हरिवंश की कलम से- ‘कहां गइल मोर गांव रे’

पर इस बार 11 अक्तूबर को जेपी के जन्मदिन पर गांववालों ने अनुभव सुनाये. कहा मीडियावाले तो ऐसे-ऐसे सवाल पूछ रहे थे, मानो यूपी-बिहार के गांव ‘भारत-पाक’ जैसे दो देश हों. जेपी का जन्म कहां, घर कहां? वगैरह-वगैरह. गांववालों ने कहा, हमने तो इसके पहले जाना ही नहीं कि हमारा गांव, दो राज्यों और तीन जिलों में है. हम तो एक बस्ती हैं. एक शरीर जैसे. उसे आप बांट रहे हैं, ऊपर से बता या एहसास करा रहे हैं.

जिस मामले में मंत्री-अधिकारी जेल में हैं, उसमें पत्रकारों को जेल कब होगी – हरिवंश

: पत्रकारों को सम्‍मान और फेलोशिप :  झारखंड सरकार ने पहली बार मीडियाकर्मियों को पुरस्कार और फेलोशिप देकर नयी शुरुआत की। राजधानी के होटल बीएनआर में 18 अगस्त 2011 को एक समारोह में 26 पत्रकारों को फेलोशिप, दस पत्रकारों एवं तीन फिल्मकर्मियों को सम्मान के साथ ही बलबीर दत्त को लाइफटाइम एचिवमेंट अवार्ड प्रदान किया। श्री दत्त को ढाई लाख की राशि दी गयी जबकि मीडिया फेलोशिप की राशि 50-50 हजार और सम्मान की राशि 75-75 हजार थी।

एक मित्र ने कटाक्ष किया- अब आप पत्रकार ही बाकी हैं

हरिवंशएक दिन के ही अखबार (8 जुलाई 2011) में दो खबरें आयीं. (1) 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में दयानिधि मारन केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटे या हटाये गये. संभावना है कि वह भी तिहाड़ जेल जायें. पूर्व मंत्री (राजनेता), नौकरशाह (बड़े) और कॉरपोरेट वर्ल्ड के बड़े लोग तिहाड़ में पहले से ही हैं. इसी मामले में. एक मित्र ने कटाक्ष किया…. अब आप पत्रकार ही बाकी हैं.

आज के भारत में आइकॉन या नायक की तरह हैं कलाम

हरिवंश: सुनना कलाम को, समझना बिहार को : हम सिर्फ याचक न रहें, कर्ता भी रहें : तीन मई को पुन: डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को सुना. तीसरी बार. दो बार राष्ट्रपति रहते हुए. इस बार पूर्व राष्ट्रपति के रूप में. अवसर था बिहार विधान परिषद द्वारा आयोजित शताब्दी व्याख्यान. पटना के रवींद्र भवन में. डॉ कलाम की यह छठी बिहार यात्रा थी. इस कार्यक्रम में हम शरीक हुए, सौजन्य ताराकांत झा जी,  बिहार विधान परिषद के सभापति (चेयरमैन).

गांधीवादी पत्रकार अजीत बाबू!

[caption id="attachment_20183" align="alignleft" width="76"]हरिवंशहरिवंश[/caption]जिन श्रेष्ठ पत्रकारों ने रास्ता दिखाया, स्नेह दिया और हर अंधेरे में ताकत दी, उनमें से एक-एक कर गुजर रहे हैं. शिरोमणि पत्रकार अजीत भट्टाचार्य का निधन एक ऐसे ही प्रकाश स्तंभ का बुझना है. प्रभाष जी के अप्रत्याशित और अचानक निधन के बाद अजीत बाबू का जाना, एक दौर का अवसान है.

