: उत्तराखंड सरकार की मीडिया को पालतू बनाने या परेशान करने की घटिया मानसिकता का विरोध करें : लखनऊ में लाइवन्यूज नाम से न्यूज एजेंसी चला रहे पत्रकार आसिफ अंसारी को उत्तारखंड की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. मिली जानकारी के मुताबिक आसिफ अंसारी पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को ब्लैकमेल करने का आरोप है.
देहरादून में आसिफ के खिलाफ 19 फरवरी को जिला सूचना अधिकारी मैलखुरी ने सरकार को ब्लैकमेल करने का मुकदमा लिखाया था. जानकारी होने के बावजूद आसिफ न तो कोर्ट से स्टे ले आए और न ही अग्रिम जमानत कराई. आसिफ ने इस प्रकरण को सामान्य घटनाक्रम माना. पर कल रात उत्तराखंड की पुलिस ने चुपके से लखनऊ पहुंच गई और अचानक धावा बोलकर आसिफ को उनके घर से पकड़ लिया. उन्हें पकड़कर देहरादून ले जाया गया. बताया जा रहा है कि आसिफ अंसारी को आज कोर्ट में पेश किया गया जहां कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई की तारीख दी है.
उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड सरकार मीडिया को लेकर बहुत पजेसिव और कंजर्वेटिव है. उत्तराखंड के अखबारों और पत्रिकाओं को या तो विज्ञापन के बल पर खरीद लिया गया है या फिर जो नहीं बिके उन्हें उत्पीड़ित कर अलग-थलग भागने-भटकने को मजबूर कर दिया है. आसिफ पहले उसी न्यूज एजेंसी एनएनआई में काम करते थे जिसके मालिक उमेश कुमार के खिलाफ उत्तराखंड सरकार ने कई मुकदमें लिखा दिए हैं. उमेश की भी गिरफ्तारी की कोशिशें लंबे समय से जारी है लेकिन उमेश उत्तराखंड की पुलिस और सरकार को चकमा देने में कामयाब हैं. दरअसल उमेश पर सबसे बड़ा लेकिन अघोषित आरोप यही है कि उन्होंने क्यों मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के घपले-घोटालों की पोल खोली, स्टिंग करवाया और इससे संबंधित खबरें न्यूज चैनलों को मुहैया कराई. इसी बात से खफा उत्तराखंड सरकार ने उमेश के व्यवसाय को तबाह करने से लेकर उनके परिजनों और उनकी निजी जिंदगी को तबाह करने का सिलसिला तेज कर दिया है.
इसी कड़ी में उत्तराखंड पुलिस ने दूसरे राज्य उत्तर प्रदेश में घुसकर वहां के पत्रकार को पकड़कर ले आई है. सवाल यह भी उठता है कि पहले पत्रकार रह चुके और अब मुख्यमंत्री की गद्दी पर विराजमान रमेश पोखरियाल निशंक को ही सब लोग हर बार क्यों ‘ब्लैकमेल’ करते हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि निशंक के घर की दाल कुछ ज्यादा ही काली है जिसे देख पत्रकार अगर पोलखोल अभियान शुरू करते हैं तो सरकार या तो उनसे समझौता कर लेती है या फिर उन्हें सरकारी मशीनरी के जरिए प्रताड़ित करती है. यहां यह भी बताना जरूरी है कि सीएम निशंक ने उत्तराखंड में दलाल पत्रकारों की एक लंबी फौज तैयार कर दी है जो खुद को बताते तो पत्रकार हैं पर वे सरकारी टुकड़ों पर पलकर मीडिया के विभिन्न माध्यमों के में निशंक का जयकारा करते रहते हैं.
