प्रिय यशवंत, मैं जानता था कि मठाधीशों के पैर छुए बिना हिंदी पत्रकारिता में आना गुनाह है, यहां टिकना गुनाह है और बड़े ओहदों पर पहुंच जाना तो सबसे बड़ा गुनाह। ये भी जानता था कि ऐसे मठों के सामने से सिर झुकाए बिना निकलना गुनाह है, उनकी ओर आंख उठाकर देखना गुनाह है और उनके बारे में बोलना तो सबसे बड़ा गुनाह। यह कैसे हो सकता है कि इन मठाधीशों की चरण वंदना और चाकरी की भभूत के बिना कोई पत्रकार बने व कहलाए। ना चाहते हुए भी मुझ जैसे ढेरों अज्ञानी ये गुनाह कर बैठे हैं या कर रहे हैं तो मठों की चाकरी करने वालों का हल्लाबोल तो झेलना ही होगा। आज की दुनिया में नानसेंस सबसे बड़ी पावर है। यही इन मठों का सबसे बड़ा हथियार है। एक सुर में इतना हल्ला मचाओ कि असली मुद्दा गौण हो जाए। ये पाक और दूसरे नापाक दिखने व लगने लगें। चरण वंदना से दूर, अपनी काबलियत से कोई साथी टीवी न्यूज चैनलों में बड़े ओहदे पर पहुंचता है, लाख-दो लाख वेतन लेता है, दफ्तर व घर बखूबी चलाता है तो इन्हें पत्रकारिता खतरे में नजर आने लगती है। चैनल पर इन्हें प्राइम टाइम में नहीं बुलाता तो फिर उस भाई की खैर नहीं।