दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर जैसे मीडिया हाउसों ने इमान-धर्म बेचा : देवत्व छोड़ दैत्याकार बने : पैसे के लिए बिक गए और बेच डाला : पैसे के लिए पत्रकारीय परंपराओं की हत्या कर दी : हरियाणा विधानसभा चुनाव में दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर जैसे देश के सबसे बड़े अखबारों ने फिर अपने सारे कपड़े उतार दिए हैं। जी हां, बिलकुल नंगे हो गए हैं। पत्रकारिता की आत्मा मरती हो, मरती रहे। खबरें बिकती हों, बिकती रहे। मीडिया की मैया वेश्या बन रही हो, बनती रहे। पर इन दोनों अखबारों के लालाओं उर्फ बनियों उर्फ धंधेबाजों की तिजोरी में भरपूर धन पहुंचना चाहिए। वो पहुंच रहा है। इसलिए जो कुछ हो रहा है, इनकी नजर में सब सही हो रहा है। और इस काम में तन-मन से जुटे हुए हैं पगार के लालच में पत्रकारिता कर रहे ढेर सारे बकचोदी करने वाले पुरोधा, ढेर सारे कलम के ढेर हो चुके सिपाही, संपादकीय विभाग के सैकड़ों कनिष्ठ-वरिष्ठ-गरिष्ठ संपादक।
इनके गले से विरोध की कोई बोली नहीं निकल रही है। कोई उफ तक नहीं कर रहा है। इन्हें कोई अव्यवस्था नहीं दिख रही है। पापी पेट के नाम पर ये ढेर सारे पापों के भागीदार बने हुए हैं। वैसे, बाकी दिनों में ये ही लोग पत्रकारिता पर ढेर सारा भाषण पिलाते नजर आ जाएंगे। कंधे उचकाते और खुद को देश-समाज का प्रहरी दिखाते दिख जाएंगे। व्यवस्था, नैतिकता और नियम-कानून की दुहाई देते हुए सैकड़ों उदाहरण और तर्क-कुतर्क पेश करने में क्षण भर नहीं लगाएंगे। फिलहाल ये चुप हैं, आंखें मूंदे हैं, क्योंकि इनके मालिक का सीजन है, सो इनका भी थोड़ा-बहुत सीजन है ही। शायद, कुत्ते और कुकुरमुत्ते कुछ इसी तरह के होते हैं।
दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर। इन दोनों बड़े अखबारों के हरियाणा संस्करणों पर नजर डालिए। इनका पैसे लेकर खबरें छापने का खुला खेल दिखने लगा है। दैनिक भास्कर ने एक फर्जी सर्वे के जरिए मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की जय-जयकार की है। पूरी खबर हमने नीचे दे दी है। इस खबर को पढ़ लीजिए। आपको उल्टी हो जाएगी। करोड़ों रुपये लेने के बाद फर्जी, प्लांटेड और पेड खबरों के जरिए किस तरह किसी को मक्खन लगाया जाता है, उपकृत किया जाता है, झूठ लिखा जाता है, यह जानना हो तो नीचे दी गई खबरों को पूरा पढ़िए। एक-एक लाइन पढ़िए। और फिर हंसिए या माथा पीटिए, ये आपकी मर्जी क्योंकि यह लोकतंत्र है, यहां सब कुछ करने की आजादी हर किसी को है। तभी तो मीडिया के नाम पर अखबार निकाल रहे सेठ लोग करोड़ों रुपये में सीधे-सीधे खबरों का सौदा कर दे रहे हैं और उनका कुछ नहीं बिगड़ रहा है। वे देश के महानतम हस्तियों में शुमार हैं। देश के प्रभावशाली लोगों में शुमार हैं। वे देश के भाग्यविधाताओं में गिने जाते हैं। पर हम आप अगर सिर्फ दो-चार झूठ भर बोल दें और पकड़ लिए जाएं तो हम अपराधी, पापी और देश विरोधी घोषित कर दिए जाएंगे। धन्य है अपन का लोकतंत्र, धन्य है अपन लोकतंत्र के चौथे खंभे।
