बाबा रामदेव ने जब अनशन की शुरुआत की तो, एक आस बंधी थी कि शायद इस बार हम भ्रष्टाचार को कड़ी टक्कर दे पाएं। लेकिन सरकार की दमनकारी नीति ने सब कुछ तितर-बितर कर दिया। इससे पूर्व अन्ना हजारे के आन्दोलन का हश्र भी कुछ ऐसा ही हुआ। हालांकि उनके अनशन पर किसी तरह का हमला नहीं हुआ लेकिन आज तक कोई परिणाम भी नहीं निकला। बैठकों का दौर जारी है और हर बैठक के साथ एक नये विवाद का जन्म भी।
बीते हफ्ते रामदेव के सत्याग्रह ने पूरे देश को एक सूत्रा में पिरोने का काम किया। ऐसा नहीं था कि इसमें केवल बाबा के समर्थक ही मौजूद थे। वे भी थे जो बाबा से भले कोई वास्ता न रखते हों पर देशहित की बात ने उन्हें भी रामलीला मैदान तक पहुंचा दिया। पर अब….. अब ना तो मुद्दे हैं और न ही उनका कोई सरपरस्त। काले धन का मुद्दा तो कभी का पीछे छूट गया है और अगर कुछ शेष है तो नवविवादित जूता काण्ड, सुषमा का नाच, भाजपा का प्रदर्शन, बाबा-भाजपा-संघ का रिश्ता, लाठी चार्ज, सुप्रीम कोर्ट और मानवाधिकार। लेकिन जिस विषय को लेकर जनता ने रामदेव बाबा का समर्थन किया था अब उनकी प्रासंगिकता धुंधली हो चुकी है।
सरकार की बात करें तो शायद ‘मौकापरस्त’ ही एक ऐसा शब्द मिले जो इसकी छवि का पर्याय बन सके। ये वही सरकार है और ये वही युवराज जो कभी आम जनता की आवाज बनने का दावा करते हैं तो कभी उनके साथ राज्य सरकार के विरोध में धरने पर बैठ जाते हैं। यही नहीं गिरफ्तारी तक देते हैं। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तो सरकार की पोल बहुत पहले ही खुल चुकी है लेकिन शनिवार को जो हुआ, उसने सत्ता की रावणनीति को पूर्णतः स्पष्ट कर दिया। ‘अमूल बेबी’ तो लगता है बोलना ही भूल चुके हैं और दो दिन बाद जब प्रधनमंत्री के बोल फूटे तो बड़े ही नपे-तुले शब्दों में या यूं कहें कि डिक्टेटेड शब्दों में उन्होंने कहा कि हमारे पास कोई और चारा नहीं था। देश के प्रधनमंत्री की इस लाचारी पर तरस तो नहीं, गुस्सा जरूर आता है।
कहावत है कि ‘‘जाकै काज तेही को साजै और करे तो डंडा बाजै’’ लेकिन वरद हस्त की छाया में वे तो सुरक्षित है और डंडे की चोट पर है मासूम जनता। अगर सत्ता का ये हाल है तो विपक्ष भी पीछे नहीं है। गुमनामी के अन्धेरों में लगभग खो-सी गई भाजपा को भी टीवी स्क्रीन पर चमकने और अखबारों में हेडलाइन बनने का मुद्दा मिल गया है। उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं और अब तक कोई ठोस मुद्दा ना होने के कारण भाजपा बुझी-बुझी नजर आ रही थी। लेकिन सत्याग्रह के मुद्दे ने उनमें भी नवसंचार कर दिया है। विपक्ष जनता की सोचने लगा है, और उसके लिए राष्ट्रपति तक से गुहार लगाने लगा है लेकिन ये नहीं कह सकतें कि ये सच्चाई है या ढोंग। जो भी हो एक सक्रीय विपक्ष नजर आने लगा है। पर यहां भी राजनीति ही हावी है और स्वयं का हित ही प्राथमिकता बना हुआ है।
रही बात अन्ना एण्ड पार्टी की तो, जो आवाज जन्तर-मन्तर से बुलन्द हुई अब चारदीवारी में ही दबकर रह गयी है। जब अन्ना ने अनशन शुरू किया था तो लगा कि देश में बदलाव की बयार आ गयी है और निश्चित तौर पर अब कुछ होकर रहेगा, लेकिन तमाम बुद्धजीवियों को ठेंगा दिखाते हुए अन्ततः सरकार वही कर रही है जो वो चाहती है। अन्ना के चरित्र पर किसी को कोई शक नहीं लेकिन आपसी मतभेदों और सरकार की चालों में फंसकर अन्ना की टीम ने खुद ही अपनी मिट्टी-पलीद करवा ली है। कहीं न कहीं जनता का मोहभंग तो हुआ ही है और इसके लिए परिणामों से कहीं ज्यादा अन्ना और उनकी टीम की जल्दबाजी और अधूरी तैयारी जिम्मेदार है।
