स्वामी अग्निवेश सरकार के आदमी, टीम अन्ना टूटी… सुनें यह टेप

बड़ी और बुरी खबर है. बड़ा खुलासा है. टीम अन्ना के मजबूत स्तंभ स्वामी अग्निवेश सरकार के पाले में खड़े हो गए हैं. यह साबित करने वाला एक टेप भड़ास4मीडिया के हाथ लगा है. इस टेप में स्वामी अग्निवेश किन्हीं कपिल (कपिल सिब्बल?) से बड़ी गर्मजोशी से फोन पर बात कर रहे हैं. वे टीम अन्ना के सदस्यों को पागल हाथी करार दे रहे हैं. यह भी कह रहे हैं कि…

प्रोफेशनल हैकरों को दी गई भड़ास4मीडिया के मर्डर की सुपारी!

पिछले चालीस घंटे बेहद तनाव भरे रहे. अब भी हैं. आशंकाएं कम नहीं हुई हैं. हैकरों के DOS और DDOS अटैक को झेलना पड़ रहा है भड़ास4मीडिया को. डीओएस यानि डिनायल आफ सर्विस. डीडीओएस माने डिस्ट्रीव्यूटेड डिनायल आफ सर्विस. दुनिया के कई देशों के हैकर एक साथ मिलकर किसी एक साइट के पीछे पड़ जाते हैं और लगातार अलग अलग आईपी से अटैक करते रहते हैं.

भड़ास4मीडिया के प्रदेश-देश-विदेश की खबरों के नए पोर्टल का ट्रायल शुरू

कठिन मेहनत व पक्के इरादे के साथ दूरदृष्टि जरूरी है. सो, मंजिल पाने के लिए समय संग बदलते रहना और अपग्रेड होते रहना चाहिए. इसी कारण कभी सिर्फ पांच हजार रुपये में साल भर के लिए शुरू हुए bhadas4media.com ने बहुत पाया और बदला है. एक और बदलाव सामने है. यह है भड़ास4मीडिया का देश-प्रदेश-विदेश की खबरों का नया पोर्टल. इसे ट्रायल के लिए आज से आनलाइन कर दिया गया है.

भड़ास4मीडिया के बारे में प्रदीप संगम अपने ब्लाग पर जो लिख गए…

स्व. प्रदीप संगम: आजकल के हिंदी अखबारों में तीन बातें प्राथमिकता से बाहर हो गयी हैं… मेहनत व काबलियत की सही पूछ और आकलन, उपयोगिता के अनुसार प्रतिभा का सही सदुपयोग और काम के मुताबिक़ बिना किसी भेदभाव के उपयुक्त भुगतान. इन तीन चीज़ों का अभाव ही हिंदी पत्रकारिता का मटियामेट कर रहा है :

भड़ास पर पत्रिका समूह में पाबंदी

गुलाब कोठारी ने पत्रिका अखबार के पहले पन्ने पर जो विवादित संपादकीय लिखा, उसे और उस पर पत्रकारों की तरफ से आई प्रतिक्रियाओं को भड़ास4मीडिया में स्थान दिया जाना पत्रिका प्रबंधन को शायद नागवार गुजरा है. इसी कारण पत्रिका के सभी संस्करणों में भड़ास4मीडिया को खोलने और देखने पर पाबंदी लगा दी गई है. भड़ास4मीडिया वेबसाइट के पैदा होने के बाद अब तक दर्जनों बड़े छोटे संस्थानों ने इसे अपने-अपने यहां प्रतिबंधित किया.

भड़ास4मीडिया में कुछ बदलाव

आक्रामक लाल रंग से आंखें चुभ-सी रहीं थीं. और लाल-लाल देखते-देखते मन एकरस-सा भी हो गया था. हलका ग्रीन, जो आंखों के लिए फ्रेंडली कलर है, को लाया गया है. शुरू-शुरू में ये अजीब लगेगा लेकिन मेरे खयाल से बाद में इस रंग के साथ आंखें एकाकार हो जाएंगी. इस रंग में सबसे खास बात है आखों में न चुभना. इससे आंखों को थोड़ी राहत होगी, खासकर उनके लिए जो दिन भर भड़ास के बुखार में तपते रहते हैं.

