इन दिनों आज तक, एबीपी न्यूज और इंडिया टीवी, ये तीनों समाचार चैनल खुद के नंबर वन होने का दावा कर रहे हैं. पहले भी करते रहे हैं, लेकिन नोटबंदी के बाद उनके दावे में एक नई बात ये शामिल हुई है कि नोटबंदी के बाद इन्होंने हर चैनल यानी मनोरंजन चैनल्स वगैरह को भी पछाड़ दिया और रिकार्ड दर्शक संख्या हासिल की. अब सवाल यह उठता है कि आखिर इनमें से कौन-सा चैनल वाकई नंबर वन है?
यह सवाल दर्शकों की तरफ से ही नहीं, बल्कि सरकारी और निजी विज्ञापनदाताओं की तरफ से भी पूछा जाना चाहिए, क्योंकि इनके विज्ञापनों का रेट उनकी दर्शक संख्या के आधार पर ही तय होते हैं. यानी अगर इनमें से कोई भी झूठा दावा कर रहा है, तो वह दर्शकों ही नहीं, बल्कि अपने विज्ञापनदाताओं की आंखों में भी धूल झोंक रहा है. इंडिया न्यूज ने ऊंची टीआरपी हासिल करने के लिए हाल ही में क्या खेल खेला, जिसके कारण बीएआरसी ने उसे टीआरपी लिस्ट से बेदखल किया, यह सभी जानते हैं. तो क्या अन्य चैनलों पर सरकार की नजर है? क्या उनके नंबर वन होने के दावे की सरकारी एजेंसियां किसी तरह से पुष्टि करती हैं या ऐसे ही आंखें मूंदकर उन्हें विज्ञापन जारी कर देती हैं? जैसा कि अखबारों यानी प्रिंट मीडिया में होता है.
मुंबई से एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
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