: गंगा घोटाले को लेकर कुछ लोगों ने आवाज उठाई : पुण्य प्रसून बाजपेयी और खुशदीप सहगल ने किया बहिष्कार : नुक्कड़ समेत कई ब्लाग व ब्लाग एग्रीगेटर चलाने वाले और हिंदी ब्लागिंग को बढ़ावा देने के लिए हमेशा तन मन धन से तत्पर रहने वाले अपने मित्र अविनाश वाचस्पति का जब फोन आया कि 30 अप्रैल को शाम चार बजे दिल्ली के हिंदी भवन (जो गांधी शांति प्रतिष्ठान के बगल में है) में ब्लागरों की एक जुटान है तो मैं खुद को वहां जाने से रोक नहीं पाया.
आमतौर पर भड़ास के कामों से फुर्सत निकाल पाना मेरे लिए कठिन होता है लेकिन हिंदी ब्लागरों से जब मिलने मिलाने की बात होती है तो मैं उत्साहित होकर वहां पहुंचने की कोशिश करता हूं क्योंकि आज भड़ास4मीडिया जिस मुकाम पर है उसके पीछे हिंदी ब्लागिंग की ही देन है. भड़ास ब्लाग से जो शुरुआत की तो उसके पीछे कई हिंदी ब्लागरों का हाथ रहा है जिनसे हिंदी में टाइप करने से लेकर ब्लाग बनाने फिर साइट बनाने तक के नुस्खे सीखे. चार की बजाय तीन बजे ही हिंदी भवन मैं पहुंच गया. पहुंचते ही हिंदी भवन के सभागार स्थल के ठीक बाहर दो किताबों के प्रचार का बैनर टंगते हुए देखा.
इन किताबों पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का नाम लेखक के रूप में अंकित था. किताबें सफलता सिखाने वाली किताबों जैसी थीं (किताबों के नाम- 1- सफलता के अचूक मंत्र 2- भाग्य पर नहीं, परिश्रम पर विश्वास करें). थोड़ा अचरज हुआ कि एक मुख्यमंत्री सफलता सिखाने वाली किताबें लिख रहा है जिसमें ढेर सारी सच्चरित्र होने की बात कही गई थी और उसी मुख्यमंत्री का नाम कई तरह के घोटालों में आ रहा है. अभी कुछ रोज पहले ही सीएजी की रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि उत्तराखंड सरकार ने हरिद्वार महाकुंभ में गंगा घोटाल किया है. इस गंगा घोटाले के चलते गंगा और ज्यादा मैली हुई हैं. गंगा में भारी मात्रा में मल व मैल बहाकर उत्तराखंड सरकार ने न सिर्फ गंगाजी बल्कि भक्तों की पवित्र भावनाओं को भी चोट पहुंचाया है. इस घोटाले पर हो-हंगामा शुरू होने के आसार बन गए हैं. इस घोटाले से पहले भी कई घोटाले उत्तराखंड सरकार और इसके सीएम रमेश पोखरियाल निशंक के नाम दर्ज हैं. पर लगा कि डायमंड प्रकाशन वालों ने, जो कार्यक्रम के स्पान्सरों में से एक हैं, ये प्रचार बैनर इसलिए लगाए होंगे ताकि उनकी नई किताबों की बिक्री बढ़े. यह तनिक भी आभास नहीं था कि रमेश पोखरियाल निशंक भी इस कार्यक्रम में आने वाले हैं.
हिंदयुग्म डाट काम वाले शैलेष भारतवासी मिल गए. हिंदी ब्लागिंग के लिए इस शख्स ने काफी खून और पसीना जलाया-बहाया है. हिंदी ब्लागिंग के एक्टिविस्ट रहे हैं शैलेष. इनकी तारीफ में ज्यादा कुछ कहने की बजाय इतना बता दूं कि आउटलुक हिंदी वाले इस अंक में शैलेष भारतवासी की तस्वीर छपी है और उन पर रिपोर्ट भी है. शैलेष संग बतियाता और घूमता रहा. ब्लागर साथियों से परिचय होता रहा. उधर, रविंद्र प्रभात, अविनाश वाचस्पति समेत कई आयोजक लोग मंच को सजाने-संवारने में जुटे रहे. गिरोश बिल्लोरे मुकुल कार्यक्रम को ब्लागों पर लाइव प्रसारित कराने की एक अदभुत व्यवस्था को संयोजित करने व सफल बनाने में जुटे थे. मंच के बैनर से स्पष्ट हुआ कि बिजनौर की हिंदी की एक संस्था के पचास बरस पूरे होने पर यह कार्यक्रम आयोजित किया गया है और इसमें कई किताबों का विमोचन होना है.
शैलेष और मैं कार्यक्रम शुरू होने में देरी देखकर सभागार से बाहर निकल कर चाय पीने चले गए. वहां जिस चाय वाले से शैलेष ने परिचय कराया, उन्हें देखकर दंग रह गया. वे चायवाले नहीं बल्कि साहित्यकार हैं. उनकी लिखी किताबें फुटपाथ पर चाय की दुकान के बगल में सजी थीं, बिक्री के लिए. ठीक पीछे उनके साहित्यकार होने से संबंधित तस्वीरें व बैनर थे. तस्वीरों में चाय वाले साहित्यकार साथी पीएम, राष्ट्रपति समेत कई बड़े लोगों के साथ दिख रहे थे. बैनर पर इनका नाम लिखा देखा- लक्ष्मण राव. इतने बड़े लोगों से मिल चुका और इतनी अच्छी किताबें लिख चुका कोई शख्स चाय बनाकर जीवन चलाता होगा, ये सोचकर देखकर मैं हैरान था. ईमानदारी का नशा होता ही ऐसा है. मन ही मन मैं सोचने लगा कि मुझे ईमानदार नहीं रहना है क्योंकि ईमानदार व्यक्ति तो बहुत ठोकर खाता है, बेचारा चाय बेचने लगता है.
अपनी भावना, मन की भड़ास मैंने अपने एक साथी से शेयर की तो उनका कहना था कि दरअसल ईमानदार व्यक्ति जो जीवन जीता है, उससे कम से कम उसको मलाल नहीं होता, हम आप जरूर चकित होते हैं क्योंकि हम लोगों को लगता है कि सारी सुविधाएं मिलने के बाद ही ईमानदारी के लिए लड़ाई लड़ी जानी चाहिए या ईमानदार बनने का दिखावा करना चाहिए. आम आदमी तो अपनी ईमानदारी को अपनी शख्सियत मान उसे ही जीता रहता है और उसी में वो सारी खुशियां, सारे दुख-सुख पा लेता है जो हम लोग बहुत कुछ भौतिक सुख सुविधाएं पाकर भी नहीं जी पाते, नहीं महसूस कर पाते.
खैर, ये लंबी बहस है. मैं मन ही मन उस बुजुर्ग साहित्यकार साथी लक्ष्मण राव को प्रणाम कर और चाय खत्म कर लौट गया सभागार की तरफ. तब पता चला कि निशंक आने वाले हैं. उनका हवाई जहाज लेट है. फिर पता चला कि लैंड कर गया है. रायपुर वाले पंकज झा, दिल्ली वाले चंडीदत्त शुक्ला, मयंक सक्सेना समेत कई लोग मिलते रहे. जाकिर अली रजनीश, राजीव तनेजा, खुशदीप सहगल समेत कई ब्लागर साथियों से मुलाकात हुई. कई महिला ब्लागर भी वहां पहुंची थीं. कार्यक्रम शुरू होने में देरी होते देख सभागार से फिर बाहर निकला तो निशंक के स्वागत के लिए कई लोग लाइन में लगे दिखे. और अंततः कई गाड़ियों के साथ निशंक आ गए.
उतरते ही कुछ न्यूज चैनल वालों ने उन्हें घेर लिया. जिस प्रोग्राम में शिरकत करने आए थे, उसके बारे में बताने के बाद आगे बढ़े और सभागार में पहुंचे. उनके आते ही कार्यक्रम में तेजी आ गई. स्वागत आदि की औपचारिकता के बाद बिजनौर की साहित्यिक संस्था के पचास वर्ष पूरे होने पर बातचीत शुरू हुई. हम लोग फिर बाहर निकल आए. यह भी बताया गया कि करीब पचास साठ ब्लागरों का सम्मान होना है, उन्हें पुरस्कृत किया जाना है. थोक के भाव ब्लागरों का सम्मान. अच्छा लगा कि चलो ब्लागरों को रिकागनाइज किया जा रहा है. सभागार से बाहर आने के बाद कई ब्लागरों से बातचीत चाय की दुकान पर शुरू हुई. बातचीत में निशंक का भी जिक्र चला. उनके गंगा घोटाले की बात उठी. फिर यह भी कि निशंक से मीडिया वालों को सवाल करना चाहिए की उत्तराखंड के इस नए घोटाले के बारे में उनको क्या कहना है.
यहां मैं एक बात बताना भूल गया. हिंदी भवन के बगल में एक राजेंद्र प्रसाद भवन भी है. उसमें सुलभ इंटरनेशनल वाले बिंदेश्वरी समेत कई लोग एक किताब के विमोचन समारोह में आए थे. मुझे सुरेश नीरव ने सूचित किया था, सो बीच में मैं शैलेष के साथ हिंदी भवन से उठकर राजेंद्र प्रसाद भवन चला गया. वहां चाय-नाश्ता तुरंत मिलने वाला था, इसलिए चाय-नाश्ता मिलने तक रुके और खा-पीकर फिर इधर निकल आए. मैंने शैलेष से बोला कि हम लोग प्रेमचंद की कफन कहानी के नायकों सरीखे हो गए हैं, प्रोग्राम में शिरकत करने के नाम पर पहुंचे और खा-पीकर निकल लिए, बिना किसी को दुआ सलाम किए. शैलेष हंसे.