हम पत्रकार भी एक अदभुत अहं ग्रंथि से पीड़ित रहते हैं

हरिवंश: सपने, संघर्ष और चुनौतियां (अंतिम) : प्रभात खबर आकर हमने बृजकिशोर झंवर (लाली बाबू) से मैनेजमेंट की बारीकियां सीखीं, तत्कालीन चेयरमैन बसंत कुमार झंवर के विजन-प्रोत्साहन ने प्रभात खबर को हमेशा नयी ताकत दी, युवा चेयरमैन प्रशांत झंवर और युवा एम.डी राजीव झंवर का पग-पग पर सुझाव, सहयोग और विजन ‘प्रभात खबर‘ समूह की सबसे बड़ी ताकत है, प्रभात खबर के निदेशक समीर लोहिया के प्रैक्टि‍कल सुझाव हमारी ताकत हैं :

प्रभात खबर का नौवां संस्करण अब भागलपुर से

आज (दिनांक 10.2.2011) से प्रभात खबर भागलपुर से छपने लगा है. इस तरह बिहार में पटना, मुजफ्फ़रपुर और भागलपुर से प्रभात खबर प्रकाशित होने लगा है. भागलपुर से छपनेवाला (शहर संस्करण) 20 पेजों का संपूर्ण रंगीन अखबार होने का पहला गौरव भी, भागलपुर से छपनेवाले प्रभात खबर को है. बिहार और झारखंड को मिला दें, तो सात जगहों (पटना, मुजफ्फ़रपुर, भागलपुर, रांची, जमशेदपुर, धनबाद और देवघर) से प्रकाशित होनेवाला अखबार भी प्रभात खबर है.

‘ग्रेट स्टोरीज आफ चेंज’ में प्रभात खबर और हरिवंश पर एक अध्याय

”ग्रेट स्टोरीज आफ चेंज, इन्नोवेटिव इंडियन्स” नामक एक किताब आई है. इसका संपादन रीता और उमेश आनंद ने किया है. इस किताब में एक अध्याय हरिवंश और प्रभात खबर पर है. इस आलेख को नीचे प्रकाशित कर रहे हैं. अगर किसी को पढ़ने में दिक्कत आ रही हो तो संबंधित पेज पर क्लिक करने पर वह पेज बड़े साइज में अलग से खुल जाएगा जिससे पढ़ने में आसानी होगी.

Ranchi’s media war : Prabhat Khabar proves content, credibility are good business

Ranchi : A new confidence suffuses the offices of Prabhat Khabar in Ranchi. Circulation has crossed half a million daily. Advertisement revenues have surged. Its eighth edition, in colour, has rolled out. The newspaper has never known such success though it has been number one in Jharkhand for quite a while. What makes these gains even sweeter is that barely two years ago Prabhat Khabar feared being crushed by big Hindi newspapers out to capture the Jharkhand market. At stake currently is an estimated Rs 100 crore in advertising rising 20 per cent each year.

अतीत की दूरी और प्रभात खबर, मुजफ्फरपुर

हरिवंश 09.10.2010 से प्रभात खबर मुजफ्फरपुर से छप रहा है. चर्चिल ने विश्वयुद्ध के समय कहा था. अतीत को जितनी दूर तक पीछे देख सकते हों, देखें. इससे भविष्य के लिए संदेश मिलता है. रास्ता भी. आज मुजफ्फरपुर प्रभात खबर कार्यालय में अपने साथियों के साथ बातचीत में यह प्रसंग याद आया. बाबा आमटे भी याद आये.1985 के आसपास उनके आश्रम गया था. रविवार पत्रिका में रिपोर्ट करने के लिए. बाबा से पूछा, आनंद वन (कुष्ठ रोगियों के लिए आश्रम) कैसे बना? बाबा और ताई (उनकी पत्नी) ने बताया. एक लंगड़ी गाय, वह भी बिसूखी (जो दूध नहीं देती) हुई. जमा पूंजी छह आने नकद पैसे. दो-चार कुष्ठ रोगी. कुल यही मानव संपदा, पशु संपदा व पूंजी संपदा से हमारी शुरुआत हुई. चंद्रपुर (नागपुर के पास) की निर्जीव पहाड़ियों व बंजर जमीन में आनंद वन बना, इसी संपदा व ताकत के बल पर.

