भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का धुंआ देख उसे तुरंत बुझाने में क्यों जुटे सत्ताधारी?

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हरिवंश: दुनिया के एक विख्यात न्यायविद, न्यायमूर्त्ति हैंड ने कहा था, आजादी के बारे में… नैतिकता या भ्रष्टाचार के प्रसंग में भी वही चीज लागू है…. उनका कथन था, आजादी मर्दों-औरतों के दिलों में बसती है. जब वहां यह मर जाती है, तब इसे कोई संविधान, कानून या अदालत नहीं बचा सकती… :

भ्रष्टाचार के सवाल पर देश में शह-मात का खेल चल रहा है. सरकार किसी कीमत पर इस जन मुद्दा को बड़ा सवाल नहीं बनने देना चाहती. वह जानती है कि यह धुंआ या चिंगारी सुलगी, इसे हवा मिली, तो इसमें तख्तोताज भस्म हो जायेगा. मध्य-पूर्व और अफ्रीकी देशों (टय़ूनीशिया,मिस्र्, सीरिया, यमन, बहरीन, लीबिया) में तो घटनाएं ताजा हैं. शासक वर्ग के भ्रष्टाचार के खिलाफ़ बगावत, उन समाजों-देशों में तानाशाह शासकों के खिलाफ़, विद्रोह या बगावत की परंपरा नहीं थी. भारत में तो दो-दो बार ‘भ्रष्टाचार’ के सवाल पर केंद्र सरकारें अपदस्थ हो चुकी हैं. पहली बार 1974 में भ्रष्टाचार के खिलाफ़ बगावत की आवाज गूंजी. दूसरी बार 1989 में बोफ़ोर्स तोप में कमीशन की चरचा उठी और वह आंधी में तब्दील हो गयी.

इस बार केंद्र सरकार चौकस है या राजनीतिज्ञों ने 1974, 1989 और मध्यपूर्व देशों की हाल की घटनाओं से सीखा है. वे जहां भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आंदोलन का धुंआ देखते हैं या प्रतिरोध की आवाज सुनते हैं, उसे तुरंत बुझाने में जुट जाते हैं. इसलिए अन्ना हजारे हों या बाबा रामदेव, दोनों को तुरंत केंद्र सरकार मनाने में जुट गयी. एक और वजह संभव है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की निजी छवि बेदाग है, संभव है, वे भी भ्रष्टाचार रोकने के सवाल पर उतने ही संवेदनशील हों, जितने अन्य. पर हकीकत यह है कि सरकार इस गंभीर रोग का इलाज नहीं कर पा रही. कैसे और क्यों?

दुनिया जान रही है. रोज-रोज अनेक सर्वे और प्रामाणिक रिपोर्ट आ रही हैं कि भारत, दुनिया के भ्रष्टतम देशों में से एक है. इसकी पुष्टि भी हुई है, केंद्र में मंत्री रहे लोग, बड़े आइएएस, कारपोरेट घरानों के टाप लोग तिहाड़ जेल में हैं. ये जेल गये, सिर्फ़ और सिर्फ़ सुप्रीम कोर्ट के कारण. क्या केंद्र सरकार को पता नहीं था कि किन-किन विभागों में क्या ‘लूट खेल’ चल रहे हैं? भ्रष्टाचार रोकने के सख्त कानून बनाने के लिए क्यों केंद्र सरकार को किसी आंदोलन, उपवास और अनशन की प्रतीक्षा करनी पड़ती है? सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने, सार्वजनिक रूप से माना है कि देश में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है. फ़िर कानून क्यों नहीं बन रहे? क्यों अन्ना हजारे या बाबा रामदेव के आंदोलन-उपवास की प्रतीक्षा में सरकार रहती है?

सरकार जनता द्वारा चुनी और उसकी नुमांइदा है, बाबा रामदेव या अन्ना हजारे जैसे लोग ‘जनता की आवाज’ होने का दावा कर सकते हैं, पर वे चुने प्रतिनिधि नहीं हैं. इस तरह जनता की पीड़ा, जनता द्वारा चुने लोग स्वत कानून बना कर क्यों पहल नहीं करते? भ्रष्टाचार रोकना, मूलत सरकार का धर्म और फ़र्ज है. पंडित नेहरू ने आजादी के बाद सपना देखा था कि भ्रष्टाचारी, चौराहे पर, लैंपपोस्ट पर फ़ांसी पर लटकायें जायें. उनके उत्तराधिकारी हैं, आज के कांग्रेसी. सबसे अधिक वर्षों से देश में राज करने वाले. अगर ये कांग्रेसी हटे भी, तो दो बार भ्रष्टाचार के सवाल पर ही. लेकिन इस भ्रष्टाचार को रोकने, सख्त सजा देने, मामलों के स्पीडी ट्रायल कराने के कानून क्यों नहीं बनाये गये? अगर ये कानून बने होते, तो आज केंद्र सरकार को अन्ना हजारे पर बाबा रामदेव के आगे मत्था नहीं टेकना पड़ता.