अब बात रामदेव के सत्याग्रह की। रामदेव ने सत्याग्रह तो बड़ी ही तैयारी से शुरू किया, और जब सत्ता के चार आला नेता उनके सम्मान में नतमस्तक दिखे तो लगा कि शायद इसबार काले धन का मुद्दा सुलझ जाए लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। जो हुआ वो आपके और हमारे सामने है। रामदेव का अन्धानुकरण न करते हुए अगर सोचें तो क्या ऐसा नहीं लगता कि रामदेव को पहले ही अपनी सम्पत्ति का खुलासा कर देना चाहिए था और वैसे भी सांच को आंच क्या। अगर वे सच्चे हैं तो पहले या बाद में का कोई प्रश्न ही नहीं उठता और यदि उन्होंने किसी पत्र पर सहमति दी है तो उसका खुलासा, साफ-साफ तौर पर जनता से करते।
उन्हें क्यों ऐसा लगा कि ऐसा करने से वे कमजोर पड़ जाएंगे या जनता उनका साथ नहीं देगी? जो जनता भरोसा करके अपना कामधाम छोड़, भूखे-प्यासे आपके साथ खड़ी है क्या वो सच जानकर आपका साथ छोड़ देती? जनता रामदेव के साथ आयी क्योंकि ये मुद्दा उससे जुड़ा था और बाबा उसके लिए आवाज बुलन्द कर रहे थे, लेकिन कहीं न कहीं रामदेव ने बात छिपाकर जनता को छला तो है ही। अब सब कुछ सामने आ चुका है, शेष है तो सिर्फ राख के ढ़ेर पर पत्थरबाजी करने का दौर।
सरकार को जो करना था उसने किया और आज भी बिना किसी की परवाह किये वही कर रही है जो उसे करना है। भाजपा जिन टर्निंग प्वाइंट्स की खोज में थी वो उसे रामदेव के सत्याग्रह के रूप में बैठे-बिठाए मिल गया। अन्ना एण्ड ग्रुप को जो चाहिए था वो उसे मिला भी और खो भी गया। रामदेव को राजनीति में आने का रास्ता मिल गया और मुद्दा धुंआ हो गया, कल तक गर्मी दिखाने वाले बाबा आज केन्द्र को माफी देते नजर आ रहे हैं लेकिन जनता…..? जनता आज भी वहीं है जहां कल थी। आज भी भ्रष्टाचार उसी का निवाला छीन रहा है और सरकार भी उसी की गर्दन दबोच रही है। शनिवार के काण्ड ने उसके मन में रोष तो भरा है लेकिन साथ ही एक झिझक भी। झिझक, कि क्या उसे अब किसी आन्दोलन का हिस्सा बनना चाहिए? लेकिन अब अगर हम चुप रहे तो लाठियों की जगह गोलियां ही चलेंगी।
अब हमें ही ये समझना होगा कि वास्तव में ये हमारे हक की ही लड़ाई है और हमें ही इसकी कमान सम्भालनी होगी। अपने-अपने स्तर पर इस भ्रष्टाचार को दूर करने का प्रयास करना होगा और इसे अपनी आदत में शुमार करना होगा क्योंकि वार्षिक उत्सव के तौर पर मनाये जाने वाले इन आन्दोलनों का हश्र हम सबके सामने है। आने वाले कुछ दिनों में एक बार फिर सबकुछ सामान्य हो जाएगा। बाबा पतंजलि में ध्यान रमा लेंगे और राजनीतिक दल चुनावों में, लेकिन हमारा क्या? हमारे मुद्दों का क्या? वो तो आज भी जस के तस बने हुए हैं और अब अगर हमने कुछ नहीं किया तो संभव है ये धोखेबाज देश के साथ-साथ हमें भी बेच खाएं। तो इससे पहले की बहुत देर हो जाए आज से ही अपने स्तर पर भ्रष्टाचार की लड़ाई की शुरुआत करें।
लेखिका भूमिका राय दिल्ली विश्वविद्यालय के कम्युनिटी रेडियो में बतौर कार्यक्रम उदघोषक कार्यरत हैं. उन्होंने हाईस्कूल व इण्टरमीडिएट लखनऊ से और स्नातक की शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से पूरी की है. वर्तमान में भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा में अध्यनरत हैं.
