न्यूज24 के नाटक का अंत हो गया. दर्जनों पत्रकारों के करियर का नाश करने के बाद न्यूज24 प्रबंधन अंततः अपनी औकात में आ गया. कई जूनियर व कुछ सीनियरों की छोटी सी टीम के जरिए संचालित हो रहे न्यूज24 की कमान फिर से अजीत अंजुम के हाथ सौंप दी गई है. इस संबंध में आंतरिक मेल जारी कर दिया गया है. बीच में अजीत अंजुम को चैनल की जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया था और चैनल की पूरी कमान सुप्रिय प्रसाद को सौंप दी गई थी.
पर यह पहले से स्पष्ट था कि चैनल प्रबंधन ज्यादा खर्च करने के मूड में नहीं है, इसलिए देर-सबेर सुप्रिय प्रसाद को भी जाना पड़ेगा क्योंकि सुप्रिय के साथ आजतक से आए दर्जनों लोगों को मजबूरन एक-एक कर चैनल से विदा लेना पड़ा था. ऐसा प्रमोशन न मिलने, पैसा न बढा़ए जाने, वादा पूरा न किए जाने और चैनल में कामकाज के खराब माहौल के कारण करना पड़ा था. आखिर में बचे रह गए थे सुप्रिय प्रसाद और उनके दो-चार करीबी सहयोगी.
अजीत अंजुम, जो कि राजीव शुक्ला और अनुराधा प्रसाद के बेहद करीबी हैं और बीएजी प्रोडक्शन हाउस के शुरुआत से ही इस घराने से जुड़े रहे हैं, को चैनल से प्रबंधन को इसलिए अलग करना पड़ा था क्योंकि चैनल के चलाने को लेकर आए दिन अजीत अंजुम और सुप्रिय प्रसाद में इगो क्लैश हो रहा था. प्रबंधन रिजल्ट मांग रहा था और सुप्रिय प्रसाद कह रहे थे कि अजीत अंजुम सारे निर्णयों को प्रभावित करते रहते हैं, इसलिए इस बारे में उनसे ही पूछा जाए.
प्रबंधन ने दोनों वरिष्ठों के बीच मची खीचतान के बाद अजीत अंजुम को अपना आदमी मानकर चैनल से किनारे करने का निर्णय लिया ताकि वे सुप्रिय प्रसाद की पूरी क्षमता का आकलन कर सके. और, मंशा यह भी थी कि फ्री हैंड देने के बाद चैनल के विस्तार में अपेक्षित रिजल्ट न मिलने का आरोप लगाकर सुप्रिय प्रसाद को निपटाया जा सके. अंततः ऐसा ही हुआ. कई महीनों तक अजीत अंजुम चैनल से दूर रहे, प्रोडक्शन हाउस समेत अन्य दूसरे कामों में लगे रहे. सुप्रिय प्रसाद चैनल का डिस्ट्रीव्यूशन न होने के बावजूद टीआरपी के लिए प्राणप्रण से जुट गए. पर जब चैनल दिखेगा ही नहीं तो टीआरपी कहां से आएगी.
प्रबंधन ने सुप्रिय प्रसाद को ऐन-केन प्रकारेण कसना शुरू कर दिया तो माहौल खराब होते देख सुप्रिय ने चैनल से तौबा करने का ऐलान कर दिया. सुप्रिय प्रसाद ने महीनों पहले चैनल से इस्तीफा दे दिया था और आज भी वे घर बैठे हैं, पर अजीत अंजुम की चैनल में वापसी करा दी गई है. दरअसल, देखा जाए तो प्रबंधन की रणनीति भी यही थी. अजीत अंजुम राजीव शुक्ला और अनुराधा प्रसाद के बेहद भरोसे के आदमी हैं. वे दुनिया के अन्याय-अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाते रहते हैं पर जहां राजीव शुक्ला और अनुराधा प्रसाद का मामला आता है, वे चुप्पी साध लेते हैं. कह सकते हैं कि वे बीएजी के संकटमोचक हनुमान की तरह हैं. सुप्रिय प्रसाद जब चैनल छोड़कर गए तो प्रबंधन तुरंत अजीत अंजुम की वापसी करा देता तो हर ओर थू थू होती और अजीत अंजुम की भी नैतिक स्थिति थोड़ी खराब होती. इसलिए मैडम अनुराधा प्रसाद ने मेल के जरिए सबको बता दिया कि सुप्रिय प्रसाद चले गए हैं और वे अब चैनल का काम खुद देखेंगी. उन्हें सुनील झा और राहुल महाजन सीधे रिपोर्ट करेंगे.
