैं वे पहले स्वयं का और फिर देष का सोचते हैं और यहीं से पनपता है राजनीति में भ्रष्टाचार। यदि हम जो कि समझदार समझे जाते हैं अगर सभी वोट दें तो चुना जाने वाला प्रत्याषी संभवतः अपने लिए ही नहीं देष के लिए ईमानदार हो।
क्या कभी किसी ने सोचा है सरकारी नौकरी में एक चपरासी की कितनी न्यूनतम योग्यता की जरूरत होती है, एक आयु सीमा होती है, उस योग्यता के नहीं होने या आयु पार कर लेने के बाद वह चपरासी तक नहीं बन सकता। इसी प्रकार एक आईएएस अथवा आईपीएस के लिए कितनी मेहनत करनी पडती है। कितनी परीक्षाएं और पढ़ाई करनी पड़ती है और इसी पढ़ लिखे अधिकारी को एक अनपढ़ नेता की झिड़की तक सुनने को मजबूर होना पड़ता है। ऐसे हालात देख कर उस अधिकारी के दिल में यह शूल चुभना जरूरी है कि क्या हमने यही दिन देखने के लिए पढ़ाई की थी।
इसी भ्रष्ट सरकार और तंत्र की वजह से हर स्थान पर भ्रष्टाचार है आज कही कोई भी सरकारी काम चाहे अस्पताल हो अथवा थाना किस दौर से गुजरना पड़ता है यह उस पीडित से ही पूछा जाए तो पता चलेगा कि उसने इन स्थानों पर अपना काम निकलवाने के लिए कितने पापड़ बेले। पैन कार्ड हो या जन्म प्रमाण पत्र हो या पेंषन बनवानी हो, पीएफ का पैसा निकलवाना हो, बिना सुविधा शुल्क दिए नहीं बनता क्यों कि इन विभागों के कर्मचारियों की भावना सेवा भाव की नही बल्कि खाओ भवः की है जबकि यह आपका अधिकार है और इसके लिए सरकार इन विभागों के कर्मचारियों को अच्छा खासा भुगतान करती है।
यहां एक उदाहरण उपयुक्त होगा जिस फूलन देवी जब वह डकैत थी, पुलिस उसकी तरफ खूखार हथियार लेकर भागती रही, लेकिन एक दिन ऐसा भी आया कि वह विधायक चुनी गई और उसी पुलिस को उन्हें जेड सिक्यूरिटी देनी पड़ी। एसे दिन देख कर उन पुलिस अधिकारियों को कितने अवसाद से गुजरना पड़ता होगा यह उन्हीं से पूछिए। आज ऐसी राजनीति हो गई है लोग जेल में बैठ कर अपने लिए मतदान करवाते हैं और जीत कर नेता बन जाते है और जेल से आजाद होकर खुले घूमते हैं। इस तरह की हालातों को देख कर हम में यह हूक जरूर उठती है, लेकिन आगे कौन आए, शेर की मांद में कौन झांके। अन्ना हजारे एकमात्र ऐसे गांधीवादी निकले जिन्होंने इस भ्रष्टाचार के खिलाफ जेहाद छेड़ा।
हमारी सरकार ने नियम बनाया है कि 58 या 60 साल की आयु पूरी करने के बाद सरकारी सेवा से निवृत्त हो जाओ लेकिन इन नेताओं ने पता नहीं किस देष की चक्की का आटा खाया है सत्तर साला होने के बावजूद नेता पद पर जमे रहते हैं, इनकी रिटायरमेंट की कोई उम्र नहीं होती। सीधे खड़ा नही रह सकते लेकिन प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जैसे जिम्मेदार पद को संभाले रहते हैं।
क्रिमिनल केस लगने पर सरकारी नौकरी जा सकती है लेकिन हमारे एक ही नहीं कई नेताओं पर दर्जनों क्रिमिनल केस लंबित हैं। ऐसे कई सवालात हैं जो आम आदमी के जेहन में है जिन्हें अन्ना हजारे जैसे अगुआ तक पहंुचाना जरूरी है और मैं अदना सा लेखक अपनी बाते उन तक इस लेख के माध्यम से यह बात पहुंचाने को बहुत उत्सुक हूं ष्षायद यह बात उन तक पहुंचेगी।
कुछ मसले ऐसे हैं जिन पर तत्काल कार्रवाई की जानी जरूरी है।
नेताओं के लिए भी न्यूनतम योग्यता का प्रावधान हो अथवा रिटायर होने की आयुसीमा निर्धारित हो, जैसा कि सरकारी नौकरी में होता हो आयु सीमा पूरा करने पर उन्हें भी घर बैठा दिया जाए और वेतन की जगह एक न्यूनतम राषि पेंषन के रूप में उन्हें दी जाए।