दलाल पत्रकारों की फौज में भारी संख्या में युवा पत्रकारों से लेकर बुजुर्ग पत्रकार तक हैं. ये लोग अपने अपने छोटे मोटे अखबारों, ब्लागों, वेबसाइटों आदि के जरिए निशंकनामा लिखते बांचते बताते बेचते रहते हैं. बड़े अखबारों-मैग्जीनों-चैनलों में तो सीधे उपर से ही डील होने की चर्चाएं हैं, सो, इनके पत्रकार उपरी अघोषित निर्देश के तहत वही लिखते हैं जो सरकार और निशंक को सूट करता है. देश में दो दर्जन से ज्यादा राज्य हैं लेकिन किसी राज्य का मुख्यमंत्री कभी किसी पत्रकार की ब्लैकमेलिंग का शिकार नहीं हुआ. सिवाय एक अपवाद को छोड़ कर जिसमें आजतक के चंडीगढ़ संवाददाता रहे भूपेंद्र नारायण सिंह भुप्पी ने हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री को ब्लैकमेल किया और इस क्रम में भुप्पी की सीडी तैयार हो गई जिसके कारण उन्हें आजतक जैसे बड़े न्यूज चैनल से हाथ धोना पड़ा. तब भी हिमाचल प्रदेश की धूमल सरकार ने न तो भूपेंद्र नारायण सिंह भुप्पी के खिलाफ कोई रिपोर्ट दर्ज कराई और न ही उन्हें गिरफ्तार करने के लिए पुलिस भेजा. धूमल ने आजतक प्रबंधन से शिकायत की और आजतक की कार्रवाई पर भरोसा किया.
आप सवाल कर सकते हैं कि आसिफ अंसारी तो अपनी बनाई कंपनी में ही काम करते थे, इसलिए उनकी शिकायत किससे की जा सकती थी? इसका जवाब यह होगा कि निशंक को गिरफ्तारी जैसा आखिरी कदम उठाने से पहले आसिफ अंसारी को लीगल नोटिस भिजवाना चाहिए था, कोर्ट में मुकदमा करना चाहिए था और अदालत के फैसले का इंतजार करना चाहिए था. और भी कई तरीके हो सकते थे. निशंक का सूचना अधिकारी सरकार को ब्लैकमेल किए जाने का प्रेस रिलीज जारी कर सकता था, बयान जारी कर सकता था, प्रेस कांफ्रेंस कर सकता था, ब्लैकमेल किए जाने का स्टिंग कर उसे सार्वजनिक कर सकता था. कई लोकतांत्रिक रास्ते हो सकते थे. लेकिन मीडिया को डराने-धमकाने-आतंकित करने या फिर नोटों के बल पर अपने चरणों में लोटने के लिए मजबूर करने में विश्वास रखने वाले भूतपूर्व पत्रकार और वर्तमान मुख्यमंत्री निशंक को कोई और रास्ता नहीं सूझता. उन्होंने गिरफ्तारी का फरमान जारी कर दिया. बिना मुख्यमंत्री के आदेश के दूसरे प्रदेश में पुलिस गिरफ्तार करने जा नहीं सकती.
नहीं पता कि आसिफ अंसारी पर लगे आरोप कितने सच या झूठ हैं, लेकिन उत्तराखंड सरकार ने मीडिया के लोगों को आतंकित करने का जो तौर-तरीका अपनाया है, वह प्रशंसनीय नहीं है. कई तरह के घपलों-घोटालों-विवादों से घिरे निशंक खुद अपने बुने जाल में फंसते जा रहे हैं. पत्रकारों को परेशान करना उन्हें भारी पड़ेगा. यह धमकी नहीं हकीकत है. मीडिया के वे लोग जो निशंक के सत्ता में होने के कारण उनका गुणगान उनके मुंह पर करते हैं, वही लोग पीठ पीछे निशंक सरकार की बुराइयों का बखान करते हैं और इस बीजेपी सरकार के फिर जीत कर न आने की भविष्यवाणी करते हैं.
उत्तराखंड में भाजपा नेताओं के बीच विवाद की वजह से ”बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा” वाली जो परिघटना हुई, उसी के कारण निशंक सत्ता में आए. पर सत्ता में आते ही यह शख्स जिस जिस तरह की कारस्तानियां करता जा रहा है, उससे वह खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है. और, ऐसा करके वह अपने पार्टी के ही विरोधियों को मजबूत कर रहा है जो चाहते हैं कि किसी भी प्रकार निशंक विवादों-विरोधों में घिरे फंसे रहें. निशंक ने किसी एक आसिफ या उमेश को ही परेशान नहीं कर रखा है, उत्तराखंड के करीब दर्जन भर पत्रकार होंगे जो निशंक का कोप झेल रहे हैं.