प्रभात खबर, मुजफ्फरपुर की शानदार लांचिंग

प्रभात खबर का अब मुजफ्फरपुर से भी प्रकाशन शुरू हो गया. इसके साथ प्रभात खबर का आठवां एडिशन भी शुरू हो गया. अखबार  की शानदार लांचिंग की गई. इस एडिशन के लांचिंग की तैयारी पिछले काफी समय से चल रही थी. यूनिट हेड सुधीर कुमार चौबे की देखरेख में कई लोग इस एडिशन को लांच करवाने में दिन रात एक किए हुए थे. दस अक्‍टूबर को हुए लांचिंग समारोह में मैनेजिंग डाइरेक्‍टर केके गोयनका भी मौजूद रहे.

अयोध्या से परे

हरिवंश:: संदर्भ- अतीत, अयोध्या, भविष्य और भारत :: इन दिनों भी राजनेताओं के दो चेहरे हैं. पहले से अधिक विकृत और स्वार्थी. ऊपरी सिद्धांत अलग, कर्म अलग. कर्म और वाणी में, उत्तर और दक्षिण का रिश्ता. इसलिए शायद ये राजनीतिक दल अयोध्या मुद्दे को नहीं छोड़नेवाले. क्योंकि ऐसे मुद्दे भावनात्मक होते हैं. भावना पर नियंत्रण शिक्षा, तार्किक सोच और समझ से संभव है. एक तरफ चीन है जो रेगिस्तान में नखलिस्तान बना रहा है, अपने कर्म, संकल्प और प्रतिबद्धता के कारण. दूसरी ओर हम हैं, जो अतीत के भूत बने भावनात्मक मुद्दों से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं ::



पेड न्यूज : प्रभात खबर की राह चला हिंदुस्तान

बिहार में विधानसभा चुनाव की घोषणा के तुरंत बाद नैतिक आग्रहों के आधार पर पत्रकारिता करने के लिये जाने जाने वाले समूह प्रभात खबर ने तत्काल इस बात की घोषणा कर दी है कि वह पूरे चुनाव अभियान के दौरान पेड न्यूज को प्रश्रय नहीं देगा. अखबार ने सात जुलाई को जैकेट पेज छाप कर चुनाव से संबंधित अपनी आचार संहिता का विस्तार से खुलासा किया है.

जीने या होने का मकसद

हरिवंशलगभग एक माह से ऊपर हुए. इस विषय पर कुछेक खबरें पढ़ी थीं. तब से यह विषय या प्रसंग, मन-मस्तिष्क और विचार से उतरा नहीं. प्रसंग है, पड़ोसी देश का. पर इन खबरों के आईने में अपनी धरती, अपना मुल्क, अतीत और वर्तमान उभरे. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण जी का कहा याद आया- ‘हम कौन थे? क्या हो गये हैं? और क्या होंगे अभी? क्या ये, नहीं याद करना चाहता. अतीत पर किसका बस है? क्या होंगे?, उभरता भविष्य और वर्तमान झिलमिलाते हैं. क्या थी खबर? चीन के श्यानामान चौराहे पर 1989 में छात्र आंदोलन हुआ था. 3-4 जून को. चीन ने टैंकों से छात्र आंदोलन कुचल दिया. तब से हर वर्ष छात्र उस दिन को याद करते हैं. चीन में इस घटना की 21वीं वर्षगांठ थी.

तो इसलिए गाज गिरी राजेंद्र तिवारी पर!

कभी गंभीर-गरिष्ठ साहित्यकारों के हवाले थी पत्रकारिता तो अब सड़क छाप सनसनियों ने थाम ली है बागडोर : झारखंड के स्टेट हेड और वरिष्ठ स्थानीय संपादक पद से राजेंद्र तिवारी को अचानक हटाकर चंडीगढ़ भेजे जाने के कई दिनों बाद अब अंदर की कहानी सामने आने लगी है. हिंदी प्रिंट मीडिया के लोग राजेंद्र पर गाज गिराए जाने के घटनाक्रम से चकित हुए. अचानक हुए इस फैसले के बाद कई कयास लगाए गए. पर कोई साफतौर पर नहीं बता पा रहा था कि आखिर मामला क्या है. लेकिन कुछ समय बीतने के बाद अब बातें छन-छन कर बाहर आ रही हैं.

