मायावती सरकार के चार साल पूरे होने पर दैनिक जागरण, लखनऊ संस्करण में चार किश्तों में मायावती के कामकाज पर स्टोरी प्रकाशित हुई. इन विशेष स्टोरीज वाले कालम का नाम था- वादा तेरा वादा. इन कालमों के जरिए बताया गया कि मायावती के राज में वे क्या क्या काम नहीं हुए, जिनका ऐलान किया गया था. साथ ही इन स्टोरीज में सरकार के कामकाज की आलोचनात्मक समीक्षा थी, जो कि अखबारों में आमबात है.
ऐसी ही स्टोरीज को पाठकों के लिहाज से अच्छा माना जाता है जिसमें सरकार के गुण-दोष दोनों का खुलासा समान भाव से किया गया हो. पर अब न तो वे नेता रहे और न ही मीडिया के वे लोग. नेता अपनी बुराई बिलकुल नहीं सुनना चाहते, और मीडिया वाले पैसे-विज्ञापन के चक्कर में कलम बेचकर कुछ भी खिलाफ लिखने को तैयार नहीं होते. जो कोई लिख भी देता है तो उसका हाल मध्य प्रदेश के हिंदी दैनिक राज एक्सप्रेस के मालिक अरुण सहलोत की तरह होता है. राज एक्सप्रेस में सरकार के खिलाफ छपी खबरों से एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान इतना नाराज हुए कि उन्होंने गुपचुप तरीके से रणनीति बनाकर बिल्डर अरुण सहलोत के ढेर सारे निर्माण कार्यों को डायनामाइट से उड़वा दिया और यह क्रम अभी जारी है. खैर, बात हम लोग लखनऊ की कर रहे थे.
सूत्रों के मुताबिक दैनिक जागरण, लखनऊ में मायावती सरकार के कामकाज पर छप रहे इन कालमों पर जब मायावती सरकार के लोगों की नजर गई तो उपर तक सूचना पहुंचा दी गई. फिर क्या था, सीधे संपादक संजय गुप्ता को माया सरकार की तरफ से फोन गया. सरकार की ओर से मिलने वाले लंबे-चौड़े विज्ञापन को बंद करने की धमकी दी गई. माया सरकार के निशाने पर रहा दैनिक जागरण प्रबंधन कतई नया पंगा लेने के मूड में नहीं था. फौरन इस कालम को बंद करने का आदेश दे दिया गया. वहीं कुछ लोगों का कहना है कि मायावती सरकार के कामकाज की आलोचनात्मक समीक्षा वाले इस कालम के छापे जाने की शिकायत दैनिक जागरण, लखनऊ के ही एक वरिष्ठ पत्रकार ने मायावती सरकार के वरिष्ठ लोगों से की. उन्होंने ऐसा आंतरिक राजनीति के चलते किया और उन वरिष्ठ लोगों को सबक सिखाने के लिए किया जिन्होंने इस कालम की प्लानिंग व एक्जीक्यूशन का काम किया था.
यह तो सबको पता ही है कि दैनिक जागरण में आंतरिक राजनीति भयंकर होती है. कुछ कुछ उसी तरह की होती है जैसे मध्ययुग में राजा-रजवाड़ों के महलों में हुआ करती थी. कौन कब किसको किस तरह से निपटा देगा, किसी को कानोंकान खबर तक नहीं होती है. दैनिक जागरण, लखनऊ भी इन दिनों राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है. यहां कई तरह के ग्रुप बने हुए हैं. स्थानीय संपादक का अलग ग्रुप है तो स्टेट हेड का अलग ग्रुप. नोएडा की एक लाबी का अलग ग्रुप है तो कानपुर वालों का अलग ग्रुप.
