न्याय में देरी और पीड़ितों को समय से इंसाफ न मिलने पर कानून-व्यवस्था को हाथ में लेने का सिलसिला बढ़ा : जब आक्रोश चरम पर जाता है तो विस्फोट होता है. ऐसी ही एक विस्फोट आज चंडीगढ़ में हुआ. मीडिया वालों के बीच में खड़े और खुद को फोटोग्राफर दिखा रहे एक युवक उत्सव शर्मा ने हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसपीएस राठौर पर चाकू से हमला कर दिया. उनके चेहरे पर तीन वार मारे. चेहरे से खून टपकने लगा. राठौर रुचिका गिरहोत्रा छेड़छाड़ मामले में अपनी अपील पर सुनवाई में शामिल होने के लिए अदालत आए थे. जिस युवक उत्सव शर्मा ने हमला किया है, वह खुद को पत्रकार के रूप में पेश करते हुए राठौर की तस्वीरें लेने की कोशिश कर रहा था. हमलावर उत्सव शर्मा अहमदाबाद से फिल्म निर्माण का प्रशिक्षण ले रहा है. उसने राठौर के गाल पर तो चाकू मारा ही, दाएं हाथ से दूसरे गाल पर घूंसे भी मारे.
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मीडिया 2009 : रीयल हीरो हैं जरनैल
आज साल का आखिरी दिन है। आज भड़ास4मीडिया घोषित कर रहा है वर्ष 2009 का ‘मीडिया हीरो‘। यह न कोई पुरस्कार है और न कोई सरकारी सम्मान। यह एक प्रयास है ऐसे शख्स को सामूहिक तौर पर बधाई देने का जिन्होंने बनी बनाई लीक तोड़कर मीडिया के जरिए कुछ नया किया हो और उनके किए का समाज, राजनीति और मीडिया पर गहरा असर पड़ा हो। तो इस कैटगरी में मैं 2009 में सिर्फ और सिर्फ जरनैल सिंह को पाता हूं। उनके जूते ने बड़ा काम किया। जरनैल ने निजी तौर पर कभी नहीं कहा कि उनका जूता फेंकना उचित था। पर उनके भावावेश में आकर चलाए गए जूते ने हत्यारों को टिकट दिए जाने से, निर्वाचित होकर संसद में पहुंचने से रोक लिया। इससे भी बड़ी बात की करोड़ों लोगों के जख्म और भावनाओं के और जख्मी होने से इस जूते ने बचा लिया, करोड़ों लोगों की न्याय से हो रहे मोहभंग को रोका। जूते के बाद जरनैल के पास कई तरह के प्रस्ताव आए। कई तरह के संगठन और लोग आए।
जमाने के साथ क्यों बदलता जाऊं!
जरनैल से न तो मेरा परिचय है, न मैं उनके कृत्य की प्रशंसा करने जा रहा हूं। परन्तु अपने लेख के जरिए उन्होंने जिस मुद्दे पर बहस की शुरुआत की है, वह निश्चित ही गंभीर विषय है। उस पर चर्चा होनी चाहिए। जरनैल के एक-एक शब्द में वर्तमान पत्रकारिता का चेहरा छुपा दिखता है। वह सच, जिससे कोई भी पत्रकार दूर नहीं भागना चाहेगा। अपने विचारों की शुरुआत करने से पहले कहना चाहूंगा कि मैं इस बात का प्रशंसक हूं कि जरनैल ने अपने कृत्य के लिए माफी मांगी तथा इसको पत्रकारिता की आचार संहिता के खिलाफ बताया। यह बात इतिहास हो चुकी है तथा उनको इसकी सजा भी मिल चुकी है। परन्तु मीडिया के कर्तव्य, दायित्व तथा वर्तमान स्थिति पर उन्होने जो प्रश्न खड़े किए हैं, वे कहीं न कहीं मीडिया के भविष्य की दशा-दिशा से जुड़े हैं। एक दशक पहले पत्रकारिता में यह सोचकर कदम रखा था कि अपाहिज हो चुके सिस्टम में कहीं कोई उजियारा कलम पैदा कर सकी तो प्रयास सार्थक समझूंगा। तीर्थनगरी हरिद्वार से पत्रकारिता का गहरा नाता रहा। स्वामी श्रद्धानंद से लेकर वर्तमान समय तक न जाने कितने पत्रकारों ने इस भूमि पर जन्म लिया।
जागरण ने एकतरफा फैसला दिया
