द हिंदू अखबार में दो खबरें पिछले दिनों प्रकाशित हुई. एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय कानून और सामाजिक न्याय मंत्री सलमान खुर्शीद ने एक न्यूज चैनल पर एंकर के सवालों के जवाब में उन्हीं से सवाल पूछ लिया कि ”…मीडिया करप्शन को टीम अन्ना वर्जन के लोकपाल के अधीन जांच का विषय क्यों नहीं बनाया जाना चाहिए. क्या हम लोगों को नीरा राडिया टेप का यहां जिक्र नहीं करना चाहिए.
अब आप पूछेंगे कि सरकार ने राडिया टेप्स की जांच क्यों नहीं कराई. अगर हम ऐसा करते तो हम पर असंवेदनशील होने का आरोप लगाया जाता, मीडिया विरोधी करार दिया जाता. अगर हम ऐसा करते तो मीडिया के कई तबके खिलाफ खड़े हो जाते.”
सलमान खुर्शीद ने ये बातें हेडलाइंस टुडे पर एक्जीक्यूटिव एडिटर राहुल कंवल से बातचीत के दौरान कहीं. इस बारे में खबर द हिंदू अखबार में प्रकाशित हुई. इसी अखबार में एक दूसरी खबर भी प्रकाशित हुई जिसमें मुलायम सिंह यादव को उद्धृत किया गया है. समाजवादी पार्टी के मुखिया ने मांग की कि मीडिया को भी लोकपाल के अधीन लाया जाना चाहिए. चुनावों के समय हम लोगों को मीडिया की प्रताड़ना और भ्रष्टाचार को झेलना पड़ता है. चुनावों के दौरान यह नियम सा बन गया है कि प्रिंट और टीवी के पत्रकार नेताओं से पैसे लेते हैं और उसी मुताबिक खबरें दिखाते छापते हैं.
सलमान खुर्शीद और मुलायम ने पार्टी लाइन से परे जाते हुए मीडिया को लोकपाल के अधीन लाने की मांग उठाकर नई बहस छेड़ दी है. हाल के दिनों में जिस तरह से परंपरागत मीडिया के लोगों ने पेड न्यूज और पेड सर्वे की गंदगी फैलाई है, उस पर मीडिया के बाहर और भीतर काफी बहस हुई. प्रेस काउंसिल से लेकर चुनाव आयोग तक में शिकायत दर्ज कराई गई. कई नेताओं ने मीडिया वालों पर लिखित रूप से आरोप लगाया कि उनके चुनाव प्रचार के बदले पैकेज की मांग मीडिया के लोगों ने की. शुरुआती हो हल्ले के बाद यह मामला थम गया क्योंकि केंद्र सरकार ने इस मसले पर कोई रुचि नहीं ली.
लेकिन अब जब करप्शन में केंद्र सरकार की गर्दन फंसी है और मीडिया अन्ना हजारे के करप्शन विरोधी आंदोलन का भरपूर कवेरज कर रहा है तो नेताओं ने भी मीडिया के करप्शन को लोकपाल के दायरे में जांच का विषय बनाए जाने की मांग शुरू कर दी है. मजबूरी में ही सही, एक तरह से अच्छा प्रयास है. जब तक मीडिया के लोग नेताओं के करप्शन में चुपचाप शामिल थे, तब तक नेताओं को मीडिया के भीतर का करप्शन नहीं दिख रहा था.
लेकिन आज जब मीडिया देश में करप्शन विरोधी आंदोलन को फैलाने का बड़ा केंद्र बन गया है और अन्ना के पक्ष में खड़ा दिखाई पड़ रहा है तो नेताओं को मीडिया के करप्शन की याद आ गई. पर, कहते हैं ना, लुटेरों में भी अक्सर लूट के माल को लेकर झगड़ा हो जाता है और विवाद बाहर चला आता है तो आजकल यही हाल है. पर इस सच्चाई से कोई इनकार नहीं कर सकता कि कारपोरेट हो चुके मीडिया घरानों के संगठित करप्शन पर लगाम लगाने के लिए मीडिया को भी जनलोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए.
Comments on “सलमान और मुलायम की मांग- मीडिया करप्शन भी लोकपाल के दायरे में आए!”