क्या ‘बकचोदी’ वाकई बुरा शब्द है?

एचटी के सीईओ राजीव वर्मा के नए साल के संदेश को प्रकाशित करने के साथ मैंने अपनी जो टिप्पणी लिखी, उससे कुछ लोग आहत हैं. वे आहत इस बात से हैं कि मैंने ‘बकचोदी’ और ‘बौद्धिक मैथुन’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल क्यों कर दिया. अंग्रेजी के एक पत्रकार साथी अश्विनी भटनागर ने और एक किन्हीं महेंद्र कुमार ने अपनी तल्ख टिप्पणी इस पोस्ट पर दी. अश्विनी ने ‘बकचोदी’ और ‘बौद्धिक मैथुन’ जैसे शब्द हटाने का अनुरोध किया जबकि कथित महेंद्र कुमार ने तो मुझे इतना भला-बुरा कहा है कि पढ़कर लगा कि अगर मैं उनके सामने होऊं तो वे मुझे गोली मार दें. खैर, जाके रही भावना जैसी. राजू नाम से एक साथी ने टिप्पणी की है कि उन्हें राजीव वर्मा के पत्र में कुछ गलत समझ में नहीं आया. मैं पहले अश्विनी, महेंद्र और राजू के प्रकाशित कमेंट को नीचे फिर प्रकाशित कर रहा हूं, फिर उसके बाद अपनी बात रखूंगा.

शिबली व विजय की तरफ से हजार-हजार रुपये

ऐसे दौर में जब पत्रकारिता राडियाओं के कारण आम जन की नजरों से गिर चुकी है, तब न्यू मीडिया के लोग फटेहाली में जीते हुए भी मिशन को जिंदा रखे हुए हैं, आगे बढ़ा रहे हैं और इस मिशन के संचालन के लिए किसी पूंजीपति या सरकार के दरवाजे पर दस्तक देने की जगह, दांत निपोरने की बजाय जनता के सामने सीना तान कर चंदा मांग रहे हैं, मदद की अपील कर रहे हैं.

विकीलिक्स और विकीपीडिया का मॉडल बनाम भड़ास4मीडिया की चिंता

लखनऊ में एक पत्रकार हैं संजय शर्मा. पहले कुछ मीडिया हाउसों के साथ जुड़कर पत्रकारिता करते थे. बाद में लखनऊ में अपना अखबार शुरू किया, वीकेंड टाइम्स नाम से, समान विचार वाले कुछ लोगों के साथ मिलकर पार्टनरशिप में. पिछले कुछ महीनों के दौरान दो बार लखनऊ जाना हुआ दोनों ही बार उनसे मिला. पहली बार बड़े आग्रह और स्नेह के साथ अपने घर ले गए, खाना खिलाया. अपना आफिस दिखाया. खूब सारी बातें कीं. दूसरी बार वे छोड़ने स्टेशन आए, स्टेशन पर ही हम दोनों ने खाना खाया. आज उनका मोबाइल पर एक संदेश आया. आपके एकाउंट में दस हजार रुपये जमा करा दिए हैं.

भड़ास ने एक्सचेंज4मीडिया को पीटा

भड़ास4मीडिया ने अपने अल्प समय, ढाई साल, में आज उस मुकाम को हासिल कर लिया है जिसकी कम से कम मेरे जैसे देसज आदमी के लिए कल्पना कर पाना असंभव था. मीडिया, मार्केटिंग और बिजनेस के सबसे बड़े अंग्रेजी पोर्टल माने जाने वाले एक्सचेंज4मीडिया डॉट कॉम को आज भड़ास4मीडिया डॉट कॉम ने पछाड़ दिया. देश के मीडिया, विज्ञापन और बिजनेस घरानो के पीआर पोर्टल के रूप में प्रसिद्ध एक्सचेंज4मीडिया की मोनोपोली को भड़ास4मीडिया ने मीडिया मालिकों की बजाय आम मीडियाकर्मियों की पक्षधरता के जरिए तोड़ा है. हां, यह जरूर है कि इस पक्षधरता के कारण हम बिजनेस में बहुत पिछड़े हुए हैं, विज्ञापन न के बराबर हम लोगों के पास होते हैं, लेकिन जो प्यार भड़ास4मीडिया को हासिल है, वो शायद किसी अन्य अंग्रेजी के बड़े से बड़े मीडिया पोर्टल को नहीं मिल सका है.