[caption id="attachment_15334" align="alignleft"](खबर पढ़ने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें)[/caption]मैं जरनैल सिंह को जानता हूं। जो कुछ उन्होंने किया, बेशक गलत था पर जिस प्रबंधन ने उन्हें दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका, उसे कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता। दैनिक जागरण प्रबंधन ने जहां तक संभव था, जरनैल का इस्तेमाल किया। जरनैल को याद होगा, जब वह जालंधर आए थे, विधानसभा चुनाव की कवरेज में। अकालियों के समर्थन में तैयार स्टोरी को किस दबाव में अकालियों के खिलाफ किया गया था, यह मैं भी जानता हूं। और जरनैल तो खैर भुक्तभोगी हैं ही। हम जिस पत्रकारिता में इन दिनों हैं, वहां फेस-वैल्यू सबसे अहम है। चिदंबरम की फेस-वैल्यू कांग्रेस आलाकमान ज्यादा मानता है। जब जरनैल ने चिदंबरम की ओर जूता उछाला था तो सन्न मैं भी रह गया था। पर, आप उसके बैकग्राउंड में जाकर देखें कि उसने ऐसा क्यों कर किया। बिना कारण जाने जरनैल को जो सजा मिली, वह उसके साथ ज्यादती है। सरकार ने तो कुछ नहीं किया, जागरण ने जरूर एकतरफा फैसला दे दिया। मैं नहीं मानता कि पत्रकारिता में अब शुचिता बची है। कहीं है भी, तो मैं नहीं देख पाता। संभवतः नेत्र रहते मैं अंधा हूं। पर, होती तो कहीं तो दिखती।
पत्रकारों की अदालत में जरनैल
एक जूते के जरिए भारतीय राजनीति और भारतीय मीडिया को सबक सिखाने का माद्दा रखने वाले जरनैल सिंह पत्रकारों की अदालत में आ चुके हैं। वे बी4एम के माध्यम से आप सभी से कुछ कहना चाह रहे हैं। कुछ पूछना चाह रहे हैं। उन्हें जवाब चाहिए। आपसे। उन्हें सवालों का हल चाहिए। आपसे। आप जरनैल का नीचे दिया गया वक्तव्य पढ़िए। फिर bhadas4media@gmail.com के जरिए अपनी राय, फोटो व परिचय बी4एम के पास भेज दीजिए।
बी4एम की मोबाइल एलर्ट सेवा लांच
[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]बी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में पहुंच गया है। बी4एम की मोबाइल सेवा शुरू हो चुकी है। मीडिया जगत की बड़ी खबर को एसएमएस के जरिए बी4एम के पाठकों के पास भेजा जाने लगा है। इस सेवा का उदघाटन आज पत्रकार जरनैल सिंह ने किया। बी4एम आफिस में आए जरनैल ने कंप्यूटर पर सेंड बटन क्लिक कर 100 चुनिंदा लोगों तक दो एसएमएस भेजे। पहले एसएमएस में इस सेवा के शुरुआत के बारे में बताया गया। दूसरे में एक ब्रेकिंग न्यूज को प्रसारित किया गया। दोनों एसएमएस यूं हैं-
मैं बिना रीढ़ का कभी नहीं रहा : जरनैल
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सिस्टम ठीक नहीं होगा तो जूते पड़ते रहेंगे : दैनिक जागरण के नेशनल ब्यूरो में कार्यरत पत्रकार जरनैल सिंह गृह मंत्री की प्रेस कांफ्रेंस में एक सवाल के जवाब से अंसुतष्ठ होकर जूता उछाला और देखते-देखते देश-विदेश में चर्चा के विषय बन गए। उन्हें इस ‘गलती’ के लिए सजा मिल चुकी है। दैनिक जागरण से उन्हें बर्खास्त किया जा चुका है। जरनैल से पूरे मुद्दे और आगे की योजना पर विस्तार से बातचीत की भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंत सिंह ने। पेश है इंटरव्यू के अंश-
जरनैल को जागरण ने बर्खास्त किया
दैनिक जागरण के नेशनल ब्यूरो में कार्यरत पत्रकार जरनैल सिंह को जागरण प्रबंधन ने बर्खास्त कर दिया है। इससे पूर्व प्रबंधन ने जरनैल को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। दैनिक जागरण, नोएडा के मुख्य महाप्रबंधक निशिकांत ठाकुर के हस्ताक्षर से जारी बर्खास्तगी आदेश में अनुशासनहीनता व अनैतिक कार्य को कारण बताया गया है। ज्ञात हो कि लोकसभा चुनाव से पहले (7 अप्रैल 2009) को गृह मंत्री पी. चिदंबरम पर प्रेस कांफ्रेंस में जरनैल ने जूता उछाल दिया था।
जागरण से किसी का फोन नहीं आया : जरनैल