गोयनका एमडी और दत्ता ईडी बने

(अपडेटेड खबर) जमशेदपुर के स्थानीय संपादक अनुज सिन्हा को झारखंड का प्रभारी बनाया गया : प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश ने आज प्रभात खबर के सभी संस्करणों के वरिष्ठ लोगों से वीडियो कांफ्रेंसिंग से संवाद किया. फिर रांची के वरिष्ठ लोगों की बैठक बुलाकर संबोधित किया. उन्होंने कहा कि आज का दिन प्रभात खबर के लिए महत्वपूर्ण दिन है.

हरिवंश ने एमडी का पद छोड़ा

(प्राथमिक खबर) : प्रभात खबर से एक बड़ी खबर है कि इस अखबार के मैनेजिंग डायरेक्टर और एडिटर इन चीफ हरिवंश ने मैनेजिंग डायरेक्टर का पद छोड़ दिया है. वाइस प्रेसीडेंट केके गोयनका को नया मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया गया है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ये फेरबदल प्रभात खबर के बेहतर संचालन और भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए किया गया है.

40 की उम्र में सूनापन, 80 की उम्र में चमक

[caption id="attachment_17008" align="alignleft"]हरिवंशहरिवंश[/caption]मकसद की तलाश में जीवन : रूसी एम. लाला मेरे प्रिय लेखकों में हैं. गांधी स्मृति (30 जनवरी) के दिन उनकी भेजी किताब मिली. पुस्तक का नाम ‘फ़ाइंडिंग ए परपस इन लाइफ़, 26 पीपुल हू इंस्पायर्ड द वर्ल्ड. लेखक आर.एम.लाला. प्रकाशक हार्पर कोलिंस पब्लिशर्स इंडिया. कीमत 150 रुपये. हिंदी में पुस्तक का नाम होगा, ‘जीवन में मकसद की तलाश’. 26 लोग जिन्होंने दुनिया को प्रेरित किया. रूसी लाला की यह नयी किताब है. बमुश्किल एक माह पहले उनकी एक और पुस्तक कलकत्ता एयरपोर्ट पर खरीदी. आत्मकथा. पुस्तक का नाम ‘द थ्रेड ऑफ़ गॉड इन माइ लाइफ़’ (मेरे जीवन का ईश्वर से रिश्ता). इस पुस्तक की प्रस्तावना लिखी है, मशहूर कानूनविद फ़ॉली एस. नरीमन ने.  यह  पुस्तक  2009 के अंत में पेंग्विन बुक्स इंडिया से प्रकाशित हुई है.

इसे कहते हैं भरोसा

एसपी ने प्रभात खबर की टीम के साथ बैठे बीडीओ को जबरन कस्टडी में लिया तो डरकर रोने लगे थे बीडीओ : झारखंड में माओवादियों ने बीडीओ को रिहा करने के लिए मध्यस्थ के रूप में प्रभात खबर अखबार पर भरोसा जताया. माओवादियों ने प्रभात खबर के झारखंड हेड अनुज कुमार सिन्हा के पास संदेश भिजवाया कि वे सिर्फ प्रभात खबर की टीम के सामने ही बीडीओ को रिहा कर सकते हैं क्योंकि उन्हें प्रभात खबर और उसके लोगों पर भरोसा है. माओवादियों का संदेश स्पष्ट था- बीडीओ प्रशांत को वे रिहा कर सकते हैं, लेकिन सिर्फ प्रभात खबर की टीम के समक्ष.  अनुज कुमार सिन्हा ने यह संदेश सबसे पहले अपने प्रधान संपादक हरिवंश तक पहुंचाया.