कोई प्रभाष जोशी क्या कर लेगा इन मोटी चमड़ी के बनियों का। कोई ज्यादा चें-पों-चूं-चपड़ करेगा तो ये सारे बनिए मिलकर दे देंगे उसकी सुपारी। पर ये खुद न तो सुधरेंगे और न मानेंगे। इन्हें इतना पैसा कमाना है, इतना पैसा कमाना है, इतना पैसा कमाना है कि…. जाने कितना पैसा कमाना है। कमाओ भइया, खूब कमाओ। पर याद रखना। तुम लोगों का अखबार कभी देश की आजादी व आदर्श का हिस्सा था। यही अखबार अब देश को गुलामी की ओर ढकेलते जाने व आम जनता को पतित करते जाने का माध्यम बनता जा रहा है। जिनका काम झूठ और सच को अलग-अलग करके दिखाना-बताना-समझाना है, वे खुद झूठ के साथ खड़े होकर झूठ को सच की तरह पेश करने में लगे हैं।
यह स्थिति सिर्फ हरियाणा चुनाव में ही नहीं है। संग-संग महाराष्ट्र में हो रहे विधानसभा चुनाव में तो संपादकों के पास करने के लिए कुछ है ही नहीं। मालिकों ने सीधे तौर पर पोलिटिकल पार्टियों और प्रत्याशियों से डील कर लिया है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में किस कदर पैसा बहता है, यह सबको पता है। देश-विदेश की ब्लैकमनी राजनीतिज्ञों के पास है और ये राजनीतिज्ञ अपनी व अपनी पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं। महाराष्ट्र के ज्यादातर बड़े अखबारों ने पैकेज डील किया है। स्थानीय और केंद्रीय, दोनों स्तरों पर पैसे लिए गए हैं और बदले में उनकी सभाएं, भाषण, फर्जी विश्लेषण जमकर प्रकाशित किए जा रहे हैं। महाराष्ट्र के एक वरिष्ठ पत्रकार ने आपसी बातचीत के दौरान जानकारी दी कि इस वक्त अखबार अखबार नहीं रह गए हैं बल्कि नेताओं के पोस्टर व पंफलेट बन चुके हैं।
इन अखबारों को नेताओं की खाल खींचनी चाहिए थी। उनकी करतूतों और कमियों को जनता तक पहुंचाना चाहिए था। उनके अच्छे-बुरे को जनता के सामने पेश करना चाहिए था। उनके राज में हुए घपलों-घोटालों का विवरण देना चाहिए था। कागजी विकास और असली विकास पर खोजपरक रिपोर्टें पेश करनी चाहिए थी। इन नेताओं की संपत्तियों और उनकी नीतियों पर सवाल कर उन्हें कठघरे में खड़ा करना चाहिए था। मतलब, एक समुचित चौथे खंभे, समचुति विपक्ष, समुचित विश्लेषक का, समुचित शिक्षक का रोल निभाना चाहिए था। लेकिन ये सब भूल चुके हैं। इनकी आंख पर बाजारवादी व्यवस्था का रुपया-पैसा चढ़ा हुआ है। टर्नओवर बढ़ाते जाना है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान दो बड़े अखबारों में प्रकाशित दो खबरें नमूने के तौर पर पेश हैं। अगर आप पत्रकार हैं या संवेदनशील नागरिक हैं और इन खबरों को पढ़ने के बाद आपको लगे कि इन खबरों के नाम पर अच्छा-खासा पैसा इन अखबारों के मालिकों ने बनाया है और ऐसा करके इन लोगों ने चौथे खंभे के साथ विश्वासघात किया है, जनता के साथ छल किया है, पाठकों के साथ धोखा किया है, तो आप अपनी भड़ास निकालने के लिए इन अखबारों का नाम लेकर अपने अगल-बगल की डस्टबिन में या सड़क पर या वाश बेसिन में या किसी भी उचित जगह जरूर थूक दें।
संभव है, इन थूकों के जरिए हम लोग दूर बैठे-बैठे ही इन अखबारों के मालिकों के पैसे कमाने की खातिर विकृत हो चुके मन का टेलीपैथी के जरिए उपचार कर सकें। कहते हैं न, कई बार कई लोगों के लिए श्राप भी वरदान बन जाता है।
– यशवंत
एडिटर
भड़ास4मीडिया
yashwant@bhadas4media.com
बुजुर्गों के मान सम्मान से मिलेगा सबका आशीर्वाद
सर्वे में कांग्रेस से खुश नजर आए बुजुर्ग
