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आयोजन

महाभारत में एक भी चरित्र ऐसा नहीं है जिसे ग्रे न कहा जा सके!

हिंदू कॉलेज में दर्शन शास्त्र विभाग का वार्षिक आयोजन : “कोई मुझे सुनता नहीं है: धर्म का पालन करो, अर्थ, काम और मोक्ष स्वतः सिद्ध हो जायेंगे।”

प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल

दिव्यांश प्रताप सिंह-

दिल्ली | महाभारत व्यक्ति को नियतिवाद से कर्मवाद की ओर ले कर जाती है… सुप्रसिद्ध साहित्यकार पुरुषोत्तम अग्रवाल ने हिंदू कॉलेज के दर्शनशास्त्र विभाग के वार्षिकोत्सव में आयोजित सत्र में “कोई मुझे सुनता नहीं है: महाभारत” पर व्याख्यान दिया।

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प्रो पुरुषोत्तम अग्रवाल ने अपने वक्तव्य में महाभारत के विभिन्न आयामों को आज के जीवन से जोड़ कर समझाया। ऐसी लोक मान्यता है कि जो महाभारत में वर्णित नहीं है वह भारत में हुआ ही नहीं है। कविकर्म पर प्रकाश डालते हुए प्रो अग्रवाल ने कहा कि यह दिलचस्प है कि वेदव्यास जो कि महाभारत के लेखक हैं वे स्वयं उस महाकाव्य के पात्र भी हैं तभी वेदव्यास कहते हैं कि इस युद्ध में जो मारे गए वे मेरी ही संपत्ति थे।

आज के युग में इस महान पौराणिक काव्य के महत्व पर बोलते हुए पुरुषोत्तम अग्रवाल ने महाभारत के युद्ध की विभीषिका और उससे उत्पन्न होने वाली ग्लानि को युधिष्ठिर और भीम के संवाद के माध्यम से समझाया जहां भीम कहते हैं कि बाहरी युद्ध में तो हम आपकी सहायता कर सकते हैं पर मन के भीतर के युद्ध को व्यक्ति स्वयं ही लड़ सकता है।

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उन्होंने कहा कि महाभारत समग्र रूप से व्यक्ति के जीवन को विभिन्न आयामों पर छूता है। मनुष्य को नियतिवाद से कर्मवाद की ओर ले जाने वाला महाकाव्य है। अपनी नियति को अस्वीकार करना ही मनुष्य की नियति है।

प्रो अग्रवाल ने महाभारत से जुड़े कुछ लोकापवादों की चर्चा की और कहा कि इस महान कृति में एक भी चरित्र ऐसा नहीं है जिसे ग्रे न कहा जा सके। वक्तव्य का अंत इस आशा के साथ हुआ कि महाभारत की चर्चा युवाओं को अपने जीवन के प्रश्नों को सुलझाते हुए केंद्रीय भूमिका निभाने में सहायता करेगी। आयोजन के प्रारंभ में विभाग प्रभारी डा सुमित नंदन ने अग्रवाल का अभिनंदन किया। अंत में विभाग की वार्षिक पत्रिका फलसफा का लोकार्पण हुआ।

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हिंदी विभाग के आचार्य प्रो रामेश्वर राय, डा पल्लव, डा नीलम सिंह, इतिहास विभाग के डा शंकर कुमार, दर्शन शास्त्र के डा के एम पाठक, डा अनन्या बरुआ, डा अजय जायसवाल भी उपस्थित रहे। प्रो अग्रवाल ने विद्यार्थियों और शिक्षकों के अनेक सवालों के जवाब भी दिए। व्याख्यान में बड़ी संख्या में विद्यार्थी और शिक्षक उपस्थित थे।

लेखक, इंद्रप्रस्थ हिंदू कॉलेज दिल्ली में बतौर संपादक कार्यरत हैं.

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