कोई नेता पत्रकार पर हाथ तभी उठाता है जब उसकी हैसियत समाज में खत्म हो जाती है. अहमद बुखारी जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं उसे इस देश के मुसलमानों ने नकार दिया है. इसी के परिणामस्वरूप आज बुखारी मारपीट पर उतर आये. इसकी जितनी भी निंदा की जाये कम है. सभ्य समाज में इस तरह की हिंसा का कोई मतलब नहीं है. अहमद बुखारी मुसलमानों को किस तरह गुमराह करने की कोशिश करते रहे हैं, यह सबको पता चल चुका है. अब मुसलमान उन्हें घास नहीं डाल रहा . बौखलाए बुखारी अब खबरों में बने रहने के लिए इस तरह की बदतमीजियों पर उतर आये हैं. दरसल बुखारी की पीड़ा भी जायज है. अयोध्या के फैसले के बाद भी देश में अमन चैन का माहौल रहना बुखारी और तोगड़िया जैसों को दुःख पहुंचाता ही है. अगर इस तरह का प्यार का वातावरण रहेगा तो इन लोगों को कौन पूछेगा.
लिहाजा किसी भी तरह खबरों में बने रहने के लिए बुखारी अब इन ओछी हरकतों पर उतर आये हैं. आज अब्दुल वाहिद चिश्ती ने ऐसा कोई सवाल नहीं पूछा था जिससे बुखारी इस तरह से खफा हो जाते. अगर कोई पत्रकार बुखारी से यह कहे कि अगर अयोध्या में जमीन हिदुओं को दे दी जाये तो इससे देश में सामाजिक सदभाव बढेगा तो इसमें ऐसी कोई बुरी बात नहीं है जिससे बुखारी बौखला जायें. बुखारी जैसों को समझ में आना चहिए कि अब इस देश के लोग समझदार हो गए हैं. पत्रकार वैसे भी इन लोगों के शिकार होते रहे हैं. कार सेवा के दोरान भी ऐसी ही घटनाओं का सामना करना पड़ा है. आज बुखारी ने भी इसी सिलसिले को आगे बढाया है.
इससे पहले भी बुखारी वोटों के बदले नोट देने के लिए खासे चर्चित रहे हैं. दुःख की बात तो यह है कि जब बुखारी अब्दुल वाहिद चिश्ती को धमका रहे थे उस समय तमाम पत्रकार खामोश रहे. अगर उसी समय पत्रकारों ने एकजुट हो कर जवाब दे दिया होता तो बुखारी को उनकी औकात पता चल जाती. निश्चित रूप से सभी को इसकी निंदा कर के बुखारी की गिरफ़्तारी क़ी मांग करनी चहिए.
लेखक संजय शर्मा लंबे समय से पत्रकारिता में हैं. वे इन दिनों लखनऊ से प्रकाशित ‘वीक एंड टाइम्स’ से संपादक के रूप में जुड़े हैं.
Comments on “नकारे जाने से बौखलाए हैं बुखारी जैसे लोग”
Bahut sahi likha sanjay bhai aapne. danga karane wale log ab pareshan hai ki is desh main sab log pyar se kaise rah rahe hai.
sir jis traha 30 sep ko aye faisle par hindu muslim samuday ne ekta ka parichey diya hai in jaise kai logo ki dukan uth gai hai bechare apni baukhlahat kaha nikale.so ulti sethi harkat kar rahe hai.
ऐसे बुखारियों को तो गधे पर टांग कर पाकिस्तान भेज देना चाहिए।
patrkarita aur prjatantra ke chotha stambh par patrkarbarta mai gussana dik nahi hamare dharm guruo ko to saahan karne ki sakti honi chahiya
इसे पत्रकारिता का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि मुद्दा कितना भी गंभीर हो पत्रकारों की आपसी लड़ाई खत्म होने का नाम ही नहीं लेती. कल जामा मस्जिद के शाही इमाम द्वारा पत्रकार अब्दुल वाहिद की पिटाई और उन्हें जान से मारने की धमकी देने के २४ घंटे बाद भी लखनऊ के पत्रकार एक मंच पर नहीं आ सके. आज अलग अलग खेमे के लोगो ने इस मामले पर भी राजनीति की. मान्यताप्राप्त पत्रकारों के संघटन ने खुद को ही असली बताने की होड़ में अलग अलग बैठक की.
शुरुआत हेमंत तिवारी की और से हुई. उन्होंने खुद को मान्यता प्राप्त पत्रकार समिति का सचिव बताते हुए मुख्यमंत्री को ज्ञापन दे कर इस मामले की सीवीआइ जांच की मांग की. उन्होंने इस ज्ञापन में इस घटना की निंदा करते हुए कड़ी कारवाही की मांग की. इसके तत्काल बाद खुद को असली कमेटी बताने बाले गुट ने एनेक्सी में इस घटना की निंदा के लिए बैठक की. इस बैठक में भी तमाम मुद्दे सामने आये जिनका इस विवाद से कोई वास्ता नहीं था. अध्यक्ष हिसामुल सिद्दीकी ने कहा की बह बुखारी के विरुद्ध तो है पर सिर्फ पत्रकार अब्दुल वाहिद के मामले पर यह बैठक नहीं है क्यों की पता नहीं की अब्दुल वाहिद किस छोटे से अखवार के संपादक है. इस पर बैठक में हंगामा हुआ . बीबीसी के रामदत त्रिपाठी , वीक एंड टाइम्स के संपादक संजय शर्मा , सहारा के मन मोहन सिंह ने इसका तीखा प्रतिवाद किया. इन लोगो का कहना था कि पत्रकार सिर्फ पत्रकार होता है. उसे छोटे बड़े में बतना ठीक नहीं है. शरत प्रधान ने भी इसका समर्थन किया.बैठक में सरकार से मांग कि गई कि अविलम्व हमलावरों एवं उनके सहयोगियों को चिन्हित करके उनकी गिरिफ्तरी होने चैहे. इस सम्बन्ध में एक ज्ञापन एडीजी ब्रजलाल को सोपा.मगर इन सबके बाबजूद यह सवाल सबसे महतवपूर्ण है कि पत्रकार आखिर कब आपसी विवाद को छोड़ कर एक होगे.