पर मालकिन मैडम चैनल चला न सकीं. चैनल में राजनीति और आंतरिक उठापटक तेज होने लगी. सुप्रिय के जाने के बाद कई मजबूत हाथ चैनल को छोड़कर विदा हो गए क्योंकि अब किसी का चैनल प्रबंधन पर भरोसा नहीं रह गया था. इन दिनों चैनल इंटर्नों, जूनयिरों, असिस्टेंट के जरिए चलाया जा रहा है. कुछ एक सीनियर शेष हैं जो दाम और प्रमोशन के लिए कभी इच्छुक नहीं होंगे क्योंकि कई बार लोग ऐसी स्थिति में होते हैं जब उन्हें सिर्फ नौकरी चाहिए होती है, ज्यादा पैसा व बड़ा पद नहीं. चैनल की डूबती नैया को बचाने के लिए और चैनल का संचालन अपने खास आदमी को देने के लिए प्रबंधन ने अपने पास बची अंतिम तरकीब, आखिरी उपाय, लास्ट आप्शन का इस्तेमाल किया.
चैनल को फिर अजीत अंजुम के हवाले कर दिया है. और, अजीत अंजुम चैनल में हर कुछ करते हैं, स्क्रिप्ट से लेकर एडिटिंग तक के काम वे खुद निपटाते देखते हैं. वन मैन आर्मी की तरह जूझने-करने वाले अजीत अंजुम के फिर से कमान संभाल लेने से चैनल में काम करने वालों में दहशत फैल गई है. कब किसकी किस बात पर ऐसी तैसी हो जाएगी, कब किसको किस बात पर औकात दिखा दी जाएगी, कब किसको किस अंदाज पर बैंड बजा दी जाएगी…. यह किसी को नहीं पता. अजीत अंजुम के साथ काम करने वाले कहते हैं कि उनके साथ काम करने का मतलब होता है बेहद डरा हुआ होकर काम करना और बिना बात डांट डपट सुनकर भी मुस्कराते हुए काम करते रहना. खैर, कहने वाले चाहे जो कहें लेकिन सच्चाई तो ये है कि इन दिनों प्रबंधन बेहद खुश हैं. राजीव शुक्ला केंद्र सरकार में मंत्री हो गए हैं.
मैडम अनुराध पहले से ही प्रभावशाली रही हैं क्योंकि वह रविशंकर प्रसाद की सगी बहन हैं और हर पार्टी के नेताओं से अनुराधा की अच्छी पटरी है. तो अब राजीव शुक्ला के पास इतने सारे बड़े काम रहेंगे कि उन्हें संभालने के लिए मैडम अनुराधा को पूरा वक्त देना पड़ेगा. जाहिर है, जब मियां-बीवी दोनों मंत्रालय और उससे जुड़े काम व बड़े बड़े सवाल, प्रस्ताव, बैठकों को संभालेंगे तो चैनल, प्रोडक्शन हाउस आदि कौन संभालेगा. न्यूज24, ई24, बीएजी, मीडिया स्कूल, रेडियो, वेबसाइट… आदि इतने धंधे हैं कि इन सभी को संभालने और देखने के लिए एक तीसरे शख्स का होना जरूरी है और वह तीसरा शख्स अजीत अंजुम से बेहतर कोई नहीं हो सकता. अजीत अंजुम को उनके रुतबे की वापसी मुबारक. पर घर बैठे बेरोजगारी के दिन काट रहे सुप्रिय प्रसाद इन दिनों अजीत अंजुम के बारे में क्या सोच रहे होंगे, इस पर आप सब सोचिए.
चैनल हेड फिर बनाए जाने के बारे में जानकारी के लिए भड़ास4मीडिया की तरफ से जब अजीत अंजुम को फोन किया गया तो कई रिंग जाने के बावजूद उन्होंने फोन नहीं उठाया. कुछ देर बाद दुबारा फोन किया गया तो उनका फोन बिजी बताता रहा. कुछ और देर बाद फोन किया गया तो उन्होंने फोन उठाकर मीटिंग में होने की बात बताते हुए कुछ देर बाद फोन करने की बात कहकर फोन रख दिया. सही है, अब अजीत अंजुम के पास समय कहां रहेगा गैरों से बतियाने के लिए, क्यों उन्हें अपनों का बहुत कुछ देखना है.