जो मतदाता अपने मत का प्रयोग नहीं करता है उस पर कोई जुर्माना राषि निर्धारित की जाए इस प्रकार मतदान नहीं करने वाले यदि अपने मताधिकार प्रयोग करने भर से देष की हालत सुधर सकती है। इसी तरह पढ़े लिखे लोगों को जागरूक होना पड़ेगा और अपनी समझ से एक काम करने वाले प्रत्याषी को अपना नेता चुनना होगा तभी इस देष का उद्धार संभव है नहीं तो यह हालात कभी नहीं सुधर सकते।
मनीष श्रीवास्तव ‘‘मन्ना‘‘
जयपुर
चलो कोई तो आगे आया
आज तक सभी नेता भ्रष्टाचार हटाओ का नारा लगाते-लगाते खुद हट गए लेकिन भ्र्रष्टाचार की जड़ को नहीं काट पाए। गांधीवादी विचारों के अगुआ अन्ना हजारे ने महज एक पखवाड़े के समय में ही पूरे देष को हिला कर रख दिया। देष के जो युवा गांधी बाबा के सिद्धांतों को दरकिनार करते थे आज अन्ना के साथ हैं और अपना प्रदर्षन गांधीवादी तरीके से कर रहे हैं। इस अनूठी लड़ाई के साथ ही कुछ मुद्दे ऐसे भी हैं जिन पर हमें विचार करना जरूरी है। यदि इन मुद्दों पर गहराई से सोचा गया तो और उनके कारणों को खोजा जाए तो ये बीमारी बरसों से चली आ रही है, जड़ से खत्म हो सकती है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इन सबका जिम्मेदार कौन है तो मेरे जेहन में एक ही जवाब है कि हम खुद ही हैं इन बीमारियों की जड़, जिनको समूल हम ही काट सकते हैं आइए जरा इन बिंदुओ पर जरा गौर करें
क्या कोई बता सकता है कि ये भ्रष्ट नेता या सरकार कहां से आई, इसे हमने ही चुना है हमारी चुनी हुई सरकार ही हम पर राज कर रही है और इस सरकार के नेता भ्रष्ट हैं या ईमानदार इन्हें भी हमने ही अपने कीमती वोट दिए हैं।
हम अपने निजी जीवन में कभी किसी मॉल, सिनेमा अथवा बाजार जाते हैं तो पार्किंग के लिए स्थान खोजने में कितनी मषक्कत करनी पड़ती है। वहीं किसी पोलिंग बूथ का नजारा आपने देखा है जहां कभी पार्किंग की समस्या तक नहीं आती। क्यों कि हम जैसे अपने को समझदार मानने वाले तथाकथित इन्टलेक्चुअल लोग घर की डायनिंग टेबल पर ही बात कर देष की समस्याओं की चर्चा कर सकते हैं, लेकिन वोट देने नहीं जा सकते, यह भी नहीं जानते कि हमारे वोट की कीमत क्या है? अपने दिल से पूछा जाए तो हम में से कौन वोट देने की सोचता है या फिर पोलिंग बूथ तक जाने की जेहमत लेता है। यही कारण वोट देने वालों में अधिकांष वे लोग होते हैं जिन्हें चंद रुपयों का लालच देकर रिक्ष ट्रॉली या फिर किसी अन्य साधनों से पोलिंग बूथ ले जाकर अपने प्रत्याषी को वोट डलवा दिए जाते हैं। इस प्रकार फर्जी मतदान को प्रश्रय मिलता है और लोग अपने मनचाहे प्रत्याषी को चुनने से वंचित रह जाते हैं और जो प्रत्याषी चुने जाते हैं वे पहले स्वयं का और फिर देष का सोचते हैं और यहीं से पनपता है राजनीति में भ्रष्टाचार। यदि हम जो कि समझदार समझे जाते हैं अगर सभी वोट दें तो चुना जाने वाला प्रत्याषी संभवतः अपने लिए ही नहीं देष के लिए ईमानदार हो।
क्या कभी किसी ने सोचा है सरकारी नौकरी में एक चपरासी की कितनी न्यूनतम योग्यता की जरूरत होती है, एक आयु सीमा होती है, उस योग्यता के नहीं होने या आयु पार कर लेने के बाद वह चपरासी तक नहीं बन सकता। इसी प्रकार एक आईएएस अथवा आईपीएस के लिए कितनी मेहनत करनी पडती है। कितनी परीक्षाएं और पढ़ाई करनी पड़ती है और इसी पढ़ लिखे अधिकारी को एक अनपढ़ नेता की झिड़की तक सुनने को मजबूर होना पड़ता है। ऐसे हालात देख कर उस अधिकारी के दिल में यह शूल चुभना जरूरी है कि क्या हमने यही दिन देखने के लिए पढ़ाई की थी।
