हाईकोर्ट, प्रेस क्लब और जंतर-मंतर : एक रोजनामचा

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कल दिल्ली हाईकोर्ट गया था. एचटी मीडिया ने जो मानहानि का मुकदमा कर रखा है उसी की तारीख थी. कोर्ट में क्या क्या हुआ और आगे क्या होने वाला है, उसकी जानकारी आप नीचे के वीडियो लिंक पर क्लिक करके देख-सुन सकते हैं. वहां से जब फ्री हुआ तो प्रेस क्लब आफ इंडिया गया. खाना खाने. प्रेस क्लब में नए लोग जबसे चुनाव जीतकर आए हैं तबसे जाना नहीं हुआ.

कुछ एक पदाधिकारी मिले और बात होने लगी. किसी ने श्वेतपत्र थमा दिया जिसे कल भड़ास पर प्रकाशित किया जा चुका है. इस क्लब के नए पुराने माहौल के बारे में काफी कुछ कहानी इस श्वेतपत्र से स्पष्ट है.

प्रेस क्लब आफ इंडिया से खा-पीकर निकलने के बाद सीधे जंतर मंतर पहुंचा. पहले दिन भी गया था और दूसरे दिन भी गया. पहले दिन के मुकाबले ज्यादा भीड़ हो गई थी. लोग उत्साहित और उर्जावान थे. दूसरे प्रदेशों से आए और दिल्ली में नौकरी कर रहे लोग काफी संख्या में थे. पढ़े-लिखे और बुद्धिजीवी किस्म के लोग भी अच्छी खासी संख्या में थे. चैनलों की भीड़ बढ़ गई थी. करीब 42 ओवी वैन स्थापित हो चुकी हैं, ऐसी सूचना है. इसी कारण लोग अन्ना के आंदोलन को पीपली लाइव से कनेक्ट कर रहे हैं कि ये मीडिया प्रायोजित है. पर मैं इससे इत्तफाक नहीं रखता. अन्ना ने देश के सेंटीमेंट को मंच और मौका दिया है एक्सप्रेस होने का. और, आंदोलन कभी तयशुदा फार्मेट या नायकों के साथ नहीं होते. आंदोलन के नायक आंदोलन के जरिए पैदा होते हैं.

मेरी पत्नी पूछ रहीं थीं कि ये अन्ना कौन हैं. ऐसे उत्तर भारतीय लोग जिनकी रुचि राजनीति में बेहद कम है, वे भी अन्ना के बारे में जानने को इच्छुक हैं. कह सकते हैं कि ये मीडिया की वजह से है और मीडिया को इस नेक काम के लिए सराहना मिलनी चाहिए. ये सही है कि इस आंदोलन से मीडिया को टीआरपी मिल रही है लेकिन हम लोग कहते भी तो यही थे कि मीडिया अगर असल मुद्दों पर केंद्रित रहे तो भी टीआरपी आएगी. भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा बन चुका है, ये मीडिया की देन है. जिस करप्ट मीडिया को हम लोग गालियां देते थे, उसी मीडिया ने चाहे जिस मजबूरी में, देश में करप्शन को राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया है और जाहिर है जब धुलाई सफाई शुरू होगी तो मीडिया क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहेगा. जंतर मंतर पर कुल बारह मिनट रहा. और, इन बारहों मिनट को मोबाइल में कैद किया, टहलते हुए.

अन्ना के आंदोलन को मेरा भरपूर समर्थन है. कोई इफ बट नहीं, सिर्फ आंख मूंदकर समर्थन. संभव है, कल को हम लोग थोड़े बहुत ठगे और थके महसूस करें खुद को लेकिन आंदोलन सीख चुका आदमी फिर नए आंदोलन के लिए प्रेरित-उत्प्रेरित होगा, यह इस आंदोलन का सबक रहेगा. अन्ना हजारे या किरन बेदी या प्रशांत भूषण… व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं है. मुद्दा महत्वपूर्ण है. इन व्यक्तियों ने हम दुनियादारों से ज्यादा सक्रियता दिखाई, ज्यादा त्याग किया, ज्यादा विल पावर प्रदर्शित किया, ज्यादा साफगोई से सब कुछ संचालित किया, इसलिए वे आज लाइमलाइट में हैं.

हम अपने-अपने घरों-बिलों में बैठकर भाषण दे सकते हैं, भाषण लिख सकते हैं लेकिन हममें से बहुत कम लोग अपने अपने जिलों के जंतर-मंतरों पर कुछ करते होंगे. यही कहने और करने का भेद हमें बिजूका बना देता है. पर मैं उन लोगों को नापसंद कर रहा हूं जो अन्ना से इत्तफाक नहीं रखते, ऐसा बिलकुल नहीं है. दूसरे विचारों का स्वागत है और दूसरे विचारों पर खुले दिल-दिमाग से विचार किया जाना चाहिए. तभी हम डेमोक्रिटक भावना का प्रदर्शन कर पाएंगे और सब विचारों में से अच्छी चीजों को ग्रहण कर एक समग्र सिस्टम बना सकेंगे. लेकिन एक अनुरोध जरूर करूंगा कि आप भले ही अन्ना या आंदोलन से जुड़े लोगों से इत्तफाक न रखते हों, पर भ्रष्टाचार विरोधी इस महायज्ञ में अपने-अपने स्तर पर जरूर अपनी भूमिका तलाशें. सिर्फ बात करने से बात नहीं बनती. काम करने के दौरान बात करने से बात बनती है.

यशवंत सिंह

एडिटर

भड़ास4मीडिया

हाईकोर्ट की कैंटीन में खाते-पीते अपने-अपने केसों के बारे में बात करते वकील और अन्य लोग.

हाईकोर्ट के अंदर ही पान खाने का भी जुगाड़ है. सो, पान लगाते बंधु की तस्वीर उतारने से मैं नहीं चूका.

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Comments on “हाईकोर्ट, प्रेस क्लब और जंतर-मंतर : एक रोजनामचा

  • ्मदन कुमार तिवारी says:

    आपकी लेखनी बहुत सुलझी हुई है । लगता है धीरे-धीरे उम्र के साथ परिपक्वता आ रही है । अगर सब कुछ ठिक ठाक रहा तो कभी आंदोलन के जनक बन जायेंगे , वैसे अभी भी वेब के आंदोलन को तो पैदा किया ीं है । हां अन्ना हजारे का आंदोलन एक सबक होगा , बहुत कुछ समझ में आ जायेगा । वैसे अगर गाईड फ़िल्म की तरह कोई बात हो जाये तो मजा आ जायेगा ।

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