मैं ऐसे क्षण इंज्वाय करता हूं. ऐसी ही जिंदगी जीता रहता हूं जिसके हर पल में छोटी मोटी शैतानियां, खुशियां, एक्सप्रेसन आदि हों. लगातार गांभीर्य धारण करे रहना, लगातार खुद को क्रांतिकारी इंपोज करते रहना अपन से नहीं होता और ऐसी हिप्पोक्रेसी के मैं खिलाफ भी रहता हूं. मनुष्य बेहद सरल चीज होता है, वह उलझी हुई दुनिया को देखकर खुद बहुत कांप्लेक्स बनता जाता है और अंततः अंदर कुछ और, बाहर कुछ और वाला दो शख्सियत रखने वाला इंसान बन जाता है. पर, हर गंभीर आदमी हिप्पोक्रेट होता है, ऐसा भी नहीं है. कई लोगों की गंभीरता उनके स्वभाव का हिस्सा होता है. वे बचपन से ही वैसा जीवन जीते हैं और वैसे ही व्यवहार करते हैं.
आखिरी बार लौटकर जब हिंदी भवन सभागार जाने लगा तो हिंदी भवन के गेट पर पुण्य प्रसून बाजपेयी दिखे. कुछ छात्रनुमा युवका, पत्रकार नुमा युवक उनसे बतिया रहे थे और पुण्य जी लेक्चर दिए जा रहे थे, बड़ी खबर वाले अंदाज में. उन्होंने कार्यक्रम के आयोजकों को समय का ध्यान न रखने के लिए कोसा. उन्हें कार्यक्रम के दूसरे सत्र, जो ब्लागिंग पर था, के लिए बुलाया गया था. पर आयोजकों को होश ही नहीं था कि पुण्यजी आ गए हैं. और, जब निशंक की बात चली तो पुण्य प्रसून ने कहा कि करप्शन के चार्जेज इन महोदय पर लगे हैं. निशंक के मंच पर बैठे होने की बात को पुण्य प्रसून पचा नहीं पाए. और यह भी किसी ने कहा कि भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे निशंक के हाथों ही ब्लागरों को पुरस्कृत-सम्मानित कराया जाना है. थोड़ी देर बाद पुण्य प्रसून बाजपेयी गेट से अपनी कार की तरफ बढ़े.
तभी खुशदीप सहगल, जो संभवतः जी न्यूज में हैं, गुस्साए हुए आए और बोले कि पुरस्कार वगैरह सब वहीं छोड़ दिया है, इन आयोजकों को इतनी भी समझ नहीं है कि किसके हाथ पुरस्कार दिला रहे हैं. सहगल का गुस्सा इस बात पर ज्यादा दिख रहा था कि पुण्य प्रसून बाजपेयी को ब्लागिंग के कार्यक्रम के लिए बुलाया गया लेकिन किसी ने उन्हें मंच पर बुलाने की जरूरत नहीं समझी. एक तरह से पुण्य प्रसून बाजपेयी और खुशदीप सहगल ने अपना विरोध प्रकट करते हुए वहां से निकल लेने की तैयीर शुरू की और आयोजन को बीच में छोड़कर चले गए.
मैं अंदर का नजारा देखने सभागार में पहुंचा. मंचासीन एक सज्जन, जो कभी अधिकारी हुआ करते थे, माइक पकड़कर ब्लागरों को नसीहत दे रहे थे. तारीफ कर रहे थे. निशंक को बार बार संबोधित कर उन्हें देवेगौड़ा से अपनी नजदीकी का किस्सा सुनाते हुए उनके पीएम बनने पर अलग राज्य बनाए जाने के दौरान की घटना का जिक्र कर रहे थे. उनके कहने का आशय ये भी था कि अलग राज्य उनकी सलाह पर देवेगौड़ा ने बनाया, सो, उसी कारण उत्तराखंड बना, और इस कारण उनका निशंक पर हक बनता है, इसके लिए वे बाद में निशंक से मिल लेंगे. वे यह सब बात थोड़ा हंसते हुए भी कह रहे थे, सो कुछ लोगों ने इसे मजाक माना और कुछ ने इसे पूरी गंभीरता से लिया. और हां, इस अधिकारी महोदय ने भ्रष्टाचार पर इतना भाषण झाड़ा कि लोग बोर हो गए. वे स्विस बैंक में जमा धन को भारत लाने के बारे में तरकीब बता रहे थे, वे यूरोपीय यूनियन के बारे में बता रहे थे. पर उन्हें साहस नहीं हुआ कि वे मंच पर बैठे निशंक से उनके राज्य के घोटालों के बारे में पूछ सकें.
प्रभाकर श्रोत्रिय, रामदरश मिश्र आदि आए और बोले. रामदरश मिश्र ने अपनी उम्र का हवाला देते हुए साफ-साफ बता दिया कि उन्हें ब्लाग के बारे में कुछ नहीं पता, लेकिन इतना पता है कि ये बहुत अच्छा है और हर कोई अपने ब्लाग पर लिखकर अपनी बात सब तक पहुंचा सकता है. प्रभाकर श्रोत्रिय ने ब्लाग में सिर्फ सरोकार, विचार, समाज आदि के बारे में लिखे जाने की बात कही. उनके कहने का आशय ये था कि ब्लाग पर कूड़ा करकट नहीं परोसा जाना चाहिए. कई ब्लागरों ने मन ही मन इस पर आपत्ति दर्ज की. सभी हिंदी साहित्य निकेतन संस्था के पचास वर्ष होने और इसके संस्थापक गिरिराज शरण अग्रवाल को जमकर दुवाएं दीं. गिरिराज शरण अग्रवाल की बड़ी बेटी मंच का संचालन कर रहीं थीं. उनकी छोटी बेटी भी पूरे आयोजन को सफल बनाने में पूरे सक्रियता से जुटी हुई थीं. गिरिराज जी की पत्नी मीना भी अच्छी साहित्यकार हैं, ये बात पता चली. हम जैसे साहित्य के अज्ञानियों के लिए पूरे आयोजन ने ये संदेश जरूर दिया कि ये अग्रवाल कुनबा साहित्य की जमकर सेवा कर रहा है. और, इस परिवार के हर एक सदस्य, यहां तक कि छोटे बच्चों को भी बेहद सक्रिय व सहज देखकर अच्छा लगा.
पूरे आयोजन के दौरान मैं उस वक्त वहां नहीं था जब ब्लागरों को पुरस्कार आदि दिए जा रहे थे, सम्मानित किया जा रहा था. लेकिन बाद में जब कार्यक्रम खत्म हुआ तो देखा कि ब्लागर भाई बहन लोग गदगद हैं, सम्मान पाकर, पुरस्कृत होकर. दो बार दर्शकों के बीच से निशंक को लेकर आवाज उठाई गई, भ्रष्टाचार के बारे में. पर ये आवाज बेहद धीमी थीं, सो मंच तक नहीं पहुंच पाई, हां, अगल बगल वाले लोग जरूर आवाज उठाने वालों को देखने लगे.
दोपहर तीन बजे हिंदी भवन पहुंचा तो रात करीब आठ बजे वहां से घर के लिए निकला जब चाय के लिए ब्रेक हो गया. लौटते वक्त ड्राइव करते हुए सोचता रहा, लंबे जाम में फंसने के बाद गाड़ी बंदकर सोचता रहा, इस धरती पर अरबों खरबों लोग हैं, कोई चोर है, कोई उचक्का है, कोई आम आदमी है, कोई बेईमान है, कोई राजा है, कोई रंक है, कोई त्रस्त है, कोई मस्त है. सबके अपने अपने तर्क और सबके अपने अपने कर्म. कोई किसी को चोर चोर कह रहा है तो कोई चोर चुपचाप अपना काम किए जा रहे हैं और चोरी को चोरी न मान, इसे जीवन का हिस्सा मानकर जिए जा रहा है. कोई चोर दूसरे कथित ईमानदारों को लालीपाप पकड़ा कर अपने गोल में कर ले रहा है और उसे अपना प्रवक्ता बना दे रहा है और वह लालीपाप वाला आदमी अब चोर के चोर न होने के पक्ष में तर्क दिए जा रहा है.
ढेरों बिंब प्रतिबिंब आते रहे जाते रहे. यह भी लगा कि इस सिस्टम में बेहद मजबूरी में ही बड़े चोर पकड़े जाते हैं. कलमाड़ी अभी पकड़ा गया. उसके पहले तक वह सीना ताने खुद को ईमानदार बताता घूम रहा था. और फिर कलमाड़ी ही चोर कैसे. कलमाड़ी ने जो कुछ किया उसे क्या उसके उपर वाले आकाओं ने संरक्षण देकर नहीं कराया. तो फिर चोर सिर्फ कलमाड़ी ही क्यों. वो जो चोरी के स्रोत हैं, वे तो सबसे बड़े ईमानदार बने फिरते हैं और चोरी के खात्मे की मुहिम को सपोर्ट करने की बात कहते हैं.
विचारों, खयालों की दुनिया से निकलकर जब घर पहुंचा तो लगा कि दरअसल इस देश में यथास्थितिवाद ने इस कदर घर कर लिया है कि हर कोई सब कुछ जान बूझकर चुपचाप अपने अपने हिस्से की जिंदगी अच्छे से जिए जाने के लिए कसरत कर रहा है. और पसीना सुखाते वक्त दूसरों की चिंता करने का नाटक करते हुए फिर अपने हिस्से की मलाई की तलाश के लिए दाएं-बाएं सक्रिय हो जाता है. पर यह सच संपूर्ण नहीं है.
राजधानियों के बाहर जंगलों गावों कस्बों छोटे शहरों में जो खदबदाहट है, उसे शायद महानगर वाले महसूस नहीं कर पाते लेकिन एक दिन कोई उन्हीं जंगलों और गांवों और कस्बों और छोटे शहरों से निकल कर जब दैत्याकार महानगरों में आता है तो उसे लगता है कि उसने जो कुछ सीखा जिया वो सच नहीं, सच तो ये है झूठ की दुनिया है जहां आगे बढ़ने के लिए हर पल झूठ के शरणागत होने की मजबूरी है और इसे नकार देने पर तनहाई, परेशानियों, मुश्किलों का अंतहीन दौर है. और ऐसे ही किसी युवक के हाथों में कभी कोई हथियार आ जाता है, कोई विचार आ जाता है और वो सबको थर्रा देता है.