पत्रकारिता के नाम पर जो छूट मिली हुई है, वह स्टेट पावर का फेल्योर है : हरिवंश

[caption id="attachment_16798" align="alignleft"]हरिवंशहरिवंश[/caption]”नेहरूजी के जमाने में जितने बड़े संपादक थे, क्या वो नहीं जानते थे कि हमारे समाज में अंधविश्वास है? क्या वो नहीं जानते थे कि हमारे समाज में सनसनीखेज चीजे, चरित्र हनन की चीजों को लोग ज्यादा पढ़ते हैं? वो लोग सब जानते थे. पर जर्नलिज्म के हमारे लीडर ऐसे थे जिन्होंने समाज के लिए सोचा. कहा कि अंधेरे में पड़े हुए समाज को उजाले में ले जाना है. इसलिए उन्होंने वो अंधेरे वाले पक्ष को उठाना छोड़ कर, चेतना की ओर ले जाने का काम किया. आज हम लोग क्या कर रहे हैं? इतना आगे पहुंचकर भी लोगों को अंधेरे में डाल रहे हैं? ये कितना बड़ा फर्क है. आप देखिए, तब चलपति राव जैसे व्यक्ति थे. राम राव थे, विक्रम राव के पिता. आजादी की लड़ाई के दौरान अंग्रेजों के आपरेशन में ये लोग देश और जनता के लिए जेल में रहे. परेशान हुए. जब आजादी मिली तो इमरजेंसी के दौरान चलपति राव जी जैसे आदमी मामूली चाय की दुकान पर चाय पीते हुए मर गए. उनको आठ घंटे बाद देश ने जाना कि वो मर गए. उनके कलम से पंडित नेहरू जैसे लोग प्रेरित होते थे. ऐसे लोग थे हमारे रहनुमा. ऐसे लोगों ने हमारी भारत की पत्रकारिता की नींव डाली. आज हम कहां पहुंच गए हैं? आज कोई राम राव को याद करता है? चलपति राव के नाम पर कोई पुरस्कार है? इसी तरह हिंदी में ऐसे-ऐसे अखबार हुए जिन्होंने चुना कि हमें काले पानी की सजा ही लेनी है. स्वराज अखबार इलहाबाद से निकला. उसके छह संपादक हुए. उनकी कलम से डरे अंग्रेजों ने सभी को एक-एक कर काले पानी की सजा दी. इस अखबार में निकलता था कि जो काले पानी की सजा के लिए तैयार हैं, वहीं उस अखबार का संपादक बनने के लिए आवेदन करें. और, तब भी लोगों की लाइन लगी रहती थी. क्यों तब इस देश में पत्रकारिता के मोरल लीडर्स थे, इनटेलेक्चुवल लीडर्स थे. आज तो जो लोग अपराध की दुनिया से नजदीकी संबंध रखते हैं, अपराधियों से सांठगांठ रखते हैं, उन्हें इसी गुण के कारण संपादक बना दिया जाता है. मालिकों को यह समझना बंद करना चाहिए कि उनका अखबार या टीवी चैनल लूटने के लिए है.”

रीढ़ पर हथौड़े पड़ रहे पर कहीं आह भी नहीं

हरिवंशआपाधापी और भागमभाग में हममें से ज्यादातर लोगों के पास वक्त नहीं है कि हम थोड़ा ठहर कर, रुक कर  देश-दुनिया के बारे में गंभीरता से सोचें-विचारें। हममें से कुछ ही लोग हैं जो यह काम कर पा रहे हैं। दुनिया किस दिशा में जा रही है और हम लोग कहां पर खड़े हैं, यह बता पा रहे हैं। समकालीन भारतीय मीडिया के सचेत व सजग संपादकों में से एक हरिवंशजी का लिखा यह आलेख अगर आपने धैर्य के साथ पढ़ लिया, तो यकीन मानिए, कुछ पल के लिए आप सकते में आ जाएंगे। सोचने के लिए मजबूर हो जाएंगे। भविष्य की दुनिया में भारत की स्थिति के बारे में जानकर कांप जाएंगे। चिंतिंत होंगे कि आखिर हम किस देश में रहते हैं। हमारे आस-पास, पड़ोस में क्या कुछ भयावह तरीके से घटित हो रहा है, 21वीं सदी का विस्तारवादी किस तरह चुपचाप हम लोगों को अपने शिकंजे में ले रहा है और हम हैं कि अपनी ही दुनिया में लीन और मगन। हरिवंशजी का लिखा यह विश्लेषण ‘प्रभात खबर’ में प्रकाशित हो चुका है। वहीं से साभार लेकर हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं। –एडिटर, भड़ास4मीडिया