किसी के साथ अन्याय हो तो पीड़ा होती है : मुझे राजनीति में नहीं आना : गृह मंत्री चिदंबरम पर जूता फेंकने वाले दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार जरनैल सिंह ने भड़ास4मीडिया से कई मुद्दों पर बात की। 16 फरवरी 1973 को दिल्ली में जन्में जरनैल ने शुरुआती पढ़ाई लोकल सरकारी स्कूल से की। स्नातक और आगे की शिक्षा साउथ कैंपस के डीएवी कॉलेज में हुई। एक दशक से वे दैनिक जागरण के साथ हैं। अच्छे समाज के निर्माण में अपनी भूमिका तलाशते हुए जरनैल पत्रकारिता में आए।
सवालों के जवाब नहीं दे पाया जूता
देश के सबसे बडे हिंदी अखबार दैनिक जागरण के एक सीनियर पत्रकार के जूते ने कई सवाल खड़े किए हैं। 1984 में दिल्ली में सिख दंगों को समाज का कोई वर्ग किसी भी रूप में आज तक सही नहीं ठहराता है। इन दंगों में अनेक औरतों के सुहाग उजड़ गए और बहुत सी गोदें सूनी हो गईं। उस समय जो कुछ भी घटा वह बहुत ही खौफनाक और शर्मनाक था। उससे भी शर्मनाक है कि 25 साल बाद भी इन दंगों को भड़काने में जिनकी भूमिका थी, देश की सबसे बडी जांच एजेंसी उनका नाम नहीं तय कर पाई है।
इराक वाला फेंके तो जायज, जरनैल मर्यादाहीन !
जरनैल का जूता और भारतीय पत्रकारिता की दोहरी नैतिकता
गृहमंत्री चिदंबरम पर जूता फेंकने की घटना को ना खुद जरनैल सही ठहरा रहें हैं और ना मेरी ऐसी मंशा है। लेकिन चैनलों पर जो प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं, उससे साफ है कि भारतीय पत्रकारिता दोहरी मानसिकता में जीती है। तमाम चैनल इस टीआरपी बटोरु स्टोरी को धड़ल्ले से चला रहें हैं, लेकिन साथ ही ये बताना भी नहीं भूल रहे हैं कि जरनैल सिंह के इस दुस्साहस को कहीं से भी जायज नहीं ठहराया जा सकता है।
हिंदी ब्लागों पर अवतरित हुआ ‘जरनैल का जूता’
चिदंबरम पर जरनैल के जूते की खबर देशभर में आग की तरह फैली। हिंदी समाज के बौद्धिक लोगों ने, खासकर जो ब्लागिंग में सक्रिय है, इस पर रिएक्ट करने में क्षण भर की देर नहीं लगाई। दर्जनों हिंदी ब्लागों पर जूता प्रकरण की व्याख्या अलग-अलग तरीके से की गई है। दो ब्लागरों ने इस पर बाकायदा कार्टून व कोलाज बनाकर प्रकाशित किया है। अब तक जिन ब्लागों पर जरनैल का जूता अवतरित हुआ है, उन ब्लागों के नाम, संबंधित खबरों के शीर्षक और वेब लिंक इस प्रकार हैं-
”देश भर की जनता के आक्रोश का प्रतीक है जूता”
दैनिक जागरण के नेशनल ब्यूरो में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार जरनैल सिंह द्वारा भारत के केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम पर जूता फेंकने की घटना की मीडिया जगत में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। ज्यादातर लोग विरोध प्रदर्शित करने के इस तरीके की निंदा कर रहे हैं तो कई लोग इस घटना को नेताओं और सिस्टम के खिलाफ संवेदनशील लोगों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया बता रहे हैं। त्वरित टिप्पणी के रूप में दिल्ली, जबलपुर, श्रीगंगानगर से आई हुई चार प्रतिक्रियाओं को यहां प्रकाशित किया जा रहा है।
जागरण के जरनैल ने चिदंबरम पर जूता जड़ा
एक अप्रत्याशित घटनाक्रम के तहत दैनिक जागरण के नेशनल ब्यूरो के वरिष्ठ पत्रकार जरनैल सिंह ने दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम पर जूता फेंक दिया। जरनैल सिख दंगों के एक आरोपी कांग्रेसी नेता जगदीश टाइटलर को क्लीन चिट दिए जाने से नाराज थे और इसी मुद्दे पर गृहमंत्री से सवाल पूछ रहे थे। सीबीआई द्वारा टाइटलर को क्लीन चिट देने के सवाल पर गृहमंत्री ने जब संतोषजनक जवाब नहीं दिया तो खफा जरनैल ने जूता फेंककर अपने गुस्से का इजहार किया।