जंगलों से आती कराह की आवाज, गोलियों की आवाज, सिस्टम के सताये लोगों की आहों की आवाज…. ये बेकार न जाएंगी. कई बार हालात बदलने में देरी होती है, वक्त लगता है, पर इसका मतलब यह नहीं कि सच हार गया. देश से गोरों को भगाने में कई दशक लगे. कई तरह के नेता उगे. कई तरह के विचार आए. तब जाकर जनता गोलबंद हुई. आजादी की लड़ाई शुरू और खत्म होने में सौ साल लगने में केवल दस साल ही शेष रह गए थे.
इस मुल्क में जो नई व्यवस्था की गुलामी पिछले साठ साल से चल रही है, उसे खत्म होने और कोई नई व इससे ज्यादा ईमानदार व पारदर्शी व्यवस्था आने में अभी कुछ वर्ष या कई दशक लग सकते हैं. जरूरत सिर्फ इस बात की है कि हम अपने अपने हिस्से के विरोध को प्रकट करते रहें, नए माध्यमों के जरिए अपनी आवाज उठाते रहें, कभी संगठित होकर सड़क पर आते रहें तो कभी समानता के गीत गाते हुए दूसरों को यह गाना सिखाते रहें.
आज का दिन निशंक के नाम रहा. निशंक को अच्छा कहने वाले भी भारी संख्या में हैं, और उसमें से कई वित्तपोषित हैं. निशंक को बुरा कहने वाले भी बहुत लोग हैं, जिनमें से कई निजी स्वार्थ के कारण उनका विरोध करते हैं. लेकिन निशंक के राज में जिस जिस तरह के घोटाले खुलते रहे हैं और खुल रहे हैं, वे कई सवाल उठाते हैं. निशंक का चरित्र एक तरफ सदाचारी, साहित्यकार और तेजस्वी का चित्रित किया जाता है तो दूसरी तरफ वे बेहद भ्रष्ट, अवसरवादी, सांठगांठ में माहिर बताए जाते हैं.
सच क्या है, ये हम आप पर छोड़ते हैं लेकिन यह याद रखिएगा कि निशंक कोई अंतिम व्यक्ति हमारे आपके बीच में नहीं हैं. यहां दिल्ली से लेकर लखनऊ, पटना, रायपुर तक ढेर सारे निशंक अलग अलग नामों से बैठे हुए हैं. इन राज्यों में अफसर बेहद संजीदगी से भ्रष्टाचार की रणनीतियां बनाकर अपने आकाओं को ओबलाइज कर रहे हैं. आज ही कहीं अखबार में पढ़ा था कि कोर्ट ने नौकरशाहों को फटकारा कि ये लोग सब जानबूझकर गलत काम करते और कराते हैं.
कांग्रेस हो यो भाजपा. निशंक हों या मनमोहन. सबके खाने और दिखाने के दांत अलग अलग हैं. लोग कानूनी तरीके से भ्रष्टाचार करने लगे हैं और पकड़े भी नहीं जाते, सवाल उठाने वालों को ही दौड़ा लेते हैं. बेईमानी में पकड़े जाते हैं छोटे मोटे अफसर. ट्रैफिक सिपाही, स्ट्रिंगर. राडिया के दलाल पत्रकार आज भी महान हैं. कई अपने अपने संस्थानों में विराजमान हैं. और उनके संस्थान इन दिनों भ्रष्टाचार के खिलाफ जमकर लिख बोल रहे हैं. यह हिप्पोक्रेसी ही तो है. यह दिखाने और खाने के अलग अलग दांत ही तो हैं.
ऐसे माहौल में, जब झूठ का दर्शन सच के रूप में कराया जा रहा हो और सच बताने वालों को उनकी कीमत लगाकर भ्रष्टाचारियों के पक्ष में खरीद लिया जा रहा हो, वहां तो लगता है कि अब बस राम राम ही कहा जाए और मान लिया जाए कि होइहें वही जो राम रचि राखा.
जय हो.
अगर आप कार्यक्रम में मौजूद रहे हैं, तो जरूर अपनी प्रतिक्रिया दीजिएगा कि मेरी रिपोर्टिंग में कहां कहां गड़बड़ी हुई है और आप क्या सोचते रहे या सोचते हैं पूरे आयोजन व घटनाक्रम पर.
यशवंत
… आयोजन से जुड़ी कुछ तस्वीरें …
हिंदी भवन सभागार के ठीक बाहर लगा निशंक की नवप्रकाशित पुस्तकों का बैनर
हिंदी भवन में आयोजन शुरू होने से पहले मंच की तैयारियों का दृश्य
अपनी नई किताब का विमोचन करते उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डा. निशंक व अन्य.
संबोधित करते डा. प्रभाकर श्रोत्रिय.
साहित्यकार लक्ष्मण राव और उनकी चाय की दुकान. पीछे उनका बैनर.
साहित्यकार लक्ष्मण राव के बारे में बताते हिंदयुग्म के संपादक शैलेष भारतवासी. लक्ष्मण राव के बगल में उनकी किताबें बिक्री के लिए रखी रहती हैं और पेड़ के सहारे उनकी तस्वीरों का कलेक्शन टिका हुआ.
बड़े बड़े लोगों के साथ खड़े लक्ष्मण राव चाय बेचते हैं, ये भला कोई यकीन कर सकता है.
चाय विक्रेता और साहित्यकार लक्ष्मण राव की किताबें.
हिंदी भवन से निकलकर राजेंद्र प्रसाद भवन पहुंचे तो वहां भी कई लोग मिले. चाय नाश्ता कर वहां से हम लोग निकल आए.
हिंदी भवन के बाहर लक्ष्मण राव की दुकान की चाय पीते शैलेष भारतवासी, पंकज झा, मयंक सक्सेना, चंडीदत्त शुक्ला आदि ब्लागर साथी.
मद्न कुमार तिवारी
May 1, 2011 at 3:37 am
डियर शब्दो से क्रांति नही पैदा होती और तर्क के सहारे दिन को रात साबित भले किया जा सकता है लेकिन दिन , रात नही बन जाता । पुण्य प्रसून वाजपेयी की मैं प्रशंसा करता हूं । भ्रष्ट को भ्रष्ट तो कहा । बाकी जितने ब्लागर वहां जुटे थे , सभी चाटुकार श्रेणी के होंगे । अभी तक अखबार और टीवी को गाली दे रहे थे न , अब ब्लागर भी उसी कैटेगरी में आ गये हैं।
राहुल सिंह
May 1, 2011 at 3:43 am
रचना के महत्व आंकलन के साथ रचनाकार की हैसियत को साज-सज्जा के लिए इस्तेमाल किया जाता है, क्या कहें.
Gajender Singh
May 1, 2011 at 4:25 am
आपकी रिपोर्टिंग तो कमाल की है ,
पर ये बड़े बड़े ब्लॉगर जो है क्या इन्हे कोई और नहीं मिला पुरस्कार बांटने के लिए …. पर अगर कोई और होता तो शायद वहाँ पर मीडिया नहीं होता फिर इनके चेहरे टी वी पर कैसे चमकते, …..
एक बात और समझ से परे है बिजनौर की साहित्यिक संस्था के पचास वर्ष पूरे होने पर आयोजन दिल्ली मे क्यो किया गया , क्या आयोजन बिजनौर मे नहीं होना चाहिए था ?
yogendra pal
May 1, 2011 at 4:27 am
आपके द्वारा पता चला यही बहुत है मेरे लिए
दीपक सैनी
May 1, 2011 at 4:41 am
पुण्य प्रसून वाजपेयी और खुशदीप सहगल जी की तारीफ करना चाहूँगा और साथ में आपकी भी,
लक्ष्मण राव जी के बारे में जानकारी के लिए आभार
ajit gupta
May 1, 2011 at 5:05 am
कार्यक्रम किसी का भी हो लेकिन जब तक उसका विधिवत पूर्ण रूपरेखा सहित कार्यक्रम ना हो, उसमें नहीं जाना चाहिए। ब्लागिंग के जितने भी कार्यक्रम हो रहे हैं वे व्यक्तिगत प्रकार के हैं, इस कारण अपनी पसन्द और नापसन्द के लोग वहाँ रहते ही हैं।
दिनेशराय द्विवेदी
May 1, 2011 at 5:13 am
आप वहाँ उपस्थित थे, हम आप से मिल न सके, मलाल है। मलाल तो इस बात का भी है कि लक्ष्मणराव जी से नहीं मिल सके।
आप की रिपोर्टिंग बहुत संयत है। वर्ना और भी बहुत कुछ लिखा जा सकता था। यह आयोजन उन मुद्रकों का था जो लेखक की पुस्तक उन के ही धन से मुद्रित करते हैं और उसे बेचने की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर डाल देते हैं। ये लोग मुफ्त में अपना नाम प्रकाशक के रुप में उन पुस्तकों पर छाप कर प्रकाशक कहाते हैं। ये लोग मुख्यमंत्री टाइप के लोगों की किताबें प्रकाशित करते हैं तो इस लिए कि उन से टेबल के नीचे से कुछ न कुछ मिलता है। सरकार द्वारा अपने पुस्तकालयों में खरीदे जाने वाली पुस्तकों की सूची में इन की किताबों का नाम शामिल किया जाना भी पर्याप्त होता है। इन्हें प्रकाशक कहना भी प्रकाशक शब्द का अपमान है।
ब्लागरों के सम्मान का झमेला न होता तो शायद पचास लोगों को इस आयोजन में जुटा पाना संभव नहीं हो पाता। ब्लागरों की उपस्थिति से ये मुद्रक और निशंक जैसे लोग धन्य ही हुए हैं।
ब्लागर भी वहाँ सम्मान के लिए एकत्र नहीं थे। इसलिए थे कि उन्हें वहाँ दूसरे ब्लागरों से मिलने का अवसर मिल रहा था। वे गद्गद भी इस लिए थे कि आपस में मिल रहे थे, इसलिए नहीं कि उन्हें सम्मान मिला था।
प्रकाशक नामधारी इन मुद्रकों के शोषण से मुक्त होने का एक ही उपाय है,कि ब्लागर अपने प्रकाशनों के लिए सहकारी प्रकाशन संस्थान बनाएँ।
Rajeev
May 1, 2011 at 5:18 am
ठीक बोलते हो डियर. कुछ टाइम पहले ऐसा ही एक आयोजन हुआ था जिसमें नामवर सिंह को बुलाया गया था. दिल्ली वाले आयोजन से तो वह लाख दर्जे बेहतर था यह मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मैं दोनों में मौजूद था. यह बात और है की गुटबाजी के कारण उस आयोजन में नामवर के होने को बड़ा तूल दिया गया.