इसी भ्रष्ट सरकार और तंत्र की वजह से हर स्थान पर भ्रष्टाचार है आज कही कोई भी सरकारी काम चाहे अस्पताल हो अथवा थाना किस दौर से गुजरना पड़ता है यह उस पीडित से ही पूछा जाए तो पता चलेगा कि उसने इन स्थानों पर अपना काम निकलवाने के लिए कितने पापड़ बेले। पैन कार्ड हो या जन्म प्रमाण पत्र हो या पेंषन बनवानी हो, पीएफ का पैसा निकलवाना हो, बिना सुविधा शुल्क दिए नहीं बनता क्यों कि इन विभागों के कर्मचारियों की भावना सेवा भाव की नही बल्कि खाओ भवः की है जबकि यह आपका अधिकार है और इसके लिए सरकार इन विभागों के कर्मचारियों को अच्छा खासा भुगतान करती है।
यहां एक उदाहरण उपयुक्त होगा जिस फूलन देवी जब वह डकैत थी, पुलिस उसकी तरफ खूखार हथियार लेकर भागती रही, लेकिन एक दिन ऐसा भी आया कि वह विधायक चुनी गई और उसी पुलिस को उन्हें जेड सिक्यूरिटी देनी पड़ी। एसे दिन देख कर उन पुलिस अधिकारियों को कितने अवसाद से गुजरना पड़ता होगा यह उन्हीं से पूछिए। आज ऐसी राजनीति हो गई है लोग जेल में बैठ कर अपने लिए मतदान करवाते हैं और जीत कर नेता बन जाते है और जेल से आजाद होकर खुले घूमते हैं। इस तरह की हालातों को देख कर हम में यह हूक जरूर उठती है, लेकिन आगे कौन आए, शेर की मांद में कौन झांके। अन्ना हजारे एकमात्र ऐसे गांधीवादी निकले जिन्होंने इस भ्रष्टाचार के खिलाफ जेहाद छेड़ा।
हमारी सरकार ने नियम बनाया है कि 58 या 60 साल की आयु पूरी करने के बाद सरकारी सेवा से निवृत्त हो जाओ लेकिन इन नेताओं ने पता नहीं किस देष की चक्की का आटा खाया है सत्तर साला होने के बावजूद नेता पद पर जमे रहते हैं, इनकी रिटायरमेंट की कोई उम्र नहीं होती। सीधे खड़ा नही रह सकते लेकिन प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जैसे जिम्मेदार पद को संभाले रहते हैं।
क्रिमिनल केस लगने पर सरकारी नौकरी जा सकती है लेकिन हमारे एक ही नहीं कई नेताओं पर दर्जनों क्रिमिनल केस लंबित हैं। ऐसे कई सवालात हैं जो आम आदमी के जेहन में है जिन्हें अन्ना हजारे जैसे अगुआ तक पहंुचाना जरूरी है और मैं अदना सा लेखक अपनी बाते उन तक इस लेख के माध्यम से यह बात पहुंचाने को बहुत उत्सुक हूं ष्षायद यह बात उन तक पहुंचेगी।
कुछ मसले ऐसे हैं जिन पर तत्काल कार्रवाई की जानी जरूरी है।
नेताओं के लिए भी न्यूनतम योग्यता का प्रावधान हो अथवा रिटायर होने की आयुसीमा निर्धारित हो, जैसा कि सरकारी नौकरी में होता हो आयु सीमा पूरा करने पर उन्हें भी घर बैठा दिया जाए और वेतन की जगह एक न्यूनतम राषि पेंषन के रूप में उन्हें दी जाए।
जो मतदाता अपने मत का प्रयोग नहीं करता है उस पर कोई जुर्माना राषि निर्धारित की जाए इस प्रकार मतदान नहीं करने वाले यदि अपने मताधिकार प्रयोग करने भर से देष की हालत सुधर सकती है। इसी तरह पढ़े लिखे लोगों को जागरूक होना पड़ेगा और अपनी समझ से एक काम करने वाले प्रत्याषी को अपना नेता चुनना होगा तभी इस देष का उद्धार संभव है नहीं तो यह हालात कभी नहीं सुधर सकते।
मनीष श्रीवास्तव ‘‘मन्ना‘‘
जयपुर