अपनी संपत्ति की घोषणा पहली को करूंगा

सभी पत्रकार अपनी संपत्ति की घोषणा करें :  मैं लखनऊ समेत देश के सभी पत्रकारों से, खासतौर पर जो मान्यता प्राप्त हैं, उनसे उनकी संपत्ति घोषित करने की मांग करता हूं। समाज को पता चलना चाहिए कि इन लोगों ने किस तरह से संपत्ति को अर्जित किया है। हम कितने पाक साफ हैं, इसकी सफाई हमें समाज के सामने देना अब जरूरी हो गया है। हमारे बीच के कुछ लोगों ने खुद हम लोगों के ऊपर प्रश्न चिन्ह लगा दिये हैं। हम कलमनवीस कम समय में अकूत संपित्त अर्जित करके बड़ी-बड़ी आलीशान कोठियों तथा लक्जरी कारों में घूमने लगे हैं। आज से तीन दशक पहले अगर कोई लम्बी दाढी़ और खादी आश्रम का गांधी झोला लिये और एक टूटी-सी साईकिल में जाता दिखाई देता था तो उसे उस समय का ईमानदार कलमनवीस माना जाता था। उस समय लगभग 90 प्रतिशत लोगों के पास स्कूटर नहीं होता था। उन्हें खबर लिखने के बाद भूखे पेट सोना पड़ता था। कपड़े पर प्रेस कराने के लिये पैसे नहीं होते थे।

विचारक, लेखक, साधक, यायावर कृष्णनाथ

वह पहली मुलाकात – दृश्य याद है. चौबीस वर्ष पहले. तब 19-20 वर्ष का युवा था. जयप्रकाशनगर (गांव) में जेपी बैठे थे. कुल 15-20 लोग रहे होंगे. वह कुर्सी पर थे. शेष नीचे गद्दे पर. जेपी बिहार आंदोलन के चुनिंदा युवा नेताओं से बात कर रहे थे. यह आंदोलन का प्रशिक्षण शिविर था. चिंतन शिविर भी. जेपी के ठीक बगल में कृष्णनाथजी बैठे थे. गौर वर्ण, लंबा कद. दमदार आवाज. साफ़ सोच और खरी बातें. एक अद्भत तेज. बोलता, गूंजता व्यक्तित्व व चरित्र. जेपी के आमंत्रण पर वह युवा नेताओं से संवाद करने आये थे. विशिष्ट वक्ता के रूप में. मालूम हआ, वह काशी निवासी है. विद्यापीठ में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर. तब काशी में पढ़ता था. जाकर मिला. कुछ ही दिनों बाद काशी छूट गयी. मुंबई गया, नौकरी में.

पत्रकार संजय यादव ने की संपत्ति की घोषणा

प्रभात खबर, रांची के वरीय संवाददाता संजय यादव ने एक मिसाल कायम की है। उन्होंने स्वेच्छा से अपनी संपत्ति की घोषणा की है। पत्रकारिता में शुचिता और नैतिकता के पक्षधर देश के मशहूर पत्रकार और प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश ने पिछले दिनों भड़ास4मीडिया को दिए इंटरव्यू में खुद की संपत्ति का खुलासा करते हुए देश के सभी मीडियाकर्मियों से अपील की थी कि उन्हें अपनी संपत्ति का खुलासा करना चाहिए ताकि पत्रकारों व पत्रकारिता पर लग रहे आरोपों से बचा जा सके और पारदर्शिता की परंपरा का बरकरार रखा जा सके।

रिटायर होकर चैन से नहीं रह सकता : हरिवंश

हरिवंश

हमारा हीरो – हरिवंश (प्रधान संपादक, प्रभात खबर) : भाग-3 : मुझे और अच्छी अंग्रेजी आती तो मैंने जीवन में और अच्छा किया होता : मैं असंतुष्ट, निराश, बेचैन रहने वाला आदमी हूं : मैं बहुत साफ-साफ, दो टूक बात करता हूं :  एक भी ऐसा काम नहीं किया, जिसके लिए पश्चाताप हुआ हो या कोई ऊंगली उठा सके : मेरे अंदर आक्रोश बहुत है : मेरी नगद बचत क्या है, वह भी अगर आप चाहें तो ब्योरा दे दूं : पत्रकार पहल कर कोई संवैधानिक पीठ बनवाएं, जिससे हर पत्रकार कानूनन अपने और अपने परिवार की संपत्ति का ब्योरा उस संस्था को दे :