दो कौड़ी के ब्लौगर और उनकी मंडलियाँ. फिक्सिंग के सम्मान के लिए सब मरे जा रहे थे.
अब मैं ब्लौगिंग से बाहर हूँ इसलिए यह कहने का हक बनता है.
Darshan Lal Baweja
May 1, 2011 at 8:46 am
लक्ष्मण राव जी के बारे में जानकारी के लिए आभार
कमाल की बातें !!!!!
Vijay Kumar "Veer"
May 1, 2011 at 6:04 am
Yashwant,
mujhe apke lekh per hansi our apki budhidhi per taras aata hai, ek taraf to aap ek daridra sahityakar ki tareef kaar rahe hai dusri taraf aap us vyakti ki burai jo kum se kum sahityakaro ki dasha sudharnai ke liye sankalpit hai.
Aap se janna chahunga lal batti paar kernai ke karan aapka kitni baar chalan hua hai aur kitni baar aapnai riswat ke pasai dekar apni gari churai hai.
humko sharum ani chahiye ke is taraf ke ayojan ko darava dene ki jageh hum usmai meen mekh nikaltai hai.
Blog keval bhadas denai ke liye he nahi rasta dikhanai ke liye bhi hota hai parantu aap ke lekh mai keval bhadas hai rasta nahi.
Agar aap such mai blog ke gyani hai to isko site pe rehna dena… baki aglai log mai.
Veer
sarita Agarwal
May 1, 2011 at 6:07 am
🙂
khush hai ki hum vanha nahee the…..Laxman rao jee se milane ka dhanyvaad .
अजय कुमार झा
May 1, 2011 at 6:46 am
आदरणीय यशवंत जी ,
सादर नमस्कार । समझ नहीं आ रहा कि कहां से शुरू करूं । भडास फ़ोर मीडिया , ….नहीं भडास अगैंस्ट ब्लॉगर्स ही लगी मुझे ये पोस्ट । अब बात पहले शीर्षक की ..किसने कब किया बहिष्कार ..हमें तो नहीं दिखा ..खुशदीप भाई पूरे जोश खरोश के साथ पुरस्कार लेते दिखे …फ़ोटो भी देर सवेर दिख ही जाएगी आपको ..पुण्य प्रसून वाजपेयी जी ने ..कब कहां किया बहिष्कार ??
आज तक किसी ब्लॉग पोस्ट पर उनकी टिप्पणी तो दिखी नहीं फ़िर बहिष्कार कहां कर दिया । आपने रिपो्र्ट बिंदास बेबाक लिखी इसमें कोई शक नहीं ..एक ब्लॉगर के तेवर के अनुरूप ही । इस कार्यक्रम की , इसकी रूपरेखा की , आने वाले सभी अतिथियों की पूरी जानकारी ..किसे नहीं थी ..पिछले दिनों लगातार पोस्टों में इस बात का जिक्र हो रहा है । हां एक राजनीतिज्ञ के हा्थों पु्रस्कृत होने का दर्द या विरोध समझ में आ सकता है लेकिन मैं हैरान हो जाता हूं कि यही मीडिया खुद इन्हीं नेताओं के आसपास तो मंडराता रहता है ..खुद ही इनकी तस्वीरें खींचता है , साक्षात्कार करता है ..तब विरोध नहीं करता ….।
अब बात वहां जुटे ब्लॉगर्स की जिनके लिए टिप्पणियों में कहा गया कि वे टीवी में अपनी फ़ोटो देखने के लिए , चाटुकारिता के लिए या शायद फ़ालतू के पुरस्कार लेने के लिए इकट्ठे हो गए थे …कमाल का अदभुत विश्लेषण किया है लोगों ने वाह वाह ..खैर वहां मिलने वाले ब्लॉगर के बीच होने वाले संवाद उनका आपसी परिचय ये सब बातें उनकी समझ से परे हैं जो महज़ अंदाज़ा लगा रहे हैं । कुछ लोग ऐसे भी थे जो सिर्फ़ आभासी रिश्तों को वास्तविक आभास महसूसने पहुंचे थे ..मगर वे आपको और आपके पाठकों को नहीं दिखाई दिए होंगे ..क्योंकि आपकी पोस्ट की छवियों में ब्लॉगर्स को छोडकर अन्य सभी हैं ..मीडिया मित्र , साहित्यकार , राजनीतिज्ञ सभी हैं । खैर ये हिंदी ब्लॉगिंग और ब्लॉगर्स के लिए क्या नया लेकर आएगा ये तो वक्त ही बताएगा मगर इतना तय है कि ऐसे ही कुछ विवाद दिनोंदिन ब्लॉगर्स को किसी आयोजन में हाथ डालने से हतोत्साहित करते हैं । चलिए अभी तो और भी टिप्पणियां आनी हैं । फ़िलहाल विदा शुक्रिया .,…आपके दर्शन न हो पाए अफ़सोस रहेगा
Neeraj Bhushan
May 1, 2011 at 6:55 am
हां भाई, पुण्य प्रसून बड़े आदमी हो गए हैं. चाल-ढाल बोल-चाल बता रहा है. सोच रहा हूँ, अब वो जिस कार्यक्रम में दिखें वहां बैठना उचित नहीं होगा.
Ratan Singh Shekhawat
May 1, 2011 at 7:30 am
ये बात तो तय थी कि आयोजन एक प्रकाशक द्वारा किया जा रहा है और उन्होंने ब्लोगर्स को अपने कार्यक्रम में आमंत्रित किया , मंच पर ब्लोगर्स को बोलने का पूरा मौका भी दिया गया वो बात अलग है कि वहां बोलने के लिए बहुत कम लोग थे और ई पंडित जी को काफी समय ना चाहते हुए ही बिताना पड़ा |
कई लोगों को मुख्यमंत्री “निशंक” की उपस्थिति रास नहीं आई , प्रसून वाजपेयी चले गए हो सकता है वे नहीं जाते और मंच पर उपस्थित होते तो कई लोगों को उनकी उपस्थिति भी रास नहीं आती |
शायद लोग कहने में हिचके पर मैं साफ़ कह रहा हूँ कम से कम मुझे तो प्रसून वाजपेयी की उपस्थिति बिलकुल नहीं पचती जैसे लोगों को निशंक जी नहीं पच रहे थे |
निशंक पर घोटालों का आरोप है तो प्रसून वाजपेयी भी उसी बिके हुए मिडिया से सम्बंधित है जो सरकार का भोंपू बना हुआ है |
छद्म सेकुलर लोगों को निशंक कहाँ पचते ?
पंकज झा.