मीडिया समुदाय के लोगों से अपील है कि वे छोटे-मोटे स्वार्थों से उपर उठकर आसिफ अंसारी की गिरफ्तारी का विरोध करें वरना कल को किसी भी प्रदेश की पुलिस किसी भी पत्रकार के घर में घुसकर उस पर सरकार को ब्लैकमेल करने का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर सकती है. हम आप सभी जानते हैं कि देश-प्रदेशों के बड़े नेता बड़े मीडिया हाउसों के मालिकों से तो ब्लैकमेल हो जाते हैं, इसी कारण उन्हें भरपेट विज्ञापन, सस्ती जमीन आदि देते रहते हैं. लेकिन कोई आम पत्रकार सरकार, शासन-सत्ता के विरोध में खबर लिखे तो उस पर ब्लैकमेलर का आरोप लगाकर उसका उत्पीड़न शुरू कर दिया जाता है.
अगर कोई पत्रकार किसी दूसरे के यहां सेलरी लेकर सरकार के विरोध में कलम चला रहा होता है तो सरकारें या तो उसका तबादला करा देती हैं या फिर उसे नौकरी से निकालने के जिद पर अड़ जाती हैं. सरकार से पंगा नहीं, पैसा लेने की नीति पर चलने वाले अपने मीडिया मालिक फौरन उस पत्रकार का ट्रांसफर कर देते हैं या नौकरी से निकाल देते हैं. ऐसा होता रहता है. पटना में हुआ है. लखनऊ में हुआ है. कई बार तो सरकार लोगों की नाराजगी के कारण संपादक लोगों को चलता कर दिया जाता है. ऐसा दिल्ली में हुआ है, लखनऊ में हुआ. होता रहता है. इसी कारण बड़े मीडिया हाउसों में काम करने वाले पत्रकारों के दिमाग का एक तरह का अनुकूलन हो जाता है जिसमें उन्हें पता होता है कि क्या कहना है, क्या लिखना है, कैसे जीना है, कैसे बचना है.
अगर पत्रकार खुद का अखबार, एजेंसी या पोर्टल चला रहा है और सत्ता की पोलखोल में लगा है तो उसे सबक सिखाने के लिए उसे ब्लैकमेलर बताकर पुलिस-प्रशासन के जरिए उठवा लिया जाता है. आने वाले दिनों में जब ज्यादा से ज्यादा बहादुर पत्रकार खुद का ब्लाग, अखबार, एजेंसी, पोर्टल, वेब टीवी, एसएमएस एलर्ट सर्विस आदि चला रहे होंगे तो जो भी सत्ता या नेता या अफसर के आगे नहीं झुकेगा, उसे ये नेता, नौकरशाह ब्लैकमेलर बताकर उठवा लेंगे और सींखचों के पीछे डलवा देंगे. पर ये जान लें. रेलें, जेलें, अदालतें बहादुर पत्रकारों के लिए हमेशा से ट्रेनिंग सेंटर हुआ करती हैं. इससे निकलकर आदमी और मजबूत इरादों वाला बनता है. आसिफ अंसारी आज जिस मुश्किल में हैं, उस हालात में अगर वे टूटे नहीं तो वहां से लौटकर वे ज्यादा जिगर और ऊर्जा वाले पत्रकार बनेंगे. हम सब उनके साथ हैं और उत्तराखंड सरकार की घटिया मानसिकता की निंदा करते हैं.
