
जागरण समूह का बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय संस्करण आज लांच कर दिया गया लेकिन यह देखने और पढ़ने के लिए सभी लोगों के लिए उपलब्ध नहीं है। अगर आप अपने हाकर से जागरण के राष्ट्रीय संस्करण के बारे में पूछेंगे तो वो कुछ नहीं बताएगा क्योंकि उसे इस बारे में न तो कुछ पता है और न ही बताया गया है। दरअसल, इस ‘प्रीमियम प्रोडक्ट’ को बेचने की अभी स्ट्रेटजी नहीं बनी है।
या कहिए कि बेचने के तरीके को लेकर अभी प्रबंधन के स्तर पर ही विभ्रम की स्थिति है। प्रबंधन जिस दिशा में जाता दिख रहा है उसके मुताबिक चूंकि यह खास अखबार खास लोगों के लिए है इसलिए इसे आम वितरण तंत्र, बोले तो, हाकरों से दूर रखा जाएगा। इसे खास लोगों तक पहुंचाने के लिए विशेष तरीके का इस्तेमाल किया जाएगा। यह विशेष तरीका क्या हो, इस पर दिमाग लड़ाने और अंतिम निर्णय तक पहुंचने के लिए आज दैनिक जागरण के नोएडा स्थित मुख्यालय में तेज-तर्रार माने जाने वाले मैनेजरों की बैठक जागरण के मालिक और संपादक संजय गुप्ता ने बुलाई है। भड़ास4मीडिया को मिली जानकारी के अनुसार आज लांच हुए राष्ट्रीय संस्करण को दिल्ली में रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों, पाश कालोनियों और एनसीआर के प्रमुख पत्र-पत्रिका बिक्री केंद्रों पर रखा गया है। प्रबंधन की कोशिश इस अखबार को डायरेक्ट सेल करने की है। मतलब, आप सीधे सब्सक्रिप्शन लीजिए और अपने घर पर अखबार पाइए। बीच में कोई एजेंट और हाकर नहीं। पाश कालोनियों-इलाकों में रहने वालों को इस अखबार से जोड़ने के लिए विशेष प्रयास किया जा सकता ह। सेल्स एक्जीक्यूटिव्स की टीमें बनाकर इन इलाकों में भेजी जा सकती हैं।
मार्केटिंग और ब्रांडिंग के लिहाज से देखें तो दैनिक जागरण खुद को ज्यादा समृद्ध और ज्यादा पढ़े-लिखे लोगों का नंबर वन ब्रांड (हिंदी-अंग्रेजी अखबारों को मिलाकर) बनाने के लिए यह प्रयोग कर रहा है। प्रबंधन की कोशिश राष्ट्रीय संस्करण के जरिए उन बौद्धिक और नेतृत्वकारी लोगों तक पहुंचने की है जो आमतौर पर अखबारों में सतही व अति-स्थानीय खबरें होने की शिकायत करते हुए हिंदी अखबारों से मुंह मोड़ लेते हैं। ये वो तबका है जिसके पास सर्वाधिक पैसा होता है और जो विज्ञापनदाताओं की उम्मीदों का केंद्र होता है। रेवेन्यू के लिहाज से इस समृद्ध तबके को अपने से जोड़ने के लिए हर मीडिया हाउस लालायित रहता है। इस समृद्ध तबके को जोड़कर जागरण राष्ट्रीय कारपोरेट विज्ञापन से होने वाली अपनी आय को और बढ़ाना चाहता है। दैनिक जागरण प्रसार के मामले में देश का नंबर वन अखबार होने के बावजूद कंटेंट के मामले में हमेशा से दूसरे कई अखबारों से कमजोर माना जाता रहा है। इस कमजोरी को ठीक करने और प्रसार के साथ-साथ कंटेंट के लिहाज से भी नंबर वन बनने के लिए जागरण प्रबंधन कमर कस चुका है। उसी दिशा में है यह प्रयोग।