May 1, 2011 at 7:36 am
सुन्दर रिपोर्टिंग यशवंत जी. बस एक चीज़ भूल गए शायद आप. वहाँ हम सब लोग अपने एक कनिष्ठ मित्र को ‘जैदी और जरनैल’ बनने को भी प्रेरित कर रहे थे, उकसा रहे थे ये कह कर की अभी तो बन जाओ…किस मुद्दे पर हुआ ये मामला ये बाद में तय कर लेंगे…वो तो भला हो मित्र के जूते प्रेम का की तलवार म्यान से बाहर नहीं निकल पाया.अन्यथा आज देश के कोने-कोने तक इस आयोजन की धमक होती….हा हा हा हा …अच्छा लगा आभासीय दुनिया के मित्रों से रु-ब-रु होना. 😉
एक निडर ब्लॉगर
May 1, 2011 at 7:40 am
ब्लॉगर तो पचा गए पर पत्रकारों को जरूर अपच हो गया और उनसे जुड़े ब्लॉगर साथियों की हिम्मत जवाब दे गई। यशवंत भाई, आपकी हिम्मत की दाद देनी होगी। ब्लॉगरों को चाटुकार बतलाने वाले तिवारी अपनी जीभ की जांच करवाएं तो उस पर जरूर उन्हें निशान नजर आयेंगे। अभी नुक्कड़ से लौट रहा हूं देखा कि खुशदीप पुरस्कार बनाम सम्मान ग्रहण करते हुए खुशी जाहिर कर रहे हैं तो क्या यह खुशी मन की नहीं है। बस वे सच्चाई के साथ डट नहीं पा रहे हैं, आप जानते तो हैं कि वे पुण्यप्रसून वाजपेई के अधीन काम करते हैं। और पेट का सवाल कई सारे बवाल पैदा कर देता है। किसको मालूम नहीं था क्योंकि मैंने खुद कई दिनों से इस आयोजन के निमंत्रण पत्र पर मुख्यमंत्री महोदय का नाम प्रकाशित देखा है। उसमें मंत्री जी और वाजपेई जी दोनों का नाम प्रकाशित है। खुशदीप खुशी से पुरस्कार ले रहे हैं। फिर एकदम से यकायक यह परिवर्तन क्यों आ गया, मतलब राजनीति की दलबदलू प्रवृति के कुछेक ब्लॉगर भी हैं। पर मुझे तो यह आयोजन बहुत अच्छा लगा है। हां इंटरनेट पर कुछ तकनीकी त्रुटियों के कारण पूरा समारोह नहीं देख पाया हूं पर जितना देखा है उससे तो कहीं नहीं लगा कि ब्लॉगरों को उपेक्षित किया गया है। उसमें ब्लॉगरों से ही बुलवाया गया है और खूब बुलवाया गया है। यह ब्लॉगरों की ही हिम्मत है कि वे कार्यक्रम में जुटे रहे हैं और अविनाश वाचस्पति अन्नाभाई के साथ हम किसी भी सुनामी में जुटे रहेंगे।
Khushdeep Sehgal
May 1, 2011 at 7:41 am
सोचा तो यही था कि कल के प्रोग्राम पर कुछ नहीं लिखूंगा…लेकिन कुछ बातों को साफ करना मेरे लिए बहुत ज़रूरी हो गया है…
पहली बात मैं अपने सम्मान को वहीं कुर्सी पर छोड़ आया और मोहिंदर जी समेत कुछ और ब्लॉगर्स से निवेदन भी कर आया कि इसे आयोजकों के पास वापस पहुंचा दीजिएगा…
मुझे नहीं पता था कि सम्मान मुख्यमंत्री निशंक के हाथों बांटे जाएंगे…मेरे लिए उस वक्त धर्मसंकट ये था कि शिकागो से भाई राम त्यागी और दुबई से दिगंबर नासवा जी ने मुझसे व्यक्तिगत तौर पर अपने सम्मान लेने के लिए कहा था…इसलिए उस वक्त सम्मान लेना अपरिहार्य था…वहां निशंक ही नहीं रामदरश मिश्र, प्रभाकर जी, अशोक चक्रधर, विश्वबंधु गुप्ता जैसी विभूतियां भी स्टेज पर मौजूद थीं…स्टेज पर मेरा न जाना उनका भी अपमान होता…
अब सुनिए आयोजकों ने मुझे किस तरह मिसगाइड किया…प्रोग्राम सीधे-सीधे दो भागों में बांटा गया था- पहला भाग हिंदी साहित्य निकेतन, किताबों का विमोचन, ब्लॉगरों को सम्मान इत्यादि…ये कार्यक्रम शाम चार से साढ़े छह बजे तक चलना था…छह से साढ़े छह बजे अल्पाहार का कार्यक्रम तय किया गया…उसके बाद साढ़े छह से आठ बजे तक देश को जागरूक करने में न्यू मीडिया की भूमिका पर संगोष्ठी होनी थी…फिर नाटिका और उसके बाद भोजन…
मुझसे आयोजक और लखनऊ के जाने माने ब्लॉगर रविंद्र प्रभात जी ने व्यक्तिगत तौर पर आग्रह किया था कि मैं पुण्य प्रसून वाजपेयी जी को कार्यक्रम के दूसरे भाग में मुख्य अतिथि बनने के लिए आग्रह करूं…मैंने उनके कहने पर अपनी तरफ से कोशिश की…ये पुण्य प्रसून जी का बड़प्पन है कि वो सिर्फ मेरे कहने पर तैयार हो गए…लेकिन जब मैंने प्रोग्राम में देखा कि सात बजे तक भी कार्यक्रम का पहला हिस्सा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा तो मैंने पुण्य जी को एसएमएस कर आग्रह किया कि थोड़ा लेट आइएगा…लेकिन कार्यक्रम तब तक मुख्यमंत्री की चाटुकारिता और हिंदी साहित्य निकेतन का निजी प्रोग्राम होकर रह गया था…सच मानिए तो मेरी रूचि सिर्फ कार्यक्रम के दूसरे हिस्से में ही थी…देश को जागरूक करने में न्यू मीडिया की भूमिका….इस विषय पर पुण्य जी के मुख्य अतिथि की हैसियत से सब ब्लॉगरों और युवा मीडियाकर्मियों के विचार भी जानने को मिलते…
लेकिन जब सब गुड़-गोबर होता दिखा तो मैं खुद ही शाहनवाज, ललित भाई को लेकर हिंदी भवन के बाहर भागा…तब तक पुण्य प्रसून जी गेट तक आ चुके थे…और वहीं युवा पत्रकारों, ब्लॉगरों से बात कर रहे थे…उन्हें पता चला कि अंदर निशंक जी विराजमान हैं तो उन्होंने वहीं से वापस लौट जाना बेहतर समझा…जब तीर निशाने से निकल चुका था तो अविनाश जी गेट पर आए, वो भी शायद कोई बुला कर लाया…लेकिन तब तक प्रसून जी कार में बैठ चुके थे…उन्होंने ऐसे कार्यक्रमों के लिए अविनाश जी को टाइम मैनेजमेंट की नसीहत दी और रवाना हो गए…तब तक मेरी स्थिति बहुत विचित्र हो गई थी…मैंने एक मिनट भी वहां और खड़े होना गवारा नहीं समझा…चाहता तो स्टेज पर जाकर ही मुख्यमंत्री के सामने सम्मान लौटा देता…लेकिन ब्लॉगर समुदाय की गरिमा का ध्यान रखकर ऐसा नहीं किया…और घर वापस आ गया…हां एक बात और, मेरी तबीयत कल सुबह से ही खराब थी…घर लौटते लौटते उलटियां भी शुरू हो गई…मनसा वाचा कर्मणा के राकेश कुमार जी इसके गवाह हैं…
रात तक मन इतना खिन्न हो गया कि क्या हिंदी ब्लॉगिंग भी भ्रष्टाचार की उसी दिशा में आगे नहीं बढ़ चली जिसका कि हम अपनी पोस्ट में जमकर विरोध करते हैं…फिर क्या फायदा है इसमें बने रहने का…
जय हिंद…
Khushdeep Sehgal
May 1, 2011 at 9:38 am
यहां जो निडर ब्लॉगर पुरुष बन कर कह रहे हैं, बिल्कुल यही बात कहते हुए वो मेरे ब्लॉग पर तन्वी नाम की महिला हो गए हैं…और जो वो कह रहें उसका जवाब मैंने पिछली विस्तारित टिप्पणी में स्पष्ट कर दिया है…वैसे अब निडर जी खुश हो जाइए, मैंने हिंदी ब्लॉगिंग को अलविदा बोल दिया है…
मेरे ब्लॉग का लिंक-
Good Bye…सबको राम-राम
जय हिंद…
पद्म सिंह
May 1, 2011 at 9:57 am
रिपोर्ट पढ़ कर तो ऐसा लग रहा है कि मीडिया की तरफ से भड़ास निकाली गयी है… इस तरह का विरोध होने वाला है इसका अंदेशा पहले ही था. निशंक को लेकर लोगों में विरोध हो सकता है, ये अपनी अपनी रूचि और पसंद का विषय है. रही बात ब्लागर्स की.. तो ब्लागर्स पहले भी इसी तरह से मिलते जुलते रहे हैं जहाँ पुरस्कार और टीवी मीडिया में चेहरा चमकाने जैसा कोई अवसर नहीं था…
आयोजकों से त्रुटि हुई है कि आयोजन को तय कार्यक्रम के अनुसार संपन्न करने में सफल नहीं रहे… ऐसा होता तो संभवतः हिन्दी साहित्य निकेतन से सम्बंधित कार्यक्रम और न्यू मीडिया संगोष्ठी के दोनों सत्र अपने आप में स्पष्ट रूप से अलग प्रभावी होते… फिर भी हिन्दी ब्लागिंग के लिए अपने अथक परिश्रम और सार्थक पहल के लिए अविनाश वाचस्पति बधाई के पात्र हैं….संभव है धीरे धीरे मीडिया और तथाकथित साहित्यिक दाँवपेचों में वो भी पारंगत हो जायेंगे…
ब्लागर ऐसी घटनाओं से निराश नहीं होने वाले…
पंकज झा.
May 1, 2011 at 10:10 am
मैं पहले इस रपट को कुछ अगंभीर तरीके से ले रहा था. जैसा की यशवंत जी ने लिखा भी की हर वक्त वैचारिकता को टोपी की तरह लादे क्यू फिरा जाय? क्यू न दोस्तों से हसते -बोलते हुए कुछ पल गुजारा जाय और वैसी ही चर्चा भी की जाय. लेकिन अब लगता है बिना मतलब यहाँ भी बात का बतंगड बना जा रहा है. ज़ाहिर है अगर कार्यक्रम अराजनीतिक रहता तो ज्यादे बेहतर था. लेकिन अगर निशंक जी को बुला ही लिया गया था तब इस तरह एक चुने हुए मुख्यमंत्री के प्रति हिकारत व्यक्त करना सरासर आपत्तिजनक है. अगर एक मुख्यमंत्री के कारण पुन्य प्रसून जी को कार्यक्रम छोड़ देने का मन हुआ था तो उन्हें जाने देना चाहिए था. लोकतंत्र में कोई भी अछूत नहीं होता, कोई चुना हुआ जन-प्रतिनिधि तो हरगिज़ नहीं.कुछ टिप्पणी की मैं निंदा करता हूँ.