Comments on “अनुराधा चला चुकीं चैनल, न्यूज24 फिर अजीत अंजुम के हवाले”
ye bhi khub rahi…aisi uth patak to media jagat me aam si baat ho gayi hai…har wo insaan jo boss bana baitha hai wo khud ko MAHARAJA se kam nhn samjhata hai……har channel ki bhitar ki yehi kahani hai…
Nice story. Well written. Unbiased and very critical.
kanpur ki ek akahavat hai unko aur nahi, inko thour nahi……matylab ajeet anjum ke pas thour nahi aur rajeev shukla ke paas koi aur nahi.. ha ha ha …..dono evanvayee hain…
bahut achha hua…AJit Anjum achhe ho ya bure…lekin ek jounalist ke taur pe unpar koi sawal nahi kar sakta…news24 ne der se hi sahi bahut sahi faisla kiya. pata nahi kin kin ke haathon me doob raha tha channel…vaise bhala to E24 ka bhi hua hai…Ashish Chaddhha ko nikalkar….Channel barbaad karne me, paisa khaane me, logo ka career barbad karne me , apne contacts banane me…Ashish ne koi asar nahi chodi…suna hai yogender sherma ko bhi nikal diya gaya is hafte…sahi hua..sirf baatein karna janta hain ye log…Yogender jaise Ashish Chaddhha ke chamchon ka time poora ho gaya lagta hai!! sarthak kadam news 24 e24….
all the best ajit jee! I know u’ll do best bus is baar apnon pe bharosa kijyega aur kursi ke sath nistha badlne valon se savdhan rahyega
Now News24 is going to headed by a true journalist not by “DALALS”
i,ts not news 24 i,ts intarn 24 kyoki ye chanal sirfe berojgar paida krta hai aur intarn ki mehnat ke pesho ki kamayi khata hai
भाई यशवंत जी..अंजुम की वापसी कोढ़ में खाज की तरह ही है।मालिक लोग किसी के सगे नहीं होते।भले ही वो अनुराधा और राजीव के करीबी रहे हों ..चैनल को तो उठाना ही होगा..चैनल का टीआपी ग्राफ बढ़ना मुझे तो मुश्किल ही लगता है।अब जो मैं कह रहा हूं वही होगा..वो ये कि अगर चैनल अंजुम के पराक्रम के बावजूद नहीं उठा तो समझ लीजिए अजीत अंजुम हमेशा के लिए बेइज्जत करके निकाल दिए जाएंगे..ये वापसी कोई स्थाई नहीं है..मुझे लगता है..अजीत अंजुम भी ये जानते हैं कि रिजल्ट नहीं दिया तो परमानेंट exit होगा
kisi ko bhi bula lo NEWS 24 ki aukaat kabhi nahi badhegi . or jis din congress ki govt jayegi ye channel bhi band ho jayega
badhai ho sir………..
धोबी को गधे बिना गुज़ारा नहीं , न ही गधे को धोबी बिना !
इंसान को लगातार सफलता मिले तो अहंकार में अँधा हो जाता है , खासकर वैसे लोग जिनकी परवरिश बहुत ठीक ढंग से नहीं होती है .
अजित ने पहली बार एक सेकेण्ड हैण्ड कार खरीदी , तो उसे दिखाने हज़ार किलोमीटर दूर अपने गाँव चले गए.
ये यही अजित अंजुम थे जो जनसत्ता में लेख नहीं छापे जाने पर कलेजे पर मुक्का मार कर ” डकर ” रहे थे, और मंगलेश डबराल की सार्वजनिक रूप से “कपडे फाड़” रहे थे.
ये १९९१-९२ की बात होगी, जब दिल्ली के constitution क्लब में फ्रीलान्सर्स union की पहली और आख़िरी बैठक हुई थी .
जवाहर लाल कौल और मेरे जैसे जो लोग उस बैठक में थे, शायद उन्हें एक बेबस -लाचार अजित अंजुम का चेहरा याद होगा.
अब यही अजित अंजुम पत्रकारों से कैसे पेश आते हैं , उसकी ढेर सारी कहानियां सुनने को मिलती हैं.
Aapne likha- “अब अजीत अंजुम के पास समय कहां रहेगा गैरों से बतियाने के लिए.”
वैसे आपके पोर्टल का मियां -बीवी ने भरपूर इस्तेमाल किया. आप लोगों ने भी खूब जयकारे लगाये .
वक़्त -वक़्त की बात है.
