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अशोक पांडेय ले डूबेंगे हिंदी दैनिक ‘विश्ववार्ता’, हालत खराब

लखनऊ से प्रकाशित दैनिक ‘विश्ववार्ता’ में किसी भी क्षण ताला लग सकता है. अखबार की माली हालत इतनी ख़राब हो गई है कि न तो यहां कार्यरत कर्मचारियों को वेतन मिल पा रहा है और न ही कार्यालय का किराया प्रबंधन द्वारा भवन स्वामी को दिया गया है. बिजली विभाग ने तो लाखों रुपये का बकाया होने की वजह से एक दिन बिजली ही काट दी. इससे विश्ववार्ता प्रबंधन के हाथ पांव फूल गए. किसी तरह कुछ राशि जमा करा कर लाइन जुड़वाई गई. यहाँ कार्यरत कर्मचारी वेतन को लेकर परेशान हैं. दो-दो महीने तक सैलरी न मिल पाने से कर्मचारियों में आक्रोश देखा जा रहा है.

<p>लखनऊ से प्रकाशित दैनिक 'विश्ववार्ता' में किसी भी क्षण ताला लग सकता है. अखबार की माली हालत इतनी ख़राब हो गई है कि न तो यहां कार्यरत कर्मचारियों को वेतन मिल पा रहा है और न ही कार्यालय का किराया प्रबंधन द्वारा भवन स्वामी को दिया गया है. बिजली विभाग ने तो लाखों रुपये का बकाया होने की वजह से एक दिन बिजली ही काट दी. इससे विश्ववार्ता प्रबंधन के हाथ पांव फूल गए. किसी तरह कुछ राशि जमा करा कर लाइन जुड़वाई गई. यहाँ कार्यरत कर्मचारी वेतन को लेकर परेशान हैं. दो-दो महीने तक सैलरी न मिल पाने से कर्मचारियों में आक्रोश देखा जा रहा है.</p>

लखनऊ से प्रकाशित दैनिक ‘विश्ववार्ता’ में किसी भी क्षण ताला लग सकता है. अखबार की माली हालत इतनी ख़राब हो गई है कि न तो यहां कार्यरत कर्मचारियों को वेतन मिल पा रहा है और न ही कार्यालय का किराया प्रबंधन द्वारा भवन स्वामी को दिया गया है. बिजली विभाग ने तो लाखों रुपये का बकाया होने की वजह से एक दिन बिजली ही काट दी. इससे विश्ववार्ता प्रबंधन के हाथ पांव फूल गए. किसी तरह कुछ राशि जमा करा कर लाइन जुड़वाई गई. यहाँ कार्यरत कर्मचारी वेतन को लेकर परेशान हैं. दो-दो महीने तक सैलरी न मिल पाने से कर्मचारियों में आक्रोश देखा जा रहा है.

आर्थिक संकट से उबरने के लिए विश्ववार्ता प्रबंधन ने एक माह पहले दर्जन भर कर्मचारियों को बिना किसी पूर्व नोटिस के काम से निकाल दिया था. महीने भर से ज्यादा हो गए लेकिन उन कर्मचारियों का अभी तक कोई हिसाब नहीं किया गया है. प्रबंधन द्वारा कर्मचारियों से सीधे मुंह बात नहीं की जा रही है. अशोक पांडेय को संपादकीय निदेशक बनाकर यहां लाया गया था और उन्होंने लंबे लंबे सपने दिखाए थे लेकिन लग रहा है कि अब वही खुद इस अखबार के डूबने का कारण बनेंगे. हां, इस प्रक्रिया में निजी तौर पर अशोक पांडेय एंड टीम ने अपना अपना अच्छा खासा उल्लू सीधा कर लिया है.

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इस अखबार का सर्कुलेशन कुल जमा ढाई हजार प्रतियों का है जबकि कागजों में इसकी प्रसार संख्या 65 हजार बताई गई है. केंद्र और राज्य के लगभग सभी विभागों में इसकी सूचीबद्धता है. इतनी कम प्रसार संख्या वाले अखबार पर यूपी की अखिलेश सरकार इस तरह मेहरबान है कि इस अखबार को हर माह 8 से 10 लाख का सरकारी विज्ञापन रिलीज किया जाता है. सरकार के श्रम विभाग ने कभी यह जानने की कोशिश नहीं की कि इस अखबार का कोई कर्मचारी उनके विभाग में पंजीकृत है भी या नहीं. इस अखबार में कितने कर्मचारी काम करते हैं और उनका पीएफ कटता है या नहीं, श्रम विभाग ने यह जानने समझने की कभी जरूरत नहीं समझी. सच तो यह है कि यहाँ संपादक से लेकर चपरासी तक दिहाड़ी मजदूर हैं. किसे कब बाहर रास्ता दिखा दिया जाए और किसका कब डिमोशन कर दिया जाए, कहा नहीं जा सकता है. 

यहाँ के सभी पत्रकार सैलरी को लेकर परेशान हैं. 33, कैंट रोड लखनऊ स्थित विश्ववार्ता कार्यालय का साल भर का किराया भवन स्वामी अरुण जग्गी को नहीं दिया गया है. करीब 4 लाख 80 हजार बकाया होने पर भवन स्वामी ने प्रबंधन को कार्यालय खाली करने का नोटिस दे दिया है. विश्ववार्ता प्रबंधन उन्हें सांत्वना दे रहा है कि इसी दिसंबर माह में आपका सभी देय चुकता कर दिया जायेगा. इस अखबार के सम्पादकीय निदेशक अशोक पाण्डेय भी कर्मचारियों को राहत नहीं दिला पा रहे हैं. कहा जा रहा है कि वे अपनी नौकरी बचाने में जुटे हैं. अखबार में वैसे कोई आर्थिक बदहाली नहीं है. हर माह इतना विज्ञापन छप रहा है कि कर्मचारियों को वेतन आसानी से दिया जा सकता है लेकिन विश्ववार्ता प्रबंधन की नीयत में खोट है. वह कर्मचारियों को वेतन देने की बजाय अपनी जेब भर रहा और उनका उत्पीडन कर रहा है. मजीठिया वेतन आयोग के अनुरूप वेतन देना तो दूर, यहाँ तो छोटी मोटी तनख्वाह के भी लाले पड़े हुए हैं. प्रबंधन की मंशा अख़बार चलाने की नहीं दिखती. यहाँ के कर्मचारी भी प्रबंधन की मंशा भांप  गए हैं, इसीलिये उन्होंने दूसरे अखबारों में नौकरी तलाशनी शुरू कर दी है.

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‘विश्व वार्ता’ अखबार से हटाये गए कुछ कर्मचारियों से हुई बातचीत पर आधारित.

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