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आयोजन

हम किन स्मृतियों को आगे ले जाना चाहते हैं?

‘रामगोविंद राय और रामायण राय स्मृति संस्थान’ के तत्वावधान में आयोजित परिसंवाद में स्मृतियों के कई पहलुओं पर चर्चा… स्मृतियों के रचनात्मक इस्तेमाल की सलाह… युवा संगीतकार देवेश का सम्मान, शानदार सांगीतिक प्रस्तुति.. ”स्मृति अगर वर्तमान को रचती है, भविष्य को गढ़ती है तो उसका महत्त्व है। वह वैयक्तिक भी होती है और सामूहिक भी, जातीय भी। वैयक्तिक स्मृतियाँ बहुत लम्बी नहीं होतीं लेकिन सामूहिक स्मृतियाँ लम्बी होती हैं। स्मृति सुरक्षित रहे, आगे बढ़ती रहे, इसके लिए जरूरी है बार-बार उसका दुहराया जाना। ऐसा नहीं होने पर वे नष्ट हो जातीं  हैं। जब स्मृतियों के संरक्षण की बात उठती है तो तमाम तरह के सवाल भी उठते  हैं। स्मृतियाँ अदने गरीब आदमी की भी होती हैं और अमीरों की भी। वे नकारात्मक भी होतीं हैं और सकारात्मक भी। सवाल यह है कि हम किन स्मृतियों को आगे ले जाना चाहते हैं।” 

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‘रामगोविंद राय और रामायण राय स्मृति संस्थान’ के तत्वावधान में आयोजित परिसंवाद में स्मृतियों के कई पहलुओं पर चर्चा… स्मृतियों के रचनात्मक इस्तेमाल की सलाह… युवा संगीतकार देवेश का सम्मान, शानदार सांगीतिक प्रस्तुति.. ”स्मृति अगर वर्तमान को रचती है, भविष्य को गढ़ती है तो उसका महत्त्व है। वह वैयक्तिक भी होती है और सामूहिक भी, जातीय भी। वैयक्तिक स्मृतियाँ बहुत लम्बी नहीं होतीं लेकिन सामूहिक स्मृतियाँ लम्बी होती हैं। स्मृति सुरक्षित रहे, आगे बढ़ती रहे, इसके लिए जरूरी है बार-बार उसका दुहराया जाना। ऐसा नहीं होने पर वे नष्ट हो जातीं  हैं। जब स्मृतियों के संरक्षण की बात उठती है तो तमाम तरह के सवाल भी उठते  हैं। स्मृतियाँ अदने गरीब आदमी की भी होती हैं और अमीरों की भी। वे नकारात्मक भी होतीं हैं और सकारात्मक भी। सवाल यह है कि हम किन स्मृतियों को आगे ले जाना चाहते हैं।” 

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इस तरह के तमाम  सवाल उठे, उन पर चर्चा हुई छह सितम्बर को मऊ में आयोजित एक गहन परिसंवाद में। इसका आयोजन रामगोविंद राय, रामायण राय स्मृति संस्थान  ने किया था।  विषय था, मनुष्यता के लिए क्यों जरूरी हैं स्मृतियाँ। विचार के क्रम में स्मृतियों के राजनीतिक मायने भी समझने के प्रयास हुए और बताया गया की किस तरह ताकतवर लोग या सत्ता संरचनाएं स्मृतियों का अपने पक्ष में इस्तेमाल करती हैं। देखा गया है कि जब भी सरकारें बदलती हैं, सबसे पहले इतिहास से छेड़छाड़ की कोशिश होती है। स्मृतियों का एक वस्तुनिष्ठ पक्ष होता है लेकिन उनके अनुकूल या प्रतिकूल अर्थ निकाले जाने  की संभावनाएं हमेशा बनी रहती हैं। स्मृतियाँ किसी देश का निर्माण कर सकती हैं तो उसे नष्ट भी कर सकती हैं। वे समाज को प्यार और सद्भाव के रास्ते पर भी ले जा सकती हैं और दंगे, मार- काट और अराजकता में भी धकेल सकती हैं। सत्ता हमेशा देश की स्मृतियों को कब्जे में लेने का अभियान छेड़ती हैं क्योंकि उसे  पता होता है कि उनकी अपने पक्ष में व्याख्या  लम्बे समय तक सत्ता में टिके  रहने का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