हरियाणा. देश में हरियाणा के ताऊ की संज्ञा लिए हुए प्रदेश का बुजुर्ग मतदाता इस विधानसभा चुनाव में पेंशन नीति से खुश नजर आ रहा है। इस वजह से उसका झुकाव मौजूदा सरकार की ओर दिख रहा है। सीनियर सिटीजन नीति से सम्मानित महसूस कर रहे बुजुर्ग महिलाओं और पुरुषों का यह रुझान चुनावी सरगर्मियों के बीच एजेंसियों द्वारा प्रदेश में किए गए सर्वे में सामने आया है। सर्वे एजेंसियों का मुख्य लक्ष्य प्रदेश के गांवों की चौपाल थी। हालांकि यह सर्वे शहरों में बने सीनियर सिटीजन क्लबों व वरिष्ठ नागरिकों के अन्य समूहों में भी किया गया। सर्र्वे में यह बात सामने आई कि बुजुर्ग इस बात से भी खासे उत्साही हैं कि प्रदेश में राहुल फैक्टर और अन्य के कारण युवा कांग्रेस की ओर झुके हैं। इस सर्वे में बजुर्गों से एक परफोर्मा भरवाया गया, जिसमें प्रदेश में रही सभी सरकारों द्वारा बुजुर्गों के सम्मान के लिए कार्यों के बारे में कुछ प्रश्न थे। 90 फीसदी से ज्यादा बुजुर्गों ने कहा कि बुढ़ापा पेंशन शुरू करके स्व. ताऊ देवीलाल ने बुजुर्गों को कुछ सम्मान देने का प्रयास किया था, लेकिन उनकी नीति को उनके ही वारिस भूल गए।
बुजुर्गों ने कहा कि जो सम्मान उन्हें मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के राज में मिला, उतना न तो उन्होंने सोचा था और न ही पहले किसी ने दिया। बुजुर्गों के व्यक्तिगत अनुभव वाले कालम में कुछ ने लिखा कि हुड्डा सरकार से पहले जब वह पुलिस के पास जाते थे तो उनसे पुलिस के अçधकारी व कर्मचारी बिना सिफारिश के बात तक नहीं करते थे लेकिन इस सरकार ने पुलिस विभाग में भी नोडल सेल की तर्ज पर सीनियर सिटीजन सेल बना दिए। एक बुजुर्ग ने बताया कि मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की इस नीति के बाद उन्हें सम्मान का तब अहसास हुआ, जब एक दिन उसके बेटे ने उसे घर से निकाल दिया। किसी दोस्त ने उसे सीनियर सिटीजन सेल का नंबर दिया तो उसने संपर्क किया। इसके बाद पुलिसवालों ने उसे थाने नहीं बुलाया, बल्कि कुछ ही मिनटों में पुलिस की गाड़ी से मृदुभाषी अफसर उतरे और उसे घर ले गए। इसके बाद उसके बेटे ने उसे कभी तंग नहीं किया।
एक कालम में जब बुजुर्गों से विधानसभा चुनाव की हवा के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि यह तो कुछ ही दिनों में सबके सामने स्पष्ट नजर आ जाएगा, लेकिन ऐसा मुख्यमंत्री उन्होंने पहली बार देखा है। बुजुर्गों ने कहा कि जब मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने प्रदेश के हर बुजुर्ग को अपने पिता स्वगीüय रणबीर हुड्डा के समान समझा है तो वह भी उसे इस चुनाव में अपना आशीर्वाद देंगे। उन्होंने कहा कि यह चुनाव हुड्डा नहीं लड़ रहे बल्कि प्रदेश के बुजुर्ग स्वयं लड़ रहे हैं। कई मामलों में उनके युवा पुत्र और पौत्र उनकी बात नहीं मानते, लेकिन चुनाव में कांग्रेस का समर्थन करने की बात पर वह भी उनके साथ एकमत हैं। हालांकि युवा इस बार स्व. प्रधानमंत्री राजीव गांधी की छवि लिए हुए उनके पुत्र राहुल गांधी को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। बुजुर्गों ने कहा कि यदि प्रदेश की जनता को यह बात समझ में आ जाए कि मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा को जो लोकप्रियता मिली है, वह उनके काम की बदौलत है और ऐसा काम लगातार होता रहा तो प्रदेश की शक्ल ही बदल जाएगी। यहां से कमाने के लिए विदेश जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, बल्कि