भड़ास4मीडिया के पास मौजूद राष्ट्रीय संस्करण की कई डमी कापियों से पता चलता है कि लुक एंड फील और लेआउट के मामले में राष्ट्रीय संस्करण को मूल संस्करण (जिसे अब नगर संस्करण कहा जा रहा है) से अलग रखने की भरपूर कोशिश की गई है लेकिन यह कोशिश प्रथम दृष्टया कामयाब होते हुए नहीं दिख रही है। संभव है, आगे के अंकों में यह कोशिश रंग ला सके। लेआउट व लुक एंड फील के मामले जागरण के राष्ट्रीय संस्करण को फिलहाल तो नगर संस्करण का सगा बड़ा भाई ही कहा जा सकता है और इन दोनों अखबारों को अगर साथ-साथ बिक्री के लिए रख दिया जाए तो पाठक पहली नजर में राष्ट्रीय संस्करण को ही असली दैनिक जागरण (विशेष मौकों पर विशेष साज-सज्जा के साथ अचानक अवतरित) समझकर खरीद लेगा। शायद यही कारण है कि प्रबंधन राष्ट्रीय संस्करण को डायरेक्ट बिक्री में डालने से बच रहा है क्योंकि उसे आशंका है कि इससे जागरण का मूल ब्रांड प्रभावित हो सकता है। वैसे भी कहा जाता है कि दैनिक जागरण प्रबंधन कोई कदम उठाने से पहले हजार बार सोचता है और हर तरह की शंकाओं-आशंकाओं से निपट लेने के बाद ही मैदान में बचते-बचाते कदम रखता है।
मीडिया विश्लेषक यह भी कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में खबरों को बेचकर पैसा उगाहने के लिए चलाए गए ‘पैकेज अभियान’ से ब्रांड की धूमिल हुई छवि और पाठकों में पैदा हुए अविश्वास को धोने-पोछने के लिए चुनाव के तुरंत बाद राष्ट्रीय संस्करण लांच किया गया है ताकि पढ़े-लिखे और मत निर्धारण में प्रमुख भूमिका निभाने वाले लोग एक बार फिर दैनिक जागरण से नए रूप में जुड़ सकें, भरोसा कर सकें। इसीलिए ‘क्वालिटी जागरण’ के रूप में दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण को पेश किया जा रहा है। इस अखबार का दाम पहले 4 रुपये बताया गया था लेकिन लांचिंग अखबार में मूल्य तीन रुपये लिखा हुआ है। अखबार के एडिटोरियल हेड वरिष्ठ पत्रकार राजीव सचान हैं जो दैनिक जागरण के थिंक टैंक माने जाते हैं। वे पिछले 20 वर्षों से जागरण समूह के साथ जुड़े हुए हैं। इन दिनों उनका पद एसोसिएट एडिटर का है। राजीव सचान के साथ दो दर्जन पत्रकारों की एक अलग टीम राष्ट्रीय संस्करण के लिए काम कर रही है।
इस नए प्रयोग का इसलिए स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि मंदी के इस दौर में कुछ पत्रकारों को जागरण ने नौकरी दी। दूसरे, कंटेंट के फील्ड में राष्ट्रीय संस्करण बनाम अति-स्थानीय संस्करण की परंपरागत बहस को फिर जिंदा कर दिया है। तीसरे, अन्य अखबारों को हिंदी के समझदार पाठकों के लिए नए सिरे से सोचने पर मजबूर किया है। चौथे, चुनाव में खबरों को बेचने का घृणित धंधा करके प्रबंधन ने जो सार्वजनिक पाप कमाया है, राष्ट्रीय संस्करण के जरिए उस पाप का सार्वजनिक शमन (प्रायश्चित) करने की कोशिश की है। आखिरी, नंबर वन अखबार होने के बावजूद सोच और व्यवहार के स्तर पर अंग्रेजी अखबारों से खुद को हीन समझने वाला जागरण प्रबंधन धीरे-धीरे गुणवत्ता की ओर बढ़कर खुद के आत्मविश्वास को उन्नत कर पाने में सफल हो पाएगा।