भड़ास4मीडिया के वीडियो पोर्टल का ट्रायल शुरू

पहले भड़ास ब्लाग Bhadas.BlogSpot.com फिर भड़ास4मीडिया Bhadas4Media.com फिर विचार पोर्टल Vichar.Bhadas4Media.com अब वीडियो पोर्टल. नाम  मीडियाम्यूजिक.भड़ास4मीडिया.काम है. इस पर जाने के लिए आपको पता www.MediaMusic.Bhadas4Media.com टाइप करके इंटर मार देना होगा.

डी कंपनी चलाएगी सहारा?…. जागरण के इंचार्ज दक्खिन मुखी… पुलिस ने पत्रकार को धकेला… सहारा की लांचिंग टली…

: मीडिया न्यूज की एक और हिंदी वेबसाइट : खबर लेने वालों की इस कदर खबर ली जाएगी, इससे कुछ साल पहले हम सभी बेखबर थे. लेकिन भड़ास4मीडिया ने जो सिलसिला शुरू किया, उसे आगे बढ़ाने को कई वरिष्ठ-कनिष्ठ लोग आगे आ गए हैं. जाहिर है, अकेले शुरू हुआ यह सफर कारवां में तब्दील हो चुका है. दुनिया को समानता और न्याय की नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले मीडिया हाउस कितने अनैतिक हैं, उनके अंदर की दुनिया कितनी स्याह है, इसका खुलासा करने का सिलसिला तेज हो चुका है. कई लोग अपने सीमित संसाधनों में बिना लाभ हानि की आशा के मीडिया न्यूज को साहस के साथ प्रकाशित प्रसारित कर रहे हैं.

उफ! ये भड़ासिया दंभ

नीचे दिए गए कथन में, जो भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित हुआ है, दो संदर्भ दिए गए हैं. दोनों पढ़ने से साफ हो जा रहा है कि क्या कहा और किसके बारे में कहा जा रहा है. पहले संदर्भ में बात अख़बार जनसत्ता की कही जा रही है और कहनेवाले हैं दिग्गज पत्रकार प्रभाष जोशी. और उसी के तर्ज पर गढ़े गए दूसरे संदर्भ में बात मीडिया की एक चर्चित साइट के बारे में कही जा रही है और कहनेवाले हैं साइट के बहुचर्चित संपादक और CEO. पहले कथन पढ़िए-

नए सर्वर पर शिफ्ट हुआ भड़ास4मीडिया

नये सर्वर पर भड़ास4मीडिया की शिफ्टिंग की प्रक्रिया लगभग पूरी हो गई है. लगभग शब्द का इस्तेमाल इसलिए कर रहा हूं क्योंकि जितनी दिक्कत-अफरातफरी इस बार हम लोगों के हिस्से में आई, उतनी परेशानी कभी नहीं हुई. नए डेडीकेटेड सर्वर को जिस कंपनी ने प्रोवाइड किया है, उस कंपनी के छह शिफ्टों के इंचार्जों ने अपने-अपने तरीके से भड़ास4मीडिया के डाटाबेस को पुराने से नए सर्वर पर लाने की कोशिश की और साइट को रन करने का प्रयास किया. लगभग 40 घंटे साइट शिफ्टिंग में लगे.