संगोष्ठी की अध्यक्षता की अभिनव कदम के सम्पादक, लेखक और कवि जयप्रकाश धूमकेतु ने। प्रमुख वक्ता के रूप में मौजूद थे साहित्य, इतिहास, राजनीति और विज्ञान की समझ से लैस आईआईटी, बीएचयू के प्रोफ़ेसर डा आर के मंडल। साहित्य और समाज पर राजनीति के प्रभाव की समझ रखने वाले बी एच यू में अंग्रेजी विभाग के प्रोफ़ेसर डा संजय कुमार, वरिष्ठ पत्रकार और लेखक बंशीधर मिश्र और कथाकार एवं गाँव के लोग के सम्पादक रामजी यादव ने विशिष्ट वक्ता के रूप में अपनी भूमिका निभाई। रामगोविंद राय, रामायण राय स्मृति संस्थान के संयोजक राजेंद्र राय ने बताया कि इस वर्ष भारतीय शास्त्रीय संगीत के युवा गायक देवेश सिंह उर्फ़ राजा सिंह को सम्मानित किया गया।  उन्हें प्रशस्ति पत्र एवं 11  हजार रुपये की धनराशि पुरस्कार स्वरुप  प्रदान  की गयी। कार्यक्रम के उत्तरार्ध में प्रखर संगीत शिक्षक डा गिरिजा शंकर तिवारी के शिष्य देवेश और बलवंत सिंह ने सांगीतिक प्रस्तुति दी।

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जयप्रकाश धूमकेतु ने बीज वक्तव्य के लिए सोनी पांडेय की सराहना की, फोक पर गंभीर काम के लिए प्रो संजय कुमार का विशेष उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि जो स्मृतियों का रचनात्मक उपयोग नहीं करेंगे, समय उनका अपराध दर्ज करेगा–जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध। प्रो आर के मंडल ने स्मृतियों की जटिलताओं की ओर इशारा करते हुए कहा कि हम सांझी स्मृतियों वाले लोग हैं लेकिन उन्हें ही ख़त्म कर देने की कोशिशें चल रहीं हैं। कोई आप की आलोचना करे तो उसे मार दोगे, उस पर हमला कर दोगे, कहोगे स्टेट की आलोचना करना अपराध है। अरे भाई ये आजादी तो हमें हमारे संविधान ने दी है।


इस आयोजन के कुछ दृश्य इस वीडियो में कैद है, क्लिक करें :

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प्रो संजय कुमार ने स्मृति के महत्त्व को गंभीरता से रेखांकित करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि अतीत की स्मृतियाँ और भविष्य की परिकल्पना वर्तमान को गढ़ती हैं। इसी अर्थ में स्मृतियाँ महत्वपूर्ण हैं।  प्रो संजय कुमार ने स्मृतियों के एक खतरनाक पक्ष का भी संकेत किया। सत्ता संरचनाएं हमेशा देश की स्मृतियों पर नियंत्रण की कोशिश करती हैं।  उन्हें पता होता है कि इनकी अनुकूल व्याख्या कर वे अपनी नींव मजबूत कर सकती हैं।

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श्री बंशीधर मिश्र ने इतिहास, संस्कृति और साहित्य का हवाला देते हुए कहा कि युद्ध और मौतें जिनके हाथ का खिलौना हैं, उनके हाथ में हमारी सभ्यता को खतरा है। रामजी यादव ने कहा कि हमें तय करना होगा की हम किस तरह की स्मृतियाँ सुरक्षित रखना चाहते हैं। अच्छी स्मृतियों को बनाये रखने के लिए बुरी स्मृतियों से लड़ने की जरूरत है।  युवा कथाकार और कवयित्री सोनी पांडेय ने विषय रखते हुए स्मृतियों में बेटियों की जगह का प्रश्न उठाया, इतिहास और साहित्य के सबक की चर्चा की और स्मृतियों के रचनात्मक उपयोग की सलाह दी। इस अवसर पर श्री राजेंद्र राय, दीनानाथ राय, हरे राम सिंह, रवींद्र  राय, डा झारखंडे राय, प्रभात कुमार राय, संदीप कुमार राय, शशिप्रकाश राय, रवि प्रकाश, वेदप्रकाश ने अपने विचार रखे। पहले सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार सुभाष राय ने और दूसरे सत्र का संगीत के जानकार प्रमोद राय ने किया।  स्मृति सभा में बड़ागांव तथा आस-पास के गाँवों और मऊ के सैकड़ों लोग मौजूद थे।

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