यशवंत
एडिटर
भड़ास4मीडिया
yashwant@bhadas4media.com
Comments on “मुख्यमंत्री को ब्लैकमेल करने का आरोप! लखनवी पत्रकार बना उत्तराखंड पुलिस का शिकार”
शर्मनाक है यह. वीकएंड टाइम्स ने इस अंक में पूरा पेज छापा है निशंक की करतूतों के खिलाफ और अगले अंक में आसिफ की खबर भी हमारे यहाँ ऐसी ही छपेगी..निशंक और उनके चम्पुओ को चुनाव में अपनी ओकात पता चल जाएगी…
प्रिय यशवंत,
अच्छी बात है की आपने खुद छापा है, ‘नहीं पता कि आसिफ अंसारी पर लगे आरोप कितने सच या झूठ हैं. ‘ प्रश्न यह है कि इसके बावजूद श्री आसिफ की गिरफ्तारी को लेकर मुख्यमंत्री के विरुद्ध निराधार आरोप के पीछे क्या तर्क है? यदि उनके विरुद्ध कोई भी आरोप किसी तरह की ज़मीन पर टिका होता तो क्या भाजपा नेतृत्व, देश की न्यायपालिका और वर्तमान शासन के विरोधी कोई कसर छोड़ते?
आपने लिखा है, ‘ उत्तराखंड के अखबारों और पत्रिकाओं को या तो विज्ञापन के बल पर खरीद लिया गया है या फिर जो नहीं बिके उन्हें उत्पीड़ित कर अलग-थलग भागने-भटकने को मजबूर कर दिया है.’ इसका निहितार्थ कुछ भी हो, मगर लगता यही है कि जो निशंक जी का विरोध नहीं कर रहा वह बिका नहीं या ख़रीदा नहीं गया. यह तो पूरे उत्तराखंड के पत्रकारों के खिलाफ फतवा है. या तो निशान विरोध में शामिल हो अन्यथा हम तुम्हें बिका हुआ लिखेंगे, कहेंगे.
यकीन कीजिये कि इस मामले में कुछ भी अनियमित नहीं किया गया है. उत्तराखंड पुलिस ने बाकायदा श्री आसिफ को कानूनी हिरासत में लिया है और उन्हें सुसंगत दंड प्रक्रिया प्रावधानों के अंतर्गत सुनवाई का पूर्ण अवसर देते हुए सोमवार को देहरादून में सक्षम न्यायालय में प्रस्तुत किया जायेगा. इस मामले में अकारण ही मुख्यमंत्री जी को आरोपित करना उचित नहीं है.
रही आरोपों की बात तो इलज़ाम किस पर नहीं लगे. विष्णु पर देवताओं के पक्षधर होने का, भगवान् श्री राम पर शुद्र तथा पत्नी द्रोही होने के आरोप, लंका विजी के बाद सीता पर चारित्रिक आरोप, पवनपुत्र हनुमान पर श्री राम की भेंट का तिरस्कार करने, लक्ष्मण पर मारीच प्रकरण में सीता द्वारा आरोप, वनगमन के दौरान बड़े भाई श्री राम को वापस लाने के प्रयास के समय भरत पर आक्रमण का संदेह और आरोप, कृष्ण के माता पिता देवकी वासुदेव पर द्रोह का आरोप और भगवान् श्रीकृष्ण पर पूरे जीवन लगे आरोप. दुनिया में हर सामर्थ्यवान से असंतुस्ट लोग आरोप ही तो लगते हैं. पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कहा है, ‘जब लोग आपका विरोध करें तो समझिये कि आपका महत्व बढ़ रहा है.’
इस पत्र से यह कतई न समझें कि यह किसी भी तरह से आप पर अविश्वास का हिस्सा है. मेरा यह अनुरोध आपके हितैषी और प्रशंसक के रूप में है. आप चाहें तो छाप भी सकते हैं. चाहें तो पढ़कर भूल जाएँ. मुझे यह आलेख पढ़कर इसलिए बुरा लगा क्योंकि मैं निशंक जी को भी जानता हूँ और आपको भी. जितनी खरे आप हैं, उतने ही वह भी हैं. आज नहीं तो कल का इतिहास बताएगा कि क्या सच है. मैंने शीर्ष पत्रकारों, मीडियाकर्मियों और नेताओं के साथ काम किया है, मुझे भरोसा है कि अगर कहीं कुछ भी गलत हो रहा है तो उसे कुदरत भी ठीक करेगी.
