पत्रकारिता दिवस आया और चला गया. 29 और 30 मई को जगह-जगह प्रोग्राम और प्रवचन हुए. मैंने भी दिए. अयोध्या में. अयोध्या प्रेस क्लब की तरफ से आमंत्रित था. अपने खर्चे पर गया और आया. लौटते वक्त 717 रुपये अतिरिक्त ट्रेन में काली कोट वाले को दे आया. वापसी का टिकट कनफर्म नहीं हो पाने के कारण रुपये देकर भी ट्रेन में ठीक से सो न सका.
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फैजाबाद के पत्रकारों ने सिखाया रवि किशन को सबक
भोजपुरी फिल्मों के सुपर स्टार और बेहतरीन कलाकार रवि किशन इस उक्ति से रूबरू हुए फैजाबाद में. हुआ यूं कि रवि किशन ने आज फैजाबाद में प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया. फोन द्वारा उनके पीए ने पत्रकारों को दो बजे का वक़्त देते हुए प्रेस कांफ्रेंस की सूचना दे दी. दो बजे तक प्रिंट व इलेक्ट्रानिक के लगभग सभी संवाददाता प्रेस कांफ्रेंस के लिए सुनिश्चित जगह होटल कृष्णा पैलेस पहुँच गए.
लावारिस लाशों के वारिस उर्फ शरीफ चाचा
[caption id="attachment_18681" align="alignleft" width="87"]शरीफ चाचा[/caption]: एक डाक्यूमेंट्री फिल्म : सभी ताल ठोकतें हैं कि अयोध्या हमारी है। यही वह दावा है जिसने अयोध्या की ऊर्जा को सोख लिया है। पिछले दो दशक से मंदिर-मस्जिद के नाम पर हुई सियासत ने जीवन की तमाम खूबसूरती को छीन लिया है। शालीनता और धैर्य की चादर में लिपटी इस ऐतिहासिक नगरी में विकास का पहिया ऐसा थमा है कि लगातार पिछड़ता ही चला गया है। यहां का जूता उद्योग ऐसा उखड़ा कि दोबारा अपने पैरों पर नहीं खड़ा हो पाया। लेकिन इन सबके बीच कुछ उम्मीदें भी हैं, जो जीवन को नई राह दिखाने और जिंदगी को जीने का हौसला देने वाली ताकत बनी हुई हैं।
अयोध्या : किसकी हार, किसकी जीत
आजकल इस बात पर खूब बहस चल रही है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय से संबद्ध लखनऊ बेंच द्वारा सुनाए गए अयोध्या पर फैसले के खिलाफ सुन्नी वक्फ बोर्ड को सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए या नहीं। हालांकि वक्फ बोर्ड अब ऐलान कर चुका है कि वह मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाएगा, लेकिन समाज के कई तबकों से यह आवाज भी आ रही है कि मामले को हिंदू और मुसलमान, दोनों समुदायों के प्रतिनिधि मिलबैठ कर आपस में सुलझा लें। अगर ऐसा होता है तो इससे अच्छी बात कुछ और नहीं हो सकती लेकिन फैसला अगर कोर्ट से ही आना है, तो मामला सुप्रीम कोर्ट में जरूर जाना चाहिए। हालांकि आस्था से जुड़े इस संवेदनशील मुद्दे पर फैसला देना इलाहाबाद हाई कोर्ट के लिए भी आसान नहीं था, लेकिन फैसला पढ़ने के बाद यह धारणा बनती है कि कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर कम और आस्था (पापुलर बिलीफ) पर ज्यादा आधारित है। न्यायालय का फैसला संविधान-कानून सम्मत होता है, विश्वास और आस्था पर बेस्ड कतई नहीं होता। सो, अगर इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चैलेंज नहीं किया गया तो यह न्यायपालिका में एक बिल्कुल नए और असम्मत ट्रेंड को पनपने देने जैसा हो जाएगा।
हाशिम फिर निकले लिए ‘लुकाठा’ हाथ
[caption id="attachment_18237" align="alignleft" width="81"]हाशिम अंसारी[/caption]हाशिम अंसारी ९० वसंत देख चुके हैं| साठ साल तक अनवरत मुकदमा लड़ते-लड़ते वे कभी नहीं थके। उन्होंने वह मंजर भी देखा है, जब पूरी अयोध्या में धर्म के नाम पर रक्त पिपासुओं की टोलियां हुंकार भरती नजर आती थीं। वह दौर भी देखा है, जब पूरा शहर दहशत के चलते दुबक जाता था। रायफलधारी पुलिस वाले ही चप्पे-चप्पे पर पदचाप करते नजर आते थे। तब भी वे नहीं सहमे। उनकी आंखों से आंसू नहीं बहे।
वो पगलाए महान संपादक अब दुहाई दे रहे
: ये पन्ने मैं नहीं पलटता अगर एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक के समूह संपादक ने अयोध्या कांड के फैसले को लेकर आदर्श पत्रकारिता की दुहाई न दी होती : ये वही महान शख्स हैं जिन्होंने अयोध्या कांड के समय आगरा के पागलखाने के किसी बदतर पागल की तरह आचरण किया था और शर्म आ गयी थी पत्रकारिता की मूल भावनाओं और उसके आदर्शों को : तब ‘आज’ अखबार के आगरा संस्करण ने वो-वो कुकर्म किये थे कि मत पूछिए : तब अखबारों की उपासना के मानक स्थल भी टूटे थे : सच कहूं तो हम सभी लोग मौका-परस्त कमीने हो गए हैं :
अयोध्या कवरेज में आशुतोष ने मिसाल कायम की
: आइए, आईबीएन7 की इस पत्रकारिता का स्वागत करें : तारीख 30 सितम्बर 2010. टेलीविजन मीडिया के लिए एक इम्तिहान का दिन. आमतौर पर भारतीय टेलीविजन मीडिया अपनी अपरिपक्वता और जल्दबाजी के लिए कुख्यात है. परन्तु मामला इस बार बेहद संगीन और फिसलनदार. देश-विदेश के लाखों करोड़ो लोगों की नजर अपने टेलीविजन चैनल के स्क्रीन पर चस्पा थी.