सरकार की धमकियों से झुकने की यह पहली घटना दैनिक जागरण के साथ नहीं हुई है. यह कई बार हो चुका है होता रहता है. पटना वाला प्रकरण बहुत पुराना नहीं है जब नीतीश कुमार दुबारा जीतकर सीएम बने तो उन्होंने दैनिक जागरण के एक पत्रकार के तबादले की मांग रख दी. उन पत्रकार महोदय की गलती यह थी कि उन्होंने नीतीश सरकार के कई कारनामों का खुलासा दैनिक जागरण में खबर के जरिए कर दिया था. उससे नाराज नीतीश ने पहले दैनिक जागरण का विज्ञापन रोका, जब उनसे प्रबंधन ने बात की तो ब्यूरो चीफ को पद से हटाने की मांग कर डाली. जागरण प्रबंधन ने ऐसा ही किया. जब वे दुबारा जीतकर आए तो नीतीश के मूड को देखते हुए दैनिक जागरण प्रबंधन ने उन पत्रकार महोदय का तबादला पटना से लखनऊ कर दिया. पता नहीं वे लखनऊ में हैं या छोड़ चुके हैं. पर उन्हें जीवन भर इस बात की पीड़ा रहेगी कि प्रबंधन ने मुश्किल वक्त में उनकी कलम का साथ नहीं दिया बल्कि अपने बिजनेस हित के लिए सरकार के चरणों में लोट गया.
अगर आपको भी बड़े अखबारों द्वारा सरकारों के चरणों में गिर पड़ने की कोई घटना याद हो तो हमें जरूर बताइए, नीचे कमेंट बाक्स के जरिए या फिर सीधे भड़ास4मीडिया को मेल [email protected] पर मेल करके.
prabhat kumar bhardwaj
May 23, 2011 at 1:14 pm
मै एक समाज सेवक हूँ, और खुद एक अपराध संवाददाता हूँ एक राष्ट्रिय अखबार में, और आपकी इस वेबसाइट का पता चला तो बहुत खुश हुआ की शायद अब भी मानवता जिंदा है,
अब भी आवाज उठाने वाले लोग जिन्दा है, जी अगर मेरे लायक कोई सहयोग हो तो बताये,
और एक नयी योजना भी दिमाग है.. जिससे देश की जनता को सीधा हम उन खबरों तक पंहुचा सकते है जो मीडिया पचा जाता है क्युकी उन्हें कोई स्पोंसर नहीं मिलता.और वो खबरे भर्स्ट प्रशासन के खिलाफ होती है . . अगर आप इस योजना के लिए इच्छुक है तो मुझे 9555133845 पर संपर्क करे.. मेरे बारे में ज्यादा जानकारी गूगल से ले सकते है टाइप करे prabhat kumar bhardwaj
akshay
May 23, 2011 at 1:53 pm
ye to hona hi tha akhbaar wale saale apne phayde ke liye kisi ke saath mazak kr sakte hai aur mukhyamantri to phir inke liye bhagwN HOTA HAI
karn
May 25, 2011 at 5:21 am
advertisment band hi kar dena chaiya tabhi paper wale dbab me nahi rahege.
santosh kumar
May 25, 2011 at 9:23 am
दैनिक जागरण ने यदि मायावती की बात मान ली तो क्या गलत कर दिया। सब मैडम की माया है। आजकल अखबार बाजारवाद का ही तो एक अंग है। कोई भी बैनर कहीं अपना यूनिट लांच करता है तो उसे 300-400 करोड़ से भी ज्यादा का खर्च करना पड़ता है। दो-चार रुपये में जो अखबार लोगों के हाथ में जाता है, वास्तव में उस पर करीब 16-20 रुपये खर्च होता है। जाहिर सी बात है विज्ञापन से ही उस खर्च की भारपायी होती है। फिर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दैनिक जागरण नं.1 है। नं.1 कोई यूं ही नहीं बन जाता। पेट पैसे से भरता है, खबर से नहीं।
सचवाचक
May 27, 2011 at 10:21 pm
प्रभात कुमार जी सर्वप्रथम शुद्ध हिंदी लिखना सीख लें.
दूसरा खुद की ब्रांडिंग पर से ध्यान हटा कर मूल उद्देश्य की बात करा करें .
तीसरा स्पष्ट जानकारी प्रेषित करा करें किस राष्ट्रीय अखबार में आप १९ साल की उम्र में अपराध संवाददाता है?
अंतिम बात अपनी ब्रांडिंग से पहले थोडा आर्ट ऑफ़ प्रेसेंटेशन पर कार्य कर लें…तात्पर्य यह है कि चिरकुट छवि नहीं झलके .
vivek
May 29, 2011 at 6:19 am
..
bhiya jee jaisa prades wasa bhase