पर सरकार न कानून बना रही है, न इस भ्रष्टाचार के आंदोलन को सुलगने देना चाहती है. सरकार का खेल साफ़ है, वह भ्रष्टाचार के सवाल को आंदोलन नहीं बनने देगी, क्योंकि यह आग उसे जला देगी. उधर भ्रष्टाचार की जांच बढ़े और सख्ती हो, तो बड़े-बड़े मामले आयेंगे. स्विस बैंकों या विदेशी बैंकों में जमा धन से लेकर शासक वर्ग (पक्ष-विपक्ष, नौकरशाह, उद्योगपति यानी पूरा रूलिंग एलीट) के चेहरे उजागर होंगे. खेल में, टेलिकॉम में, खाद्यान्न में..जहां देखिए बड़े घोटाले, बदबू और कुशासन.

अब ताजा उदाहरण एयर इंडिया का है. अचानक एक दिन खबर आयी कि केरल में एयर इंडिया के एक जहाज को, एक तेल कंपनी (वह भी सरकारी) ने तेल भरने से इनकार कर दिया, क्योंकि एयर इंडिया को तेल मद में 1200 करोड़ से अधिक देना है. एयर इंडिया, भ्रष्टाचार और कुशासन के कारण दम तोड़ रहा है. जनता की पूंजी झोंकी जा रही है, रूलिंग एलीट (समाज का प्रभु शासक वर्ग) की सुख-सुविधा और तफ़रीह में. वह भी जनता के नाम पर. एयर इंडिया का कुल घाटा है, 14000 करोड़. हर जहाज के पीछे 160 कर्मचारी हैं. हर जहाज में 60 फ़ीसदी के लगभग यात्री होते हैं. यानी पूरी क्षमता का उपयोग नहीं. हर जहाज प्रतिदिन औसतन नौ घंटे उड़ान भरता है.

उधर एयर इंडिया पर 40,000 करोड़ का कर्ज है. बिना योजना या रणनीति के पहले विमान मंत्री ने 100 जहाज खरीद लिये. उनकी वकालत या मांग पर 2000 करोड़ की अतिरिक्त पूंजी केंद्र सरकार ने डाली. इस वर्ष फ़िर एयर इंडिया में 1200 करोड़ पूंजी डालने का प्रस्ताव है. वित्तीय सलाहकार डिलोटि के अनुसार इस एयर इंडिया को चलाते रहने के लिए 17500 करोड़ तत्काल चाहिए. हाल के एयर इंडिया पायलटों की हड़ताल को याद करें, इसमें 200 करोड़ का नुकसान हुआ. यह सब बोझ किस पर? हम पर, आप पर.

और इसे रोकने के लिए रोज कानून बनाने की मांग हो रही है. पर यह भ्रष्टाचार उसी तेजी से गांव-गांव, घर-घर पहुंच-पसर रहा है. दुनिया के एक विख्यात न्यायविद, न्यायमूर्त्ति हैंड ने कहा था, आजादी के बारे में. नैतिकता या भ्रष्टाचार के प्रसंग में भी वही चीज लागू है. उनका कथन था, आजादी मर्दों-औरतों के दिलों में बसती है. जब वहां यह मर जाती है, तब इसे कोई संविधान, कानून या अदालत नहीं बचा सकती. आजादी की जगह नैतिकता जोड़ कर पढ़ें या भ्रष्टाचार से नफ़रत बोध. एक और प्रसंग. राजनीति से नफ़रत करने वालों के लिए!

फ़िर समझ लें, राजनीति ही कुछ कर सकती है. वही दवा है, भ्रष्टाचार जैसे मर्ज की. जेपी आंदोलन या 89 में भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आंदोलन, राजनीतिक अभियान थे. यह अलग प्रसंग है कि कामयाबी (चुनावी सफ़लता) के बाद भी वे मुकाम तक नहीं पहुंचे. पर वे आंदोलन शुरू होते ही समझौते के शिकार नहीं बने. अन्ना हजारे की तरह. या बाबा रामदेव के साथ भी जो पहल हुई है. कोई राजनीतिज्ञ इस जनसवाल पर परदे के पीछे हल नहीं निकालेगा. वह लंबी लड़ाई की तैयारी करेगा. क्योंकि यह महज सत्ता परिवर्तन की लड़ाई नहीं, व्यवस्था परिवर्तन की कठिन लड़ाई है. व्यवस्था बदले बिना, भ्रष्टाचार नहीं रुकने वाला. पर आज की राजनीति में वह ताकत, चेहरा और ऊर्जा कहां है?

लेखक हरिवंश प्रभात खबर के प्रधान संपादक हैं, देश के जाने-माने पत्रकार हैं. सरोकार वाली पत्रकारिता के अगुवा हैं. उनका यह लिखा प्रभात खबर में प्रकाशित हो चुका है. वहीं से साभार लेकर भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित किया गया है.

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