24 घंटे तक क्षमा करें, कमेंट करने से बचें

सूचना : भड़ास4मीडिया को डेडीकेटेड सर्वर पर ले जाने की प्रक्रिया आज शाम से शुरू हो जाने के कारण अगले चौबीस घंटों के दौरान यह वेबसाइट कई बार अनुपलब्ध, ब्लैंक या अन-अपडेटेड दिख सकती है. इसके लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं. कई सारी खबरें प्रकाशन के लिए आई हैं, कई बड़ी खबरें प्रकाशन के लिए तैयार हैं. लेकिन सर्वर शिफ्टिंग की प्रक्रिया शुरू हो जाने के कारण इन खबरों को अपलोड कर पाने में असमर्थ हैं क्योंकि अगर अपलोड कर भी दी गईं तो ये खबरें नए सर्वर पर साइट के शिफ्ट हो जाने के बाद नहीं दिखेंगी.

भड़ास वालों, एक मुफ्त की सलाह ले लो!

: केवल मीडिया तक क्यों सिमटे हो, दायरा बढ़ाओ : मित्र यशवंत जी, नमस्कार, पिछले कुछ दिनों से भड़ास4मीडिया डॉट काम देख रहा हूं। वह भी इसलिए कि दिल में तमन्ना जागृत हुई कि कहीं लिखने की। हालांकि मैं एक दैनिक अखबार का वेतनभोगी और अखबारी लाइन में दो दशक से जीवन गुजार रहा हूं। इसके बाद भी इतना तजुर्बा हासिल नहीं कर सका कि किसी खबर को बेधड़क और बेहतर तरीके से लिख सकूं। इसलिए अधिक से अधिक लिखने का मन किया। इसी दौरान भड़ास के बारे में जानकारी हुई। लिहाजा साइट खोला और देखने लगा। लेखनशैली और खबरों की प्रस्तुति तो अच्छी लगी लेकिन खबरों का दायरा मीडिया तक देख दुःख हुआ। मेरा तजुर्बा कहता है कि खबरों का चयन तो पाठक वर्ग को ध्यान में रखकर ही तय किया जाता है।

डेडीकेटेड सर्वर फाइनल, संकट खत्म

भड़ास4मीडिया फिर फंसा संकट में” शीर्षक से अपनी बात कहने-प्रकाशित करने के बाद करीब 15 घंटे तक मोबाइल व मेल से खुद को दूर रखा. अब जब सारा कुछ देख चुका हूं, तो कह सकता हूं कि रिस्पांस गजब का मिला है. लगने लगा है कि एक बड़ी संख्या शुभचिंतकों, समर्थकों, चाहने वालों की भड़ास4मीडिया के आसपास है जो इसे इसके तेवर के साथ जिंदा रखने के लिए कुछ भी करने को तैयार है.

भड़ास4मीडिया फिर फंसा संकट में

जनसत्ता अखबार जब अपने चरम पर था, सरकुलेशन इतना ज्यादा दिल्ली में हुआ करता था कि मशीनें छापते-छापते हांफ जाया करती थीं तब प्रभाष जोशी जी ने अपने पाठकों से अखबार में संपादकीय लिखकर अपील की थी कि ”जनसत्ता को मिल-बांट कर पढ़ें, अपन की क्षमता अब और ज्यादा छापने की नहीं है”. तब दौर कुछ और था. अब दौर बदल गया है. अखबारों के सरोकार, संपादक व मालिक सब के सब बदल गए हैं. और तो और, पाठक तक बदल गए हैं. या यूं कहें कि भरी जेब वालों को ही सिर्फ पाठक – दर्शक माने जाना लगा है.

कैसी कैसी खबरें आती हैं भड़ास के पास!

देहरादून के …. कार्यालय के प्रभारी पत्रकार श्री…. को शराब पीने की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है.  पत्रकार श्री…. और उनके फोटोग्राफर श्री… ने आये दिन की तरह शराब का अत्याधिक मात्रा में सेवन कर लिया. उसके बाद बाइक पर सवार होकर शहर में घूमने का आन्नद ले रहे थे. अचानक एक गली में उनकी बाइक गिर गई. बाइक गिरने के साथ स्टार्ट ही रही और पत्रकार श्री…. का पांव पहिए में आ गया.

