प्रिय यशवंत, विष्णु त्रिपाठी के बारे में खबर पढ़कर बहुत दुख हुआ। यह तो पहले से ही सुना था कि पत्रकारिता में कोई किसी को अच्छा नहीं बोलता, लेकिन यहां तो हद ही पार हो गई। सरेआम किसी पर जातिवादी और क्षेत्रवादी होने का आरोप मढ़ा गया। उसकी तुलना परशुराम से की गई। क्या यह टीआरपी बढ़ाने की रणनीति है या अपनी भड़ास मिटाने की। जागरण में बिहारियों की कमी नहीं और ऐसा भी नहीं कि वहां से बिहारियों को निकालने का अभियान चला रहे हैं त्रिपाठी जी। दरअसल जो लोग काम नहीं करना चाहते और मैनेजमेंट उनकी चापलूसी बर्दाश्त नहीं कर पाता, वे किसी के बारे में कुछ भी अफवाह उड़ा सकते हैं।
यशवंत, आपको ऐसे पोस्ट छापने से पहले कुछ मर्यादाओं को ध्यान में रखना चाहिए। किसी सीनियर जर्नलिस्ट के बारे में ऐसे आरोपों को छापने से पहले कम से कम सफाई तो ले लीजिए। विष्णु त्रिपाठी दिल्ली में ही हैं और उनसे बात कर उनकी प्रतिक्रिया उसी पोस्ट के साथ छापनी चाहिए थी। यह बहुत बुरा चलन है और लोग पापुलर होने के लिए इस तरह के आरोप भी लगाते हैं। कृपया तथ्यों की पड़ताल जरूर कर लें वर्ना वेबसाइट की विश्वसनीयता भी खतरे में पड़ जाएगी।
-अमित त्यागी
सीनियर कॉपी एडिटर
इकनॉमिक टाईम्स
दिल्ली