All should respect and adhere to the Court verdict
Dear FRIEND, The Court verdict on the Ramjanambhoomi-Babri Masjid titleship issue has been given earlier today. All should respect and adhere to the Court verdict. Even though the Government had sent strict prior instructions to the TV News Channels not to air anything that will incite passions and the newspapers as well as the TV News Channels really did play a commendable role, we have not thought what impact it will have on our children and the future generations.
ये खून हिंदू और मुस्लिम, दोनों का है
: देवघर में प्रभात खबर की पहल : हर धर्म के लोगों ने किया रक्तदान : प्रभात खबर, देवघर संस्करण ने अयोध्या विवाद पर फैसला आने के ठीक एक दिन पहले व शहीदे आजम भगत सिंह के जन्मदिन के ठीक एक दिन बाद संथाल परगना के सबसे बड़ा रक्तदान शिविर का आयोजन किया.
आखिर कब तक, भेड़िया आया-भेड़िया आया?
भगवान श्रीराम का मंदिर बने या नहीं इसको लेकर पिछले कई सालों से मसाला बना कर उसे उड़ाया जाता है और फिर बंद बोतल में डाल दिया जाता है। लेकिन न तो श्रीराम का भला हुआ न ही इससे प्रभावित होने वाले आमजन का। विवाद दर विवाद होने से पिछले एक माह से जिस कदर अयोध्या और वहां के बाशिंदे गुजर रहे हैं, उसका दर्द सिर्फ और सिर्फ वही जान सकते हैं। इसके अलावा सुदूर गांव में बैठे लोग भी इससे अछूते नहीं हैं।
अयोध्या मसले पर एनबीए की एडवाइजरी जारी
All Editors of NBA, Re: The Impending Ayodhya Judgement, The Lucknow Bench of the Allahabad High Court has fixed 24th September 2010, for pronouncement of the judgement in the Ayodhya Case. The powerful and wide impact of the information disseminated by the electronic media on formation of public opinion makes it incumbent on the broadcasters to take extra care in the telecast of news relating to sensitive matters.
अयोध्या : सुलह नहीं, फैसला चाहते हैं पक्षकार
लखनऊ / अयोध्या : उत्तर प्रदेश में अयोध्या के फैसले से पहले लखनऊ से लेकर फैजाबाद तक माहौल गरमा गया है। लखनऊ में सियासी पारा बढ़ रहा है तो अयोध्या में आशंका और तनाव। दूसरी तरफ अयोध्या मसले पर दोनों तरफ के पक्षकारों में सुलह की अंतिम कोशिश भी नाकाम होती नज़र आ रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में इस मामले के पक्षकारों के बीच सुलह की एक और कोशिश के लिए 17 सितम्बर की तारीख़ तय की गई है। पर कोई पक्षकार सुलह के मूड में नहीं है।
सांप्रदायिक खबरें रोकने के लिए प्रेस परिषद पहुंचे
मीडिया स्टडीज ग्रुप (MSG) और जर्नलिस्टस यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी (JUCS) की तरफ से वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया, विजय प्रताप, शाह आलम, और ऋषि कुमार सिंह अयोध्या में मंदिर मस्जिद विवाद पर अदालती फैसले के मद्देनजर प्रेस परिषद द्वारा खबरों पर निगरानी रखने की मांग को लेकर भारतीय प्रेस परिषद पहुंचे. इन लोगों ने भारतीय प्रेष परिषद के अध्यक्ष को एक पत्र सौंपा. पत्र में जो कुछ कहा गया है, उसे हम नीचे प्रकाशित कर रहे हैं-