तीन खबरों का खंडन

: ‘सॉरी’ : भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित तीन खबरों में करेक्शन है. इन करेक्शन को प्रकाशित कराया जा रहा है. इसे खंडन भी समझ सकते हैं. इसे माफीनामा भी मान सकते हैं. जिन तीन खबरों पर कुछ आपत्तियां आईं, पड़ताल करने पर ये आपत्तियां सही पाई गईं. इसलिए यहां करेक्शन दिया जा रहा है. ये तीन करेक्शन इस प्रकार हैं-

फिर लौटेंगे छोटे से ब्रेक के बाद

कई बार लगने लगता है कि चीजें यूं ही चलती चली जा रही हैं, बिना सोचे-विचारे. तब रुकना पड़ता है. ठहरना पड़ता है. सोचना पड़ता है. भड़ास4मीडिया को लेकर भी ऐसा ही है. करीब डेढ़-दो महीने पहले भड़ास4मीडिया के दो साल पूरे हुए, चुपचाप. कोई मकसद, मतलब नहीं समझ आ रहा था दो साल पूरे होने पर कुछ खास लिखने-बताने-करने के लिए. पर कुछ सवाल जरूर थे, जिसे दिमाग में स्टोर किए हुए आगे बढ़ते रहे, चलते रहे. पर कुछ महीनों से लगने लगा है कि जैसे चीजें चल रही हैं भड़ास4मीडिया पर, वैसे न चल पाएंगी. सिर्फ ‘मीडिया मीडिया’ करके, कहके, गरियाके कुछ खास नहीं हो सकता. बहुत सारे अन्य सवाल भी हैं.

आईबीएन7 ने भेजा भड़ास को नोटिस

खबर दिखाने-लिखने वालों की खबरें छपें, ये मीडिया के कई मठाधीशों को पसंद नहीं. इन मठाधीशों का वश चले तो वेब-ब्लाग वालों का गला दबा दें. फिलहाल ये लीगल नोटिस भेजकर डराने-धमकाने जैसा काम कर रहे हैं. कभी मृणाल पांडेय ने नोटिस भेजकर डराया-धमकाया तो कभी स्टार वाले नोटिस भेजकर डराते हैं तो अब आईबीएन7 वालों को घबराहट हो रही है और नोटिस भेजकर खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं. पता है, आईबीएन7 वालों को क्या बुरा लगा है?

40 हजारी क्लब में शामिल हुआ भड़ास4मीडिया

तेजी से बढ़ रहा भड़ास4मीडिया का ग्राफ : अभी जश्र मनाने की जरूरत नहीं लेकिन खबर अच्छी है. भारतीय मीडिया इण्डस्ट्रीज की हलचल से वाकिफ कराने वाली बेवसाइट भड़ास4मीडिया दुनियाभर की सभी भाषाओं में संचालित 40 हजार सबसे लोकप्रिय वेबसाइट्स की सूची में शामिल हो गई है. सनद रहे कि दुनिया की 1 लाख सबसे लोकप्रिय वेबसाइट्स की सूची में शामिल होने के लिए हजारों वेबसाइट संचालक होड़तोड़ मेहनत करके डाटा जुटाते हैं.

स्टार को भड़ास से चाहिए 10 करोड़

स्टार न्यूज में कार्यरत रहीं सायमा सहर के मेल, बयान और बातचीत पर आधारित जो खबरें पिछले दिनों भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित हुईं, उससे स्टार न्यूज का दिमाग ठिकाने लगा हो या न लगा हो, ये तो नहीं पता लेकिन इतना जरूर है कि उन्होंने लाखों रुपये खर्च कर वकालत करने वाली एक फर्म को हायर किया और भड़ास4मीडिया को दस करोड़ रुपये देने के लिए नोटिस भिजवा दिया. इस नोटिस में कहा गया है कि सायमा सहर से जुड़ी जो खबरें प्रकाशित हुईं उससे स्टार न्यूज की प्रतिष्ठा को बहुत धक्का लगा है.