इंसान काबिल हो , पर घमंड से भरा हो , तो सारी काबिलियत हवा हो जाती है .
हिंदी के बहुत सारे पत्रकार इस भयानक बिमारी से ग्रस्त हैं .
galti sukla ji nahi hai channel na chalne ke piche vaha jo unke sale log (all dipartment head)matlab anuradha ji ke bhaiya log vo hi channel ko duba rahe hai. jo moti-2 salery bhi lete hai aur kamm bhi kuch nahi karte…………………………………
hindi patrkariya me As bult se log he jo gamand ke karan jiwan barbad kar chuke he
कहीं आपलोग भी तो नहीं ?
अनिल पांडे को अजीत अंजुम से इतनी नाराजगी! पर ये नहीं बताया कि अजीत अंजुम जब सार्वजनिक रूप से मंगलेश डबराल के कपड़े फाड़ रहे थे तो मंगलेश डबराल या जनसत्ता ने क्या जवाब दिया था। मुझे याद नहीं है कि किसी फ्रीलांसर ने किसी फीचर संपादक की ऐसी सार्वजनिक खिंचाई कभी कहीं की हो। अजीत अंजुम अब भले संपादक हो पर यह बहादुरी उसने फ्रीलांसर के रूप में दिखाई थी और तब तो उसे भी नहीं पता था कि वो इतना मजबूत (आप चाहे न मानो) संपादक बनने वाला है। तू मुझे छाप मैं तुझे छापूं – के खिलाफ अजीत की इस बेमिसाल कार्रवाई की तारीफ न करनी हो तो मत कीजिए पर यह निन्दा करने लायक तो नहीं ही है।
आपने लिखा है बैठक में मौजूद लोगों को अजीत अंजुम का बेबस लाचार चेहरा याद होगा। मैं उस बैठक में तो नहीं था पर जनसत्ता दफ्तर में आकर उसने जिस गर्व से यह घटना बताई थी मुझे वह अच्छी तरह याद है। आज ही भड़ास पर कहीं पढ़ रहा था कि नए पत्रकारों को पुराने पत्रकारों के बारे में कुछ मालूम नहीं होता और वे लगते हैं ज्ञान बघारने। मुझे अजीत के पक्ष में यह सब लिखने की कोई जरूरत नहीं थी पर इसलिए लिख रहा हूं कि आप अजीत के समकक्ष लगते हैं फिर भी तथ्यों की उपेक्षा और उसे गलत ढंग से प्रस्तुत करते लग रहे हैं। आप अजीत के बेबस लाचार चेहरे की बात कर रहे हैं तो आपको बता दूं कि हिन्दी के तमाम नामी-गिरामी पत्रकारों के पास जब स्कूटर-मोटर साइकिल नहीं होती थी तो उसने पिताजी की दी हुई नई मोटरसाइकिल से फ्रीलांसिग शुरू की थी।
और गाड़ी खरीद कर गांव वालों को ही दिखाई जाती है… दिल्ली में कौन पूछेगा? (हालांकि उस समय कार खरीदना साधारण काम नहीं था और ऐसा कर पाने के बाद वह अपने माता-पिता से आशीर्वाद लेने ही गया होगा) और अजीत का गांव दिल्ली से 1000 किलोमीटर दूर है (ज्यादा होगा) तो इसमें उसका क्या दोष? और ऐसा नहीं है कि दिल्ली से अजीत के गांव कोई कार से जाता ही नहीं है या कभी कोई गया ही नहीं है। आप कहना क्या चाहते हैं? अनिल जी अपनी जानकारी ठीक कर लीजिए वह सेकेंड हैंड कार नहीं, नई मारुति 800 थी जिसे उसने दीवाली के पहले प्रीमियम देकर खरीदा था।
संजय कुमार सिंह जी…आप जो भी हों..उससे मेरा मतलब नहीं है…लेकिन जो पत्रकार अपने साथी पत्रकार को न्यूज़रूम में मां-बहन की गाली दे और उसे उसकी औकात बताए वो दरअसल अपनी औकात बताता है…और जो ऐसे लोगों की सराहना करते हैं और पीठ थपथपाते हैं मेरी नज़र में चमचागीरी करते हैं…अजीत जी शायद अच्छे पत्रकार होंगे लेकिन इंसान वो अच्छे नहीं हैं…अगर आपको लगता है कि वो अच्छे इंसान हैं तो मुझए आपकी इंसानियत पर भी शक है…