एक पैग में बिक जातें हैं, जाने कितने खबरनबीस
सच को कौन कफ़न पहनता, ये अखबार न होता तो
मीडिया को लोकपाल के दायरे में जरूर लाया जाना चाहिये….इससे मीडियाकर्मियों को शोषण के शिकार होने से बचाया जा सकता है। मीडिया में काम कर रहे ज्यादातर मीडियाकर्मियों के साथ अन्याय होता रहा है …जिसे कभी भी कोई न्यूज चैनल या अखबार इस शोषण के बारे में न तो दिखाता है और न ही लिखता है…..मुलायम सिंह और सलमान खुर्शीद को सलाम….किसी ने इस ओर कुछ तो बोला। बहुत करप्शन है मीडिया में भाई….
media ko bhi lana chahiye. janlokpaal k ander
इस सच को तो आप भी मानते होंगे कि मीडिया जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई में अपने को झंडावरदार मानता है लेकिन मीडिया में सबसे अधिक भ्रष्टाचार और शोषण होता है। इनमें न तो भर्ती के कोई नियम हैं और न ही कोई शैक्षिक अथवा पत्रकारिता योग्यता। वस्तुत मीडिया संस्थानों को जनलोकपाल के साथ साथ सूचना के अधिकार के तहत लाना चाहिए।
सलमान खुर्शीद, मुलायम सिंह, रविशंकर प्रसाद कि मांग बिल्कुल जायज है कि मीडिया को भी लोकपाल के दायरे मैं होना चाहिए. वह इसलिए कि जितना बड़ा अख़बार उसके ऑफिस मैं कुछ को छोड़कर सारे भ्रष्ट. सवाल यह उठता है कि प्रेस मैं काम करने वाले छोटे कर्मचारियों को एक मजदुर से भी काम वेतन देना या फ्री काम लेना आम बात है .स्वयं के सवार्थ मैं पूरा पेज भर देना और जब किसी छोटे कि बात आये तो पल्ला झाड़ लेना. यह आम तोर पार प्रेस मैं होता है.जहाँ तक भ्रस्टाचार करने की बात है प्रेस की आड़ मैं अपना स्वार्थ पूरा करना अपनी शान समझते है. उदहारण के लिए दैनिक भास्कर भोपाल मैं बना डी बी माल. जिसका मामला हाई कोर्ट मैं भी पहुंचा है.इन्ही की एक फैक्ट्री मंडीदीप है जिसमे कर्मचारियों का जितना शोषण होता जिसके अनेक उदहारण मिल जायेंगे. जब स्वयं के दामन पर इतने दाग लगे और वह भ्रस्टाचार के खिलाफ स्वयं से जुड़ने की अपील करता है शर्म आती है कि मेले कपडे वाला यह बता रहा है कि उसकी कमीज झक सफ़ेद है.
ऐसे अनेक उदहारण हमें अन्य प्रेसों के मिल जायेंगे जो कि पीत पत्रकारिता कर रहे. डरा धमका कर विज्ञापन लेना विरोधी खबर को रोकना या प्रकाशित करना आम है .इसलिए नेताओं ने मीडिया पर जो ऊँगली उठाई है वह बिल्कुल सही है जहाँ तक अन्ना के आन्दोलन कि बात है वह देश कि आवाज थी .मेरा इतना कहना है कि मीडिया सुधर जाओ और भ्रस्टाचार से दूर करते हुए अपने कर्मचारियों का शोषण मत करो और पैड न्यूज़ से नाता तोड़ लो . आज अनेक ऐसे भ्रष्ट लोग हमारे जन प्रतिनिधि बन गए है इन्ही के भ्रस्टाचार देश मैं बड़ा है. योग्य जनप्रतिनिधि का नहीं चून पाने का अफ़सोस जब होता है तो जनता के साथ मीडिया भी भी इसलिए दोषी हो सकता है कि उसने पैड न्यूज़ के जरिये अनुपयुक्त जनप्रतिनिधि को संसद विधायक बन जाता है .इसलिए जनता का भरोसा मत तोडिये और अपने को पाक साफ साबित करे कल कहीं ऐसा नहीं हो कि मीडिया का सत्य अन्ना एक आपकी पोल खोलने मैदान मैं हो
Media should be kept under the proposed Lokpal. There are Media houses where exploitation is very common. These Media houses must be transparent so that people get to know how much corrupt are some news paper owners.