ramesh kumar
May 1, 2011 at 12:05 pm
यशवंत जी मैं पिछले कुछ दिनों से ही आपके इस भड़ास पोर्टल को देख रहा हूं….लेकिन मुझे ऐसा लगता हैं कि आप निशंक जी के लिए काफी गंभीर हैं…ईमानदारी से बताएं….क्या निशंक ने आपको कुछ दिया नहीं….अरे जनाब कभी दूसरे पक्ष की बात भी सामने रखा करों….पिछले दिनों कानपुर में सुन रहा था की….भड़ास उन्हीं लोगों को प्रकाशित कर रहा है…जिनसे कुछ मिल उल जाता है…अगर ऐसा हैं तो कृपया पत्रकारिता का मजाक न उड़ने दें….आभारी रहेगे आपके…….रमेश कुमार
राजेश वर्मा
May 1, 2011 at 12:44 pm
सत्ताधीशों से निकटता के लिए चैनलों और अखबारों के मठाधीशों को गरियाने वाले ब्लॉगर भाई लोग निशंक जैसे सीएम के सामने लोट पोट होकर एक बात तो साबित कर ही चुके हैं कि मौका मिला तो ये लोग भी जमीन पर रेंगने से बाज नहीं आएंगे । चैनलों और अखबारों के स्वनाम धन्य पत्रकारों और संपादकों पर हमेशा बमबारी करते रहने वाले ब्लॉगर्स को अगर मौका मिला तो किसी भी हद तक गिर कर उनके स्पांसर करवा लेंगे । अब दूसरों को गरियाने से पहले इन सबको अपने गिरेबान में झांकना चाहिए । अगर आपको यही सब करना है तो न्यूज चैनल के पत्रकारों की क्यों बखिया उधेड़ते रहते हो । वहां कई ब्लॉगर निशंक के सामने बिछे जा रहे थे । क्या यही है न्यू मीडिया । आपको मौका मिला नहीं कि आप सत्ता प्रतिष्ठान की चापलूसी में खर्च हो गए । आपके तो छोटे – छोटे हित हैं । इसी में शहीद होने के लिए अगर आप तैयार हैं तो मत लीजिए न्यू मीडिया का नाम और अपने आप को क्रांतिकारी कहना बंद करिए । न्यू मीडिया को सबसे अलग बताकर अपना झंडा सबसे ऊंचा रखने की बात करने वाले ब्लॉगर्स तभी तो नैतिकता और ईमानदारी की बात कर रहे हैं , जब तक उन्हें दस नंबरी बनने का मौका नहीं मिला है ।
jai kumar jha
May 1, 2011 at 12:48 pm
समझ नहीं आ रहा कि कहां से शुरू करूं । भडास फ़ोर मीडिया , ….नहीं भडास अगैंस्ट ब्लॉगर्स ही लगी मुझे ये पोस्ट । अजय कुमार झा जी की बात से मैं भी सहमत हूँ…..रही बात निशंक की तो जो व्यक्ति मुख्यमंत्री के पद की शोभा बढ़ा रहा है उसकी पूछ हम आप से ज्यादा तो होगी ही क्योकि उसके साथ मुख्यमंत्री जैसे महत्वपूर्ण व सम्माननीय पद की गरिमा जुडी हुयी है ..ये अलग बात है की वो व्यक्ति खुद कितना साफ या इमानदार है ये विवेचना का विषय है और अगर इसकी कोई सच्ची विवेचना करता है तो उसका स्वागत है….लेकिन यशवंत जी जब मैं आपसे मिला तो ऐसी कोई बात आपने नहीं की थी लेकिन इस पोस्ट की चर्चा ने यह बात साबित कर दिया की आप पहले से ही तैयार होकर इसे पूरी तरह कवरेज देने आये थे….ऐसा करने से आपको बचना चाहिए था क्योकि एक तो ऐसे आयोजन करने की कोई हिम्मत नहीं करता और कोई करता भी है तो उस बेचारे की बाल की खाल के साथ उसका पूरा पोस्टमोरटम कर दिया जाता है…बेहतर होगा यशवंत जी इस तरह के आयोजन की कमियों और खूबियों को जानने व महसूस करने के लिए एक ऐसा आयोजन आयोजित करने का प्रयास करें…फिर मेरा दावा है की इस तरह का पोस्ट आप नहीं लिखेंगे और लिखेंगे भी तो उसमे जमीनी अनुभव का बयान भी दर्ज होगा….आपके इस पोस्ट में एक बात की मैं तारीफ करूंगा की आपने एक इमानदार चाय वाले की कहानी को स्थान दिया ,ऐसे लोगों को मैं वास्तव में हार्दिक प्रणाम करता हूँ क्योकि आज इस देश में इमानदारों की यही पहचान है लेकिन ऐसे लोग मनमोहन सिंह,प्रतिभा पाटिल से कम सम्माननीय नहीं…मैं इस व्यक्ति को अपने किसी आयोजन में विशेष अतिथि बनाने का प्रयास जरूर करूंगा कुछ और जाँच परताल करने के बाद ..इस पोस्ट का यही एक अंश मेरे ख्याल से पूरी तरह सार्थक है…
Taarkeshwar Giri
May 2, 2011 at 2:45 am
लक्ष्मण साहबे से मिलने जरुर जाऊंगा.
बाकि तो सब राजनीती का फेर हैं. आज कल ब्लोगिंग में भी खूब राजनीती चल रही हैं, और जबरदस्त चमचा गिरी.
Indian citizen
May 1, 2011 at 5:22 pm
सभी ब्लागरों को सम्मानित करने वाले राजेश जी… आपको इसलिये तो दुख नहीं हो रहा कि आपको यह खतरा हो कि आपका स्थान कोई ब्लागर ले सकता है…. पत्र में तो लोगों को फिर भी कुछ न कुछ मिल जाता है, ब्लाग लिखने पर क्या मिलता है. पत्र ही न जाने कितने ब्लाग्स से मैटेरियल लेकर छाप देते हैं कई बार तो नाम भी देना आवश्यक नहीं समझते.
रही बात चरण चापन करने की, तो अपने अन्दर झांक कर देखना. वहां ललित शर्मा भी मौजूद थे, जिनके स्वयं के सम्बन्ध बहुत अच्छे हैं राजनीतिज्ञों से. वहां शास्त्री जी थे जो खुद पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य रह चुके हैं. राडिया प्रकरण में कुछ पत्रकार ही थे जिन्होंने पत्रकारों का नाम जाहिर नहीं किया, उनका यह व्यवहार सराहनीय कहा जायेगा. यह आचार सदाचार की नई परिभाषायें गढ़ रहा है. पुण्य प्रसून जी का लौटना या फिर खुशदीप जी का सम्मान न लेना उनकी व्यक्तिगत प्रतिबद्धतायें हैं, जिन पर कुछ कहना उचित नहीं. खुशदीप जी का सम्मान करता हूं और यह चाहता हूं कि वे लगातार लिखते रहें.
किस राजनीतिज्ञ ने कितना भ्रष्टाचार किया है, सही आंकड़ा नहीं मालूम. आयोजकों की तरफ से क्या गड़बड़ हुई नहीं जानता, लेकिन इतना अवश्य जानता हूं कि ब्लागर्स को उपाधियां बांटने वाले महापुरुष क्या यही आपकी मीडिया का रुख है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध रामदेव जी की रैली को प्रतिबन्धित करने पर एक-दो मिनट की बाईट भी नहीं. कोई स्टोरी नहीं. आप लोगों में इतना ही दम था तो क्यों आपने कांग्रेस और एन०सी०पी० के प्रमुखों से उन आरोपों के बारे में पूछने की हिम्मत जुटाई जो विश्वबन्धु गुप्ता जी ने लगाये थे.
इसलिये सबको एक तराजू पर तौलना बन्द करो. मैंने एक बड़े नाम वाले चैनल के जिला स्तरीय व्यक्ति को कोल्ड ड्रिंक की क्रेट के लिये श्रम विभाग के एक अधिकारी के पास पर्ची लिखवाते देखा है….
अन्त में पुन: खुशदीप जी से निवेदन कि वह लिखना न बन्द करें…
Indian citizen
May 1, 2011 at 5:46 pm
[b]क्यों आपने कांग्रेस और एन०सी०पी० के प्रमुखों से उन आरोपों के बारे में पूछने की हिम्मत नहीं जुटाई[/b]
[b]नहीं[/b] लिखने से छूट गया था…
Indian citizen
May 1, 2011 at 6:19 pm
राजेश जी, चरण वन्दना किस उद्देश्य से की जाती है, यह विचारणीय मुद्दा है. वहां पर गये हुये अधिकतर ब्लागर्स किसी की चरण वन्दना करने नहीं गये. अपनी जेब से हजारों रुपये खर्च कर लोग एक दूसरे से मिलने भी जाते हैं, और यदि आप भी कोई ब्लागर मीटिंग करेंगे तो लोग वहां भी आयेंगे. और यदि आपके द्वारा लगाये आरोपों को मान भी लिया जाये तो किस-किस ब्लागर का क्या भला किया मुख्यमन्त्री ने और कौन कौन ब्लागर उनसे क्या लाभ उठा लेगा. इसीलिये फिर से कहता हूं कि एक बार आप अपने अन्दर भी झांकियेगा, हो सकता है एक ब्लागर वहां भी छुपा बैठा हो..
मनोज कुमार
May 1, 2011 at 7:06 pm
ये एक सफल आयोजन था।
बड़े आयोजनों में कुछेक असुविधाएं आती हैं।
आपने घर की बात है, इसलिए इन्हें उतना दिल पर नहीं लेकर इसके सकारात्मक पहलू पर ध्यान देना चाहिए।
चंद्र मौलेश्वर
May 1, 2011 at 7:06 pm
हमाम में सभी नंगे:) किशन राव जी को नमन॥
Dr. Anwer Jamal Khan
May 1, 2011 at 7:17 pm
[b]बहरहाल और आखि़रकार , ब्लॉग फ़िक्सिंग के संदर्भ में[/b]
यशवंत जी ! आपकी पोस्ट पहली बार पढ़ी और अच्छी ही नहीं लगी बल्कि मज़ा आ गया। कम लोग हैं जिन्हें पढ़कर हमें मज़ा आता है। आपकी पोस्ट पर जो कमेंट्स पढ़े उन्होंने तो मज़े को दोबाला ही कर दिया। हम बहुत दिनों से [b]blogkikhabren.blogspot [/b]
पर कह रहे थे कि
[b]1[/b]. ब्लॉगर्स मीट हिंदी ब्लॉगिंग के स्तर को गिरा रही है।
[b]2[/b]. ईनाम अपने चहेतों को आब्लाइज करने के लिए अंधे की रेवड़ियों की तरह दिए जा रहे हैं।
[b]3[/b]. ब्लॉगर्स जिस नेता बिरादरी के भ्रष्ट होने पर एकमत और सहमत हो चुके हैं, उसी बिरादरी के एक फ़र्द से पुरस्कार लेना कैसे जायज़ है ?