विदेश से लोग यहां पर कमाने के लिए आएंगे। बिजली विभाग से रिटायर्ड एक कार्यकारी अभियंता ने बताया कि प्रदेश में निर्माणाधीन पावर प्लांटों में चीन से काफी मजदूर व अफसर कमाने आ रहे हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि प्रदेश ने कितनी तरक्की कर ली है। सर्वे के अन्य सवालों से यह बात भी सामने आई कि बुजुर्ग न सिर्फ अपने सम्मान से खुश हैं, बल्कि वह कांग्रेस सरकार की हर नीति पर नजर लगाए हुए हैं। एक बुजुर्ग ने कहा कि पहले उन्होंने अपने बेटे को खूब पढ़ाया, लेकिन बीए करने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली और वह खेती कर रहा है। उनके पौत्र ने इंजीनियरिंग की। हालांकि सरकारी नौकरी तो उसे भी नहीं मिली, लेकिन सरकारी नौकरी में मिलने वाली तनख्वाह से तीन गुणा तनख्वाह पर दिल्ली में नौकरी मिल गई। आज गरीब का लड़का हो या लड़की, इंजीनियरिंग-डॉक्टरी और प्रबंधन में नाम कमा रहे हैं। एक अन्य ने बताया कि पहले उसका बेटा पहलवानी करता था और उसे साथ-साथ खेती भी करनी पड़ती थी, लेकिन आज खेलों में मेडल जीतने पर सरकार इतना इनाम देती है कि खिलाçड़यों को न तो कोई दूसरा काम करने की जरूरत पड़ती है और न ही नौकरी की।
(दैनिक भास्कर, चंडीगढ़ में 9 अक्टूबर को पेज दो पर प्रकाशित खबर. इस खबर में कहीं न तो एडीवीटी लिखा गया है और न इसके विज्ञापन होने का कोई चिन्ह प्रस्तुत किया गया है. जाहिर है, इसे हम लोगों को न्यूज मानने के लिए बाध्य किया गया है. सोचिए, वोट गिरने में जब कुछ दिन बचे हों तो इस तरह की खबर का क्या मतलब होता है?)
हुड्डा की शालीनता के विरोधी भी कायल
रोहतक, वरिष्ठ संवाददाता। हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने शालीन राजनेता की पहचान बनाई है। हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट बेल्ट में अपनी मीठी जुबान व मिलनसार स्वभाव के कारण उन्होंने खास मुकाम हासिल किया है। विरोधी भी उनके शालीन व सरल स्वभाव के कायल हैं। जो लोग पिछले साढ़े चार के अरसे में कभी मुख्यमंत्री निवास आए हैं वह इस बात की ताकीद ही करेंगे। चंडीगढ़ में उनके सरकारी घर के दरवाजे पर आने वालों के साथ सुरक्षाकर्मी ज्यादा टोकाटाकी नहीं करते, नहीं तो
पूर्व के मुख्यमंत्रियों के शासनकाल दौरान तो करीब आधा दर्जन जगह पर तलाशी देकर ही कोई आदमी वहां पहुंच सकता था। अब सरकारी सुरक्षाकर्मी केवल तय नियम-कायदे मुताबिक ही अब जरूरी पूछताछ या तलाशी लेते हैं। उनके सरकारी आवास पर इसी कारण आगंतुकों की तादाद पहले की अपेक्षा बढ़ी है। मुख्यमंत्री आवास पर तैनात कई कर्मचारी मानते हैं कि पिछले दो-तीन दशक दौरान इतना नरम स्वभाव का कोई मुख्यमंत्री देखने को नहीं मिला जो मिलने आए आदमी का रुतबा नहीं देखता और लोगों से बराबरी का व्यवहार करता हो। कई बार तो मुख्यमंत्री हुड्डा मिलने आए व्यक्ति के साथ बात करते-करते उसके कंधे पर हाथ रख देते हैं। यह अपनेपन का अहसास ही कई लोगों को संतुष्ट कर देता है। कंधे पर हाथ रख कर जब वह किसी से पूछते हैं हां भाई कैसे आए तो कई लोग तो अपना काम तक भूल जाते हैं जिसके लिए वह आए हों। बात सुनने के बाद हुड्डा अपने स्टाफ या सम्बन्धित अधिकारी को तुरंत उस कार्य संबंधी निर्देश देते हैं। एक और खासियत है हुड्डा में कि वह किसी को लटकाऊ जवाब नहीं देते बल्कि जिनका काम संभव नहीं होता, उसे विनम्र शब्दों में इनकार कर देते हैं।
