अल्मोड़ा। विगत दिनों पालिका विस्तार मामले में अपने खिलाफ छपे बयानों से असहज हुए उत्तराखण्ड विधानसभा उपाध्यक्ष इतना उखड़े कि अपनी ही बुलाई गयी पत्रकार वार्ता में उनके खिलाफ बयान छापने को ‘नीच पत्रकारिता’ की संज्ञा दे बैठे। इसका वहां आये पत्रकारों ने विरोध किया तो वह कहने लगे कि उन्होंने अपने खिलाफ बयान देने वाले लोगों को नीच कहा है, पत्रकारों को नहीं। काफी बहस के बाद वह जब अपने को डिफेंड नहीं कर सके तो मांफी मांगते नजर आये।
विधानसभा उपाध्यक्ष व अल्मोड़ा के विधायक रघुनाथ सिंह चौहान ने एक होटल में एक प्रेस वार्ता आयोजित की थी। पत्रकारों ने जब उनसे अल्मोड़ा से सटे २३ गांवों को पालिका में शामिल करने पर हो रहे जनविरोध पर उनका पक्ष जानने का प्रयास किया तो संवैधानिक पद पर बैठे विधायक महोदय एकदम से उखड़ पडे और जबान इतनी फिसली कि पत्रकारों को ही नीच कह बैठे। इनके इस कथन से पत्रकार बिफर पड़े और हालत यह हो गयी थी कि पत्रकार प्रेस वार्ता छोड़कर जाने का तैयार हो गये थे। किसी तरह मामला संभल सका। श्री चौहान ने आगे कहा कि कुछ लोग पालिका के विस्तार पर ओछी राजनीति कर रहे हैं और वह उन्हें चेतावनी देते हैं कि सुधर जायें। कहा कि यदि गांवों के लोग पालिका में शामिल नहीं होना चाहते तो उन्हें जबरन पालिका में शामिल नहीं किया जायेगा।
उन्होंने कहा कि इस मामले में वह बेहद संजीदा है और पूर्व में मुख्यमंत्री को उन्होंने ज्ञापन देकर ग्रामीण क्षेत्र की जनता की इच्छा के बिना पालिका में शामिल नहीं करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि अभी जनता से आपत्तियां मांगी जा रही है और किसी भी क्षेत्र को जबरन शामिल नहीं होने दिया जायेगा। अपने छह माह के कार्यकाल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जरूरतमंद लोगों को उन्होंने मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से सहायता उपलब्ध करवाई।
विधायक जी पत्रकारों से तो मांफी मांग ली जनता को नीच कहने पर माफी कब मांगोगे
अल्मोड़ा। आज पत्रकार वार्ता में मांफी संवैधानिक पद पर बैठे अल्मोड़ा के विधायक रघुनाथ सिंह चौहान ने पत्रकारों से तो यह कहकर मांफी मांग ली कि यह कथन उन्होंने उनके खिलाफ बयानबाजी कर रहे लोगों के लिये दिया था जबकि असलियत यह है कि जिस शब्द ‘नीच पत्रकारिता’ का उन्होंने जिक्र किया वह पत्रकारिता से जुड़े लोगों के लिये प्रयुक्त हो सकता है। यदि वह अपने खिलाफ बयान देने वाले लोगों के लिये यह शब्द प्रयुक्त कर रहे थे तो जिस जनता के वह प्रतिनिधि हैं, वह ‘आदरणीय’ से ‘नीच’ कैसे हो गये।