[b]4[/b]. ईनाम की मूल सूची को क्यों बदल दिया गया ?
[b]5[/b]. किसी चर्चित ब्लॉगर को जानबूझकर ईनाम से वंचित क्यों किया जा रहा है ? बल्कि उसे निमंत्रित तक क्यों नहीं किया जा रहा है ?
हम कहते रहे और हिंदी ब्लॉगर्स भी सुनते रहे लेकिन इन्होंने कान नहीं धरा हमारी बात पर। खुशदीप जी ने भी हमारा समर्थन नहीं किया। जो कुछ बीता, यह सब तो हम बीतने से पहले ही बता रहे थे लेकिन भाई लोग कार्यक्रम को जबरन भव्य बनाने पर तुले हुए थे। कोई भी कार्यक्रम भव्य तभी बनेगा जबकि उसमें मालदार पूंजीपति और सत्तापक्ष के नेता शामिल हों और ये लोग इस मक़ाम तक आम तौर से पहुंचते ही तब हैं जबकि ये लोग अपनी ‘न्याय चेतना‘ का गला घोंट डालते हैं। कार्यक्रम के आयोजकों के अपने व्यावसायिक हित थे, उनकी पूर्ति बहरहाल हो ही गई है।
खुशदीप भाई ने जब निशंक जी को देख ही लिया था तो आयोजकों से अपनी मजबूरी ज़ाहिर करके इधर-उधर टल जाना था। अगर पुण्य प्रसून जी नाखुश न होते तो खुशदीप जी भी अपने घर ईनाम सहित खुश खुश ही लौटते जैसे कि शाहनवाज़ भाई और ललित भाई लौटे। इन्होंने तो अपने ईनाम नहीं लौटाए तो क्या इनकी आत्मा को खुशदीप जी के मुक़ाबले कम अंक दिए जाएं ?
इन्हें पुण्य प्रसून जी से कुछ लेना देना ही नहीं था सो ये अपने ईनाम साथ लेते आए।
खुशदीप भाई स्वस्थ होने के बाद ही पुण्य प्रसून जी के सामने पड़ेंगे और दो चार दिन बाद उनके अंदर भी ‘जाने भी दो यार‘ वाला भाव जाग चुका होगा और तब उनकी तरफ़ से संतुष्ट होते ही खुशदीप जी फिर से ब्लॉगिंग करने लगेंगे। उन्हें जो इंटरनेशनल पहचान मिली है वह हिंदी ब्लॉगिंग की वजह से ही मिली है। इस मंच से हटकर वे अपना ही कुछ खोएंगे और खोने के लिए वे कभी तैयार होंगे नहीं। वैसे भी ब्लॉगिंग का अभ्यस्त बीवी-बच्चे छोड़ सकता है लेकिन ब्लॉगिंग हरगिज़ नहीं छोड़ सकता। वे ऐसा ज़ाहिर करेंगे जैसे कि अगर लोगों ने उनसे आग्रह न किया होता तो वे अब दोबारा बिल्कुल भी न लिखते।
हमारे उस्ताद का कथन है कि [b]हिंदी ब्लॉगर बेचारा जाएगा कहां ?[/b]
लिहाज़ा सब तसल्ली रखें और खुशदीप जी के सेहतयाब होने की दुआ करें।
इस सबके बाद में हम श्री रवीन्द्र प्रभात जी और अविनाश वाचस्पति जी से यह कहना चाहेंगे कि आदमी ग़लतियों से ही सीखता है। किसी की आलोचना और असहयोग के कारण आप अपना मनोबल मत गंवा बैठिएगा। आपने एक आयोजन किया, चाहे उसमें कुछ भूल-चूक हुईं लेकिन आपने बहुत से लोगों को आपस में एक जगह तो किया।
आप बहरहाल बधाई के पात्र हैं।
अगली बार के आयोजन में इन ग़लतियों को शून्य करने की कोशिशें कीजिएगा और [b]जल्दी ही आपको हम बुलाएंगे अपने सम्मान समारोह में[/b]।
जय हिंद!
ranbeer
May 1, 2011 at 8:41 pm
यशवंत जी क्या आपको हमेशा उलटे चश्मे से देखने की आदत हो गयी है..??? खासकर डॉ. निशंक के मामले में..? लगता है की उत्तराखंड सरकार से विज्ञापन न मिलने का मलाल आपको साल रहा है जो आपकी भड़ास के रूप में सामने आ रहा है… यशवंत जी ज़रा एक बात बताइए.. जब आप एक पत्रकार (कथित ) के साथ साथ एक ब्लॉगर, एक विद्वान, व्यक्ति हो सकते हैं तो एक इंसान राजनेता के साथ साथ, पत्रकार और साहित्यकार क्यों नहीं हो सकता… कम से कम आपके लेख से तो यही साबित होता है की आपको डॉ. निशंक के साहित्यकार होने पर भी ऐतराज़ होने लगा है… यह तो डॉ. निशंक की विलक्षणता है की वे एक साथ राजनीती, पत्रकारिता और साहित्य के क्षेत्र में सक्रीय हैं… आखिर वे एक मुख्यमंत्री होने के साथ साथ साहित्यकार के धर्म को निभाते हुए साहित्य सृजन कर रहे हैं और साहित्यकारों की भी मदद कर रहे हैं तो इसमें बुरा क्या है?? आप तो बस … चित्त भी अपनी… और पट भी अपनी पर तुले हुए हैं…
पिछले कुछ समय से देख रहा हू की आप तो जैसे ऑंखें मूँद कर एक ही आदमी के पीछे पड़ गए हैं… कभी नकारात्मकता का चश्मा उतार कर भी देख लिया कीजिये साहब… दुनिया में अच्छी चीज़ें भी हैं… या की मुझे लगता है की आप भी अपूर्व जोशी जी की तरह ही विज्ञापन के भूखे हैं… विज्ञापन ‘वसूलने’ के लिए इस तरह की पत्रकारिता कर रहे हैं…
कल के कार्यक्रम की जो रूपरेखा जिस तरह से अपने पेश की है उससे लगता है की आपने यह रिपोर्ट कार्यक्रम में आने से पहले ही लिख डाली थी…
लेकिन याद रखिये पूर्वाग्रह और दुर्भावना से प्रेरित आपके इन लेखों से एक इंसान अपने कर्मपथ से नहीं भटक सकता ….
और हाँ .. पुण्य जी जैसे प्रबुद्ध पत्रकार से भी इस तरह की उम्मीद नहीं थी हमें…
Rekha Srivastava
May 2, 2011 at 4:30 am
दिनेश राय जी से सहमत .
ब्लोगेर्स को किसी की चाटुकारिता की जरूरत नहीं होती अपवाद इसके भी हैं. कार्यक्रम निशंक जी के कारण बहुत देर से शुरू हुआ. मैं कानपुर से किसी सम्मान के लिए नहीं आई थी . मुख्य उद्देश्य था अपने ब्लोगेर साथियों से मिलने का और वह वहाँ पूरा हुआ. विसंगतियां और कमियां हर जगह होती हैं और वह वहाँ भी थी. अधिक रात हो जाने पर दिल्ली से अच्छी तरह वाकिफ न होने के कारण दूसरे सत्र से वंचित रही.
Dr. Anwer Jamal Khan
May 2, 2011 at 5:28 am
[b]बहरहाल और आखि़रकार , Blog Fixing के संदर्भ में[/b]
यशवंत जी ! आपकी पोस्ट पहली बार पढ़ी और अच्छी ही नहीं लगी बल्कि मज़ा आ गया। कम लोग हैं जिन्हें पढ़कर हमें मज़ा आता है। आपकी पोस्ट पर जो कमेंट्स पढ़े उन्होंने तो मज़े को दोबाला ही कर दिया। हम बहुत दिनों से कह रहे थे कि
1. ब्लॉगर्स मीट हिंदी ब्लॉगिंग के स्तर को गिरा रही है।
2. ईनाम अपने चहेतों को आब्लाइज करने के लिए अंधे की रेवड़ियों की तरह दिए जा रहे हैं।
3. ब्लॉगर्स जिस नेता बिरादरी के भ्रष्ट होने पर एकमत और सहमत हो चुके हैं, उसी बिरादरी के एक फ़र्द से पुरस्कार लेना कैसे जायज़ है ?
4. ईनाम की मूल सूची को क्यों बदल दिया गया ?
5. किसी चर्चित ब्लॉगर को जानबूझकर ईनाम से वंचित क्यों किया जा रहा है ? बल्कि उसे निमंत्रित तक क्यों नहीं किया जा रहा है ?
हम कहते रहे और हिंदी ब्लॉगर्स भी सुनते रहे लेकिन इन्होंने कान नहीं धरा हमारी बात पर। खुशदीप जी ने भी हमारा समर्थन नहीं किया। जो कुछ बीता, यह सब तो हम बीतने से पहले ही बता रहे थे लेकिन भाई लोग कार्यक्रम को जबरन भव्य बनाने पर तुले हुए थे। कोई भी कार्यक्रम भव्य तभी बनेगा जबकि उसमें मालदार पूंजीपति और सत्तापक्ष के नेता शामिल हों और ये लोग इस मक़ाम तक आम तौर से पहुंचते ही तब हैं जबकि ये लोग अपनी ‘न्याय चेतना‘ का गला घोंट डालते हैं। कार्यक्रम के आयोजकों के अपने व्यावसायिक हित थे, उनकी पूर्ति बहरहाल हो ही गई है।
खुशदीप भाई ने जब निशंक जी को देख ही लिया था तो आयोजकों से अपनी मजबूरी ज़ाहिर करके इधर-उधर टल जाना था। अगर पुण्य प्रसून जी नाखुश न होते तो खुशदीप जी भी अपने घर ईनाम सहित खुश खुश ही लौटते जैसे कि शाहनवाज़ भाई और ललित भाई लौटे। इन्होंने तो अपने ईनाम नहीं लौटाए तो क्या इनकी आत्मा को खुशदीप जी के मुक़ाबले कम अंक दिए जाएं ?