इसी कारण हुड्डा के बारे में आम आदमी की राज्य भर में यह राय बन गई है कि वह अन्य मुख्यमंत्रियों की तरह लटकाऊ या गुस्से में एकदम फट पड़ने वाले सीएम नहीं हैं। अगर कोई मसला गांव के कई लोगों से जुड़ा हो तो पंचायत की बात कर देते हैं जबकि निजी, पारिवारिक या जमीन-जायदाद के मामलों को लेकर वे दूर से ही हाथ जोड़ लेते हैं। अन्य पूर्व मुख्यमंत्री या विपक्षी नेता जहां फोन उठाने के लिए सेवादार साथ रखते हैं वहीं हुड्डा टेलीफोन अक्सर खुद ही उठा कर बात करना पसंद करते हैं। यह उनकी एक अदा है। यहां तक कि आधी रात को भी कोई आम आदमी उनसे टेलीफोन पर बात करके अपनी बात रख देता। सीएम के करीबी अधिकारी बताते हैं कि रात में किसी व्यक्ति द्वारा राज्य के किसी भी हिस्से से फोन पर यह बताने कि डॉक्टर अस्पताल में नहीं आ रहा है या गांव का ट्रांसफार्मर जल गया है तो मुख्यमंत्री पूरी गंभीरता से उसकी बात सुनते हैं और जितनी जल्दी संभव हो सके, उस पर कार्रवाई होती है। मुख्यमंत्री के इस अपनेपन की रोहतक वाले कुछ ज्यादा ही लिफ्ट ले लेते हैं। हमउम्र उन्हें सार्वजनिक तौर पर भूप्पी भाई कहकर पुकारते हैं तो बुजुर्ग केवल भूप्पी कह कर बुलाते हैं।
हुड्डा मानते हैं कि सीधा नाम लेने से लगाव और जुड़ाव का अहसास पैदा होता है। एक खास बात उनके चरित्र में यह है कि संघर्ष के दिनों के अपने साथियों को उन्होंने इतने ऊंचे ओहदे पर पहुंचने के बाद भी भुलाया नहीं है। आज वह मुख्यमंत्री हैं जिन्हें सांस लेने की फुर्सत नहीं, ऊपर से सुरक्षा का अमला। इस सबके बावजूद जब भी मौका मिले वह बलदेव नगर (अंबाला) में सड़क किनारे उस चाय के खोखे पर रुक जाते हैं, जहां कभी पहले वह रुक कर चाय पिया करते थे। अंबाला में ही उन्हें पंडित जी के उस ढाबे के सादा खाने का स्वाद आज भी याद है, जहां पहले कभी उन्होंने भोजन किया था। बहादुरगढ़ से गुजरेंगे तो प्रसिद्ध पकौड़ों की महक उन्हें दुकान तक खींच ले जाती है। इसी सरल स्वभाव व स्वच्छ छवि की विरोधी भी लोहा मानते हैं।
(दैनिक जागरण, चंडीगढ़ के 10 अक्टूबर के अंक में पेज 7 पर प्रकाशित इस रिपोर्ट को तो घोषित तौर पर खबर बताया गया है क्योंकि शुरू में वरिष्ठ संवाददाता लिख दिया गया है. अब आप बताइए, वरिष्ठ संवाददाता ने अपनी वरिष्ठता का लिहाज करते हुए किसके इशारे पर यह सब लिखा होगा?)
आखिर क्यों दैनिक भास्कर और दैनिक जागरण हुड्डा की तारीफ में खबरें प्रकाशित कर रहे हैं? सिर्फ एक वजह है. वह है सत्ताधारी कांग्रेस सरकार ने इस बार चुनाव में मीडिया पर सबसे ज्यादा पैसा खर्च किया है. विज्ञापन के नाम पर जो खर्च हुआ है वह तो खुला खर्च है लेकिन खबरें प्रकाशित करने के लिए बैकडोर से जो पैसा दिया गया है, वह अरबों में है पर इसका लिखत-पढ़त में कहीं कोई जिक्र नहीं है. अगर अब भी इन अखबारों का नाम लेकर नहीं थूका तो प्लीज, पहले इनका नाम लेकर थूक लीजिए, फिर सोचिए और अपनी बात कहिए.
Comments on “इन अखबारों पर थूकें ना तो क्या करें!”
Holy shit! Arre bhai ai koi akhbar hai? Mootna chahiye ispar.
Thanks Bhadas4media.
bhaiya bazar me biknev ka jamana hai.bada hua to kya hua ,paisa tode hi na katata hai?