देश की न्यायपालिका पर यकीन कीजिये, आज तक कोई गुनाहगार न सत्ता की आड़ में बचा है और ना मीडिया की हमदर्दी से. भड़ास फॉर मीडिया एक पवित्र मंच है और इसे मीडिया के ओसामाओं का का एबटाबाद नहीं बनने दीजिये.
आपका अशोक
यषवंत जी लखनउ से एजेंसी चलाने वाले आसिफ अंसारी को उत्तराखण्ड पुलिस ने गिरफ्तार किया है और यह भी सच है कि लगातार उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री डा.निषंक के खिलाफ भ्रश्टाचार सहित अन्य मुद्दों को लेकर लाइव न्यूज ने कई ऐसी खबरें एसएमएस के जरिए लोगों को भेजी जो सत्य से कोसो दूर थी। एक सच्चा पत्रकार तथ्यों के आधार पर किसी समाचार को प्रकाषित करे तो यह उसके लिए गर्व की बात होती है लेकिन लखनउ में बैठकर आखिर लाइव न्यूज के आसिफ अंसारी उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री को भ्रश्टाचार करने का दावा बारबार क्यो करते हुए नजर आए यह बात तो आपको भी समझ लेनी चाहिए कि दाल में कुछ ना कुछ जरूर काला था जबकि उत्तर प्रदेष की राजधानी लखनउ में मायावती सरकार के खिलाफ आसिफ जी को क्या कोई मसाला खबर नही मिली जबकि अगर वह चाहते तो कई ऐसी खबरें उन्हें मिल सकती थी जो उन्हें और अधिक प्रचारित करती। किसी के इषारे पर गलत खबरों को प्रकाषित करने का आखिर क्या आधार है? पत्रकारिता को एक सच्चे मिषन की तरह आज भी उत्तराखण्ड के पत्रकार बचाए हुए हैं और कहीं भी ऐसी बात पत्रकार जगत के किसी भी व्यक्ति ने उजागर नही होने दी ळै जिससे पूरे पत्रकारिता जगत को अपमानित होना पडत्रा हो। क्या उत्तराखण्ड के पत्रकारो में हिम्मत नही कि वो किसी खुलासे का ना कर सके? आपको देहरादून के पत्रकारो के बारे में भली भंति ज्ञात है कि यहां के पत्रकार ईमानदारी से अपनी कलम को घिसने का काम कर रहें हैं आपके द्वारा सरकार के माध्यम से पत्रकारों को खरीद लिए जाने की बातो से पत्रकार जगत को निष्चित रूप् से गहरी ठेस पहुची है। मेरा अपसे निवेदन है कि सत्य घटनाओ पर आधारित खबरे यदि पाठको के बीच पहुचेंगी तो उनके मनोबल के साथ साथ आपका मनोबल भी बड़ेगा और अभी तक यह भी साबित नही हो पाया ळै कि आखिर सरकार ने घोटाला कहां कहां किया है इसलिए इस खबर से मन को पीड़ा हुई सो मैने आपके सामने अपनी बात रख दी है। अब आप अपने अन्तर्मन से पूछिए कि आखिर गलत कौन है।
यषवंत जी आपको पत्रकारिता का काफी लम्बा अनुभव है लेकिन मिडिया घरानो पर धन लेकर खबरो का पीआर करना कोई बड़ी बात नही लेकिन उत्तराखण्ड के मुख्मंत्री के खिलाफही आषिर क्यो साजिषों का खेल खेला जा रहा ळै जबकि भ्रश्टाचार का दानव पूरे देष में अपनी जड़े जमाता जा रहा ळै । केन्द्र सरकार में हुए घोटाले किसी से छिपे नही लेकिन उत्तराखण्ड को आदर्ष राज्य बनाने वाले मुख्यमंत्री को आखिर कौन लोग साजिष कर घेरना चाहते हैं इसकी भी पड़ताल द्वारा की जानी चाहिए। एक पत्रकार के नाते मेरा आपसे निवेदन है कि भड़ास की विष्वसनीयता को कायम रखते हुए ऐसे लोगो के हाथ की कठपुतली आप ना बने।
main ashok sir ji ki baat se bilkul sahamat hun aaj ke samay main media walo ne journalism ko ek dhandha bana liya hain wah log paisa kamane ke liye ochi ochi harkat karte hain ya sasti lokpriyata ke liye ase logo ke sath yahi hona chahiye.