Is access to Bhadas4Media denied at some places?

Yashwant Ji namaskaar, I hope you are doing fine. I want to share a doubt with you. It is possible that you may already know about it or it is just a figment of my imagination, well in that case please excuse me for bothering you. Some of my friends have been  bugging me on my cell, for quite some time now, asking me to keep informing them about what’s new at Bhadas. I am just fed up.

भड़ास4मीडिया और मीडिया के छुपेरुस्तम

हम सभी चाहते हैं कि हमारी समस्याएं कोई आकर हल कर दे और हम खुशहाल हो जाएं. हम सभी चाहते हैं कि पड़ोसी के घर में भगत सिंह पैदा हो जाएं और समाज, देश व मोहल्ले के हित के लिए फांसी पर लटक कर शहीद का दर्जा पा जाएं पर अपने घर के किसी आदमी पर कोई आंच न आए, अपने घर का कोई बंदा क्रांतिकारी बनकर दुख न उठाए. मीडिया में भी यही हाल है. हजारों लोग परेशान हैं. उत्पीड़न झेल रहे हैं. मानसिक यंत्रणा उठा रहे हैं. कोई बास से परेशान है. कोई माहौल से नाखुश है. कोई सेलरी कम होने से दुखी है. कोई सहकर्मियों के उत्पीड़न से त्रस्त है. कोई काम न मिलने का रोना रो रहा है. कोई काम कर-कर के मरा जा रहा है. वे अपनी समस्याओं का हल चाहते हैं. वे जिनसे परेशान हैं, उनकी करतूत का पर्दाफाश करना चाहते हैं. पर वे नहीं चाहते कि उनका नाम व पहचान उजागर हो.

बी4एम में ये चेंज आपको कैसा लगा?

दोस्तों-मित्रों, वरिष्ठों, कनिष्ठों…. आज मकर संक्रांति के दिन से भड़ास4मीडिया में बदलाव महसूस हो रहा होगा. कुछ नई चीजें जोड़ी गई हैं. अभी तक भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित खबरों और आलेखों पर कमेंट करने का आप्शन नहीं रखा गया था. वजह सिर्फ एक कि कमेंट आप्शन का कई लोग दुरुपयोग करते हैं. इसके जरिए अपनी कुंठा और भड़ास निकालते हैं. कुंठा और भड़ास निकालें, लेकिन मेरा हमेशा से मानना रहा है कि अपनी असली आइडेंटिटी के साथ कुंठा और भड़ास निकालें. अगर आप पहचान छुपा कर ही कुछ कहना चाहते हैं तो ऐसी बात कहें जिससे दूसरों का भला हो, दूसरों का दिल खुश हो जाए. या फिर ऐसी बात जिससे नई जानकारियां सामने आ रही हों. ये मेरा निजी मत है. अनाम कमेंटों के जरिए हिंदी ब्लागिंग में जिस तरह से तमाम लोगों के उपर कीचड़ उछालने का चलन रहा है.

बी4एम की टीआरपी बढ़ाने की रणनीति है यह?

प्रिय यशवंत, विष्णु त्रिपाठी के बारे में खबर पढ़कर बहुत दुख हुआ। यह तो पहले से ही सुना था कि पत्रकारिता में कोई किसी को अच्छा नहीं बोलता, लेकिन यहां तो हद ही पार हो गई। सरेआम किसी पर जातिवादी और क्षेत्रवादी होने का आरोप मढ़ा गया। उसकी तुलना परशुराम से की गई। क्या यह टीआरपी बढ़ाने की रणनीति है या अपनी भड़ास मिटाने की। जागरण में बिहारियों की कमी नहीं और ऐसा भी नहीं कि वहां से बिहारियों को निकालने का अभियान चला रहे हैं त्रिपाठी जी। दरअसल जो लोग काम नहीं करना चाहते और मैनेजमेंट उनकी चापलूसी बर्दाश्त नहीं कर पाता, वे किसी के बारे में कुछ भी अफवाह उड़ा सकते हैं।

‘बड़ी हास्यास्पद रिपोर्ट थी बी4एम पर’