Comments on “”अमूल बेबी” के बोल कब फूटेंगे”
बाबा को और कायदे से पीटना चाहिये थे।आप भी ज्यादा उसके चक्कर में न पड़े नहीं तो आपके कपड़े भी उतार कर अपने पहन लेगा, भागने के लिए।
भूमिका राय जी
मैं आपके विचारों से पूर्ण रूप से सहमत हूं। क्योंकि बीजेपी के पास भी कोई मुददा काफी दिनों से नहीं था अब वो भी इस आग में कूद गयी है। उसको भी तो अपना वोट बैंक भरना है। अब उसके पास सत्याग्रह नाम का एक मुददा आ गया है जिसे बो पूरी तरह से भुनाने में लगी है। अन्ना हो या बाबा रामदेव इन सब के साथ कांग्रेस ने धोखा ही किया है एक तरहा से देखा जाए तो इन को आष्वासन का लोलीपोप हाथ में थमा दिया गया। और आम जनता का हाल अब भी वही है जो कल था और षायद अगर आम आदमी की आंखों नहीं खुली तो फिर ये मुददा सिर्फ मुददा ही बनकर रह जायेगा। एक आस थी कि षायद बाबा या अन्ना कोई नया रास्ता खोजकर जनता को नई दिषा मिल सके लेकिन अब भी हाल वही है जो कल था।
राहुल गाँधी को अमूल बेबी कहने वाली मोहतरमा अभी आप खुद बेब हो,राजनीति की गहराई की समझ तुम्हें नहीं है।
और जब राहुल को बेबी ही समझ रही हो तो उनसे बोलने की अपेक्षा क्यों?
shandaar article………desh me jo kuch chal raha hai usper ek nispakch bayan sirf budhjivi yuva hi de sakta hai…….baki sub to apne fayde wale jagah per surakshit hoker dusre ko gariyane me lage hain……
Nice said bhoomika,in fact if opposition doesn’t start acting now against corruption ,we should assume that it is partner of UPA govt in crime.
Rahul Gandhi Dr Manmohan All are just masks or mukhauta of UPA ,they are infact not living people technically just for show.
Administrator Please remove cheap and filthy comments of Rinku Singh who Seems to be Agent of corrupt politicans by his act ,he should be brought back to decency.Jai Bharat Jai Hind
Even I was thinking why RAHUL is not saying anything on this issue. Mr. Gandhi you are not different as we(Young guns of India,) were thinking. So sad. Us din UP me aap ko hindustani hone me sharm ayi thee. lekin 4 june ki raat hr hindustani shrmsaar thaa all because of CONGRESS
good article.
rajesh kumar
journalist.
congreshi ajent sriman rinku ji kyo apni aaokat dikha rahe ho….rahul ke chamche ho kya..
bhoomika ji aapne bahut bhawukta mein yeh lekh likha ki janta thagi gai is desh ki janta hi sabse jyada haramkhor hai. agar logon ko itni pareshani ho rahi hai to kyon nahin nikal kar sadk par aate hain. kabhi kisi pade likhe insaan ko sadak par naare lagate hue dekha hai. kyonki uska is desh se koi vasta nahin nahin hai uski apni duniya. is desh ki janta ko tanashah chahiye tabhi sudhregui ye janta. ismein congress bjp ka koi dosh nahin hia. is desh ki janta ke baare mein bhi likhe aap log to achchha hoga. bechari janta ke bajay makkar janta likhiye.
jaihind jai bharat
भूमिका जी आप का लेख अच्छा है लेकिन अभी आप राजनीति की समझ आने दीजिए आपके विचारों में और परिपक्वता आएगी…तब ये चश्मा जिससे अभी आप बाबा को देख रही हैं गलत लगेगा..ये पॉलिटिक्स नहीं—पॉलीट्रिक्स है..जी
भाषा अच्छी है… प्रयास सराहनीय है… विषय गंभीर है, इसलिए और चिंतन की जरूरत है. विचारों में कहीं- कहीं सतहीपन नजर आ रहा है. जनता की समग्र सोच कई मुद्दों के संग्रह से बनती है. रामदेव और अन्ना को भी एक स्केल से नहीं नापा जा सकता. अध्ययन करिए, लेखनी अपने आप दमदार हो जाएगी. शुभकामना.
Good effort Neha keep your fight for right up.
Dear Bhumika
Well Done I apericiate Your Bold comments On such issues.Keep It UP.Best wishes for ur long career in journlism..
thanks.
Bhumika ji Corruption is such a virus (Politician) in India Where as no ANTI VIRUS has been invented so for.
अमूल बेबी सिर्फ एक जरिया हैं उत्तर प्रदेश में जनाधार विकसित करने का। उनसे यदि आप कुछ बोलने की उम्मीद रखती हैं तो यह आप की उदारता है। बाबा रामदेव का बोरिया बिस्तर कब बाँध दिया जायेगा यह खुद रामदेव को नहीं पता चलेगा। अन्ना को जो लालीपाप पकडाया गया है, देखना रोचक होगा कि कब तक चलेगा। आप का लेख उत्कृष्ट श्रेणी का है।