Devang Rathore
09456400009
I fully agree with Dr. Ashok Sharma.B4M should be careful about the conent.The culprit Asif is just an internet operator.He is not a journalist.
asif kee jit hogi tay hai. nahi to pradesh kee patrakarita mar jayegi. ye satta ke bhukhe ek din jail kee saja katenge. dekhte rahiye. sach kaha yashvant ne bare akhbaro ke sampadak to nishank ke chat hee rahe rai. eske bal par lako ke vare nyare kar rahe hai. unhe publik valfare ke samacharo se kya matlub. in sampadakou ki sampatti ki jach honi chahiye. kab in baimano se rajye ko mukti milegi.
आसिफ के प्रकरण में यशवंत ने बिना किसी व्यक्तिगत दुराग्रह के अपनी प्रतिक्रिया दी है. इस प्रकरण में केवल न्यायपालिका के निर्णय की प्रतीक्षा की जानी चाहिए. श्री आसिफ सही होंगे तो इस वाद से निकल आयेगे. सवाल तो यह है कुछ लोग किसी भी मुद्दे पर उत्तराखंड के पत्रकारों को बिका हुआ कैसे मान लें. बस यहीं मतभेद है. यशवंत की मानसिकता या शैली सवालों में नहीं लानी चाहिए. वह तनिक भी गलती पर होते तो क्या भड़ास में अपने ही विरुद्ध कुछ जाने देते?
बेशक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डॉ. निशंक जी एक साहित्यकार, पत्रकार और देश की सेवा की भावना से ओतप्रोत हैं और उत्तराखंड को देश का आदर्श प्रान्त बनाना चाहते हैं मगर यशवंत जी भी एक निष्कलंक, निस्वार्थ, मगर भावुक मिशनरी पत्रकार हैं. उनका ह्रदय कोमल है और वह पत्रकारों से सच्ची हमदर्दी रखते हैं.
यदि डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक भारतीय राजनीति के वर्तमान और भविष्य हैं तो यशवंत देश के किसी भी उत्कृष्ट पत्रकार, उत्कृष्ट जवान/किसान/सेनानी/शिक्षक/समाजसेवी/पत्रकार तथा राजनेता से किसी भी सराहनीय या अनुकरणीय गुण में रत्ती भर भी कम नहीं हैं. मुझसे उम्र में कम हैं पर मैं उनका सम्मान करता हूँ. इस मुद्दे पर मेरा उद्देश्य अपनी बात प्रस्तुत करने का रहा है. यशवंत के प्रति मेरा ईमान जस का तस है.
Media community should support आसिफ अंसारी. This is very sad incident, must be condemned.
yashwant ji uttarakhand se prakashit hindustan/ amar ujal/ jagran and sahara to mukhyamantri nishank ke haton bik chuke hain. hindustan ka resident editor dinesh pathak or amr ujala ke joshi khub mall kat rahe hain. hindustan ke shashi shekhar bhi laabh utha rahe hain. jo log nishank ki nahi manenge unehe pareshan to kiya hi jayega.
Mr Ashok Sharma is giving a cleanchit to CM of uttarakhand and has already found the journalist guilty before enquiry or trial just because he knows CM personally and by giving examples of Lord Ram and Sita he is bringing CM on same pedestal as God and absolving him of any wrongdoing and suggests nature will do justice if anything wrong is happening on other hand sermons the arrested to have faith in judiciary why this double standards.Further he quotes Pandit Jawahar lal Nehru, I would like to know if same set of standard should have been followed for A raja & Co this not the first time Mr Nishank has been accused it is on him to prove his inoccence but he chooses to silence people accusing him, as far as BJP central leadership is considerd did it do anything for Karnatka CM no so it is foolish to expect anything from them I appreciate Mr Yashwant ji for what he has written he has not given a cleanchit to the journalist but started by saying he dosen’t know if the charges are true or not he has merely highlighted the high handed autocratic ways of the CM whenever somebody accuses him .