इन्हें पुण्य प्रसून जी से कुछ लेना देना ही नहीं था सो ये अपने ईनाम साथ लेते आए।
खुशदीप भाई स्वस्थ होने के बाद ही पुण्य प्रसून जी के सामने पड़ेंगे और दो चार दिन बाद उनके अंदर भी ‘जाने भी दो यार‘ वाला भाव जाग चुका होगा और तब उनकी तरफ़ से संतुष्ट होते ही खुशदीप जी फिर से ब्लॉगिंग करने लगेंगे। उन्हें जो इंटरनेशनल पहचान मिली है वह हिंदी ब्लॉगिंग की वजह से ही मिली है। इस मंच से हटकर वे अपना ही कुछ खोएंगे और खोने के लिए वे कभी तैयार होंगे नहीं। वैसे भी ब्लॉगिंग का अभ्यस्त बीवी-बच्चे छोड़ सकता है लेकिन ब्लॉगिंग हरगिज़ नहीं छोड़ सकता। वे ऐसा ज़ाहिर करेंगे जैसे कि अगर लोगों ने उनसे आग्रह न किया होता तो वे अब दोबारा बिल्कुल भी न लिखते।
हमारे उस्ताद का कथन है कि हिंदी ब्लॉगर बेचारा जाएगा कहां ?
लिहाज़ा सब तसल्ली रखें और खुशदीप जी के सेहतयाब होने की दुआ करें।
इस सबके बाद में हम श्री रवीन्द्र प्रभात जी और अविनाश वाचस्पति जी से यह कहना चाहेंगे कि आदमी ग़लतियों से ही सीखता है। किसी की आलोचना और असहयोग के कारण आप अपना मनोबल मत गंवा बैठिएगा। आपने एक आयोजन किया, चाहे उसमें कुछ भूल-चूक हुईं लेकिन आपने बहुत से लोगों को आपस में एक जगह तो किया।
आप बहरहाल बधाई के पात्र हैं।
अगली बार के आयोजन में इन ग़लतियों को शून्य करने की कोशिशें कीजिएगा और जल्दी ही आपको हम बुलाएंगे अपने सम्मान समारोह में।
जय हिंद!
prakash
May 2, 2011 at 5:51 am
Nishank ke paas janta ki bhalai karne ka samay ho ya na ho par apni pustak likhne ka samay hai. Apna samman ke peechay diwana, hamesha camera ke saamne rehna, janta ke dukhon se koi sarokar nahi. Rajya ka bedagark karke rakh diya hai.
deepak baba
May 2, 2011 at 6:45 am
बेहतरीन रिपोर्ट……. यशवंत जी.
खुशदीप जी कि कहानी यहीं भड़ास से पता चल रही है……. ये सत्य है कि पुरस्कार बड़ी ख़ुशी से ग्रहन किया उन्होंने. बाकि जो भी हो अब पता चल रहा है कि परदे के पीछे बहुत कुछ हुआ है….. जहाँ तक निशंक जी के भ्रष्टाचार का मामला है …. तो एक बात बता दें कि भ्रष्टाचार एक व्यवस्था बन चूका है और – मुख्यमत्री मात्र इस व्यवस्था का अंग है…. एक तो भ्रष्टाचार और दुसरे सम्प्रदायक .. ….. धर्मनिरपेक्ष मीडिया को ये बात कब पचेगी…. जितने मर्ज़ी भ्रष्टाचार पर गर्जन करते रहे – मगर मुख्यमंत्री कार्यालय में जाते ही गीदड़ हो जाते है…. और चमचागिरी की महान परिकश्ता पर उतर आते है….. बाकि आप उस दिन कार्यकर्म में आये……. बहुत दुःख है कि आपसे मिलना नहीं हो पाया..
मोहिन्दर कुमार
May 2, 2011 at 8:24 am
रिपोर्ट तो बहुत बढिया है खुश्दीपजी मगर आप हमारा जिक्र गोल कर गये
जो आपके पुरुस्कार सम्भालता रह गया… पुरुस्कार से नाराजगी सही… हमसे क्यों ;D
mohinder kumar
May 2, 2011 at 8:39 am
रिपोर्ट तो बहुत बढिया है खुशदीप जी मगर आपने हमारा जिक्र गोल कर दिया जो आपके साथ बैठ कर आपके पुरुस्कार को सहेजता रह गया…
पुरुस्कार से नाराजगी सही… हमसे क्या नाराजगी ;D
आशा है पुरुस्कार आप तक पहुंच गया होगा
Khushdeep Sehgal
May 2, 2011 at 8:40 am
अनवर भाई,
सम्मान से मेरा हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहा है…मैंने अपनी पोस्ट में पिछले साल अगस्त की एक पोस्ट का लिंक दिया था…जिसे शायद आपने पढ़ा नहीं, उसे फिर यहां दे रहा हूं…
वर्ष के चर्चित उदीयमान ब्लॉगर
जून की इस पोस्ट का लिंक भी शायद आपके लिए पढ़ने की चीज़ हो…
समारोह में किसी का सम्मान हो गया, क्या आदमी वाकई इनसान हो गया…
समारोह में किसी का सम्मान हो गया, क्या आदमी वाकई इनसान हो गया…
स्टेज पर जाने की बात को भी मैंने टिप्पणी में स्पष्ट किया, जिस पर आपने गौर नहीं किया…
मुझसे पंद्रह-बीस दिन पहले ही शिकागो से राम त्यागी और दुबई से दिगंबर नासवा जी कह चुके थे कि उनका सम्मान भी मैं ग्रहण करूं…दिंगबर जी के सम्मान के लिए मैंने राकेश कुमार जी को तैयार कर लिया, लेकिन राम के सम्मान के लिए तो मुझे स्टेज पर जाना ही था…उस बेचारे का इस पचड़े से क्या लेना-देना…फिर निशंक के साथ स्टेज पर रामदरश मिश्र जैसे साहित्य के श्लाका पुरुष, प्रभाकर जी, अशोक चक्रधर जी, विश्वबंधु गुप्त जैसी विभूतियां भी स्टेज पर मौजूद थी…मेरा न जाना उनका भी अपमान होता…
रही बात रवींद्र प्रभात जी और अविनाश वाचस्पति जी की, तो व्यक्तिगत तौर पर मैं आज भी उनका पहले जैसा ही सम्मान करता हूं…मेरा विरोध सैद्धांतिक है, व्यक्ति विशेष से नहीं…
खैर जो भी है आपने इस पोस्ट से मुझे ये संबल दिया है कि मैंने जो फैसला किया है, उस पर जहां तक संभव हो सके दृढ़ता से टिका रह सकूं…
रब्बा खैर…
जय हिंद…
प्रमोद ताम्बट
May 2, 2011 at 1:58 pm
किसी आयोजन की आलोचना उसके भले के लिए हो तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए। ब्लॉग आन्दोलन अभी शैशव काल में है, इसे अभी बहुत कुछ हासिल करना है इसलिए इसके साथ जुड़े रहकर, रचनात्मक आलोचना के ज़रिये इसको सुदृढ़ बनाए जाने की ज़रूरत है। आपकी इस बात से सौ प्रतिशत् सहमत हूँ कि— इस मुल्क में जो नई व्यवस्था की गुलामी पिछले साठ साल से चल रही है, उसे खत्म होने और कोई नई व इससे ज्यादा ईमानदार व पारदर्शी व्यवस्था आने में अभी कुछ वर्ष या कई दशक लग सकते हैं. जरूरत सिर्फ इस बात की है कि हम अपने अपने हिस्से के विरोध को प्रकट करते रहें, नए माध्यमों के जरिए अपनी आवाज उठाते रहें, कभी संगठित होकर सड़क पर आते रहें तो कभी समानता के गीत गाते हुए दूसरों को यह गाना सिखाते रहें………, इसके लिए एकजुटता बेहद ज़रूरी है, ब्लॉग आन्दोलन को इसकी सख्त ज़रूरत है।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
http://vyangya.blog.co.in/
http://www.vyangyalok.blogspot.com/
http://www.facebook.com/profile.php?id=1102162444
girish pankaj
May 2, 2011 at 6:56 pm
”jakee rahi bhavana jaisi” mai ravindra prabhat aur avinash vachaspati ki mehanat ka samman karta hoo.
Saleem Khan
May 3, 2011 at 6:29 am
Yashwant Bhai,
Harek Blogger swatah sammanit hai. Use kisi samman kii zarrorat nahin hai aur ye bloggers meet wagairah hi sab jhagde kii wajah hain. Ravindtra jo mera sahyogi tha aur jab use sidhi kii zaroorat thi to wah mujhe LBA aur AIBA ko istemnaal kar raha tha aur 1 qadam aage jakar wah mujhe yani wash 2010 ke sarwadhik charchit blogr ko samman to dena door mujhe bulaya tak nahin….
waise in sabka jawaab Lucknow men 7 may ko diya jayega……12
kyunki Lucknow hi sabka jawaab hai …
wait and watch…1
saleem
9838659380
काजल कुमार
May 7, 2011 at 5:26 am
हे प्रभु इतना लंबा-लंबा कैसे लिख देते हो 🙂
Ramesh Kumar Sirfiraa
May 12, 2011 at 6:30 am
आपके लेख के कई पैराग्राफ से सहमत हूँ और कई से असहमत हूँ. इसी प्रकार कई टिप्पणीकर्त्ताओं से भी. मैं अनाड़ी पाठक तकनीकी ज्ञान न होने के कारण से आपके ब्लॉग या वेबसाइट को नियमित रूप से “अनुसरण” नहीं कर पता हूँ. पता नहीं कहाँ किल्क होता और कभी समय होने पर पढ़ भी लेता हूँ. लेकिन अफ़सोस! अपने अनाड़ीपन के कारण रोज नहीं आ पाता हूँ.
क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर”इंसानियत” के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?