[caption id="attachment_15644" align="alignnone"]डॉ. माथुर नाम के एक सीनियर मेंबर ने जब बोलना चाहा तो कुछ पत्रकारों ने उन्हे न सिर्फ बोलने से रोका बल्कि उनके साथ धक्कामुक्की और हाथापाई की, बगैर उनकी उम्र का लिहाज किए।डॉ. माथुर नाम के एक सीनियर मेंबर ने जब बोलना चाहा तो कुछ पत्रकारों ने उन्हे न सिर्फ बोलने से रोका बल्कि उनके साथ धक्कामुक्की और हाथापाई की, बगैर उनकी उम्र का लिहाज किए।[/caption]

प्रेस क्लब आफ इंडिया के दो सदस्यों ने भड़ास4मीडिया को भेजी पाती…

बी4एम की मोबाइल एलर्ट सेवा लांच

[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]मोबाइल सेवाबी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में पहुंच गया है। बी4एम की मोबाइल सेवा शुरू हो चुकी है। मीडिया जगत की बड़ी खबर को एसएमएस के जरिए बी4एम के पाठकों के पास भेजा जाने लगा है। इस सेवा का उदघाटन आज पत्रकार जरनैल सिंह ने किया। बी4एम आफिस में आए जरनैल ने कंप्यूटर पर सेंड बटन क्लिक कर 100 चुनिंदा लोगों तक दो एसएमएस भेजे। पहले एसएमएस में इस सेवा के शुरुआत के बारे में बताया गया। दूसरे में एक ब्रेकिंग न्यूज को प्रसारित किया गया। दोनों एसएमएस यूं हैं-

सुपरहिट एक लाख साइट क्लब में बी4एम भी

अलेक्साइतने कम समय में भड़ास4मीडिया वो मुकाम हासिस कर लेगा, जिसे हासिल करने के लिए बड़ी-बड़ी कंपनियां करोड़ों-अरबों रुपये खर्च करती हैं और दर्जनों प्रोफेशनल्स को नियुक्त करती हैं, बिलकुल विश्वास नहीं होता। ‘एक लैपटाप, एक डाटा कार्ड और एक व्यक्ति’ के साथ पिछले साल इन्हीं दिनों में शुरू हुआ बी4एम आज दुनिया भर की सबसे ज्यादा हिट्स बटोरने वाली एक लाख वेबसाइटों के क्लब में शामिल हो गया है। यकीन न हो तो वेबसाइटों की टीआरपी (हिट्स, रैंकिंग, लोकप्रियता) मापने वाली प्रतिष्ठित साइट अलेक्सा डॉट कॉम पर जाकर देखिए। बी4एम की ट्रैफिक रैंकिंग अब 99,607 हो चुकी है जो एक लाख के अंदर है।

‘हजारों पत्रकारों की आवाज बनना बी4एम की जीत’

भड़ास4मीडियाभारतीय मीडिया की खबरों का नंबर वन पोर्टल बनने पर भड़ास4मीडिया को देश भर से बधाइयां मिल रही हैं। शुभकामनाएं दी जा रही हैं। सुझाव आ रहे हैं। फोन, एसएमएस व मेल का ताता लगा हुआ है। कुछ टिप्पणियों को प्रकाशित किया जा रहा है, भेजने वालों का नाम-पता हटा कर। -एडिटर


भाई, सिर्फ आठ माह के छोटे से लम्हे में खुद के माद्दा, भगवान और दोस्त-दुश्मनों के हौसले से मिली तरक्की निःसंदेह बहुत बड़ी है. बधाई स्वीकारो.

भड़ास4मीडिया स्टार्ट, हिंदी पत्रकारों के लिए एक शुरुआत

हिंदी पत्रकारों और हिंदी मीडिया हाउसों से जुड़ी सूचनाओं और नौकरियों के लिए हिंदी का पहला आनलाइन पोर्टल शुरू किया गया है। यह पोर्टल भड़ास ब्लाग का ही प्रोफेशनल एक्सटेंशन है।