asif ansari ki giraftari se aik baat to saaf ho jati hai ki UK sarkar pagla gayi hai is tarah se to ye baat saaf hai ki jo sarkar ki chamchagiri karega vo maal khayega aur jo sahi baat logon ke samne layega vo jail jayega.nishank ji aik baat samajh len ki gaon ki misaal hai ki kabhi ke din bade aur kabhi ki raat badi.aik samay vo bhi aayega jab aap kisi bhi pad par nahi honge aur bhatak rahe honge dehradun ki galiyon mai tab ye zulm apko pareshan karenge aur apko mafi bhi nahi milegi aur rahi baat asif ansari ki to vo ghabraye nahi poori patrkar biradri unke sath hai kuchh dalal kism ke patrkar zaroor nishank ki himayat kar rahe hain magar sabit ho jayega ki waqayi ye log nishank ke dalal hain aur asif ki begunahi unko aur mazboot banayegi.asif ghabrana mat ham apke sath hain mazbooti ke sath shabash asif date rahi maidan mai ham apka honsla tootne nahi denge(m faisal khan)roporter UNI saharanpur.
I know asif from last 12 years we have worked together , according to me asif is genuine journalist. wo khabar me kise ke nahi sunta aur apne sthar se jaach kar sahi khabar he peesh karta hai. मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की टुच्ची़ सोच का परिचायक ह ……
[b]YASWANT JI NAMASKAR.[/b].
MAI APKI BAATO SE KAAFI HAD TAK SAHAM HU..ASIF JI KA JO BHI MAMLA HO WO AAGE CHAL KAR KHUD HI SABKE SAMNE AA JAYEGA,KI KIS BAAT ME KITNI SACHCHAI HAI,..ASIF JI KI HI TARAH MAI BHI EK MOBILE NEWS SERVICE SE JHUDA HUA HU AUR YAH BHI ACHCHI TARAH SE JANTA HU KI MOBILE NEWS KA SAMAJ AUR PRASHASAN PAR KYA ASAR PADTA HAI..AUR ABHI TRIPATHI JI NE LIKHA KI “HE IS JUST AN INTERNET OPERATOR”PAR MUDDA YE BHI NAHI HAI..MUDDA TOH YE HAI KI JIS TARAH UK SARKAR NE ASIF JI KO GIRAFTAR KARAYA,WO KYA HUMARE LOK-TANTRA AUR PRESS KI AZADI KE VIRUDH NAHI HAI..MAI YE NAHI KAHTA KI HUME AZADI HAI TOH HUM JO CHAHE WO LIKHTE YA KAHTE CHALE..PAR JO UK GOVERNMENT NE KARWAYA WO BHI SAHI TARIKA NAHI HAI..—
PRASHANT–9415300953
राकेश भाई, कैसे कहा जा सकता है कि उत्तराखंड में एक भी पत्रकार सच नहीं लिख रहा. अमर उजाला, जागरण, हिन्दुस्तान, सहारा सब बिक गए हैं? सारे चैनल खरीद लिए गए हैं? और सच लिखने का साहस सिर्फ ब्लोगिंग और नेट की दुनिया में रह गया है क्या मुमकिन है? क्या ब्लोगिंग और नेट की दुनिया में सभी लोग यशवंत जी की बराबरी के हैं? सवाल बहुत से हैं.
यशवंत इन विवादों के जन्मदाता नहीं हैं, उन्होने तो एक मामले पर अपने मन की बात कही है. उसी पर थोडा वैचारिक मतभेद है. बात मेरे द्वारा किसी को क्लीन चिट देने की नहीं है और न दोषी ठहराने की है. क्या यह मुमकिन है कि कुछ व्यक्ति कहें और किसी भी व्यक्ति को गुनाहगार बता दिया जाये? उत्तराखंड के सारे पत्रकार बिक गए हैं यह कैसे कहा जा सकता है ?