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23 अप्रैल 2009 की दैनिक हिंदुस्तान, दिल्ली की प्रिंटलाइन में स्थानीय संपादक के रूप में दिनेश जुयाल का नाम[/caption]दिल्ली ने बहुतों को बनते-बिगड़ते-उजड़ते-बसते देखा है। ‘कुर्सी मद’ में चूर रहने वालों की कुर्सी खिसकने पर उनके दर-दर भटकने के किस्से और दो जून की रोजी-रोटी के लिए परेशान लोगों द्वारा वक्त बदलने पर दुनिया को रोटी बांटने के चर्चे इसी दिल्ली में असल में घटित होते रहे हैं। दिल्ली के दिल में जो बस जाए, उसे दिल्ली बसा देती है। दिल्ली की नजरों से जो गिर जाए, दिल्ली उसे भगा देती है। दिल्ली में स्थायित्व नहीं है। दिल्ली में राज भोगने के मौके किसी के लिए एक दिन के हैं तो किसी [caption id="attachment_14750" align="alignright"]
24 अप्रैल 2009 की दैनिक हिंदुस्तान, दिल्ली की प्रिंटलाइन में स्थानीय संपादक के रूप में प्रमोद जोशी का नाम[/caption]के लिए सौ बरस तक हैं, बस, दिल्ली को जो सूट कर जाए। पर यहां बात हम राजे-महाराजाओं या नेताओं की नहीं करने जा रहे। बात करने जा रहे हैं हिंदी पत्रकारिता की। क्या ऐसा हो सकता है कि दिल्ली से दूर किसी संस्करण के स्थानीय संपादक का नाम उसी अखबार के राष्ट्रीय राजधानी के एडिशन में बतौर स्थानीय संपादक सिर्फ एक दिन के लिए छप जाए? ऐसा मजेदार वाकया हुआ है और यह हुआ है वाकयों के लिए मशहूर दैनिक हिंदुस्तान में। जी हां, दैनिक हिंदुस्तान, दिल्ली का 23 अप्रैल 2009 का अंक देखिए। इसके अंतिम पेज पर बिलकुल नीचे प्रिंटलाइन पर जाइए। इसमें स्थानीय संपादक का नाम प्रमोद जोशी नहीं लिखा मिलेगा। वहां नाम लिखा मिलेगा दिनेश जुयाल का। दिनेश जुयाल भी दैनिक हिंदुस्तान में हैं और स्थानीय संपादक हैं, लेकिन वे दिल्ली के नहीं बल्कि देहरादून संस्करण के स्थानीय संपादक हैं। 23 अप्रैल को जिन पत्रकारों की निगाह प्रिंटलाइन पर पड़ी, वे सभी चौंके थे।